स्तंभ
असंज्ञेय रिपोर्ट के बारे में विस्तृत जानकारी : कैसे असंज्ञेय रिपोर्ट प्रथम सूचना रिपोर्ट से अलग है
भारतीय कानून में अपराधों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है, यह विभाजन अपराधों की प्रकृति के आधार पर किया गया है।· संज्ञेय अपराध और असंज्ञेय अपराध· जमानतीय अपराध और गैर जमानतीय अपराध· समझौते योग्य अपराध और असमझौते योग्य अपराधजब असंज्ञेय अपराध से सम्बंधित घटना की सूचना थाने में देकर उस सूचना के आधार पर शिकायत दर्ज कराई जाती है तो ऐसे में पुलिस उस सूचना के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करती है और उसकी एक कॉपी शिकायतकर्ता को बिना कोई शुल्क लिए देती है। एफआईआर ...
चाय अधिनियम और टी बोर्ड की आवश्यकता के बारे में जानिए ये खास बातें
चाय का पौधा पहाड़ी स्थानों पर उगाया जाता है, जहां ज्यादा बारिश के साथ-साथ धूप भी होती है। चाय के बीज पहले एक स्थान पर बोए जाते हैं। फिर रोपण को विशेष रूप से तैयार जमीन में प्रत्यारोपित किया जाता है। पौधों को पानी देने, खरपतवारों को हटाने और कीड़ों और कीड़ों से पौधों की सुरक्षा में बहुत देखभाल की आवश्यकता होती है। जब चाय के पौधे एक निश्चित चरण तक बढ़ते हैं, तो नई पत्तियों को बढ़ने देने के लिए इसकी टहनियों को सावधानीपूर्वक काट दिया जाता है। साल में करीब चार बार पौधों से चाय पत्ती इकट्ठा की जाती...
जानिए भारतीय वन अधिनियम के बारे में खास बातें
भारतीय वन अधिनियम, 1927 का उद्देश्य वन उपज की आवाजाही को नियंत्रित करना था, और वनोपज के लिए वन उपज पर शुल्क लगाना था। यह एक क्षेत्र को आरक्षित वन, संरक्षित वन या एक ग्राम वन के रूप में घोषित करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया की भी व्याख्या करता है। इस अधिनियम में इस बात का विवरण है कि एक वन अपराध क्या है, एक आरक्षित वन के अंदर कौन से कार्य निषिद्ध हैं, और अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर दंडनीय हैं। 1865 में वन अधिनियम लागू होने के बाद, इसमें दो बार (1878 और 1927) संशोधन किया गया...
मोटर वाहन दुर्घटना में क्लेम करने की प्रोसेस, ट्रिब्यून और अपील के बारे में विस्तृत जानकारी
21 वी सदी में जब टेक्नोलॉजी अपने उन्नति के नए आयाम पर है तो वर्तमान समय में परिवहन की भूमिका चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी, हमारे सामाजिक संपर्कों तथा कमर्शियल लेनदेन के लिए आवश्यक हो गई है। परिवहन तकनीकी रूप से हर दूसरे दिन और अधिक उन्नत हो रहा है। मोटर वाहनों के उपयोग में एक बड़ा विस्तार हो रहा है क्यों की बदलते समय की मांग है समय की बचत और समय के बचत के लिए लोग उन्नत किस्म के परिवहन की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं पर कहते है है हर सुविधा के दो पहलू होते है-तकनीक की उन्नति के साथ भी हमें सड़क...
भारत में न्यायिक प्रणाली के इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण बातें
भारत में न्यायिक प्रणाली में न तो उचित प्रक्रियाओं को अपनाया गया था और न ही प्राचीन भारत से लेकर मुगल भारत तक कानून अदालत का उचित संगठन था। हिंदू में मुकदमेबाजी की प्रक्रिया या तो जाति के बुजुर्गों या ग्राम पंचायतों या जमींदारों द्वारा सेवा की गई थी, जबकि मुस्लिम काजी मुकदमों की निगरानी करते हैं। यदि कोई विसंगति होती तो, राजा और बादशाह न्याय के पक्षधर माने जाते थे। भारतीय संहिताबद्ध (Indian codified common law) आम कानून की शुरुआत 1726 से होती है, जब ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा मद्रास, बॉम्बे और...
