जहां अभियोजन पक्ष प्रारंभिक या अपूर्ण आरोप पत्र दाखिल करता है, वहां आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार है: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

16 Sep 2023 9:24 AM GMT

  • जहां अभियोजन पक्ष प्रारंभिक या अपूर्ण आरोप पत्र दाखिल करता है, वहां आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने का अधिकार है, जहां अभियोजन वैधानिक अवधि के भीतर प्रारंभिक या अधूरा आरोप पत्र दाखिल करता है।

    जस्टिस अमित शर्मा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार और सीआरपीसी की धारा 167(2) के साथ इसका सह-संबंध वर्षों से न्यायिक उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया है।

    कोर्ट ने कहा,

    “सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत किसी आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार उस मामले में उत्पन्न होगा, जहां निर्धारित अवधि के भीतर आरोप पत्र दायर नहीं किया गया। डिफॉल्ट जमानत के अधिकार को जन्म देने वाली दूसरी परिस्थिति वह होगी, जहां अभियोजन पक्ष प्रारंभिक या अपूर्ण आरोप पत्र दाखिल करता है, उसमें उल्लिखित अपराधों के लिए निर्धारित अवधि के भीतर और उस प्रक्रिया में आरोपी के वैधानिक जमानत के अधिकार को पराजित किया जाता है।

    अदालत ने हत्या के मामले में आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत देने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं। भारतीय दंड संहिता, 1860 की (आईपीसी) धारा 302 और 34 और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 और 27 के तहत अपराध के लिए 2021 में एफआईआर दर्ज की गई थी।

    आरोपी को 08 सितंबर, 2021 को गिरफ्तार किया गया था। उसे दो दिनों की पॉलिसी हिरासत में भेज दिया गया था, जिसके बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था। जांच पूरी होने पर 02 दिसंबर 2021 को आरोप पत्र दाखिल किया गया।

    14 मार्च को पहला पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था, जिसमें सह-अभियुक्त के पास से बरामद पिस्तौल के संबंध में एफएसएल रिपोर्ट शामिल थी। 18 अप्रैल को दूसरा पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था, जिसमें ब्लड सैंपल के डीएनए विश्लेषण के संबंध में एफएसएल रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रखा गया।

    जून में सत्र अदालत ने सीआरपीसी की धारा 167 के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग करने वाले आरोपी के आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चूंकि पूरी चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है। इसलिए आरोपी की वैधानिक जमानत का अधिकार समाप्त हो गया। ट्रायल कोर्ट ने कहा कि जो एकमात्र जांच लंबित है वह आईओ के नियंत्रण में नहीं है और बाहरी एजेंसियों की रिपोर्ट जैसे बाहरी कारकों पर निर्भर है।

    अभियुक्त का मामला यह है कि यद्यपि आरोपपत्र निर्धारित समय के भीतर दायर किया गया, लेकिन यह अधूरा है। इसलिए वह डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार है। उन्होंने कहा कि मुख्य आरोप पत्र और पूरक आरोप पत्र कुछ दस्तावेजों के दाखिल न होने के कारण अधूरे है।

    दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है। उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत है, जिन्हें मुख्य आरोप पत्र के साथ रिकॉर्ड पर रखा गया था। इसमें चश्मदीद गवाहों के बयान भी शामिल थे।

    याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि पहली चार्जशीट दाखिल होने तक आरोपी के खिलाफ जांच पूरी हो चुकी है और उसके खिलाफ रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्री है।

    अदालत ने कहा,

    “केवल एफएसएल रिपोर्ट दाखिल न करना यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वर्तमान मामले में दायर आरोपपत्र अधूरा है। उक्त रिपोर्ट पूरक आरोप पत्र के माध्यम से दायर की जा सकती है। किसी भी मामले में अभियोजन पक्ष का मामला मुख्य रूप से शिकायतकर्ता के चश्मदीद गवाह के बयान पर आधारित है।”

    इसके अलावा, जस्टिस शर्मा ने कहा कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच जारी रह सकती है।

    अदालत ने कहा,

    “एक्सपर्ट की राय हमेशा पूरक आरोप पत्र द्वारा ट्रायल कोर्ट के समक्ष दायर की जा सकती है। यह नोट करना और भी प्रासंगिक है कि वर्तमान मामले में निचली अदालत ने आरोप पत्र दायर होने के बाद संज्ञान लिया था और याचिकाकर्ता द्वारा उक्त आदेश को चुनौती नहीं दी गई थी।”

    हालांकि जस्टिस शर्मा ने आरोपी को गुण-दोष के आधार पर जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट में जाने की छूट दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके समक्ष आवेदन डिफ़ॉल्ट जमानत के मुद्दे तक ही सीमित था और आदेश में मामले की योग्यता पर कोई राय नहीं है।

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