एफआईआर में यूएपीए के अपराधों को जोड़ने के बाद मजिस्ट्रेट के पास आरोपी को 30 दिनों से अधिक अवधि के लिए रिमांड पर देने की शक्ति नहीं रह जातीः कलकत्ता हाईकोर्ट
Avanish Pathak
6 Dec 2022 7:37 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि किसी मामले/एफआईआर जब यूएपीए के तहत अपराध जुड़ जाए तो किसी मजिस्ट्रेट के पास दंड प्रक्रिया संहिता (जैसा कि यूएपीए के तहत संशोधित किया गया है) की धारा 167 के संदर्भ में आरोपी को 30 दिनों से अधिक की अवधि के लिए रिमांड पर देने शक्ति नहीं रह जाती।
जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की पीठ ने निष्कर्ष में कहा कि एक मजिस्ट्रेट के पास न तो यूएपीए से जुड़े मामले का ट्रायल चलाने की शक्ति है, न ही उन मामलों को सौंपने की शक्ति है, और इसलिए, एक बार यूएपीए के तहत अपराधों को एफआईआर में जोड़ दिया जाता है तो मजिस्ट्रेट एक अभियुक्त को तीस दिन से अधिक की अवधि के लिए रिमांड पर देने की शक्ति से भी वंचित हो जाता है।
अदालत ने फैसले में कहा कि उक्त 30 दिनों की समाप्ति के बाद, रिमांड शक्ति का उपयोग अदालत द्वारा किया जा सकता है, जो संज्ञान लेने और अपराध पर ट्रायल चलाने के के लिए अधिकृत है, यानी विशेष न्यायालय और उसकी अनुपस्थिति में, सत्र न्यायालय।
आदेश में न्यायालय ने कहा,
(i) एक बार यूएपीए के तहत अपराधों को एक मामले में जोड़ दिया जाता है तो मजिस्ट्रेट को 30 दिनों की अवधि से अधिक दंड प्रक्रिया संहिता (यूएपीए में संशोधित) की धारा 167 के संदर्भ में रिमांड की शक्ति से वंचित कर दिया जाता है;
(ii) इसके बाद, आरोपी को रिमांड के लिए एनआईए एक्ट की धारा 11 या 22 के तहत गठित विशेष अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए (जैसा भी मामला हो).... ;
(iii) विशेष न्यायालय की अनुपस्थिति में सत्र न्यायालय एनआईए एक्ट की धारा 22 (3) के संदर्भ में विशेष न्यायालय की सभी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करेगा, जिसमें रिमांड की शक्ति के साथ-साथ अधिनियम की धारा 43डी(2) के प्रोविसो के संदर्भ में रिमांड की अवधि बढ़ाने की शक्ति भी शामिल है।
मामला
मामले में अदालत आरोपी/याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 3 अप्रैल, 2022 को गिरफ्तार किया गया था। बाद में याचिकाकर्ता के खिलाफ यूएपीए के अपराध जोड़े गए। याचिकाकर्ता को समय-समय पर मजिस्ट्रेट के आदेशों के अनुसार रिमांड पर रखा जाता रहा।
अब 90 दिन की अवधि पूरी होने पर 9 सितंबर 2022 को याचिकाकर्ता ने जेल से पत्र लिखकर वैधानिक जमानत की प्रार्थना की और 19 सितंबर को इस संबंध में औपचारिक प्रार्थना भी की. हालांकि, 20 सितंबर, 2022 को अभियोजन पक्ष ने यूएपीए की धारा 43डी(2) के प्रावधान के तहत रिमांड बढ़ाने के लिए सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दायर किया। सत्र न्यायाधीश ने 22 सितंबर को याचिकाकर्ता की पीठ पीछे नजरबंदी की अवधि बढ़ा दी थी।
याचिकाकर्ता की वैधानिक जमानत की अर्जी खारिज होने के बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
निष्कर्ष
मामले की सुनवाई करते हुए, अदालत ने शुरुआत में कहा कि याचिकाकर्ता ने प्रथम दृष्टया वैधानिक जमानत के लिए मामला बनाया था और इसलिए हाईकोर्ट ने उन्हें 17 नवंबर को अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया।
इसके बाद, न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकालने के लिए एनआईए एक्ट और यूएपीए की जांच और विश्लेषण किया कि केवल केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा गठित एक विशेष अदालत, जैसा भी मामला हो, के पास एनआईए एक्ट के तहत ट्रायल करने और यूएपीए के तहत अपराध संज्ञान लेने और यूएपीए की धारा 43डी की उप-धारा (2) के प्रोविसो के संदर्भ में लंबित जांच की अवधि भी बढ़ाने का विशेष अधिकार क्षेत्र है।
हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि जांच राज्य एजेंसी द्वारा की जाती है और एनआईए एक्ट की धारा 22 की उप-धारा (1) के तहत कोई विशेष अदालत अधिसूचित नहीं की जाती है, तो एनआईए एक्ट की धारा 22 की उप-धारा (3) के अनुसार, सत्र न्यायालय को संज्ञान लेने और अनुसूचित अपराधों पर मुकदमा चलाने और अभियुक्तों को रिमांड देने के साथ-साथ अधिनियम की धारा 43डी(2) के प्रावधान के अनुसार विशेष अदालत तक रिमांड की अवधि बढ़ाने का अधिकार दिया गया है, जब तक विशेष कोर्ट को नोटिफाई नहीं किया जाता है।
इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि सीआरपीसी की धारा 167 सहपठित धारा 43डी (2) के अनुसार, एक मजिस्ट्रेट को किसी अभियुक्त को तीस दिनों से अधिक रिमांड पर देने का अधिकार नहीं है क्योंकि उसके पास मामले पर मुकदमा चलाने या सौंपने की शक्ति नहीं है और ऐसी शक्ति केवल विशेष न्यायालय या उसकी अनुपस्थिति में सत्र न्यायालय के पास होती है।
अब, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में, यूएपीए के तहत अपराध जोड़े जाने के बाद मजिस्ट्रेट आरोपी को 30 दिनों से अधिक रिमांड पर नहीं भेज सकता था। हालांकि, न्यायालय ने आगे कहा कि चूंकि यह वैधानिक मामला है, इसलिए, एक अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता नहीं थी।
नतीजतन, अदालत ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता ने मजिस्ट्रेट की
अदालत के समक्ष वैधानिक जमानत के लिए आवेदन किया था, जो उसे रिमांड पर दे रहा था, हालांकि ऐसा गलत तरीके से किया जा रहा था और इस तरह के आवेदन यूएपीए की धारा 43डी की उप धारा (2) में संदर्भ में रिमांड के विस्तार की प्रार्थना से पहले किया गया था, इसलिए आरोपी वैधानिक जमानत का हकदार था।
तदनुसार, अदालत ने याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत की पुष्टि की।
केस टाइटल: प्रतीक भौमिक बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [CRM (DB) 3590 of 2022]