'घायलों/मृतकों की लापरवाही' को आधार बनाना खतरनाक गतिविधि में लगे उद्यमों के लिए कोई बचाव नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Shahadat
31 Aug 2023 12:23 PM IST
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि खतरनाक गतिविधियों में लगे उद्यम या विभाग इस आधार पर मुआवजा देने से छूट का दावा नहीं कर सकते कि दुर्घटना घायल या मृत व्यक्तियों की लापरवाही के कारण हुई।
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राहुल भारती की खंडपीठ ने कहा,
“यह दलील कि दुर्घटना घायल या मृतक की लापरवाही के कारण हुई, जैसा भी मामला हो, खतरनाक या स्वाभाविक रूप से खतरनाक गतिविधि में लगे ऐसे उद्यम या विभाग के लिए उपलब्ध नहीं है।”
2003 में बिजली के झटके के कारण मरने वाले व्यक्ति के मुआवजे के अधिकार से संबंधित लेटर पेटेंट पीटिशन पर फैसला सुनाते हुए बेंच ने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए मुआवजे को बरकरार रखा, लेकिन कंसोर्टियम के नुकसान के लिए आवंटित राशि को संशोधित किया।
पृष्ठभूमि तथ्य
5 मार्च 2003 को रघुवीर सिंह (मृतक) की जान खुले विद्युत ट्रांसफार्मर के संपर्क में आने से चली गई। बाद की कानूनी लड़ाई में मृतक के परिवार ने ट्रांसफार्मर के रखरखाव के लिए जिम्मेदार संबंधित विभाग की ओर से लापरवाही का दावा करते हुए तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य (अब जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश) और अन्य से मुआवजे की मांग की।
हाईकोर्ट ने उत्तरदाताओं/दावेदारों के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने उन्हें ब्याज सहित 11,50,000/- रुपये का एकमुश्त मुआवजा दिया, जिसमें से 50,000/- रुपये का अंतरिम मुआवजा घटा दिया, जो पहले ही दिया जा चुका है।
फैसले से असंतुष्ट अपीलकर्ताओं ने इसे कई आधारों पर चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार कर ली और अपीलकर्ता-विभाग की लापरवाही के बारे में कोई विशेष निष्कर्ष दिए बिना प्रतिवादियों/दावेदारों को मुआवजा दे दिया। उन्होंने तर्क दिया कि करंट लगने की घटना मृतक की लापरवाही के कारण हुई, जो सड़क से दूर एक सुरक्षित स्थान पर रखे विद्युत ट्रांसफार्मर में चला गया था।
इसके अलावा, अपीलकर्ताओं ने मुआवजे की गणना के संबंध में मुद्दा उठाया। उन्होंने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी और अन्य मामले में स्थापित मिसाल का हवाला दिया, जहां कंसोर्टियम के नुकसान के लिए विशिष्ट राशि निर्दिष्ट की गई। उनका मानना है कि हाईकोर्ट ने इसका पालन नहीं किया।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायालय ने माना कि विद्युत विकास विभाग, अर्थात् विद्युत पारेषण द्वारा की गई गतिविधि की खतरनाक और स्वाभाविक रूप से खतरनाक प्रकृति उच्च स्तर की देखभाल और सावधानी की मांग करती है। ऐसी स्वाभाविक रूप से खतरनाक गतिविधियों में शामिल उद्यम या विभाग किसी दुर्घटना के कारण होने वाले किसी भी नुकसान के लिए सख्ती से उत्तरदायी होता है, भले ही घायल पक्ष की लापरवाही कुछ भी हो।
न्यायालय ने कहा,
निर्विवाद रूप से बिजली विकास विभाग, जो बिजली के पारेषण में लगा हुआ है, ऐसी गतिविधि में लगा है, जो खतरनाक और स्वाभाविक रूप से खतरनाक है। ऐसी गतिविधि के संचालन में अधिक सावधानी और सावधानी बरतने की आवश्यकता है। बिजली के तारों और ट्रांसफार्मरों का रखरखाव इस तरह से करना कि इससे नागरिकों के जीवन और संपत्ति को कोई खतरा न हो, विद्युत विकास विभाग का गंभीर कर्तव्य है। ऐसी उपयोगिता को बनाए रखने में कोई भी चूक या लापरवाही कानून में सिविल और दंडात्मक कार्रवाई दोनों को आमंत्रित करेगी।"
जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ कि अपीलकर्ता-विभाग ने लोगों को दूर रहने की चेतावनी देने के लिए ट्रांसफार्मर के सामने कोई साइनबोर्ड या निशान नहीं लगाया। ट्रांसफार्मर की बाड़ ठीक से नहीं बनाई गई। इसलिए इसके आसपास रहने वाले नागरिकों के जीवन के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया।
एमसी मेहता और अन्य बनाम भारत संघ, 1987 (1) एससीसी मामले पर निर्भरता रखते हुए यह देखा गया कि खतरनाक गतिविधियों में लगे उद्यम अपने संचालन के परिणामस्वरूप होने वाली दुर्घटनाओं के लिए पूर्ण दायित्व वहन करते हैं। न्यायालय उन्हें पीड़ित की ओर से अंशदायी लापरवाही का दावा करने से मुक्त कर देता है।
न्यायालय ने कंसोर्टियम के नुकसान के लिए आवंटित राशि को संशोधित किया। साथ ही माना कि उत्तरदाता कंसोर्टियम के नुकसान के लिए प्रत्येक 40,000/- रुपये के हकदार है। यह राशि हाईकोर्ट द्वारा दी गई उच्च राशि के विपरीत है।
केस टाइटल: जम्मू-कश्मीर राज्य और अन्य बनाम मंजीत कौर और अन्य
फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें