हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

11 Dec 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (5 दिसंबर, 2022 से 9 दिसंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी द्वारा नकद निकासी पर टीडीएस छूट लागू नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि आयकर अधिनियम की धारा 194एन के तहत टीडीएस छूट प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी द्वारा नकद निकासी पर लागू नहीं होती। जस्टिस अनीता सुमंत की पीठ ने नोट किया कि अधिनियम की धारा 194 एन के प्रावधान नकद निकासी के 2% की अनिवार्य कटौती के लिए प्रदान करते हैं और इसका उद्देश्य कैशलेस या कैश-मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर कदम को हतोत्साहित करना और ड्राइव करना है।

    केस टाइटल: मोलासी प्राइमरी एग्रीकल्चर सोसाइटी बनाम आईटीओ

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    जिस मजिस्ट्रेट ने भ्रष्टाचार के मामले में क्लोजर रिपोर्ट को खारिज किया हो, वह अभियोजन की स्वीकृति प्राप्त करने का निर्देश नहीं दे सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि एक मजिस्ट्रेट क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकता है और साथ ही राज्य को भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति प्राप्त करने का निर्देश दे सकता है। चीफ जस्टिस रवि मालिमथ और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा करना मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर होगा, जैसा कि वसंती दुबे बनाम मध्य प्रदेश राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया है।

    केस टाइटल: डॉ मयंक जैन बनाम विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त

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    हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश प्रकृति में अंतिम, हालांकि यह फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत सुनवाई योग्य : एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण के लिए दायर आवेदन पर पारित आदेश के खिलाफ अपील फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत सुनवाई योग्य है। जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस अमर नाथ केशरवानी की खंडपीठ ने कहा कि एचएमए की धारा 24 के तहत दायर आवेदन में कार्यवाही कानून की धारा 9 या 13 के तहत अन्य कार्यवाही से स्वतंत्र है और इसलिए आवेदन पर फैसला करते समय पारित आदेश प्रकृति में अंतिम है, हालांकि यह संवादात्मक नहीं है।

    केस टाइटल: मिस्टर नीलेंद्र सिंह पवार बनाम डॉ. श्रीमती दीप्ति पवार

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    अगर अभियोजन ने अपने बोझ का निर्वहन नहीं किया है तो अभियुक्त पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत उल्टा बोझ नहीं डाला जा सकताः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अभियुक्त पर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत उल्टा बोझ नहीं डाला जा सकता [उन तथ्यों को साबित करने का बोझ, जो विशेष रूप से जानकारी में हो], जब अभियोजन पक्ष ने पहले अपने बोझ का निर्वहन नहीं किया है।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की पीठ ने उक्त टिप्‍पणी के साथ अनिल नामक आरोपी की दोषसिद्धी और आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया। उस पर जून 2013 में कथित रूप से अपनी पत्नी की हत्या करने का आरोप है।

    केस टाइटल- अनिल बनाम यूपी राज्य [ CRIMINAL APPEAL No. - 703 of 2017]

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    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत बेटी को दिखाना होगा कि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है या बालिग नहीं हुई है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के अनुसार गुजारा भत्ता पाने के लिए एक बेटी को यह मामला बनाना होगा कि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है या बालिग नहीं हुई है।

    इसके साथ ही जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की पीठ ने हाल ही में एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक व्यक्ति की ओर से दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उसे उसकी 24 वर्षीय बेटी (प्रतिवादी) को प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 5 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल - बीरेंद्र कुमार तिवारी बनाम नीतू तिवारी [CRR No. 1216 of 2022]

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    सीआरपीसी की धारा 125-दावेदार के लिए भरण-पोषण की कार्यवाही में 'सभी पात्र व्यक्तियों' पर मुकदमा चलाना अनिवार्य नहींः उत्तराखंड हाईकोर्ट

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने वाले व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि उसके भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार सभी व्यक्तियों (जिनके पास पर्याप्त साधन हैं) को प्रतिवादी बनाए। यह दावेदार पर निर्भर है कि उसे किससे भरण-पोषण लेने आवश्यकता है और वह किसी एक या सभी व्यक्तियों को पक्षकार बनाने के लिए स्वतंत्र है।

