वेश्यालय के ग्राहक पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा 7 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

9 Dec 2022 11:13 AM IST

  • वेश्यालय के ग्राहक पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा 7 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि वेश्यालय में 'ग्राहक' पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा 7 के तहत आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है, यदि प्रावधान में निर्दिष्ट शर्तें पूरी होती हैं।

    अधिनियम की धारा 7 कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में वेश्यावृत्ति को दंडनीय बनाती है और न्यायालय ने इस मामले में पाया कि अधिनियम की धारा 7(1) में वर्णित शब्द 'व्यक्ति जिसके साथ वेश्यावृत्ति की जाती है' में 'ग्राहक' शामिल होगा।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने कहा,

    क़ानून की दंडात्मक सीमा में आने वाले ग्राहक की अनुपस्थिति में अधिनियमन के उद्देश्यों को कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, मेरी सुविचारित राय में अधिनियम की धारा 7(1) में वर्णित शब्द 'जिस व्यक्ति के साथ ऐसी वेश्यावृत्ति की जाती है' में 'ग्राहक' शामिल होगा।

    इस फैसले का महत्व इस बात को देखते हुए है कि यह सेटल पोज़िशन है कि छापे के समय वेश्यालय में पाए गए ग्राहक पर अधिनियम के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

    मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत, एर्नाकुलम के समक्ष मामले में तीसरे आरोपी द्वारा याचिका दायर की गई। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि पहले आरोपी ने आयुर्वेदिक अस्पताल चलाने के लिए एर्नाकुलम में रविपुरम मंदिर से 175 मीटर की दूरी पर स्थित इमारत ली और आयुर्वेदिक अस्पताल की आड़ में वेश्यावृत्ति करने की अनुमति दी। दिसंबर, 2004 में जब पुलिस इमारत में पहुंची तो याचिकाकर्ता को यौन क्रिया में लिप्त दो महिलाओं के साथ पाया गया। इसके बाद उसके खिलाफ अधिनियम की धारा 3,4 और 7 के तहत अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, भले ही तर्क के लिए आरोपों को सच मान लिया जाए, फिर भी केवल 'ग्राहक' होने के नाते उसके खिलाफ कार्यवाही नहीं की जा सकती, क्योंकि कानून 'ग्राहक' पर मुकदमा चलाने पर विचार नहीं करता।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील आर. संतोष बाबू ने प्रस्तुत किया कि चूंकि याचिकाकर्ता के 'ग्राहक' के रूप में कथित आचरण को अपमानजनक बताया गया है, इसलिए अधिनियम के दायरे में 'ग्राहक' सहित क़ानून की अनुपस्थिति में वह नहीं हो सकता। फिर भी उसे अभियुक्त के रूप में शामिल किया गया। वकील ने अपने तर्क को साबित करने के लिए राधाकृष्णन बनाम केरल राज्य और विजयकुमार और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य में केरल हाईकोर्ट के फैसले सहित अन्य हाईकोर्ट के कई फैसलों पर भरोसा किया।

    लोक अभियोजक वकील के.ए. नौशाद ने इसके विपरीत तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 7 याचिकाकर्ता पर लागू होगी, क्योंकि उसे ऐसा व्यक्ति माना जा सकता है जिसके साथ "वेश्यावृत्ति" की जाती है।

    न्यायालय ने पाया कि अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 वेश्यावृत्ति के साथ-साथ कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में वेश्यावृत्ति से जुड़ी कुछ गतिविधियों को ही अपराध मानता है।

    अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर विचार करने के बाद न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 7 के तहत तीन अलग-अलग क्षेत्रों पर विचार किया जाता है, जो कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में वेश्यावृत्ति को दंडनीय बनाता है। वे हैं:-

    (i) अधिनियम की धारा 7(3) के तहत राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्र।

    (ii) वे क्षेत्र जो सार्वजनिक धार्मिक पूजा स्थलों, शिक्षण संस्थानों, छात्रावास, अस्पताल, या नर्सिंग होम से दो सौ मीटर की दूरी के भीतर हैं, और

    (iii) किसी भी प्रकार का सार्वजनिक स्थान, जिसे पुलिस आयुक्त या मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित तरीके से अधिसूचित किया जाता है।

    अधिनियम की धारा 7(1) निर्दिष्ट क्षेत्रों के भीतर वेश्यावृत्ति में लिप्त होने के लिए दो प्रकार के व्यक्तियों को दंडित करती है। वे व्यक्ति हैं-

    (i) वह व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति करता है और

    (ii) वह व्यक्ति जिसके साथ ऐसी वेश्यावृत्ति की जाती है।

    न्यायालय ने पाया कि अधिनियम की धारा 7(1) में वेश्यावृत्ति करने वाला व्यक्ति' शब्द में वेश्या भी शामिल है।

    अदालत ने कहा कि वर्ष 1987 तक अधिनियम की धारा 7(1) के पहले भाग में प्रयुक्त शब्द "'वेश्यावृत्ति करने वाली महिला या लड़की...." थे। 26-01-1987 से 'महिला या लड़की' शब्द को 'व्यक्ति' शब्द से बदल दिया गया। यह दर्शाता है कि पुरुष भी वेश्यावृत्ति कर सकता है। इस प्रकार अधिनियम की धारा 7(1) में 'वेश्यावृत्ति करने वाले व्यक्ति' शब्द में वेश्या भी शामिल है।

    न्यायालय ने कहा कि शब्द "जिस व्यक्ति के साथ ऐसी वेश्यावृत्ति की जाती है" उसको वेश्यावृत्ति शब्द की परिभाषा के साथ पढ़ा जाना चाहिए। वेश्यावृत्ति शब्द को व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए यौन शोषण या व्यक्तियों के दुरुपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है। यौन शोषण अकेले नहीं किया जा सकता है और इसलिए न्यायालय ने कहा कि शोषण के कार्य में लिप्त व्यक्ति भी एक ऐसा व्यक्ति है, जो 'जिस व्यक्ति के साथ ऐसी वेश्यावृत्ति की जाती है' शब्द के अंतर्गत आता है।

    अदालत ने देखा कि दूसरे शब्दों में, जो व्यक्ति वेश्या का शोषण या दुर्व्यवहार करता है, वह व्यक्ति है जिसके साथ वेश्या वेश्यावृत्ति करती है।

    न्यायालय ने कहा कि अनैतिक व्यापार का कृत्य 'ग्राहक' के बिना नहीं किया जा सकता है और अधिनियम की धारा 7 (1) में 'जिस व्यक्ति के साथ वेश्यावृत्ति की जाती है' शब्दों का उपयोग करके विधायिका का इरादा है ग्राहक को भी दंडात्मक प्रावधानों के दायरे में लाया जाए।

    न्यायालय ने आगे कहा कि विजयकुमार और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य के फैसले में यह माना गया कि वेश्यालय में भी यौन गतिविधि में संलग्न होना अपराध नहीं है और ग्राहक के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी गई, उक्त निर्णय वर्तमान मामले पर लागू नहीं होगा। यह सुझाव देने के लिए कुछ भी नहीं है कि पूर्वोक्त निर्णय अधिसूचित क्षेत्र से संबंधित है।

    कोर्ट ने कहा,

    उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, मेरा दृढ़ मत है कि वेश्यालय में 'ग्राहक' के खिलाफ अधिनियम की धारा 7 के प्रावधानों के तहत आपराधिक कार्यवाही की जा सकती है यदि धारा की अन्य शर्तें पूरी होती हैं।

    इस प्रकार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: मैथ्यू बनाम केरल राज्य

    साइटेशन: लाइवलॉ (केरल) 639/2022

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