हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

9 April 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (03 अप्रैल, 2023 से 07 अप्रैल, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति के एक्ट्र-मैरिटल पार्टनर पर केवल इसलिए मुकदमा नहीं चला सकती क्योंकि वो दंपति के घर में रहती थी: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति के एक्ट्र-मैरिटल पार्टनर पर केवल इसलिए मुकदमा नहीं चला सकती क्योंकि वो दंपति के घर में रहती थी। कोर्ट ने कहा कि दोनों महिलाएं (पत्नी और विवाहेतर साथी) अधिनियम की धारा 2 (एफ) के अनुसार 'घरेलू संबंध' साझा नहीं करती हैं, क्योंकि वे केवल एक ही छत के नीचे रहती हैं।

    केस टाइटल: रवींद्र कुमार मिश्रा और अन्य बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 329(2) - दिमागी रूप से कमज़ोर होने का निर्धारण करने के लिए अभियुक्त का शारीरिक रूप से पेश होना आवश्यक : उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 329(2) के तहत अभियुक्त की अदालत में भौतिक उपस्थिति आवश्यक है, जिससे यह आकलन किया जा सके कि मानसिक विकार के कारण वह बचाव कर सकता है या नहीं। इसने रेखांकित किया कि संबंधित न्यायालय को केवल मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर अभियुक्तों की जांच किए बिना इस आशय का आदेश पारित नहीं करना चाहिए।

    केस टाइटल: प्रफुल्ल चंद्र महापात्रा @ प्रुस्टी बनाम ओडिशा राज्य

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    कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों से जानबूझकर हटना आर्बिट्रेटर द्वारा दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के समान हो सकता है: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि आर्बिट्रेटर कॉन्ट्रैक्ट से अधिकार प्राप्त करता है और इस प्रकार, कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों की अवहेलना करते हुए उसके द्वारा पारित निर्णय मनमाना प्रकृति का होगा। जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की पीठ ने टिप्पणी की कि कॉन्ट्रैक्ट राशि से जानबूझकर हटना न केवल अपने अधिकार की अवहेलना या आर्बिट्रेटर की ओर से कदाचार प्रकट करने के लिए है, बल्कि यह दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के समान भी हो सकता है।

    केस टाइटल: सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड बनाम मेसर्स राजधानी कैरियर्स प्राइवेट लिमिटेड

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    आरोपी-पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर बलात्कार, पॉक्सो एक्ट के मामलों को रद्द करना 'कानूनी रूप से अस्वीकार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद ‌हाईकोर्ट ने कहा है कि अभियुक्त और पीड़िता के बीच हुए समझौते के आधार पर बलात्कार के मामले या पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों को रद्द करने की कानूनी रूप से अनुमति नहीं है। जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव-I की पीठ ने कहा कि एक ऐसे मामले में यह टिप्पणी की, जिसमें उसने पीड़िता की ओर से आरोपी के खिलाफ दायर 9 साल पुराने बलात्कार के मामले को इस आधार पर खारिज करने से इनकार कर दिया कि मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया था।

    केस टाइटल- प्रवीण कुमार सिंह @ प्रवीण कुमार और 2 अन्य बनाम यूपी राज्य प्रधान सचिव के माध्यम से, गृह विभाग, लखनऊ। और दूसरा [APPL. U/S 482 No. - 2941 of 2023]

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    धारा 138 एनआई एक्ट| 'मांग' की स्पष्टता चेक बाउंस नोटिस के लिए अनिवार्य कानूनी आवश्यकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि धारा 138 परक्राम्य लिखत अधिनियम अचूक शब्दों में बताती है कि नोटिस में स्पष्ट रूप से क्या दिखाना चाहिए और किस प्रकार की मांग करनी चाहिए। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि चेक बाउंस होने के मामलों में मांग की स्पष्टता एक आवश्यक शर्त है।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल ने एक अपील की सुनवाई के दरमियान यह टिप्पणी की। अपीलकर्ता ने उपमंडल न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश द्वारा पारित फैसले को चुनौती दी थी, जिसके संदर्भ में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा दायर शिकायत को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल: डोलमा देवी बनाम रोशन लाल

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    मोटर व्हीकल एक्ट- मुआवजे के दावे को खारिज करने के लिए एफआईआर दर्ज करने में देरी मुख्य आधार नहीं हो सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    सड़क दुर्घटना के एक मामले में मुआवजे के फैसले के खिलाफ एक बीमा कंपनी की अपील को खारिज करते हुए आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने में देरी दावा याचिका खारिज करने का मुख्य आधार नहीं हो सकती है। कंपनी ने तर्क दिया था कि मुआवजे का दावा करने के बाद दुर्घटना के दो दिन बाद एफआईआर दर्ज की गई थी।