बार काउंसिल ऑफ इंडिया और कानूनी शिक्षा के मानक
बार काउंसिल ऑफ इंडिया एक वैधानिक निकाय है जो अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत स्थापित है जो भारत में कानूनी प्रथा और कानूनी संस्करण को नियंत्रित करता है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य भारत में वकीलों के बीच से चुने जाते हैं और इस तरह भारतीय बार का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और अभ्यास बार पर अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार के मानकों को निर्धारित करता है । 'बार काउंसिल ऑफ इंडिया कानूनी शिक्षा के लिए मानक निर्धारित करता है। कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए इस साल होने वाली...
जानिए POCSO अधिनियम के बारे में खास बातेंं
भारत के कुल जनसंख्या का 37% हिस्सा बच्चों का है और विश्व की कुल जनसंख्या में 20% हिस्सा बच्चों का है। बच्चों का यौन शोषण एक सामुदायिक चिंता का विषय बन गया है और कई विधायी और व्यावसायिक पहलों पर ध्यान केंद्रित किया है। वयस्कों की तुलना में, बच्चों को अपने ऊपर हुए जुल्मो का खुलासा करना अधिक कठिन लगता है। यह सिद्ध के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि जिन लोगों ने अपने बचपन में दुर्व्यवहार का सामना किया है, वे इसके दुष्परिणामों को अपने वयस्कता में अच्छी तरह से निभाते हैं, दूसरों के साथ अपने संबंधों और...
जानिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas corpus) के बारे में विशेष बातें
दुनिया के कई देशो में प्राधिकारी अपने किसी भी नागरिक को बिना चार्ज किये महीनों, वर्षो तक कारागार में बंदी बना कर रख सकते है ऐसे में उन नागरिको के पास विरोध करने या चुनौती देने का कोई कानूनी साधन उपलब्ध नहीं होता है। बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट गैरकानूनी बंदी या हिरासत में लिए जाने के खिलाफ़ नागरिकों के पास एक हथिहार है जो नागरिकों को अपने हितो की रक्षा का लिए उच्चतम न्यायालय जाने का शक्ति प्रदान करता है। याचिका की अवधारणा अनिवार्य रूप से इंग्लैंड में उत्पन्न हुई थी, इंग्लैंड में उत्पन्न इस तरह के...
हिंदी भाषा : राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय विषय बनने तक का सफ़र
किसी भी विषय पर मंथन करने से पूर्व उस विषय के गर्भ तक जाना सदैव प्रशंसनीय रहता है | हिंदी भाषा के अंतरराष्ट्रीय संवर्धन पर जाने से पूर्व हमारा यह देखना बेहद जरूरी है कि हिंदी का भारत देश में ही राष्ट्रीय संवर्धन किस स्तर तक हो रखा है |आम जनमानस के लिए हमेशा से ही भ्रमित करने वाला सबसे बड़ा प्रश्न यही रहा है कि,"क्या हिंदी 'राष्ट्रभाषा' है" ? हममें से कई लोगों मानते है "हाँ" और कई लोगों कहते है "न" | व्यवहारतः, हिंदी भाषा भारत देश कि मात्र एक औपचारिक भाषा ही है और जिस प्रकार से भारत का एक...
जब महात्मा गांधी ने माफी मांगने से इनकार किया और अवमानना की कार्रवाई का सामना किया
अशोक किनीअवमानना मामले में एडवोकेट प्रशांत भूषण ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दिए बयान में महात्मा गांधी के कथन को उद्धृत किया था। महात्मा गांधी के उक्त कथन की काफी चर्चा हुई। दरअसल महात्मा गांधी ने उक्त कथन 1919 में बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दिया था। तब गांधी के खिलाफ़ उस कोर्ट ने अवमानना कार्यवाही शुरु की थी। आलेख गांधी के खिलाफ चलाए गए अवमानना मामले और उस मामले में फैसले पर चर्चा की गई है। मोहनदास करमचंद गांधी और महादेव हरिभाई देसाई "यंग इंडिया" नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र के...
