हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

2 Sep 2023 3:58 PM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (28 अगस्त, 2023 से 01 अगस्त, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    जब मृतक अति-संवेदनशील हो तो आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी पर मुकदमा चलाना सुरक्षित नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब मृतक अति-संवेदनशील हो तो आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के लिए किसी आरोपी पर मुकदमा चलाना सुरक्षित नहीं होगा। जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा कि भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध गठित करने के लिए मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आरोपी का उकसाना और इरादा होना चाहिए।

    केस टाइटल: रेखा रानी और अन्य बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य

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    ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण | एएसआई ने सर्वे रिपोर्ट जमा करने के लिए 8 सप्ताह का और समय मांगा

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने ज्ञानवापी सर्वेक्षण संबंधित रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 8 सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा है। उन्हें 2 सितंबर तक सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश करना था, हालांकि एएसआई ने वाराणसी कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर कर अतिरिक्त समय की मांग की।

    आवेदन में एएसआई की ओर से पेश वकील ने कहा है कि सर्वेक्षण में कुछ और समय लगने की उम्मीद है, क्योंकि तहखाने में फर्श समेत संरचना के चारों ओर कचरा, मिट्टी और बहुत सारा मलबा पड़ा हुआ है, जिनसे संरचना की मूल विशेषताएं ढंकी हुई हैं। एएसआई को उन्हें साफ करने में समय लग रहा है।

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    पति के परिवार के सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न या बलात्कार का झूठा आरोप लगाना बेहद क्रूरता का कार्य: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पति के रिश्‍तेदारों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न या बलात्कार के झूठे आरोप लगाना बेहद क्रूरता का कार्य है। कोर्ट ने कहा, ऐसे कार्य के ‌‌लिए किसी भी प्रकार की माफी नहीं हो सकती है।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणी की। फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में एक पति को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (1) (आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर पत्नी से तलाक का हकदार माना था।

    केस टाइटल: ए बनाम एस

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    पार्टनर का शोषण करना, उसका दुख कम करने की कोशिश न करना आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध हो सकता है : कोर्ट ने प्रत्यूषा बनर्जी आत्महत्या मामले में बॉयफ्रेंड को बरी करने से इनकार किया

    मुंबई के एक सेशन कोर्ट ने 2016 में अभिनेत्री प्रत्यूषा बनर्जी को आत्महत्या को उकसाने के आरोपी इवेंट प्लानर राहुल राज सिंह को आरोपमुक्त करने से इनकार करते हुए कहा कि अपने साथी का इस हद तक शोषण करना कि उसको जीने की इच्छा न करे और उसकी तकलीफ कम करने के लिए कोई कदम न उठाना, आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध हो सकता है।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसजे अंसारी ने प्रथम दृष्टया पाया कि बनर्जी के लिव-इन पार्टनर सिंह ने उसके जीवन को " जीते जी नरक" बना दिया और कहा जा सकता है कि उसने जानबूझकर उसे आत्महत्या के लिए उकसाया।

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    अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन: पटना हाईकोर्ट ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए चयन समिति के "अनुमोदन" की आवश्यकता वाला संशोधन खारिज किया

    पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि बिहार राज्य में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अब नियुक्ति, पदोन्नति, बर्खास्तगी, सेवामुक्ति, सेवा से निष्कासन और सेवा समाप्ति या शिक्षकों की पदावनति से संबंधित मामलों में "अनुमोदन" लेने के बजाय केवल अपने संबंधित यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन से परामर्श करने की आवश्यकता होगी।

    अदालत का फैसला बिहार राज्य यूनिवर्सिटी (संशोधन) एक्ट, 2013 की धारा 4(5) को चुनौती देने वाले दो रिट आवेदनों के जवाब में आया। उक्त आवेदनों में बिहार राज्य यूनिवर्सिटी एक्ट, 1976 की धारा 57ए को प्रतिस्थापित किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि संशोधित धारा इसका उल्लंघन करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों की गारंटी दी गई है।

    केस टाइटल: नूर आलम खान बनाम बिहार राज्य और अन्य

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    'मांस की अनिधिकृत बिक्री की संभावना के आधार पर मांस की दुकान के लिए एनओसी देने से इनकार नहीं किया जा सकता': इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मांस की अनिधिकृत बिक्री की संभावना खुदरा मांस की दुकान के लिए 'अनापत्ति प्रमाणपत्र' (एनओसी) देने से इनकार करने का कोई आधार नहीं।

    जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस मनीष कुमार की खंडपीठ ने पुलिस सुपरिटेंडेंट, अंबेडकर नगर, को खुदरा मांस की दुकान खोलने के लिए एनओसी देने के लिए मोहम्मद शकील द्वारा दायर आवेदन पर पुनर्विचार करने और नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल- मो. शकील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. खाद्य एवं आपूर्ति सिविल सचिवालय। अपर, लको. और अन्य [WRIT - C No. - 5534/2023]

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    एससी/एसटी एक्ट का संरक्षण उन राज्यों तक ही सीमित नहीं, जहां पीड़ितों को एससी/एसटी के रूप में मान्यता दी जाती है, यह जहां भी अपराध होता है वहां लागू होता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (अत्याचार निवारण अधिनियम) के तहत अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति (SC/ST Act) के सदस्यों की सुरक्षा उन राज्यों तक सीमित नहीं की जा सकती, जहां पर उनको आधिकारिक तौर पर SC/ST के रूप में मान्यता प्राप्त है।

    जस्टिस रेवती मोहिते डेरे, जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस एनजे जमादार की फुल बेंच ने कहा कि भले ही किसी राज्य में किसी समुदाय को एससी या एसटी के रूप में मान्यता नहीं दी गई हो, फिर भी अगर वहां उनके खिलाफ कोई अत्याचार होता है तो उन्हें अधिनियम का संरक्षण मिलता है। (संजय काटकर बनाम महाराष्ट्र राज्य)।

    केस टाइटल: संजय काटकर बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    आरोपी व्यक्तियों के बीच रिकॉर्ड की गई टेलीफोनिक बातचीत अवैध रूप से प्राप्त की गई हो तो भी साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक फैसले में कहा कि भले ही दो आरोपी व्यक्तियों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत अवैध रूप से सहेजी गई हो, इससे ऐसे आरोपियों के खिलाफ रिकॉर्ड की गई बातचीत की साक्ष्य के रूप में स्वीकार्यता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

    जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में एक आरोपी (महंत प्रसाद राम त्रिपाठी) को आरोप मुक्त करने से इनकार करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटलः महंत प्रसाद राम त्रिपाठी @ एमपीआर त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य सीबीआई/ एसीबी लखनऊ के माध्यम से और अन्य [क्रिमिनल रीविजन नंबर-935/ 2023]

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    न्यायालय किसी दस्तावेज़ को साक्ष्य के रूप में लेने से केवल इसलिए इनकार नहीं कर सकता क्योंकि वह कमजोर फोटोस्टेट कॉपी या कथित तौर पर मनगढ़ंत है : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि ट्रायल कोर्ट का ऐसा आदेश जिसमें कुछ दस्तावेजों को केवल यह कहकर रिकॉर्ड पर लेने से इनकार किया गया हो कि वे फोटोस्टेट हैं या दस्तावेजों को केवल यह कहकर रिकॉर्ड पर लेने से इनकार किया गया हो कि अभियोजन पक्ष द्वारा उन पर कमजोर दस्तावेज़ या मनगढ़ंत दस्तावेज़ होने का आरोप लगाया गया है, न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

    जस्टिस डॉ. वीआरके कृपा सागर ने कहा, "इन दस्तावेजों की सामग्री की सच्चाई या अन्यथा यह एक ऐसा मामला है जिसका निर्णय मुकदमे में किया जाना चाहिए, न कि दस्तावेज़ प्राप्त करने की दहलीज पर।"

    केस टाइटल : ए. कामेश्वर राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 438(4) | यदि आरोप प्रथम दृष्टया झूठे हों तो कुछ बलात्कार अपराधों के लिए अग्रिम जमानत देने पर रोक नहीं होगी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि यदि ऐसे अपराध प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से नहीं बने हैं, या आरोप झूठे प्रतीत होते हैं तो कुछ बलात्कार अपराधों के लिए अग्रिम जमानत देने पर रोक, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 438 (4) के तहत दर्शाया गया है, लागू नहीं होगी। सीआरपीसी की धारा 438(4) और धारा 376(3), 376 एबी, 376 डीए, और धारा 376 डीबी के तहत दंडनीय अपराधों में कथित रूप से शामिल आरोपी को अग्रिम जमानत पर रोक लगाती है।

    केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार को POCSO आरोपी को जमानत देने का गैर-तर्कसंगत आदेश पारित करने के लिए ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार (विजिलेंस) को POCSO आरोपी को जमानत देने का "गैर-तर्कसंगत" आदेश पारित करने के लिए ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया है। जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा, “इस न्यायालय के रजिस्ट्रार(विजिलेंस) को संबंधित न्यायाधीश से प्रशासनिक पक्ष पर स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया गया है कि गैर-तर्कसंगत आदेश पारित करने के कारणों के बारे में संबंधित माननीय निरीक्षण न्यायाधीश समिति के समक्ष एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट रखी जाएगी।"

    केस टाइटल : एमएस. एन बनाम राज्य और अन्य

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    मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट तमिलनाडु सरकार के कर्मचारियों पर लागू नहीं, तीसरे बच्चे के लिए कोई लीव नहीं, भले ही पहले दो बच्चे सेवा में शामिल होने से पहले पैदा हुए हों: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्य में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी तमिलनाडु सरकार के मौलिक नियमों द्वारा शासित होते हैं, न कि मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के द्वारा। अदालत ने इस प्रकार कहा कि ऐसे कर्मचारी तीसरे के लिए भी मैटरनिटी लीव नहीं मांग सकते। जब राज्य की नीति इसे प्रतिबंधित करती है तो बच्चे को एक अधिकार के रूप में माना जाता है।

    जस्टिस एन सतीश कुमार ने निम्नानुसार कहा, “...वर्तमान मामले के तथ्य यह हैं कि याचिकाकर्ता के तीन जैविक बच्चे हैं। जब राज्य की नीति और मौलिक नियम तीसरे बच्चे के लिए मैटरनिटी लीव को प्रतिबंधित करते हैं तो इस न्यायालय का मानना है कि अधिकार का मामला होने के कारण याचिकाकर्ता मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट के आधार पर मैटरनिटी लीव की मांग नहीं कर सकता। उसी को ध्यान में रखते हुए विवादित आदेश बरकरार रखा जाना चाहिए।”

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    पेंशन कर्मचारियों के लिए लाभकारी प्रावधान, इसकी सीमित व्याख्या इसके उद्देश्य को कमजोर करती है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही हाल ही में जोर देकर कहा कि पेंशन नियमों की कोई भी प्रतिबंधात्मक व्याख्या इसके उद्देश्य को कमजोर कर देगी। जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा कि पेंशन नियमों पर इस परिप्रेक्ष्य से विचार किया जाना चाहिए कि यह सरकारी कर्मचारी इसे जनता को दी गई सेवाओं के बदले अर्जित करता है। “एक सरकारी कर्मचारी जनता को दी गई सेवाओं के बदले में पेंशन अर्जित करता है।

    अपनी नौकरी के दरमियान मासिक परिलब्धियों के जरिए वह जो भी कमाता है, उसके अलावा यह वह सुरक्षा है, जिसके लिए वह जनता की सेवा करता है। पेंशन की राशि के वितरण के लिए मानक निर्धारित करने वाले नियमों पर उसी परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाना चाहिए। चूंकि यह सरकारी कर्मचारी के लिए लाभकारी प्रावधान है, इसलिए कोई भी संकीर्ण निर्माण समान छूट देने के उद्देश्य को व्यर्थ करेगा।"

    केस टाइटल: वीणा देवी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य

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    सीनियर सिटीजन बच्चों से पिछले भरण-पोषण का दावा करने के हकदार: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह माना कि विशिष्ट वैधानिक प्रावधानों की कमी अदालतों को सीनियर सिटीजन के पक्ष में पिछले भरण-पोषण के दावों की अनुमति देने से नहीं रोकती। जस्टिस ए. मुहम्मद मुश्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने कहा कि पूर्वव्यापी भरण-पोषण की मांग करने के लिए वैधानिक प्रावधानों की कमी का मतलब यह नहीं है कि कानून सीनियर सिटीजन को अपने बच्चों से पिछले भरण-पोषण के दावे करने से रोकता।

    केस टाइटल: चंडी समुवल बनाम साइमन समुवाल

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    'घायलों/मृतकों की लापरवाही' को आधार बनाना खतरनाक गतिविधि में लगे उद्यमों के लिए कोई बचाव नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि खतरनाक गतिविधियों में लगे उद्यम या विभाग इस आधार पर मुआवजा देने से छूट का दावा नहीं कर सकते कि दुर्घटना घायल या मृत व्यक्तियों की लापरवाही के कारण हुई। जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राहुल भारती की खंडपीठ ने कहा, “यह दलील कि दुर्घटना घायल या मृतक की लापरवाही के कारण हुई, जैसा भी मामला हो, खतरनाक या स्वाभाविक रूप से खतरनाक गतिविधि में लगे ऐसे उद्यम या विभाग के लिए उपलब्ध नहीं है।”