    केस टाइटल- मनीष सैनी बनाम उत्तराखंड राज्य

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    पुलिस सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए एफआईआर ट्रांसफर नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक बार मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश पारित कर देता है तो पुलिस के लिए क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के संबंध में आपत्ति उठाने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस जसमीत सिंह ने अतिरिक्त पुलिस आयुक्त द्वारा दिए गए उस आदेश को खारिज करते हुए कहा, जिसमें अपहरण के आरोप वाली एफआईआर की जांच दिल्ली के मॉडल टाउन पुलिस स्टेशन से उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा ट्रांसफर कर दी गई।

    केस टाइटल: जॉली सिंह बनाम द स्टेट

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    वेश्यालय के ग्राहक पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा 7 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि वेश्यालय में 'ग्राहक' पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा 7 के तहत आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है, यदि प्रावधान में निर्दिष्ट शर्तें पूरी होती हैं।

    अधिनियम की धारा 7 कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में वेश्यावृत्ति को दंडनीय बनाती है और न्यायालय ने इस मामले में पाया कि अधिनियम की धारा 7(1) में वर्णित शब्द 'व्यक्ति जिसके साथ वेश्यावृत्ति की जाती है' में 'ग्राहक' शामिल होगा।

    केस टाइटल: मैथ्यू बनाम केरल राज्य

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    धारा 99 सीपीसी | 'आवश्यक पक्ष' को न जोड़ना अपील में डिक्री को उलटने या मूलतः तब्दील करने या मुकदमे को वापस भेजने का आधारः कोलकाता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि एक 'आवश्यक पक्ष' को न जोड़ना अपील में डिक्री को उलटने या मूलतः तब्दील करने का आधार है। एक उपयुक्त मामले में इस प्रकार के मुकदमे में पारित डिक्री को रद्द करने के बाद खुद मुकदमे को रिमांड करने का आधार हो सकता है।

    फैसले का आधार यह तर्क था कि सीपीसी की धारा 99 की स्पष्ट वैधानिक भाषा किसी भी पक्ष को गलती से ना जोड़ पाने या ना जोड़ पाने के आधार पर, या कार्रवाई के कारण या मुकदमे की किसी भी कार्यवाही में किसी त्रुटि, दोष या अनियमितता के आधार पर, अपील में डिक्री को उलटने, मूलतः तब्दील करने पर या वापस भेजने पर रोक लगाती है, यह मामले की योग्यता या न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को प्रभावित नहीं करता है, हालांकि प्रावधान के अधीन, उक्त प्रावधान आवश्यक पक्षों के गैर-जुड़ाव पर लागू नहीं होगा।

    मामला: कल्याण कुमार बेरा बनाम मिलन कुमार खुटिया व अन्य, FAT 451 Of 2016.

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    धारा 167(2) सीआरपीसी| अभियुक्त पहले फरार रहा हो तब भी वह डिफॉल्ट जमानत का हकदार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में एक फैसले मे कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत का प्रावधान, एक ऐसे अभियुक्त के साथ जो एक बार फरार हो चुका है और बाद में गिरफ्तार कर गया है, वैसे अभियुक्त से अलग व्यवहार नहीं करता, जो फरार नहीं हुआ था...।

    जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि विचार के लिए प्रासंगिक बिंदु केवल यह है कि आरोपी की गिरफ्तारी की तारीख से, जैसा कि मामला हो सकता है, आरोप पत्र 60/90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर दायर किया गया था।

    केस टाइटल: दिनेश और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    पत्नी दो अलग-अलग अधिनियमों के तहत भरण-पोषण की हकदार, क्वांटम को तदनुसार समायोजित किया जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि विशेष रूप से किसी विशेष कानून के तहत भरण-पोषण प्रदान किए जाने के बाद पत्नी दो अलग-अलग अधिनियमों के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश की पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पत्नी को 30,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण देने वाले फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली पति द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: उदय नायक बनाम अनीता नायक

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    सार्वजनिक जुआ अधिनियम की धारा 13A के तहत गैर-संज्ञेय अपराध, बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के छापा मारना केस को रद्द करने के लिए पर्याप्त आधार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867 की धारा 13ए के तहत सट्टेबाजी और जुए में शामिल एक व्यक्ति गैर-संज्ञेय अपराध में आता है और उसकी किसी भी जांच के लिए सीआरपीसी की धारा 155 के तहत मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति की आवश्यकता होती है।

