सीआरपीसी की धारा 438(4) | यदि आरोप प्रथम दृष्टया झूठे हों तो कुछ बलात्कार अपराधों के लिए अग्रिम जमानत देने पर रोक नहीं होगी: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

1 Sep 2023 7:39 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 438(4) | यदि आरोप प्रथम दृष्टया झूठे हों तो कुछ बलात्कार अपराधों के लिए अग्रिम जमानत देने पर रोक नहीं होगी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि यदि ऐसे अपराध प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से नहीं बने हैं, या आरोप झूठे प्रतीत होते हैं तो कुछ बलात्कार अपराधों के लिए अग्रिम जमानत देने पर रोक, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 438 (4) के तहत दर्शाया गया है, लागू नहीं होगी।

    सीआरपीसी की धारा 438(4) और धारा 376(3), 376 एबी, 376 डीए, और धारा 376 डीबी के तहत दंडनीय अपराधों में कथित रूप से शामिल आरोपी को अग्रिम जमानत पर रोक लगाती है।

    जस्टिस ज़ियाद रहमान ए.ए. की एकल पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि धारा 376 (3), 376 एबी, 376 डीए और 376 डीबी के तहत किसी भी अपराध को एफआईआर में अन्य अपराधों के साथ शामिल किया गया, अगर प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो आरोपी के मूल्यवान अधिकारों से इनकार नहीं किया जा सकता।

    पीठ ने कहा,

    "जब उक्त अपराध के बारे में ऐसे प्रथम दृष्टया मामले का पता लगाने के लिए कोई ठोस कारण नहीं हैं तो उक्त प्रावधान में निहित निषेध को बिना किसी दिमाग के आवेदन के स्वचालित रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता से इनकार किया जा सके, जो भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकार है। जब आरोपों की सत्यता पर संदेह करने के लिए उचित और वैध आधार हों तो अदालत को उस व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उचित आदेश पारित करने में संकोच नहीं करना चाहिए, जिसके खिलाफ ऐसे आरोप लगाए गए हैं।“

    मां ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता पिता ने उसकी 3.5 साल की बेटी के साथ यौन उत्पीड़न किया। इस प्रकार उस पर धारा 376, 376 (2) (एफ), धारा 376 एबी साथ ही धारा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की 4(2)(डी) (बी), 6, 5(i), 5 (एन) और धारा 5 (एम) के तहत मामला दर्ज किया गया।

    जब बच्चे की पहली बार क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट द्वारा जांच की गई तो यह बताया गया कि बच्चे को मां और दादा-दादी ने "अच्छी तरह से सिखाया" था। इसके बाद मां ने पीड़िता को मेडिकल बोर्ड के सामने पेश करने से इनकार कर दिया, जिसे मामले में और स्पष्टता पाने के लिए गठित किया गया था।

    इसके बाद मां ने याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों को साबित करने के लिए वीडियो फुटेज पेश किया। साथ ही कहा गया कि इसमें कुछ विसंगतियां हैं। हालांकि जब इस संबंध में उन्हें नोटिस जारी किया गया तो उन्होंने उक्त वीडियो फुटेज वाला स्मार्टफोन पेश करने से इनकार कर दिया।

    इस प्रकार याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पूरा मामला मनगढ़ंत है और उसे बच्चे की कस्टडी से वंचित करने के लिए झूठी शिकायत प्रस्तुत की गई। कोर्ट ने मां (शिकायतकर्ता) की ओर से असहयोग और अनिच्छा को देखते हुए कहा कि वह "आवेदन पर निर्णय लेने के उद्देश्य से आरोपों की झूठी प्रकृति के बारे में याचिकाकर्ता के तर्क स्वीकार करने के लिए मजबूर है।"

    न्यायालय का विचार था कि जब रिकॉर्ड पर प्रस्तुत सामग्री धारा 376 (3), 376 एबी, 376 डीए और 376 डीबी के तहत किसी भी अपराध के प्रथम दृष्टया मामले को आकर्षित करने के लिए अपर्याप्त है। आरोप की झूठी प्रकृति के कारण यह स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 438(4) के तहत रोक लागू नहीं होगी। मगर उसे अग्रिम जमानत देने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करने से रोका नहीं जाएगा।

    न्यायालय ने पृथ्वी राज चौहान बनाम भारत संघ (2020) पर भरोसा किया, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत इसी तरह के निषेध के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता, जहां तक अधिनियम के तहत अपराधों का संबंध है। कोई भी न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने से नहीं रोकेगा।

    इस प्रकार, वर्तमान मामले में न्यायालय का विचार था कि रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री, विशेष रूप से जांच में सहयोग करने के लिए शिकायतकर्ता की ओर से इनकार आरोपों की सत्यता पर संदेह करने का एक मजबूत मामला बनेगा।

    इस प्रकार कोर्ट ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन की अनुमत दी। इसके साथ ही याचिकाकर्ता को पूछताछ के लिए एक सप्ताह के भीतर जांच अधिकारी के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को जांच अधिकारी की संतुष्टि के लिए समान राशि के लिए दो सॉल्वेंट ज़मानतियों के साथ 1,00,000/- रुपये का बांड भरने पर आत्मसमर्पण के दिन ही रिहा किया जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता-अभियुक्त का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अजित मुरली और मोहनन एम.के. ने किया। सीनिर लोक अभियोजक सीता एस. और एडवोकेट दीपू थानकन, उम्मुल फ़िदा, लक्ष्मी श्रीधर, लक्ष्मी पी. नायर, और नमिता के.एम. उत्तरदाताओं की ओर से उपस्थित हुए।

    केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य और अन्य।

    केस नंबर: जमानत आवेदन नंबर 1490/2023

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