न्यायिक मजिस्ट्रेट दोबारा जांच को निर्देशित करने या एक जांच एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसी को मामले को स्थानांतरित करने में सक्षम नहीं: जेएंडकेएंडएल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
6 Dec 2022 6:56 PM IST
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी मामले में दोबारा जांच का आदेश नहीं दे सकता है और न ही उसे मामले को एक जांच एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसी में स्थानांतरित करने का अधिकार है।
जस्टिस एमए चौधरी ने कहा,
"सुपीरियर/संवैधानिक अदालतों को छोड़कर किसी अन्य न्यायालय के पास किसी मामले की पुनर्जांच का आदेश देने या जांच को एक एजेंसी से दूसरी एजेंसी में स्थानांतरित करने की शक्ति नहीं हैं।"
जस्टिस चौधरी ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता ने जम्मू के न्यायिक मजिस्ट्रेट के एक आदेश को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें एसपी क्राइम ब्रांच को धारा 420, 467, 468, रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 471 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ मामले की फिर से जांच करने का निर्देश दिया गया था।
इस मामले में बीरो देवी नामक महिला द्वारा याचिकाकर्ता कमलेश देवी के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जम्मू, (विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट, यात्री कर और दुकान अधिनियम) के समक्ष धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत दायर शिकायत के आधार पर अदालत ने पुलिस को जांच करने का निर्देश दिया था ।
जिसके बाद एक मामला दर्ज किया गया और सामग्री/दस्तावेजी साक्ष्य एकत्र करने और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद, यह पाया गया कि शिकायत में लगाए गए आरोप झूठे, हेरफेर और बिना किसी आधार के थे। इसलिए, पुलिस ने शिकायतकर्ता के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 182 के तहत झूठा और तुच्छ मामला दर्ज करने के लिए एक उपयुक्त मामला माना।
इसके बाद, पुलिस ने जम्मू के सीजेएम के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट दायर की, जिन्होंने कानून के तहत निपटान के लिए मामले को एक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट यात्री कर और दुकान अधिनियम) को स्थानांतरित कर दिया।
विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट ने तब शिकायतकर्ता बीरो देवी को एक सम्मन जारी किया और अपना बयान दर्ज करने को कहा, जिसमें उन्होंने कहा कि वह जांच से संतुष्ट नहीं है और इसलिए, उसे अपराध शाखा जम्मू को स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए।
इसके नतीजे के रूप में न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 28 जुलाई, 2010 के एक आदेश द्वारा मामले की जांच वैधानिक नियामक आदेश (SRO) 202, तारीख 3 जून, 1999 के आधार पर कानाचक पुलिस स्टेशन, जम्मू से अपराध शाखा, जम्मू को स्थानांतरित कर दी, यह समझते हुए कि अपराध शाखा जम्मू को जालसाजी के एक मामले में जांच करने का अधिकार दिया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील के स्थानांतरण के आदेश को चुनौती देते हुए दलील दी कि मजिस्ट्रेट इस मामले की फिर से जांच किसी दूसरी पुलिस एजेंसी से कराने का निर्देश देने के लिए सक्षम नहीं है। वकील ने कहा कि यहां तक कि अपराध शाखा भी SRO 202 के संदर्भ में मामले की जांच करने के लिए सक्षम नहीं है, जो अपराध शाखा को ऐसे किसी भी अपराध की जांच करने का अधिकार नहीं देता है जो SRO के अनुबंध में सूचीबद्ध नहीं हैं।
जिन प्रश्नों पर निणर्य किया जाना था, वे निम्न हैं-
i) क्या एक न्यायिक मजिस्ट्रेट मामले की जांच स्थानीय पुलिस स्टेशन से पुलिस एजेंसी की अपराध शाखा को स्थानांतरित करने के लिए सक्षम है;
ii) क्या अपराध शाखा मजिस्ट्रेट के निर्देशानुसार जालसाजी प्रमाण पत्र के मामले की जांच करने के लिए सक्षम थी।
पहले मुद्दे पर विचार करते हुए, जस्टिस चौधरी ने कहा कि सुपरियर/संवैधानिक अदालतों को छोड़कर किसी भी अदालत के पास किसी मामले की फिर से जांच करने या जांच को एक एजेंसी से दूसरी एजेंसी में स्थानांतरित करने का आदेश देने की शक्ति नहीं है।
दूसरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए, पीठ ने पाया कि गृह विभाग के माध्यम से जम्मू-कश्मीर सरकार ने पंजीकरण और जांच के उद्देश्यों के लिए जम्मू-कश्मीर के भीतर अपराध शाखा द्वारा जांच किए जाने वाले मामलों की श्रेणियों को निर्दिष्ट करते हुए SRO 202 जारी किया था।
पीठ ने आगे कहा कि अपराध शाखा जांच के लिए अन्य मामले भी दर्ज कर सकती है जो अधिसूचना (SRO 202) के अनुसार समय-समय पर सरकार या पुलिस महानिदेशक द्वारा इसे संदर्भित किया जा सकता है।
मामले पर आगे चर्चा करते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि उपरोक्त के संदर्भ में, अपराध शाखा को मामलों का असाइनमेंट या तो सरकार या डीजीपी द्वारा किया जा सकता है, और इसलिए न्यायिक मजिस्ट्रेट मामले की जांच को एक जांच एजेंसी से दूसरी जांच एजेंसी को स्थानांतरित करने के लिए सक्षम नहीं थे।
उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर न्यायालय ने न्यायिक मजिस्ट्रेट, जम्मू (स्पेशल मोबाइल मजिस्ट्रेट यात्री कर और दुकान कर ) द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और पुलिस स्टेशन कानाचक द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करने की सीमा तक आदेश को बरकरार रखा।
केस टाइटल: कमलेश देवी व अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर व अन्य राज्य।
साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (जेकेएल) 236