    केस टाइटल: जम्मू-कश्मीर राज्य और अन्य बनाम मंजीत कौर और अन्य

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    आपसी सहमति से तलाक | हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी प्रक्रियात्मक और सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता करने वाले पक्षकारों के मूल अधिकार को प्रभावित नहीं करेगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कूलिंग-ऑफ पीरियड माफ किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में विवाहित जोड़े के लिए कूलिंग-ऑफ पीरियड माफ कर दिया। कूलिंग-ऑफ पीरियड माफ करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि उन्होंने सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता ज्ञापन दर्ज करने के बाद हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत विवाह विच्छेद के लिए पारस्परिक रूप से दायर किया। कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया का हवाला देकर अपने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने वाले दोनों पक्षकारों के मूल अधिकार में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: एति त्यागी बनाम प्रिंस त्यागी [पहली अपील नंबर- 170/2023]

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    धारा 311 सीआरपीसी | गवाह को मजबूत और वैध कारणों से वापस बुलाया जाना चाहिए, पूर्वाग्रह के कारण नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत किसी गवाह को तभी वापस बुलाना चाहिए जब ऐसा करने का कोई मजबूत और वैध कारण हो। सक्षम प्राधिकारी को ऐसे कारण को दर्ज भी करना चाहिए। जस्टिस के बाबू ने कहा, “मामले के उचित निर्णय के लिए गवाह को वापस बुलाना खोखली प्रक्रिया नहीं है। उचित निर्णय के उद्देश्य से ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए एक मजबूत और वैध कारण को दर्ज किया जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: कार्तिक एस नायर बनाम केरल राज्य

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    अंतरिम भरणपोषण | अलग रह रही पत्नी को दावे की तारीख से न्यूनतम राशि देय होगी, यह उसके जीवन और स्वतंत्रता को गरिमापूर्ण बनाने के लिए आवश्यक : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद जुड़े एक मामले में कहा है कि अलग रह रही पत्नी को उसके जीवन और स्वतंत्रता को गरिमापूर्ण बनाए रखने के लिए दावे की तारीख से न्यूनतम राशि का भुगतान किया जाना चाहिए। कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण पर फैमिली कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर की गई अपील यह ‌टिप्‍पणी की। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के आदेश के तहत पत्नी और बच्चों को दिए गए 7,000 रुपये के अंतरिम भरण-पोषण को बरकरार रखा।

    केस टाइटल: पुष्पेंद्र सिंह बनाम श्रीमती सीमा

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    कोर्ट के आदेश के बिना पुलिस सीआरपीसी की धारा 102 के तहत अचल संपत्ति जब्त नहीं कर सकती: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पुलिस सक्षम अदालत के आदेश के बिना आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 102 के तहत अचल संपत्ति जब्त नहीं कर सकती है। जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता के स्वामित्व वाली एक फैक्ट्री परिसर को सील करने का आदेश दिया, जहां पर अवैध कोयला व्यापार किए जाने का आरोप था।

    केस टाइटल: अभय कुमार सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    आपराधिक मामले में बरी करने से विभागीय कार्यवाही प्रभावित नहीं होती, जब तक कि बरी करना 'साफ या सम्मानजनक' न हो: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि आपराधिक कार्यवाही में बरी करने के आदेश का विभागीय कार्यवाही पर कोई असर नहीं होगा जब तक कि बरी करना साफ-सुथरा या सम्मानजनक न हो। जस्टिस रविनाथ तिलहरी और जस्टिस मनमाधा राव की खंडपीठ आंध्र प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एपीएटी) के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने खुद को जिला रजिस्ट्रार कार्यालय में कनिष्ठ सहायक के पद पर वापस बहाल कराने के लिए एपीएटी के समक्ष आवेदन किया था, जिसे खरिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल: कोल्लीपारा कोटेश्वर राव (मृत) बनाम पंजीकरण महानिरीक्षक और अन्य।