    इस प्रकार, यह माना गया कि मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना ऐसे व्यक्ति के घर में पुलिस द्वारा की गई छापेमारी एक प्रक्रियात्मक अनियमितता जो मामले को रद्द करने के लिए पर्याप्त है।

    केस टाइटल: सौरभ वर्मा बनाम पंजाब राज्य

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    खाना ठीक से नहीं पकाने पर हुए 'अचानक झगड़े' में पत्नी की हत्या करने वाला व्यक्ति हत्या का दोषी नहींः बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में ऐसे व्यक्ति की सजा कम की, जिसने अपनी पत्नी को ठीक से खाना (मांस) नहीं पकाने के कारण मार डाला। हाईकोर्ट ने आरोपी की सजा कम करते हुए कहा कि उने क्रूर या असामान्य तरीके से कृत्य को अंजाम नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि यह बिना किसी पूर्व योजना के अचानक हुए झगड़े का मामला है। इसलिए अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 भाग I के तहत दोषी ठहराया और उसकी सजा घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया।

    केस नंबर- क्रिमिनल अपील नंबर 347/2019

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    एडहॉक कर्मचारी दूसरे एडहॉक कर्मचारी की जगह नहीं ले सकता, केवल स्थायी नियुक्ति ही ऐसा रिप्लेसमेंट कर सकती है: जेकेएल हाईकोर्ट ने दोहराया

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एडहॉक कर्मचारी को दूसरे एडहॉक कर्मचारी द्वारा रिप्लेस नहीं किया जा सकता; ऐसी स्थिति केवल उस उम्मीदवार द्वारा भरी जा सकती है, जिसे नियमित रूप से निर्धारित प्रक्रिया का पालन करके नियमित रूप से नियुक्त किया जाता है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने उस विज्ञापन नोटिस को चुनौती दी, जिसमें उत्तरदाताओं ने शैक्षणिक व्यवस्था के आधार पर स्टाफ नर्सों की अस्थायी नियुक्ति के लिए छह महीने की अवधि के लिए आवेदन आमंत्रित किए। याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को स्टाफ नर्स के पदों पर तब तक बने रहने की अनुमति देने के लिए निर्देश देने की भी मांग की, जब तक कि इन पदों को मूल आधार पर नहीं भर दिया जाता।

    केस टाइटल: मुराद अली साजन व अन्य बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर।

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    हाईकोर्ट एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि हाईकोर्ट एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत पारित आदेश पर पुनर्विचार नहीं कर सकता, क्योंकि एक्ट में समीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। जस्टिस नीना बंसल कृष्ण की पीठ ने कहा कि पुनर्विचार की शक्ति एक अंतर्निहित शक्ति नहीं है, बल्कि एक क़ानून का निर्माण है, इसलिए प्रावधान के अभाव में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 137 के तहत पुनर्विचार की अंतर्निहित शक्ति मौजूद होती है, लेकिन इसके उलट हाईकोर्ट को ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं की जाती है।

    केस टाइटल: कुश राज भाटिया बनाम मेसर्स डीएलएफ पावर एंड सर्विसेज लिमिटेड एआरबी. पी 869/2022

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    धारा 173(8) सीआरपीसी | ट्रायल शुरू होने तक मजिस्ट्रेट पर संज्ञान लेने के बाद आगे की जांच का आदेश देने पर रोक नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173(8) के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट की आगे की जांच का आदेश देने की शक्ति केवल इसलिए नहीं छीनी जाती है क्योंकि अपराध का संज्ञान लिया गया था।

    चीफ जस्टिस डॉ एस मुरलीधर की सिंगल जज बेंच ने कानून की स्थिति को स्पष्ट करते हुए, विनुभाई हरिभाई मालवीय बनाम गुजरात राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की 2019 की तीन-जजों की पीठ के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कुछ पिछले विरोधाभासी निर्णयों को खारिज करने के बाद न्यायालय ने कहा था, "इस प्रकार यह स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत मजिस्ट्रेट की शक्ति बहुत व्यापक है, क्योंकि न्यायिक प्राधिकरण को ही संतुष्ट होना चाहिए कि पुलिस उचित जांच कर रही है।

    केस टाइटल: मनोज कुमार अग्रवाल बनाम ओडिशा राज्य

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    डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज की गई रिट याचिका को जब बहाल किया जाता है तो उसमें पारित सभी आदेश स्वचालित रूप से पुनर्जीवित हो जाते हैं: जेकेएल हाईकोर्ट ने दोहराया

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि डिफॉल्ट के रूप में खारिज की गई रिट याचिका की बहाली के परिणाम के रूप में पारित किए गए सभी आदेश स्वचालित रूप से पुनर्जीवित हो जाएंगे और मूल स्थिति में बहाल हो जाएंगे।

    जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने यह टिप्पणी आवेदन पर सुनवाई के दौरान की थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने 10.07.2018 के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। इसके तहत निजी प्रतिवादी रुबीना बेगम को आंगनवाड़ी केंद्र में सहायिका के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति दी गई थी।

    केस टाइटल: मफूजा बानो बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य व अन्य।

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    एफआईआर में यूएपीए के अपराधों को जोड़ने के बाद मजिस्ट्रेट के पास आरोपी को 30 दिनों से अधिक अवधि के लिए रिमांड पर देने की शक्ति नहीं रह जातीः कलकत्ता ‌हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि किसी मामले/एफआईआर जब यूएपीए के तहत अपराध जुड़ जाए तो किसी मजिस्ट्रेट के पास दंड प्रक्रिया संहिता (जैसा कि यूएपीए के तहत संशोधित किया गया है) की धारा 167 के संदर्भ में आरोपी को 30 दिनों से अधिक की अवधि के लिए रिमांड पर देने शक्ति नहीं रह जाती।

    जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की पीठ ने निष्‍कर्ष में कहा कि एक मजिस्ट्रेट के पास न तो यूएपीए से जुड़े मामले का ट्रायल चलाने की शक्ति है, न ही उन मामलों को सौंपने की शक्ति है, और इसलिए, एक बार यूएपीए के तहत अपराधों को एफआईआर में जोड़ दिया जाता है तो मजिस्ट्रेट एक अभियुक्त को तीस दिन से अधिक की अवधि के लिए रिमांड पर देने की शक्ति से भी वंचित हो जाता है।

    केस टाइटल: प्रतीक भौमिक बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [CRM (DB) 3590 of 2022]

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    न्यायिक मजिस्ट्रेट दोबारा जांच को निर्देशित करने या एक जांच एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसी को मामले को स्थानांतरित करने में सक्षम नहीं: जेएंडकेएंडएल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी मामले में दोबारा जांच का आदेश नहीं दे सकता है और न ही उसे मामले को एक जांच एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसी में स्थानांतरित करने का अधिकार है।

    जस्टिस एमए चौधरी ने कहा, "सुपीरियर/संवैधानिक अदालतों को छोड़कर किसी अन्य न्यायालय के पास किसी मामले की पुनर्जांच का आदेश देने या जांच को एक एजेंसी से दूसरी एजेंसी में स्थानांतरित करने की शक्ति नहीं हैं।"

    केस टाइटल: कमलेश देवी व अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर व अन्य राज्य।

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    जब दूसरी जगह जांच की जा रही है तो जब्त की गई वस्तुओं की वापसी का आदेश देने के लिए अदालत के पास क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि जब जांच अलग स्थान पर की जा रही है तो जब्त की गई वस्तुओं की वापसी का आदेश देने के लिए अदालत के पास क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं है, भले ही तलाशी और जब्ती उसकी क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर की गई हो।

    जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस आरएमटी टीका रमन की खंडपीठ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चेन्नई में याचिकाकर्ता के आवास से जब्त किए गए याचिकाकर्ता के "अवैध रूप से" जब्त किए गए दस्तावेजों और मोबाइल फोन को वापस करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।

    केस टाइटल: रमेश दुगर बनाम उप निदेशक और अन्य

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    अगर ट्रायल कोर्ट ने कानून द्वारा निर्धारित 'न्यूनतम सजा' दी है तो अपीलीय अदालत सजा को कम नहीं कर सकती: सिक्किम हाईकोर्ट

