सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (22 जुलाई, 2024 से 26 जुलाई, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
नियमितीकरण नीति का लाभ सभी पात्र कर्मचारियों को समान रूप से दिया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सोमवार (22 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नियमितीकरण की मांग करने का कानूनी रूप से अधिकार नहीं है, लेकिन सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियमितीकरण के लिए लिए गए किसी भी नीतिगत निर्णय का लाभ सभी पात्र व्यक्तियों को दिया जाना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने जबलपुर के सरकारी कलानिकेतन पॉलिटेक्निक कॉलेज में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी की नियुक्ति को नियमित करने के निर्देश देने वाला एमपी हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा।
केस टाइटल- मध्य प्रदेश राज्य और अन्य बनाम श्याम कुमार यादव और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
थर्ड पार्टी बीमा के लिए PUC सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने 2017 का निर्देश वापस लिया
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2017 के आदेश द्वारा लगाई गई शर्त हटा दी। उक्त शर्त के अनुसार, वाहनों के लिए थर्ड पार्टी बीमा प्राप्त करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण (PUC) सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है।
जस्टिस एएस ओक और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल द्वारा दायर आवेदन स्वीकार किया, जिसमें 2017 के आदेश के बारे में चिंताओं को उजागर किया गया।
केस टाइटल- एमसी मेहता बनाम भारत संघ और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Kanwar Yatra : सुप्रीम कोर्ट ने नेमप्लेट लगाने के निर्देश पर लगी रोक बढ़ाई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (26 जुलाई) को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देशों पर रोक लगाने वाले अंतरिम आदेश को बढ़ा दिया, जिसमें कांवरिया तीर्थयात्रियों के मार्ग पर स्थित भोजनालयों को मालिकों और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देश दिए गए थे। रोक का आदेश अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त तक जारी रहेगा।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, प्रोफेसर अपूर्वानंद और स्तंभकार आकार पटेल द्वारा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों के निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
केस टाइटल: नागरिक अधिकार संरक्षण संघ (एपीसीआर) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 463/2024
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
चंडीगढ़ में बाउंड्री के जरिए संपत्ति का बंटवारा नहीं हो सकता; नीलामी के जरिए बिक्री ही एकमात्र समाधान : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि चंडीगढ़ में बाउंड्री के जरिए संपत्ति का बंटवारा नहीं हो सकता। इसलिए संयुक्त संपत्ति के बंटवारे की मांग करने वाले मुकदमे में एकमात्र समाधान नीलामी के जरिए बिक्री है।
बाउंड्री के जरिए बंटवारे पर चंडीगढ़ (साइट और बिल्डिंग की बिक्री) नियम, 1960 के कारण रोक है। 1960 के नियमों की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और अन्य बनाम चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश 2023 लाइव लॉ (एससी) 24 में कहा कि चंडीगढ़ में बाउंड्री के जरिए संपत्ति का बंटवारा नहीं हो सकता।
केस टाइटल: राजिंदर कौर बनाम गुरभजन कौर, एस.एल.पी.(सी) संख्या 12198-12199/2018 से उत्पन्न
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पर्यावरण मंजूरी विधिसम्मत रूप से दिया जाना NGT का कर्तव्य : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 जुलाई) को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में कॉमन बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (CBWTF) की स्थापना की अनुमति दी गई।
जस्टिस अभय ओक, जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने NGT के समक्ष याचिका बहाल की, जिसमें CBWTF के लिए पर्यावरण मंजूरी को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि मौजूदा CBWTF के 75 किलोमीटर के दायरे में ऐसी कोई सुविधा स्थापित नहीं की जानी चाहिए।
केस टाइटल- संतोष कुमार सिंह बनाम राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