"मेरे प्यारे दोस्त, कल केस है! आपके वकील ने ब्रीफ तक नहीं पढ़ी है" भूलाभाई देसाई की कहानी, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए जिरह की
संजोय घोष"और यह न्याय का मज़ाक होगा, अगर हमें किसी फैसले के नतीजे रूप में बताया जाए या अन्यथा हो, कि भारतीय, एक सैनिक के रूप में जर्मनी के खिलाफ इंग्लैंड की आज़ादी के लिए लड़ सकता है, इंग्लैंड की आज़ादी के लिए इटली के खिलाफ, जापान के खिलाफ लड़ सकता है, और अभी तक ऐसी स्थिति नहीं आई है कि जब एक आज़ाद भारतीय राज्य खुद को इंग्लैंड सहित किसी भी देश से आज़ाद करने की इच्छा व्यक्त नहीं कर सकता है।" यह ऐसा ट्रायल था, जिस पर सभी की निगाह थी। खचाखच भरे कोर्ट रूप में उस गुजराती वकील के एक-एक शब्द गूंज...
'संविधान की पवित्रता अनिवार्य रूप से धर्मनिरपेक्षता की पुष्टि में है': संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला बेगम ऐज़ाज़ रसूल के भाषण के अंश
('संविधान सभा में महिलाएं' श्रृंखला में भारत की संविधान सभा में महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका की चर्चा की जा रही है। यह श्रृंखला का चौथा लेख है।) "संविधान की सर्वोत्कृष्ट विशेषता यह है कि भारत विशुद्ध धर्मनिरपेक्ष राज्य है। संविधान की पवित्रता अनिवार्य रूप से धर्मनिरपेक्षता की पुष्टि में निहित है और हमें इस पर गर्व है। मुझे पूरा विश्वास है कि धर्मनिरपेक्षता संरक्षित और अक्षुण्ण रहेगी, भारत के लोगों की पूर्ण एकता इसी पर निर्भर है, इसके बिना प्रगति की सभी आशाएं व्यर्थ हैं।" [1] 22 नवंबर 1949...
कानूनी पेशे को गैर-वकीलों के मूक हमलों से बचाने की जरूरत
एच कार्तिक सेशाद्री परिचय एक रोचक संघर्ष जारी है। इसका कानूनी पेशे की प्रगति के तरीके पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ना तय है। दिल्ली बार काउंसिल ने मार्च 2019 में चार बड़ी ऑडिट फर्मों को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें उन्हें अपने यहां काम कर रहे अधिवक्ताओं की एक सूची देने का निर्देश दिया गया था, और निर्देश दिया गया था कि वे कानून के किसी भी अभ्यास में लिप्त न रहें। बाद में भी उन्हें कानून के अभ्यास से रोक भी दिया गया था। [2] कानूनी पेशेवरों और अन्य पेशेवरों जैसे कि चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी...
सुनवाई-पूर्व पूर्वाग्रह : क्या भारत में इसकी पहचान का समय आ गया है?
भारत की संविधान सभा में 4 नवंबर 1948 को संविधान के ड्राफ़्ट पर चर्चा के दौरान एक शब्द समूह का प्रयोग हुआ - "संवैधानिक नैतिकता" (constitutional morality") का । बाबा साहेब अंबेडकर ने इसका प्रयोग किया और इसे 'ग़ैर-स्वाभाविक भावना' बताया जिसे भारतीय समाज को अपने अंदर विकसित करना है। भारतीय समाज को बाबा साहेब अंबेडकर ने 'आवश्यक रूप से अलोकतांत्रिक' बताया। इसे समाज का ग़ैर-स्वाभाविक भावना बताते हुए बाबा साहेब ने संवैधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता के बीच विवाद की एक रेखा खींची। यह रेखा आज भी...
जस्टिस आर भानुमतिः महत्वपूर्ण फैसले
विश्वजीत आनंदसुप्रीम कोर्ट की पांचवी वरिष्ठतम जज जस्टिस आर भानुमति का शुक्रवार, 17 जुलाई अंतिम कार्य दिवस था। उनकी सेवानिवृत्ति की आधिकारिक तारीख 19 जुलाई (रविवार को कोर्ट की छुट्टी रहती है) थी। जस्टिस भानुमति 2014 में सुप्रीम कोर्ट की जज बनी थीं, और कई महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल रहीं। अक्टूबर 2014 के बाद से, लगभग 42 महीने तक, वह सुप्रीम कोर्ट में एकमात्र महिला जज रहीं। COVID-19के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस भानुमति के लिए 'वर्चुअल विदाई' की व्यवस्था की थी, जिसमें जजों और...