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    अपीलीय निकाय को बिना सबूत के अनुशासनात्मक कार्यवाही के मामलों पर पुनर्विचार करना चाहिए, न कि केवल पिछले आदेशों को दोहराना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब अनुशासनात्मक कार्यवाही में आरोपी को घटना से जोड़ने का कोई सबूत नहीं है तो अपीलीय प्राधिकारी को केवल पिछले आदेशों को दोहराए बिना विशिष्ट तर्कों को संबोधित करके मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

    जस्टिस देवन रामचन्द्रन ने इस प्रकार कहा: "इसलिए मेरा दृढ़ विचार है कि "काउंसिल" की कार्यकारी समिति के समक्ष उन्हें सुनवाई के आवश्यक अवसर प्रदान करने के बाद, उनके विशिष्ट तर्क को संबोधित करते हुए याचिकाकर्ताओं की अपील पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। यह एक ऐसा मामला है, जहां उन्हें कथित घटना से जोड़ने के लिए कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा उक्त घटना कभी हुई ही नहीं, जैसा कि उनके द्वारा साक्ष्यों और गवाहों की गवाही से स्थापित किया जा सकता है। यह सवाल कि क्या उन्हें दी गई सजा में विभिन्न अन्य कम करने वाले कारकों के कारण और कमी की आवश्यकता होगी, जैसा कि देखा या अनुमानित किया जा सकता है। उक्त कार्यकारी समिति का ध्यान भी एकाग्रचित होना चाहिए।

    केस टाइटल: डॉ. राजू एंटनी बनाम केरल स्टेट काउंसिल फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड एनवायरनमेंट एंड कनेक्टेड केस

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    सीआरपीसी | पुनर्विचार न्यायालय अपीलीय न्यायालय के रूप में कार्य नहीं कर सकता, निर्णय जब तक पूरी तरह से त्रुटिपूर्ण न हो, उसे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 397 से 401 के तहत पुनर्विचार न्यायालय की शक्ति को अपीलीय न्यायालय के बराबर नहीं किया जा सकता। जस्टिस के बाबू की पीठ ने मजिस्ट्रेट द्वारा पारित बर्खास्तगी का आदेश बरकरार रखा।

    उन्होंने कहा, "जब तक अदालत का निष्कर्ष, जिसके फैसले को संशोधित करने की मांग की गई, कानून में विकृत या अस्थिर नहीं दिखाया गया, या पूरी तरह से गलत या स्पष्ट रूप से अनुचित है, या जहां निर्णय किसी भी सामग्री पर आधारित नहीं है, या जहां भौतिक तथ्यों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया, या जहां न्यायिक विवेक का प्रयोग मनमाने ढंग से या स्वेच्छा से किया जाता है, अदालतें अपने पुनर्विचार क्षेत्राधिकार के प्रयोग में निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

    केस टाइटल: ललिता वी कृष्णा पिल्लई

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    कर्मचारी सर्विस लिटिगेशन के लिए आरटीआई एक्ट के तहत सहकर्मी के सर्विस रिकॉर्ड की मांग कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सूचना आयुक्त द्वारा पारित वह आदेश रद्द कर दिया है, जिसमें कॉलेज प्रोफेसर द्वारा अपने सहकर्मी के सर्विस रिकॉर्ड विवरण की मांग करने वाला आवेदन खारिज कर दिया गया था। जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल पीठ ने ए एस मल्लिकार्जुनस्वामी द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली। साथ ही आयोग की याचिका रद्द कर दी, जिसके तहत सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) (जे) के प्रावधानों का हवाला देते हुए उनके आरटीआई आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था।

    केस टाइटल: ए एस मल्लिकार्जुनस्वामी, और राज्य सूचना आयुक्त और अन्य।

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    अन्यथा पात्र अभ्यर्थी को उसकी आसवधानी के कारण अवसर देने से इनकार करने का कोई कारण नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने NEET-PG अभ्यर्थी को जाति सुधारने और कोटा प्राप्त करने की अनुमति दी

    कर्नाटक हाईकोर्ट एक 23 वर्षीय छात्रा के पक्ष में आगे आया है। छात्रा राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-पीजी (एनईईटी-पीजी) के लिए ऑनलाइन पंजीकरण आवेदन भरते समय ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित कोटा के तहत अनजाने में अपनी जाति का चयन करने में विफल रही।

