स्तंभ
सूचना का अधिकार भाग -१
हाल ही में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राफेल सौदे से सम्बन्धित कुछ दस्तावेजों के मीडिया में आ जाने पर यह चुनौती दी कि लीक करने वालों के विरुद्ध Official Secret Act, १९२३ के तहत कानूनी कार्यवाही की जायेगी. सरकार को इस निर्णय को लेकर भारी निंदा झेलनी पड़ी. विरोधियों का कहना था कहना था कि सरकार न केवल सूचना के अधिकार बल्कि लोकतंत्र को हानि पहुँचा रही है. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी सूचना के अधिकार को महत्व दिया और कहा कि सूचना का अधिकार नागरिकों का मूल अधिकार है. तो क्या है...
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत 'क्षमा-दान': परिस्थितयां, प्रावधान एवं कुछ जरुरी बातें
एक अप्रूवर को क्षमा-दान देने की प्रक्रिया को हमारी दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत जगह दी गयी है। आज इस लेख के माध्यम से हम उन परिस्थितियों के बारे में समझेंगे जहाँ क्षमा-दान दिया जा सकता है। इससे जरुरी हर वो बात हम आपको समझाने का प्रयास करेंगे, जो समझना आपके लिए आवश्यक है।उपरोक्त विषय से संबंधित कानून के प्रावधान धारा 306 से 308 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में उपस्थित हैं। आइये हम इन प्रावधानों को समझते हैं जिसके बाद हम इससे जुडी अन्य जानकारी आपको देंगे, जिससे इस विषय के बारे में हमारी और...
दुर्भावनापूर्ण मुक़दमेबाजी को रोकने के लिये नहीं है कोई कानून
प्रतिवादी का वादी पर सबसे बड़ा आरोप यही होता है कि जो मुक़दमा दायर किया गया है वह विद्वेषपूर्ण (vexatitious), छिछोरा (frivolous) और दुर्भावनापूर्ण (malicious) एवं प्रतिहिसंक (vengeful) है और प्रतिवादी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचानेवालाहै। पर सवाल उठता है कि यह विद्वेषपूर्ण वाद (Vexatious Litigation) वास्तव में है क्या? विधि आयोग की 192वीं रिपोर्ट 7 जून 2005 में आई और आयोग ने इसके बाद Vexatious Litigation (Prevention) Bill 2005 का प्रस्ताव किया। इस बिल की प्रस्तावना में कहा गया कि हाईकोर्ट्स...
आइये जाने पैरा लीगल वालंटियर के बारे में
हमने विधिक सहायता से जुड़े पिछले दो लेखों में विधिक सहायता के अधिकार और लोक अदालतों के बारे में जाना। आज के लेख में हम विधिक सहायता की एक अन्य मुख्य कड़ी पैरा लीगल वालंटियर के बारे में जानेंगे. साथ ही हम विधि विश्विद्यालयों में चलने वाले लीगल एड केंद्रों की भी जानकारी करेंगे।कौन होते हैं पैरा-लीगल वालंटियर"(PLV) ?राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का शुरुआत से ही लक्ष्य रहा है कि "न्याय" को आपके दरवाज़े तक बिना रोक-टोक के पहुँचाया जाये। इसी बात को ध्यान में रखतेहुये वर्ष 2009 से प्राधिकरण द्वारा...
आपराधिक मामलों में अपील का सम्पूर्ण लेखा जोखा: समझिये कहाँ और किन परिस्थितियों में हो सकती है अपील
आपराधिक न्याय की प्रक्रिया के किसी भी व्यक्ति के जीवन पर कुछ गंभीर परिणाम होते हैं, मुख्य रूप से व्यक्ति के जीवन के अधिकार पर और उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर। एक स्वतंत्र ट्रायल प्रक्रिया एवं उचित निर्णय पर पहुंचने के रास्ते मौजूद होते हुए भी, गलती की सम्भावना शेष रह जाती है, यह अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों पर भी लागू होता है। इसके परिणामस्वरूप, न्याय प्राप्त करने एवं निचली अदालतों के फैसलों की जांच करने हेतु हमारी दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ विशिष्ट प्रावधान मौजूद हैं।यह ऐसे प्रावधान...