कंपनी एक्ट, 2013 की धारा 164(2) का वित्त वर्ष 2014-15 से पहले कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय से प्रथम दृष्टया सहमति व्यक्त की है कि कंपनी एक्ट 2013 (Company Act) की धारा 164(2), जो तीन वित्तीय वर्षों की किसी भी निरंतर अवधि के लिए बैलेंस शीट और वार्षिक रिटर्न दाखिल न करने के कारण निदेशकों को (पांच वर्षों के लिए) अयोग्य ठहराने का प्रावधान करती है, उसका वित्त वर्ष 2014-15 से पहले की अवधि पर कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं है।
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम जय शंकर अग्रहरि, डायरी संख्या - 10488/2021
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'एशियन रीसर्फेसिंग' फैसला खारिज करने के बाद लंबित ट्रायल में स्वतः स्थगन रद्द करना अमान्य: सुप्रीम कोर्ट
हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में अपने फैसले की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि यदि एशियन रीसर्फेसिंग के तहत हाई कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम संरक्षण आदेश स्वतः ही रद्द हो जाता है, लेकिन मुकदमा समाप्त नहीं हुआ है तो स्थगन रद्द करने की तिथि से अमान्य और निष्क्रिय हो जाएगा।
उक्त मामले में एशियन रीसर्फेसिंग में 2018 के फैसले को खारिज कर दिया गया था। एशियन रीसर्फेसिंग खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद में कहा कि यदि मुकदमे समाप्त हो गए हैं तो स्थगन के स्वतः स्थगन के आदेश वैध रहेंगे।
केस टाइटल: पवन अग्रवाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, एसएलपी (सीआरएल.) संख्या 9625/2023
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की शक्ति एमएमडीआर अधिनियम द्वारा सीमित नहीं है; रॉयल्टी कर नहीं है: सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 से फैसला सुनाया
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को 8:1 बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति है और केंद्रीय कानून - खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 - राज्यों की ऐसी शक्ति को सीमित नहीं करता है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद और सात सहयोगियों की ओर से फैसला लिखा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया। न्यायालय ने जिन मुख्य प्रश्नों की जांच की, वे थे (1) क्या खनन पट्टों पर रॉयल्टी को कर माना जाना चाहिए और (2) क्या संसदीय कानून खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के अधिनियमन के बाद राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी/कर लगाने का अधिकार है।
मामले : मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया और अन्य (सीए संख्या 4056/1999)
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
GM Mustard Case | राज्यों, किसानों और विशेषज्ञों से परामर्श करके आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों पर राष्ट्रीय नीति विकसित करें: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) के 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं के एक समूह में, जिसमें फसल पौधों के आनुवंशिक हेरफेर केंद्र को ट्रांसजेनिक सरसों संकर, धारा सरसों संकर-11 (डीएमएच-11) के पर्यावरणीय विमोचन के लिए सशर्त स्वीकृति दी गई थी।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस संजय करोल की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एक विभाजित फैसला सुनाया। जस्टिस नागरत्ना ने जीईएसी की मंज़ूरी को खारिज कर दिया, जस्टिस करोल ने डीएमएच-11 के फील्ड ट्रायल के लिए हरी झंडी दे दी है। पीठ ने कुछ बिंदुओं पर सहमति व्यक्त की है और उस संबंध में निर्देश जारी किए हैं, जबकि मामला भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष एक बड़ी पीठ गठित करने के लिए रखा गया है।
केस: जीन कैंपेन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य [डब्ल्यूपी (सी) संख्या 115/2004]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सुप्रीम कोर्ट 'भूल जाने के अधिकार' पर कानून तय करेगा; 'इंडियन कानून' को फैसला वापस लेने के हाईकोर्ट के निर्देश पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट इस बात की जांच करने के लिए तैयार है कि क्या न्यायालयों द्वारा दिए गए उन निर्णयों के विरुद्ध भूल जाने के अधिकार को लागू किया जा सकता है, जिनमें बरी किए गए व्यक्ति की पहचान उजागर की गई है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इंडियन कानून (एक कानूनी डेटाबेस वेबसाइट) द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के 3 मार्च के आदेश के विरुद्ध दायर चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पोर्टल को यौन उत्पीड़न मामले में बरी किए गए व्यक्ति की पहचान उजागर करने वाले निर्णय की प्रति हटाने का निर्देश दिया गया था। आपेक्षित आदेश में कहा गया है कि यद्यपि न्यायालयों से रिकॉर्ड की अदालत के रूप में डेटा को संरक्षित करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन उन्हें ऐसे डेटा के संग्रह और व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की भी आवश्यकता है।