    जस्टिस जी नरेंद्र और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने डॉ. लक्ष्मी पी गौड़ा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज को निर्देश दिया कि वह उन्हें आवेदन/स्कोर कार्ड के कॉलम नंबर 7 में प्रविष्टि को सही करने की अनुमति दें और इसे सामान्य से ओबीसी में पढ़ने के लिए संशोधित करें।

    केस टाइटल: डॉ. लक्ष्मी पी गौड़ा और नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज और अन्य

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    मानहानि का मामला| केजरीवाल की पुनर्विचार याचिका स्थानांतरित, गुजरात हाईकोर्ट ने 10 दिन में फैसला करने का निर्देश दिया

    गुजरात हाईकोर्ट ने प्रिंसिपल सेशंस सिटी सिविल कोर्ट, अहमदाबाद को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आप राज्यसभा सांसद संजय सिंह की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को एक अलग अदालत में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया और अदालत को 10 दिनों के भीतर मामले का फैसला करने का आदेश दिया।

    स्थानांतरण का कारण यह है कि पुनरीक्षण याचिका पर विचार करने वाला पीठासीन अधिकारी वर्तमान में छुट्टी पर है। दरअसल, केजरीवाल और सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री केजरीवाल पर कथित रूप से कई टिप्पणियां की थी, जिसके बाद गुजरात यूनियवर्सिटी ने उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि मामला दायर किया, जिसकी सुनवाई के संबंध में अहमदाबाद की एक मेट्रोपोलिटन अदालत ने उन्हें समन जारी किया, जिसे मौजूदा मामले में उन्होंने चुनौती दी है।

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    सीपीसी - दस्तावेज़ प्राप्त करने के लिए न्यायालय कोई डाकघर नहीं है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि प्रतिवादी आदेश VIII नियम 1ए (3) सीपीसी में आवेदन दाखिल करते समय लिखित बयान के साथ दस्तावेज दाखिल करने में विफल रहते हैं तो उन्हें पर्याप्त कारण बताने चाहिए। जस्टिस बीवीएलएन चक्रवर्ती ने कहा कि प्रावधान यह कहता है कि इस नियम के तहत प्रतिवादी द्वारा दस्तावेजों को अदालत में पेश किया जाना चाहिए, लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो अदालत की अनुमति के बिना मुकदमा की सुनवाई के दौरान उसकी ओर से साक्ष्य के रूप में प्राप्त नहीं किया जाएगा।

    केस टाइटल : कोट्टाकोटा लक्कप्पा बनाम बी. लक्कप्पागारी चिक्कैया

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    ज्ञानवापी मस्जिद के वुज़ुखाना क्षेत्र में 'शिव लिंग' को छोड़कर एएसआई सर्वेक्षण के लिए वाराणसी न्यायालय में आवेदन

    वाराणसी ‌स्थित जिला अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया है, जिसमें मांग की गई है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संरचना को कोई नुकसान पहुंचाए बिना वज़ुखाना क्षेत्र ('शिव लिंग' को छोड़कर) का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया गया है। आवेदन में कहा गया है कि संबंधित संपत्ति के धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण आवश्यक है। इसलिए, यह "शिवलिंगम" को छोड़कर संरक्षित क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वेक्षण/जांच चाहता है।

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    किसी महिला का अपमान करना या उसके साथ शिष्ट व्यवहार न करना 'उसकी गरिमा का हनन' नहीं माना जाएगा: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि किसी महिला का अपमान करना, उसके साथ अशिष्ट व्यवहार करना और उसके साथ शिष्ट व्यवहार न करना, जैसा कि वह किसी से व्यवहार की उम्मीद करती है, भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 509 के अनुसार "महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने" की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, “अदालतों को आईपीसी की धारा 509 के मामलों का फैसला करते समय, शिकायतकर्ता की पृष्ठभूमि पर भी विचार करना होगा, क्योंकि इससे अदालतों को यह निर्णय लेने में मदद मिल सकती है कि किसी मामले में, दी गई परिस्थितियों में, शिकायतकर्ता ने क्या समझा होगा क्या उन शब्दों ने शिकायतकर्ता की गरिमा को कथ‌ित रूप से ठेस पहुंचाई है या नहीं।''

