केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से आईपीसी की धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री न हो : राजस्थान हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

7 April 2023 9:59 AM GMT

  • केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से आईपीसी की धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री न हो : राजस्थान हाईकोर्ट

    रजाक खान हैदर

    राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में आरटीआई कार्यकर्ता के खिलाफ तत्कालीन सरपंच द्वारा उद्दापन (ब्लैकमेलिंग) के आरोप में दर्ज करवाई गई एफआईआर रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से आईपीसी की धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री नहीं हो।

    जस्टिस अशोक कुमार जैन की बेंच ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद ने आदेश में कहा कि केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री नहीं हो। इस अपराध के गठन के लिए महज शिकायतकर्ता का बयान पर्याप्त नहीं होगा।

    मामले की पृष्ठभूमि

    श्रीगंगानगर जिले की 24 एएस-सी ग्राम पंचायत की तत्कालीन सरपंच ने पुलिस थाना घड़साना में आरटीआई कार्यकर्ता कमलकांत मारवाल के खिलाफ वर्ष 2017 में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 384 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई थी। शिकायतकर्ता ने एफआईआर में आरोप लगाया कि कमलकांत नेउसे धमकी दी है कि यदि तीन लाख रुपए नहीं दिए तो मैं आपके खिलाफ झूठे तथ्यों पर मुकदमा दर्ज करवा दूंगा।

    कमल कांत कुम्हार की ओर से एडवोकेट रजाक खान हैदर ने हाईकोर्ट में दण्ड प्रक्रिया संहिता, (सीआरपीसी) 1973 की धारा 482 के तहत आपराधिक विविध याचिका दायर कर एफआईआर को चुनौती देते हुए कहा कि एफआईआर में उल्लेखित आरोप से उद्दापन (ब्लेकमेलिंग) का अपराध नहीं बनता।

    यह तर्क दिया गया कि आईपीसी की धारा 383 में परिभाषित उद्दापन केवल उस स्थिति में ही बनता है जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को क्षति करने के भय में डालता है और क्षति में डाले गए व्यक्ति को कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है।

    आगे कहा गया कि धारा 383 के दृष्टांत का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने पर विधि का यह आशय भी स्पष्ट होता है कि केवल उन कृत्यों की धमकी देकर सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति परिदत्त करना उद्दापन है, जो कि अपने आप में आपराधिक कृत्य हैं। इस प्रकरण में आरोपी पर एफआईआर दर्ज करवाने की धमकी देने का ही आरोप है, यह कृत्य आपराधिक नहीं है।

    याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता को ऐसी कोई धमकी नहीं दी और न ही कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति ली है। ऐसे में बिना कोई ठोस सबूत के आधार पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर एफआईआर दर्ज करवाना कानून का दुरुपयोग है।

    इसके विपरीत जांच अधिकारी ने आरोपी के खिलाफ जुर्म प्रमाणित मानते हुए हाईकोर्ट में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की।

    जस्टिस अशोक कुमार जैन की बेंच ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद ने आदेश में कहा कि

    "केवल धमकी और मांग के साधारण आरोपों से धारा 384 का आरोप नहीं बन सकता, जब तक कि इसकी पुष्टि के लिए कोई सामग्री नहीं हो। इस अपराध के गठन के लिए महज शिकायतकर्ता का बयान पर्याप्त नहीं होगा।"

    इसके साथ ही हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया और राजस्थान हाईकोर्ट के विभिन्न न्यायिक दृष्टांतों में अभिनिर्धारित विधि, जिनमें सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति परिदत्त करना धारा 384 के अपराध के गठन के लिए आवश्यक कारक माना गया है, उनके आधार पर याचिकाकर्ता की आपराधिक विविध याचिका स्वीकार करते हुए एफआईआर रद्द करने का आदेश पारित किया।

    केस टाइटल : कमल कांत कुम्हार बनाम राजस्थान राज्य व अन्य (एकलपीठ आपराधिक विविध याचिका नंबर 1036/2018)

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