लोकतंत्र में आचार संहिता की क्या है प्रासंगिकता?
भारत के संविधान निर्माताओं ने संसदीय प्रणाली में राजनीतिक दलों को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है। हालाँकि संविधान के प्रारंभिक रूप में राजनीतिक दलों का ज़िक्र नहीं मिलता हैं | पहली बार राजनीतिक दलों का ज़िक्र १९८५ में आया जब पचासवें संवैधानिक संशोधन अधिनियम,१९८५ के द्वारा दसवीं अनुसूची को संविधान में शामिल किया गया फिर भी इस बात में शायद ही कोई शंका हो सकती है कि भारतीय लोकतंत्र राजनीतिक दलों और उनकी विचारधाराओं के बिना संभव नहीं है. । लोकतंत्र में चुनाव सबसे महत्वपूर्ण घटना...
निर्वाचन आयोग के पास हैं असीमित अधिकार, सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सकता इसमें हस्तक्षेप
भारत में चुनाव आयोग को चुनाव कराने को लेकर असीमित संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और इस बात का पता इस देश के लोगों को विशेषकर उस समय लगा जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे।संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आयोग को चुनाव कराने के बारे में असीमित अधिकार दिये हैं। इनमें चुनाव के देख रेख का अधिकार, प्रबंधन का अधिकार और इसके निर्देशन का अधिकार दिया है। एक बार जब आयोग चुनाव की घोषणा कर देता है तो न्यायलय भी आयोग के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधानके अनुच्छेद 329 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव की...
आइये जाने FIR के बारे में
कोई भी अपराध मात्र एक पीड़ित के खिलाफ अपराध नहीं होता बल्कि वह सामाजिक सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था को एक चुनौती होता है. इसलिए जब भी कोई अपराध होता है तो पीड़ित तो एक निजी व्यक्ति ही होता है फिर भी राज्य / सरकार उस अपराध के विरुद्ध कार्यवाही करती है. अपराधी को उचित सजा दिलाना और न्याय सुनिश्चित करना पीड़ित का नहीं बल्कि राज्य का कर्तव्य एवं अधिकार माना जाता है, यह प्रक्रिया FIR दायर करने से शुरू होती है. आज के लेख में...
आइये! लोक अदालत को जानें और समझें
लोक अदालत का मतलब होता है लोगों की अदालत इसकी संकल्पना हमारे गाँवों में लगने वाली पंचायतों पर आधारित है। इसके अलावा आज के परिवेश में इसके गठन का आधार 1976 का 42वां संविधान संशोधन है, जिसके अंदर अनुच्छेद 39-A में आर्थिक न्याय को जोड़ा गया। लोक अदालत को अमल में लाने के दो मुख्य कारण हैं , पहला यह कि आर्थिक रूप से कमजोर होने कि वज़ह से बहुत सारे लोग न्याय पाने के लिए संसाधन नहीं जुटा पाते। दूसरा अगर वह कोर्ट तक पहुँच भी जाते हैं, तो करोड़ों मुक़दमे लंबित और अपूर्ण होने के कारण उनको समय से...
लोकपाल के जरिये कैसे कसी जाएगी भ्रष्टाचार पर नकेल?: समझिये लोकपाल के कार्य, नियुक्ति और शक्तियों के बारे में
भारत में लोकपाल को लेकर चर्चा, वर्ष 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा सिफारिश किए जाने से शुरू हुई, और वर्ष 2011 तक कानून बनाने के 8 असफल प्रयासों के बाद भी खत्म नहीं हुई। वर्ष 2011 में ही, अन्ना हजारे की भूख-हड़ताल ने संसद को इस कानून के प्रति प्रथम बार सोचने को मजबूर किया और अंततः जनवरी, 2014 में यह कानून अस्तित्व में आ सका। वर्ष 2011 और 2014 के बीच प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के एक समूह ने इस विधेयक का प्रस्ताव रखा, जिसमें संसद की स्थायी समिति ने पर्याप्त संशोधन किए।...
