सीपीसी - दस्तावेज़ प्राप्त करने के लिए न्यायालय कोई डाकघर नहीं है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Sharafat

29 Aug 2023 12:24 PM GMT

  • सीपीसी - दस्तावेज़ प्राप्त करने के लिए न्यायालय कोई डाकघर नहीं है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यदि प्रतिवादी आदेश VIII नियम 1ए (3) सीपीसी में आवेदन दाखिल करते समय लिखित बयान के साथ दस्तावेज दाखिल करने में विफल रहते हैं तो उन्हें पर्याप्त कारण बताने चाहिए।

    जस्टिस बीवीएलएन चक्रवर्ती ने कहा कि प्रावधान यह कहता है कि इस नियम के तहत प्रतिवादी द्वारा दस्तावेजों को अदालत में पेश किया जाना चाहिए, लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो अदालत की अनुमति के बिना मुकदमा की सुनवाई के दौरान उसकी ओर से साक्ष्य के रूप में प्राप्त नहीं किया जाएगा।

    कोर्ट ने कहा,

    “रवि सतीश (सुप्रा) और वोरुगंती नारायण राव (सुप्रा) के मामले में इस अदालत ने माना कि छुट्टी देना केवल मांगने के लिए नहीं है, न ही अदालत विफलता के लिए कोई कारण न बताए जाने पर भी दस्तावेज प्राप्त करने के लिए महज एक डाकघर है। लिखित बयान के साथ उक्त दस्तावेज दाखिल करें।”

    याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रतिवादी थे, उन्होंने सूचीबद्ध दस्तावेज जमा करने के लिए सीपीसी के आदेश VIII नियम 1-ए के तहत अनुमति मांगी। उन्होंने दावा किया कि बैंकों और सरकार से ऋण और अन्य लाभों की आवश्यकता के कारण ये दस्तावेज़ पहले लिखित बयान के साथ दाखिल नहीं किए गए थे।

    ट्रायल कोर्ट ने माना कि यद्यपि लिखित बयान दायर किए जाने पर दस्तावेज़ प्रतिवादियों के कब्जे में थे, लेकिन उन्हें कारण बताए बिना प्रस्तुत नहीं किया गया था।

    रवि सतीश बनाम एडाला दुर्गा प्रसाद (2009) और वोरुगंती नारायण राव बनाम बोडला राममूर्ति (2011) पर भरोसा करते हुए ट्रायल कोर्ट ने माना कि हालांकि लिखित बयान दाखिल करने की तारीख पर प्रतिवादियों के पास उक्त दस्तावेज थे, फिर भी वे लिखित बयान में कोई कारण बताए बिना इसे दाखिल नहीं किया।

    इस प्रकार प्रतिवादियों ने एक पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि उक्त दस्तावेज लिखित बयान के साथ दाखिल नहीं किए गए थे क्योंकि वे बैंक में थे। हालांकि, ट्रायल कोर्ट के समक्ष, उन्होंने तर्क दिया कि दस्तावेज़ उनके पास उपलब्ध थे लेकिन उन्होंने दाखिल नहीं किया।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि दस्तावेज़ शुरू में दायर नहीं किए गए थे क्योंकि वे बैंक के पास थे। हालांकि ट्रायल कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया था कि ऋण प्राप्त करने के लिए दस्तावेजों की आवश्यकता थी। एक दस्तावेज़ को छोड़कर, लिखित बयान में किसी अन्य का उल्लेख नहीं किया गया था। आदेश VIII सीपीसी के नियम 1ए के उप-नियम 3 में कहा गया है कि इस नियम के तहत प्रतिवादी द्वारा अदालत में प्रस्तुत नहीं किए गए दस्तावेजों को अदालत की अनुमति के बिना सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। उप-नियम 4 में वादी के गवाहों के क्रॉस एक्ज़ामिनेशन या गवाह की याददाश्त को ताज़ा करने के लिए प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ शामिल नहीं हैं।

    न्यायाधीश ने पाया कि यद्यपि दस्तावेजों का उल्लेख वादी की जिरह के समय किया गया था, प्रतिवादियों ने केवल प्रतिवादियों के साक्ष्य के बाद के चरण में दस्तावेज दाखिल किए। इसके अलावा, एक को छोड़कर, अन्य दस्तावेजों का न तो लिखित बयान में उल्लेख किया गया था और न ही लिखित बयान के साथ दाखिल दस्तावेजों की सूची में उल्लेख किया गया था।

    आक्षेपित आदेश में कोई भौतिक अनियमितता न पाते हुए सिविल पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल : कोट्टाकोटा लक्कप्पा बनाम बी. लक्कप्पागारी चिक्कैया

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