अगर ट्रायल कोर्ट ने कानून द्वारा निर्धारित 'न्यूनतम सजा' दी है तो अपीलीय अदालत सजा को कम नहीं कर सकती: सिक्किम हाईकोर्ट

Avanish Pathak

5 Dec 2022 4:07 PM GMT

  • अगर ट्रायल कोर्ट ने कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम सजा दी है तो अपीलीय अदालत सजा को कम नहीं कर सकती: सिक्किम हाईकोर्ट

    सिक्किम हाईकोर्ट ने एक फैसले में दोहराया कि दोषियों पर कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम सजा लगाई जानी चाहिए और अपीलीय अदालत इसे कम नहीं कर सकती है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को अपराध के लिए दोषी ठहराते समय अदालतें कानून द्वारा निर्धारित 'न्यूनतम सजा' से कम सजा नहीं दे सकती हैं। जस्टिस मीनाक्षी मदन राय और जस्टिस भास्कर राज प्रधान की खंडपीठ ने फैसले के समर्थन में मो हासिम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य का हवाला दिया।

    संक्षिप्त तथ्य

    अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 376(2)(एन) और 376(3) के साथ-साथ धारा 5(जे)(ii) और धारा 5(एल), पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था।

    कोर्ट ने अपीलकर्ता को अलग-अलग आरोपों के तहत अलग-अलग अवधि की सजा सुनाई। इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा के तहत 'कैद की अवधि' के खिलाफ याचिका दायर की।

    निष्कर्ष

    अदालत ने फैसले में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह निर्धारित किया है कि दोषियों को कानून द्वारा निर्धारित न्यूनतम सजा दी जानी चाहिए और न्यायालय अपने विवेक का उपयोग करके इसे कम नहीं कर सकते हैं।

    कोर्ट मोहम्मद हासिम (सुप्रा) और हरेंद्र नाथ चक्रवर्ती बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि कोर्ट विधायिकाओं द्वारा निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा देने के लिए अपने विवेक का उपयोग नहीं कर सकता है।

    परिणामस्वरूप, अपील खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: सुमन गुरुंग बनाम सिक्किम राज्य

    केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 11 ऑफ 2021

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