कॉलेजियम प्रणाली, तीन जज मामले और संवैधानिक अदालतों में नियुक्तियां/तबादले: समझिये यह महत्वपूर्ण गणित
प्रतिदिन हम केवल संसद एवं विधायिकाओं द्वारा बनाये गए कानूनों से ही निर्देशित नहीं होते हैं, बल्कि हमारी अदालतों द्वारा सुनाये गए निर्णयों एवं उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों से भी हम प्रभवित होते हैं। हालाँकि जहाँ संसद एवं विभिन्न राज्यों की विधायिकाओं में प्रवेश का एक तय नियम मौजूद है, वहीँ उच्चतम न्यायलय में न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर हमेशा से विवाद रहा है।हम आज बात करने जा रहे हैं उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में। इसके साथ ही हम उन मामलों के बारे में भी आपको...
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के अधिकार एवं संरक्षण (भाग-२)
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला के पास कुछ अधिकार हैं| इन अधिकारों की पूर्ति के लिए मजिस्ट्रेट कई तरह के आदेश पारित कर सकते हैं| इस लेख के पिछले भाग में घरेलू हिंसा क्या है, पीड़ित महिला कौन है, शिकायत किसके समक्ष दर्ज करायी जा सकती है, इत्यादि जानकारी दी गई है| लेख के भाग दो में कौन से आदेश किस परिस्तिथि में पारित किये जा सकते है, इसकी जानकारी दी गई है| आदेश प्राप्त करने के लिए आवेदन की प्रक्रिया घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 में पीड़ित महिला के हितों की रक्षा के...
समझिये भारतीय संविधान के अंतर्गत विधान-परिषद् का गठन, इसकी उपयोगिता एवं संरचना का पूरा गणित
पिछले वर्ष सितम्बर के महीने में ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार ने अपने विधायी ढांचे में राज्य विधान परिषद (SLC) की स्थापना की संसदीय प्रक्रिया शुरू की है। राज्य में एक विधान परिषद के गठन के लिए संविधान के अनुच्छेद 169 (1) के तहत राज्य सरकार के संसदीय कार्य मंत्री बिक्रम केशरी अरुखा द्वारा इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव पारित किया गया और विधान सभा के 104 सदस्यों ने अपने मतों को इस प्रस्ताव के पक्ष में दर्ज किया था।ओडिशा सरकार का यह प्रस्ताव 35 करोड़ के वार्षिक परिव्यय के साथ 49-सदस्यीय विधान परिषद्...
घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के अधिकार एवं संरक्षण अधिनियम (भाग-1)
इक्कीसवीं शताब्दी के उन्नीसवें वर्ष में दाखिल होने के बाद भी भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कोई कमी नहीं आई है| देश के किसी भी कोने से कोई भी अखबार उठा कर देख लीजिये, महिलाओं के खिलाफ अपराध की कोई ना कोई खबर अवश्य पढने को मिल जाएगी| व्यथा तो यह है कि बाहर तो दूर, महिलाएं अपने घर की चारदीवारी में भी अपराधों का शिकार हो जाती हैं| महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले भी आये दिन सामने आते हैं| वर्ष 2005 से पूर्व घरेलू हिंसा के खिलाफ महिलाओं के पास आपराधिक मामला दर्ज़ करने का अधिकार था|...
संविधान का अनुच्छेद 35-A क्या है? इसके पीछे के विवाद और इतिहास को संक्षेप में समझिये
जहाँ एक ओर उच्चतम न्यायालय में संविधान के अनुच्छेद 35-A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दलीलों के एक बैच पर सुनवाई होने की संभावना है, वहीँ यह मुद्दा एक बार फिर आम चर्चा के दौरान गरमाया हुआ है। अनुच्छेद 35-A, जो जम्मू और कश्मीर राज्य के मूल निवासियों को विशेष अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान करता है, इसलिए इस मुद्दे पर राजनीतिक नजर भी काफी महत्व रखती है।अनुच्छेद 35-A क्या है?अनुच्छेद 35-A को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल की सिफारिशों पर एक राष्ट्रपति के आदेश के...