    जस्टिस टी. मल्लिकार्जुन राव की बेंच ने कहा, “एफआईआर निश्चित रूप से दुर्घटना के तथ्य को साबित करता है ताकि पीड़ित मुआवजा का मामला दर्ज कर सके, लेकिन एफआईआर दर्ज करने में देरी दावा याचिका को खारिज करने का मुख्य आधार नहीं हो सकती है। दूसरे शब्दों में, एफ.आई.आर. मोटर दुर्घटना दावा मामलों का निर्णय करने में महत्वपूर्ण है, अगर दावेदार ने संतोषजनक और ठोस कारणों पेश किया है तो दर्ज करने में देरी को ऐसी कार्यवाही के लिए घातक नहीं माना जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: द नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड वी. कोमारवोलु श्रीनिवास भारद्वाज और अन्य।

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    केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से आईपीसी की धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री न हो : राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में आरटीआई कार्यकर्ता के खिलाफ तत्कालीन सरपंच द्वारा उद्दापन (ब्लैकमेलिंग) के आरोप में दर्ज करवाई गई एफआईआर रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से आईपीसी की धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री नहीं हो।

    जस्टिस अशोक कुमार जैन की बेंच ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद ने आदेश में कहा कि केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री नहीं हो। इस अपराध के गठन के लिए महज शिकायतकर्ता का बयान पर्याप्त नहीं होगा।

    केस टाइटल : कमल कांत कुम्हार बनाम राजस्थान राज्य व अन्य (एकलपीठ आपराधिक विविध याचिका नंबर 1036/2018)

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    आईबीसी के तहत रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 'लोक सेवक' के अर्थ में आएगा: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रस्ताव पेशेवर को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (पीसी अधिनियम) की धारा 2(c)(v) और (viii) दोनों के तहत लोक सेवक माना जाएगा, क्योंकि उनके कार्यालय में उन कार्यों के प्रदर्शन पर जोर दिया जाता है, जो सार्वजनिक कर्तव्य की प्रकृति में हैं।

    जस्टिस गौतम कुमार चौधरी की खंडपीठ ने उनके खिलाफ शुरू की गई पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना करने वाली याचिका खारिज करते हुए उपरोक्त फैसला सुनाया, साथ ही (कानूनी पारिश्रमिक के अलावा अन्य परितोषण लेने वाले लोक सेवक आधिकारिक अधिनियम की) पीसी अधिनियम की धारा 7 के तहत अपराध के लिए दर्ज की एफआईआर गई।

    केस टाइटल: संजय कुमार अग्रवाल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, धनबाद सीआर. एमपी. नंबर 1048/2021

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    स्थानीय निकाय चुनाव: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र सरकार को ओबीसी आयोग की रिपोर्ट चार दिनों में अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को शहरी स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के प्रतिनिधित्व का अध्ययन करने के लिए समर्पित उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया।

    उल्लेखनीय है कि इस साल जनवरी में आयोग की स्थापना की गई, जिसे समुदाय के राजनीतिक पिछड़ेपन पर अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण के मुद्दे को देखने की प्राथमिक जिम्मेदारी सौंपी गई।

    केस टाइटल- विकास अग्रवाल बनाम यूपी राज्य के माध्यम से अतिरिक्त प्रमुख / प्रधान सचिव। शहरी विकास शहरी विकास उ.प्र. लको. और अन्य [WRIT- CNo.- 2713/2023]

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    विवाहित जोड़े की एक-दूसरे तक पहुंच साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत निर्णायक रूप से बच्चे की वैधता को निर्धारित करती है: हिमाचल प्रदेश ‌हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि यदि एक जोड़े की एक-दूसरे तक पहुंच है, तो यह एक बच्चे की वैधता का निर्णायक प्रमाण है और इसलिए, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 के तहत अनुमान आकर्षित होता है। यह टिप्पणी जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ ने जिला न्यायाधीश शिमला के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए दी। उक्त आदेश में बच्चे और पक्षों के डीएनए परीक्षण के ‌‌लिए याचिकाकर्ता-पति की मांग को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल: अनिल कपूर बनाम दीपिका चौहान

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    ब्लैकलिस्टिंग आदेश पारित करने से पहले कारण बताओ नोटिस प्रस्तावित कार्रवाई का आधार बताते हुए कारण बताओ नोटिस जारी करना अनिवार्य: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन करने वाले व्यापारी को लोहरदगा मंडल कारागार में किसी भी खाद्य सामग्री की आपूर्ति करने से रोकने के राज्य कारागार विभाग के फैसले को पांच साल के लिए रद्द कर दिया। साई ट्रेडर्स कथित तौर पर 2020 में लॉकडाउन अवधि के दौरान जेल में भोजन की आपूर्ति के आधिकारिक आदेश का पालन करने में विफल रहा।