    सिक्किम हाईकोर्ट ने एक फैसले में दोहराया कि दोषियों पर कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम सजा लगाई जानी चाहिए और अपीलीय अदालत इसे कम नहीं कर सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को अपराध के लिए दोषी ठहराते समय अदालतें कानून द्वारा निर्धारित 'न्यूनतम सजा' से कम सजा नहीं दे सकती हैं। जस्टिस मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान की खंडपीठ ने फैसले के समर्थन में मो हासिम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य का हवाला दिया।

    केस टाइटल: सुमन गुरुंग बनाम सिक्किम राज्य

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    [धारा 138 एनआई एक्ट] ट्रस्ट को पक्षकार बनाए बिना ट्रस्ट के प्रभारी को अभियुक्त के रूप में आरोपित नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि एक 'ट्रस्ट' के इनचार्ज को चेक डिसऑनर के मामले में अभियुक्त के रूप में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है, यदि ट्रस्ट खुद अधिनियम की धारा 141 के अनुसार पक्षकार के रूप में आरोपित नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि धारा 141 चेक डिसऑनर के मामलों में कंपनियों की देनदारियों को निर्धारित करती है।

    केस टाइटल: बिजया मंजरी सत्पथी बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य।

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    ट्राई अधिनियम के तहत TDSAT के विशेष क्षेत्राधिकार के भीतर मामलों के संबंध में मध्यस्थता वर्जित: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत मध्यस्थता उन मामलों के संबंध में वर्जित है, जो भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 (ट्राई) के तहत दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) के विशेष अधिकार क्षेत्र में हैं। जस्टिस एन नागरेश ने कहा कि ट्राई अधिनियम विशेष कानून है और मध्यस्थता अधिनियम पर प्रबल होगा, जो सामान्य कानून है।

    केस टाइटल: ए. सलीम बनाम मैसर्स एशियानेट सैटेलाइट कम्युनिकेशन लिमिटेड।

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    सार्वजनिक कानून के तत्व वाले निजी व्यक्ति और सार्वजनिक निकाय के बीच वाणिज्यिक लेनदेन के लिए रिट क्षेत्राधिकार लागू किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का रिट अधिकार क्षेत्र निजी व्यक्तियों और सार्वजनिक निकायों के बीच सामान्य वाणिज्यिक लेनदेन से जुड़े मामलों के लिए भी लागू है, जब तक कि उक्त वाणिज्यिक लेनदेन में सार्वजनिक कानून का कुछ तत्व शामिल है।

    केस: बीएमडब्ल्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम यूको बैंक व अन्य, डब्ल्यूपीओ 146/2020

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    सब्स्टिट्यूट आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए अधिनियम की धारा 21 के तहत नया नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पक्षकार को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 21 के तहत नोटिस जारी करके सब्स्टिट्यूट आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के लिए नए सिरे से अनुरोध करने की आवश्यकता नहीं है, यदि मध्यस्थ की नियुक्ति को प्रतिस्थापित करने की मांग को लेकर अधिनियम की धारा 21 के तहत नोटिस जारी किया गया है।

    जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की पीठ ने कहा कि एक बार अधिनियम की धारा 11 (6) के तहत पक्षकार द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया जाता है, जिसमें मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की जाती है, मध्यस्थता खंड के अनुसार मध्यस्थ नियुक्त करने के लिए पार्टियों का अधिकार क्षेत्र जब्त हो जाता है।

    केस टाइटल: एम/एस. सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड बनाम ईस्टर्न इंडिया पॉवरटेक लिमिटेड।

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    धारा 482 सीआरपीसी के तहत 498ए आईपीसी का मामला केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि फैमिली कोर्ट ने भरणपोषण की कार्यवाही में विवाह को अवैध बताया: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत एक पति के खिलाफ आरोप को धारा 482 सीआरपीसी के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करके केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि फैमिली कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरणपोषण के लिए एक आवेदन का फैसला करते हुए एक निष्कर्ष दिया है कि वह उसकी पत्नी नहीं है।

    केस टाइटल: जग साराबू बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।

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