    केस टाइटल: वरुण भाटिया बनाम राज्य और अन्य।

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    पति को सिर्फ इसलिए पत्नी पर अत्याचार करने और उसे पीटने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वे शादीशुदा हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जोड़े की एक दशक पुरानी शादी को खत्म करते हुए कहा है कि कोई भी कानून पति को यह अधिकार नहीं देता है कि वह अपनी पत्नी को केवल इसलिए पीटने और प्रताड़ित करने का अधिकार देता है क्योंकि उन्होंने शादी कर ली है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा," केवल इसलिए कि दोनों पक्षों ने शादी कर ली है और प्रतिवादी उसका पति है, कोई भी कानून उसे अपनी पत्नी को पीटने और यातना देने का अधिकार नहीं देता है।"

    केस टाइटल: आरएस बनाम एएस

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    एक बार आरोप तय होने के बाद दोषमुक्ति/दोषी ठहराया जाना चाहिए, सीआरपीसी की धारा 216 आरोप को हटाने की अनुमति नहीं देती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक बार आरोप तय होने के बाद मुकदमे के अंत में आरोपी को या तो बरी होना चाहिए या दोषी ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 216 आरोप को हटाने की अनुमति नहीं देती।

    जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने देव नारायण नामक व्यक्ति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। उक्त पुनर्विचार याचिका में अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एफटीसी), चित्रकूट द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों में बदलाव के लिए सीआरपीसी की धारा 216 के तहत उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल: देव नारायण बनाम यूपी राज्य और अन्य [आपराधिक पुनर्विचार नंबर - 1026/2023]

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    ज्ञानवापी-काशी स्वामित्व विवाद: मस्जिद समिति ने अलग पीठ द्वारा फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद मामलों को हाईकोर्ट की सीजे-बेंच में ट्रांसफर करने पर आपत्ति जताई

    अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति (जो वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) ने ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर स्वामित्व विवाद मामलों को चीफ जस्टिस की पीठ को ट्रांसफर करने पर आपत्ति जताई। यह ट्रांसफर उस आदेश के लगभग एक महीने बाद मामलों में फैसला एक अलग पीठ द्वारा सुरक्षित रख लेने के बाद आया।

    चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने जब इस मामले उठाया तो सीनियर वकील एसएफए नकवी ने मामलों के हस्तांतरण के संबंध में अपनी आपत्ति जताई और इस प्रकार प्रस्तुत किया: "हम असमंजस में हैं। फैसला पहले सुरक्षित रखा गया, और आज फैसला सुनाने की तारीख है। आपके समक्ष इन मामलों में फैसला आज सुनाया जाना है। यह इस अदालत की फुल बेंच के [अमर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (आपराधिक अपील संख्या - 4922/2006)], न्यायाधीशों/मुख्य न्यायाधीश की पीठों के गठन की शक्तियों के संबंध के अधिकार में है।"

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    एनडीपीएस एक्ट | लैब रिपोर्ट 'सबसे महत्वपूर्ण' साक्ष्य पूरक आरोपपत्र के माध्यम से दायर नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की सर्किट बेंच ने हाल ही में आरोप पत्र में विभिन्न 'प्रक्रियात्मक कमजोरियों' को ध्यान में रखते हुए नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत आरोपी की जमानत याचिका को अनुमति दे दी।

    जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टि, प्रसेनजीत विश्वास की खंडपीठ ने कहा: एक्जामिनेशन रिपोर्ट प्राप्त करने पर पूरक आरोप-पत्र दाखिल करने का मात्र बयान एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के प्रावधान के तहत वैधानिक आदेश के अनुरूप नहीं है। रासायनिक जांच रिपोर्ट सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्य बन जाती है, जिसे आरोप-पत्र का हिस्सा बनाने की आवश्यकता होती है।

    केस: राकेश शा बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 451 | जब्त की गई संपत्ति आवश्यकता से अधिक समय तक पुलिस/अदालत के कस्टडी में नहीं रहनी चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सीआरपीसी की धारा 451 के दायरे का विश्लेषण किया। उक्त दायरा आपराधिक अदालतों को किसी अपराध की सुनवाई और पूछताछ के दौरान उसके समक्ष पेश की गई जब्त संपत्ति की अंतरिम कस्टडी के आदेश देने का अधिकार देता है।

    जस्टिस राजा विजयराघवन वी. की एकल न्यायाधीश पीठ का विचार था कि जब कोई संपत्ति आपराधिक अदालत के समक्ष पेश की जाती है तो उक्त अदालत के पास ऐसा आदेश देने का विवेक होगा, क्योंकि वह ऐसी वस्तु की उचित कस्टडी, जांच या ट्रायल के लिए उचित समझती है।

    केस टाइटल: विनयकुमार के.आर. बनाम केरल राज्य

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