सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अदालतों के पास आपराधिक कार्यवाही में सबूतों के बंद होने के बाद भी गवाहों को वापस बुलाने और समन करने की शक्ति : जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

3 April 2023 5:18 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अदालतों के पास आपराधिक कार्यवाही में सबूतों के बंद होने के बाद भी गवाहों को वापस बुलाने और समन करने की शक्ति : जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत किसी भी गवाह या गवाहों को वापस बुलाने की अदालत की शक्ति दोनों पक्षों में सबूत बंद होने पर भी लागू की जा सकती है, जब तक कि अदालत में मामले की सुनवाई चल रही है।

    जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने विशेष न्यायाधीश एंटीकरप्शन द्वारा पारित आदेश खारिज कर दिया, जिसमें पीड़ित पक्ष को उपस्थिति हासिल करने के लिए जमानती वारंट जारी करके गवाह पेश करने की अनुमति दी गई।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि अभियोजन पक्ष द्वारा कार्यवाही को लंबे समय तक चलने की अनुमति दिए बिना ट्रायल को तेजी से आयोजित किया जाए और फिर भी ट्रायल कोर्ट ने पीड़ित पक्ष को गवाह पेश करने का एक और मौका दिया।

    आपराधिक मामलों के अभियुक्तों में से एक ने पहले अभियोजन द्वारा गवाहों को पेश करने की अनुमति देने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने उस आदेश को बरकरार रखते हुए ट्रायल कोर्ट को ट्रायल में तेजी लाने का निर्देश दिया। यह वह आदेश है जिस पर याचिकाकर्ता भरोसा कर रहा था।

    हाईकोर्ट ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 311 में प्रावधान है कि कोई भी अदालत किसी भी जांच, ट्रायल या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकती है, या उपस्थिति में किसी भी व्यक्ति की जांच कर सकती है, भले ही उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया हो, या वापस बुला सकती है। पहले से जांच किए गए किसी भी व्यक्ति की फिर से जांच करें। उक्त शक्ति किसी विशेष वर्ग के व्यक्ति तक सीमित नहीं है।

    पीठ ने रेखांकित किया,

    "इस संबंध में अदालत की किसी भी गवाह या पहले से ही जांच किए गए गवाहों को वापस बुलाने या किसी भी गवाह को बुलाने की शक्ति का संदर्भ दिया जा सकता है, भले ही दोनों पक्षकारों में सबूत बंद हो, जब तक कि अदालत में मामले की सुनवाई चल रही है।"

    राजाराम प्रसाद बनाम बिहार राज्य, (2013) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत अदालतों को व्यापक शक्तियां दी गई हैं, जब किसी गवाह को बुलाने या किसी को वापस बुलाने या फिर से जांच करने के सवाल की बात आती है।

    गवाह की पहले ही जांच होने पर बेंच ने समझाया,

    "यदि किसी गवाह का साक्ष्य मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए न्यायालय को आवश्यक प्रतीत होता है तो न्यायालय के पास इसकी शक्ति है कि वह ऐसे किसी व्यक्ति को सम्मन और जांच या वापस बुलाने और फिर से जांच करने की शक्ति रखता है।"

    कानूनी स्थिति को देखते हुए खंडपीठ ने याचिका को आधारहीन पाया और उसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: फरीद अहमद टाक बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर व अन्य

    साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 72/2023

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