डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज की गई रिट याचिका को जब बहाल किया जाता है तो उसमें पारित सभी आदेश स्वचालित रूप से पुनर्जीवित हो जाते हैं: जेकेएल हाईकोर्ट ने दोहराया
Shahadat
7 Dec 2022 11:28 AM IST
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि डिफॉल्ट के रूप में खारिज की गई रिट याचिका की बहाली के परिणाम के रूप में पारित किए गए सभी आदेश स्वचालित रूप से पुनर्जीवित हो जाएंगे और मूल स्थिति में बहाल हो जाएंगे।
जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने यह टिप्पणी आवेदन पर सुनवाई के दौरान की थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने 10.07.2018 के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। इसके तहत निजी प्रतिवादी रुबीना बेगम को आंगनवाड़ी केंद्र में सहायिका के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति दी गई थी।
अपनी याचिका में आवेदक ने प्रस्तुत किया कि उसने पहले रिट याचिका दायर की थी, जिसमें रुबीना बेगम की वापसी और फिर से इंगेजमेंट के आदेश को चुनौती दी गई। अदालत ने रिट याचिका पर विचार करते हुए 13.09.2013 को अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें उनकी डिसइंगेजमेंट पर रोक लगाई गई और उसे अगले आदेश तक आंगनवाड़ी सहायिका के रूप में जारी रखने का निर्देश दिया।
आवेदक ने आगे कहा कि बाद में 2018 में उसकी रिट याचिका 11.04.2018 को डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दी गई और बाद में 29.06.2022 को इसका ओरिजनल नंबर पर बहाल कर दी गई। बीच की अवधि के दौरान उत्तरदाताओं ने आदेश दिनांक 10.07.2018 जारी किया, जिसके तहत रुबीना बेगम को आंगनबाड़ी सहायिका के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई। इसी आदेश का आवेदक/याचिकाकर्ता द्वारा विरोध किया जा रहा है।
जस्टिस वानी ने मामले पर निर्णय देते हुए कहा कि यह विवाद में नहीं है कि न्यायालय ने रिट याचिका पर विचार करते हुए याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी पर अंतरिम आदेश पारित किया और उसे अगले आदेश तक आंगनवाड़ी सहायिका के रूप में जारी रखने का निर्देश दिया।
पीठ ने स्पष्ट किया,
"उक्त आदेश संक्षेप में अंतिम आदेश है, जिसमें उक्त आदेश के संदर्भ में अंतरिम राहत के लिए आवेदन का निस्तारण किया जाता है। तथ्य यह है कि इसे या तो चुनौती नहीं दी गई या किसी भी कार्यवाही में अलग नहीं किया गया।"
जस्टिस वानी ने रिट याचिका खारिज करने और उसके बाद उसके ओरिजनल नंबर पर बहाली के मुद्दे और प्रभावों पर विचार करते हुए कहा कि यह भी स्वीकृत तथ्य है कि उक्त रिट याचिका 29.06.2022 को अपनी मूल संख्या और परिणाम के रूप में बहाल हो गई। रिट याचिका को उसको ओरिजनल नंबर में बहाल करने के लिए पारित सभी आदेश स्वचालित रूप से पुनर्जीवित हो जाएंगे और मूल स्थिति में बहाल हो जाएंगे।
इसमें कहा गया कि प्रतिवादियों ने इस मूलभूत पहलू की अनदेखी की है और दिनांक 10.07.2018 के आदेश को जारी करते हुए खुद को गलत दिशा में ले गए, जिसमें गलत तरीके से प्रावधान किया गया कि उक्त आदेश न्यायालय द्वारा पारित निर्देशों के अनुसार जारी किया गया।
पीठ ने स्पष्ट किया,
"उक्त आदेश तथ्यों की गलत व्याख्या पर और इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 13.09.2013 के उल्लंघन पर स्पष्ट रूप से जारी किया गया। गैर-आवेदक प्रतिवादियों द्वारा दिनांक 10.07.2018 के आदेश को जारी करने का नतीजा याचिका प्रस्तुत करेगा। याचिकाकर्ता की याचिका बहाल करने पर न्यायालय द्वारा अधिनिर्णित किए जाने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ने पर याचिकाकर्ता का निष्कर्ष निरर्थक है।"
तदनुसार पीठ ने 10.07.2018 के विवादित आदेश के संचालन पर प्रतिवादियों को एक और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता इस न्यायालय द्वारा 13.09.2013 को पारित आदेश के तहत आंगनवाड़ी सहायिका के रूप में काम करना जारी रखेगी।
केस टाइटल: मफूजा बानो बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य व अन्य।
कोरम : जस्टिस जावेद इकबाल वानी
याचिकाकर्ता के वकील: उमर मीर
प्रतिवादी के वकील: शेख फिरोज डायग
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