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड सिस्टम
अशोक किनीपिछले महीने, केरल हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने केरल हाईकोर्ट एडवोकट्स एसोसीएशन [केएचसीएए] को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्हें हाईकोर्ट में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सिस्टम शुरू करने के प्रस्ताव पर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था। रजिस्ट्रार जनरल ने एसोसिएशन से अनुरोध किया कि वह 'एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड' सिस्टम, हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों के नियमन के लिए नियम और कानूनी स्थिति, मानकीकरण की कार्यप्रणाली, तय किए जाने वाले मापदंड, इस तरह के विनियमन को लागू करने के लिए हाईकोर्ट की शक्तियों, के...
अध्ययन सूची परियोजनाः कानून के छात्रों और वकीलों के लिए आवश्यक किताबें
हमजा लकड़वाला विचार भारत में कानून के अधिकांश छात्रों को उनकी कानूनी शिक्षा पुरानी और अधूरी लगती है। कॉलेज और विश्वविद्यालय अक्सर मूलभूत सिद्धांतों और अवधारणाओं के साथ कुछ बुनियादी प्रक्रियात्मक और ठोस कानूनों को सिखाते हैं। यह बुनियादी समझ बनाने में मदद करता है, मगर, किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है। ज्ञान क्षुधा की पूर्ति के लिए अधिकांश छात्र स्वाध्याय का सहारा लेते हैं, हालांकि ऐसा करने में, उन्हें यह महसूस होता है कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें क्या पढ़ना है ओर क्या नहीं। हालांकि कई...
किसी संक्रमित बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के रोग की सूचना किसी अन्य व्यक्ति को देना अपराध नहीं है अपितु लोक नीति के पक्ष में
इस समय विश्व भर में कोरोना वायरस जैसी गंभीर संक्रमित बीमारी चल रही है। इस बीमारी ने भारत भर को भी अपने चपेट में ले रखा है। यह एक संक्रामक रोग है तथा एक से दूसरे में संक्रमित होता है। आम जनसाधारण के भीतर इस बीमारी को लेकर एक बड़ा प्रश्न वैधानिक दृष्टिकोण से पैदा होता है कि यदि किसी व्यक्ति को इस प्रकार का कोई संक्रमित रोग है, जिस से वह संक्रमण दूसरों में भी फैल सकता है तो ऐसी परिस्थिति में क्या ऐसे व्यक्ति की पहचान को अभिव्यक्त करना अपराध है। किसी की बीमारी को सार्वजनिक करना अपराध हो सकता...
[लॉ ऑन रील्स] "आप लोग हैं कौन?" बोस्टन लीगल और रेप के अपराध में मृत्युदंड
सुनील फर्नांडिसबोस्टन लीगल (2004-2008) 'लॉ' जॉनर की लोकप्रिय अमेरिकी टीवी सीरीज़ों में से एक है।5 सीज़न्स और 101 एपिसोड्स की यह सीऱीज, जिसका निर्माण डेविड ई केली ने किया था, बोस्टन, मैसाचुसेट्स स्थित एक काल्पनिक लॉ फर्म 'क्रेन पूल एंड श्मिट' के वकीलों की जिंदगी और कानूनी मामलों की कहानी है। सीरीज़ में एकमात्र वास्तविक वकील खुद निर्माता डेविड ई केली थे। वह बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ के पूर्व छात्र थे। सीरीज़ में दो प्रमुख पात्र थे डेनी क्रेन और एलन शोर हैं। डेनी क्रेन का किरदार निभाया है...
वैवाहिक बलात्कारः क्या भारत में यह कानून पर्याप्त तरक्की कर चुका है?
वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे ने लंबे समय से, दुनिया भर में, कानूनविदों और समाज को प्रभावित किया है। अधिकांश देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध का दर्जा दिया गया है, क्योंकि यह माना गया है कि विवाह के रिस्ते में संभोग को जीवनसाथी का अधिकार नहीं माना जा सकता है। इंडिया टुडे वेब डेस्क द्वारा 12 मार्च 2016 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन 36 देशों में से एक है, जहां आज तक वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है। हम पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, अफगानिस्तान, म्यांमार, ईरान, मलेशिया,...