    जस्टिस राजेश शंकर ने कहा कि याचिकाकर्ता को ब्लैक लिस्ट में डालने की प्रस्तावित सजा के बारे में नहीं बताया गया और केवल यह बताने के लिए कहा गया कि उसके द्वारा खाद्य सामग्री की आपूर्ति क्यों नहीं की जा रही है।

    केस टाइटल: एम/एस. साई ट्रेडर्स बनाम झारखंड राज्य

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    कृष्ण जन्मभूमि मामला: ईदगाह कमेटी की याचिका पर मथुरा कोर्ट ने अमीन को विवादित स्थल का सर्वे करने के निर्देश पर रोक लगाई

    उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की एक अदालत ने बुधवार को अपने 29 मार्च के आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें सिविल कोर्ट अमीन (जिन्हें अदालत के अधिकारी भी कहा जाता है) को 17 अप्रैल को कोर्ट को श्रीकृष्ण जन्मस्थान-शाही ईदगाह विवाद मामले का दौरा करने और सर्वेक्षण करने और एक आख्य रिपोर्ट (मानचित्रों के साथ) प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।

    यह आदेश सिविल जज (सीनियर डिविजन) मथुरा नीरज गोंड ने मथुरा ईदगाह समिति द्वारा दायर याचिका पर आवेदन पर दिया है। आदेश पर 11 अप्रैल तक रोक लगा दी गई है, जिस दिन दोनों पक्षों को सुना जाएगा और आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।

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    एनएचए के तहत मुआवजे के अवार्ड के खिलाफ ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत उपलब्ध सीमित उपाय, हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र को लागू करने का आधार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 (एनएचए एक्ट) की धारा 3-जी (5) के तहत भूमि मालिकों को आर्बिट्रेटर द्वारा दिए गए मुआवजे को चुनौती देने का दायरा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी एक्ट) की धारा 34 की धारा 34 के तहत प्रदान किए गए मापदंडों तक सीमित है। वही भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के रिट क्षेत्राधिकार को लागू करने का आधार नहीं हो सकता।

    जस्टिस अविनाश जी. घरोटे की पीठ ने जमींदारों के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत न्यायालय के पास निर्णय को संशोधित करने या आर्बिट्रेटर द्वारा दिए गए मुआवजे की तुलना में मुआवजे में और वृद्धि के लिए नया अवार्ड बदलने की कोई शक्ति नहीं है, याचिकाकर्ताओं को उपचार योग्य बना दिया गया।

    केस टाइटल: मैसर्स ओमानंद इंडस्ट्रीज और अन्य बनाम भारत सरकार के सचिव, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय

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    वैवाहिक घर में निवास के अधिकार में सुरक्षित और स्वस्थ जीवन का अधिकार शामिल है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिलाओं के संरक्षण के प्रावधानों के तहत वैवाहिक घर में रहने के अधिकार में सुरक्षित और स्वस्थ जीवन का अधिकार भी शामिल है। वैवाहिक विवाद से संबंधित एक दीवानी मामले में प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की याचिका पर नोटिस जारी करते हुए जस्टिस तुषार राव गेडेला ने कहा, "घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत एक वैवाहिक घर में रहने का अधिकार भी अपने आप में "सुरक्षित और स्वस्थ जीवन के अधिकार" की परिभाषा में आता है। इसलिए, इस न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता है।“

    केस टाइटल: एनजी बनाम एसजी और अन्य

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    पेटेंट ऑफिस में अधिकारियों को निर्णयों लेने के दौरान अपने विवेक का सही से उपयोग करना चाहिए, कट-पेस्ट के आदेश कायम नहीं रह सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि पेटेंट, डिजाइन और ट्रेड मार्क महानियंत्रक के अधिकारियों को निर्णय लेते समय सोच-समझकर अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए और उस टेम्पलेट या "कट-पेस्ट" आदेशों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि इसे बनाए नहीं रखा जा सकता।

    केस टाइटल: ब्लैकबेरी लिमिटेड बनाम पेटेंट और डिजाइन के सहायक नियंत्रक

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    [शादी करने का झूठा वादा] केवल आपसी रिश्ते खराब होने के कारण एक व्यक्ति पर बलात्कार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी गर्लफ्रेंड के सा‌थ बलात्‍कार के आरोपी एक आदमी को ‌बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा, जब दो लोग एक रिश्ते में प्रवेश करते हैं तो उनमें से केवल एक को इसलिए दोष नहीं दिया जा सकता है कि हालात के खराब होने के बाद दूसरे ने बलात्कार का कथित आरोप लगाया और रिश्ता शादी में नहीं बदल पाया। जस्टिस भारती डांगरे ने 2016 में 27 वर्षीय महिला द्वारा दायर एक शिकायत पर आईपीसी की धारा 376, 323 के तहत एक व्यक्ति को आरोपमुक्त करने से इनकार करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: समीर अमृत कोंडेकर बनाम महाराष्ट्र राज्य [पुनरीक्षण आवेदन संख्या 408/2019]