निःशुल्क क़ानूनी सहायता आपका अधिकार है
भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) के तहत भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की बात की गयी है। समाज के सभी वर्गों को भारतीय न्यायिक प्रणाली में न्याय पाने का समुचित एवं सामान अवसरमिले, इसलिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 A भारत देश के ग़रीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करता है। निःशुल्क क़ानूनी सहायता का मतलब है किअभियुक्त या प्रार्थी को वक़ील की सेवाएं मुहैया करवाना। सीधे शब्दों में कहा जाये तो अपने देश में ज़्यादातर लोग जो जेलों में...
समझिये जेनेवा कन्वेंशन के तहत प्रिजनर ऑफ़ वार की स्थिति: आखिर क्या हैं पाकिस्तान की भारतीय पायलट के प्रति जिम्मेदारियां?
जेनेवा कन्वेंशन (या जिनेवा कन्वेंशन) हाल ही में काफी चर्चा में है। भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे विवाद के बीच कल (27 फरवरी 2019) को विदेश मंत्रालय (MEA) ने पुष्टि की कि 27 फरवरी को पाकिस्तानी विमान के साथ संघर्ष के दौरान, भारत ने अपना एक मिग 21 खो दिया और एक भारतीय वायु सेना (IAF) पायलट को पड़ोसी देश द्वारा बंदी बना लिया गया। इस पायलट का नाम विंग कमांडर अभिनन्दन बताया जा रहा है, और कथित रूप से यह पायलट इस वक़्त भी पाकिस्तान सेना के पास मौजूद है। हालांकि, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने...
लोक अभियोजक कौन होता है एवं दंड प्रक्रिया संहिता में इससे सम्बंधित पदों की क्या है व्यवस्था?
जब बात आती है किसी अपराध की, तो यह कॉमन लॉ का एक सिद्ध प्रिंसिपल है कि एक अपराध हमेशा समाज के खिलाफ होता है। भले ही वह अपराध चोरी हो, हत्या हो, या किसी व्यक्ति को गंभीर रूप से चोट पहुंचना हो, घटना भले किसी एक व्यक्ति के खिलाफ अंजाम दी गयी हो लेकिन उस घटना से समाज को भी नुकसान होता है। लोगों के बीच भय, दहशत फैलता है और समाज की शांति भंग होती है। जब भी किसी अपराध को अंजाम दिया जाता है, तो किसी अभियुक्त के खिलाफ मामले को स्टेट के जरिये अदालत तक पहुंचाया जाता है। क्यूंकि एक स्टेट इस बात की...
मतदाता सूची में नहीं है नाम तो ऐसे कराएँ पंजीकरण
लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है और इसलिए इस व्यवस्था में, चुनाव, बदलाव लाने का सबसे बड़ा अवसर होता है। हमारे देश में भी जल्द ही लोक सभा चुनाव होने वाले हैं और देश की सभी छोटी-बड़ी पार्टियाँ अपने चुनावी समीकरण बनाने में लग गयी हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि हम मतदाता, मतदान पंजीकरण की प्रक्रिया, और उससे जुडी मुख्य बातों को जाने. यह लेख उसी दिशा में एक प्रयास है. मतदान की प्रक्रिया भारत निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार, प्रत्येक मतदाता को...
दंड संहिता में अदालतों की व्यवस्था: एक नजर
आपराधिक कानून की आवश्यक वस्तु अपराधियों और कानून तोड़ने वालों के खिलाफ समाज की रक्षा करना है। इस उद्देश्य के लिए कानून संभावित कानून तोड़ने वालों को दंड के खतरों के साथ-साथ वास्तविक अपराधियों को उनके अपराधों के लिए निर्धारित दंड भुगतने का प्रयास करता है। इसलिए, आपराधिक कानून, व्यापक अर्थ में, आपराधिक कानून और प्रक्रियात्मक (या विशेषण) आपराधिक कानून दोनों के होते हैं। पर्याप्त आपराधिक कानून अपराधों को परिभाषित करता है और उसी के लिए दंड निर्धारित करता है, जबकि प्रक्रियात्मक कानून मूल कानून का...