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    नौकरी के मामलो में न्यायिक पुनर्विचार का दायरा सीमित, प्रभावित पक्ष को सिविल उपचार का लाभ उठाना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक प्रिंसिपल द्वारा अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ दायर स्पेशल स‌िविल एप्‍लीकेशन को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि प्रतिवादी-संस्था आनंदालय एजुकेशन सोसाइटी ने स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ता पर अपना भरोसा खो चुकी है। जस्टिस संदीप एन भट्ट ने स्पष्ट किया कि प्रतिवादी संस्था के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट सुनवाई योग्य नहीं है।

    केस टाइटल: पवन कुमार शर्मा बनाम आनंदालय एजुकेशन सोसाइटी R/Special Civil Application 1942 of 2023

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    धारा 138 एनआई एक्ट | कार्यवाही केवल इसलिए अमान्य नहीं की जा सकती क्योंकि चेक राशि के साथ विविध खर्चों का दावा किया गया था: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत एक कार्यवाही को केवल इसलिए अमान्य नहीं किया जा सकता है क्योंकि चेक राशि की मांग के साथ-साथ नोटिस में कुछ विविध खर्चों का दावा किया गया है।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए ज‌स्टिस राधा कृष्ण पटनायक की सिंगल जज बेंच ने कहा, "... केआर इंदिरा (सुप्रा) में स्थापित कानूनी स्थिति के मद्देनजर अप्रतिरोध्य निष्कर्ष यह है कि नोटिस में दोष कार्यवाही को अमान्य नहीं कर सकता है, जब मांग केवल विविध खर्चों के लिए अतिरिक्त दावे के साथ चेक राशि के लिए हो…”

    केस टाइटल: हेमलता महापात्रा बनाम बिजय कुमार प्रधानी

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    सीआरपीसी की धारा 151 | संज्ञेय अपराध करने के लिए डिजाइन के ज्ञान के अभाव में वारंट के बिना गिरफ्तारी अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने दोहराया कि पुलिस दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 151 के तहत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती (गिरफ्तारी संज्ञेय अपराधों के गठन को रोकने के लिए), एक संज्ञेय अपराध करने के लिए डिजाइन के अस्तित्व के ज्ञान के बिना और विश्वास कि अपराध के आयोग को केवल व्यक्ति की गिरफ्तारी से रोका जा सकता है।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने कहा कि चूंकि संज्ञेय अपराध करने के लिए डिजाइन के ज्ञान के मामले में पुलिस को वारंट के बिना गिरफ्तार करने की असाधारण शक्तियां दी गई हैं, ऐसे में किसी भी तरह के दुरुपयोग से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 151 की सख्त व्याख्या महत्वपूर्ण है।

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    बैंकों के पास उनके ट्रेजरी पर विशेष डोमेन है, उनकी संतुष्टि के अधीन लोन जारी करने का विवेक, रिट जारी नहीं कर सकते: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में उस रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें बैंक अधिकारियों को 25 लाख रुपये का लोन स्वीकृत करने का निर्देश देने के लिए परमादेश की मांग की गई। जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि बैंक से लोन राशि जारी करने के लिए परमादेश की मांग करने वाली रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं, क्योंकि बैंकों के पास उनके खजाने पर विशेष डोमेन है और उनकी संतुष्टि के अधीन लोन जारी करने का विवेक भी है।

    केस टाइटल: जितेंद्र बनाम भारतीय स्टेट बैंक और अन्य सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस नंबर 19852/2013

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    सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अदालतों के पास आपराधिक कार्यवाही में सबूतों के बंद होने के बाद भी गवाहों को वापस बुलाने और समन करने की शक्ति : जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत किसी भी गवाह या गवाहों को वापस बुलाने की अदालत की शक्ति दोनों पक्षों में सबूत बंद होने पर भी लागू की जा सकती है, जब तक कि अदालत में मामले की सुनवाई चल रही है।

    जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने विशेष न्यायाधीश एंटीकरप्शन द्वारा पारित आदेश खारिज कर दिया, जिसमें पीड़ित पक्ष को उपस्थिति हासिल करने के लिए जमानती वारंट जारी करके गवाह पेश करने की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: फरीद अहमद टाक बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर व अन्य

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