मामले : इकानून सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम कार्थिक थियोडोर एवं अन्य एसएलपी(सी) संख्या 15311/2024
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
Haldwani Evictions | रेलवे के लिए लोगों को बेदखल करने से पहले पुनर्वास जरूरी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (24 जुलाई) को कहा कि उत्तराखंड में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के विकास के लिए जमीन सुरक्षित करने के लिए लोगों को बेदखल करने से पहले अधिकारियों को उनका पुनर्वास सुनिश्चित करना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ भारत संघ/रेलवे द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें हल्द्वानी में रेलवे की संपत्तियों पर कथित रूप से अतिक्रमण करने वाले लगभग 50,000 लोगों को बेदखल करने पर रोक लगाने के आदेश में संशोधन की मांग की गई। रेलवे ने कहा कि पिछले साल मानसून के दौरान घुआला नदी के तेज बहाव के कारण रेलवे पटरियों की सुरक्षा करने वाली एक दीवार ढह गई और आग्रह किया कि रेलवे परिचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए जमीन की एक पट्टी तत्काल उपलब्ध कराई जाए।
केस टाइटल: अब्दुल मतीन सिद्दीकी बनाम यूओआई और अन्य। डायरी नंबर 289/2023 और इससे जुड़े मामले।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पदोन्नति अनुदान की तिथि से प्रभावी होती है, रिक्ति सृजित होने पर नहीं: सुप्रीम कोर्ट
बिहार राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा पूर्वव्यापी पदोन्नति की मांग करने वाले एक कर्मचारी के विरुद्ध दायर अपील पर विचार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि पदोन्नति उस तिथि से प्रभावी होगी जिस दिन उसे प्रदान किया गया है, न कि उस तिथि से जब विषयगत पद पर रिक्ति होती है या जब पद स्वयं सृजित होता है।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने टिप्पणी की, "निःसंदेह, पदोन्नति के लिए विचार किए जाने के अधिकार को न्यायालयों द्वारा न केवल वैधानिक अधिकार के रूप में बल्कि मौलिक अधिकार के रूप में माना गया है, साथ ही, पदोन्नति स्वयं कोई मौलिक अधिकार नहीं है...यह मानते हुए कि विषयगत पदों पर रिक्ति थी, इससे प्रतिवादी के पक्ष में अगले उच्च पद पर पूर्वव्यापी पदोन्नति का दावा करने के लिए स्वतः ही कोई मूल्यवान अधिकार नहीं सृजित होता। प्रतिवादी को त्वरित पदोन्नति का लाभ तभी दिया गया जब वास्तविक रिक्ति उत्पन्न हुई और वह भी निर्धारित प्रक्रिया से गुजरने के बाद।"
केस : बिहार राज्य विद्युत बोर्ड और अन्य बनाम धर्मदेव दास, सिविल अपील संख्या 6977/2015
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सुप्रीम कोर्ट ने NEET-UG 2024 रद्द करने से इनकार किया, कहा- सिस्टम में गड़बड़ी दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (23 जुलाई) को पेपर लीक और गड़बड़ी के आधार पर NEET-UG 2024 परीक्षा रद्द करने से इनकार किया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि लीक सिस्टम में हैं और इससे पूरी परीक्षा की पवित्रता प्रभावित हुई।
कोर्ट ने यह भी कहा कि दोबारा परीक्षा कराने का आदेश देने से 23 लाख से ज़्यादा स्टूडेंट पर गंभीर असर पड़ेगा और शैक्षणिक कार्यक्रम में व्यवधान आएगा, जिसका आने वाले सालों में व्यापक असर होगा।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
S. 307 IPC | सजा सुनाने वाली अदालत दोषी को आजीवन कारावास की सजा नहीं दे सकती, 10 साल से अधिक की सजा नहीं दे सकती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब सजा सुनाने वाली अदालत हत्या के प्रयास के अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा देना उचित नहीं समझती तो हत्या के प्रयास के अपराध के लिए दोषी को दी जाने वाली अधिकतम सजा 10 साल की अवधि से अधिक नहीं हो सकती।
जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा, “जब संबंधित अदालत ने संबंधित आरोपी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास न देना उचित समझा तो संबंधित दोषी को किसी भी परिस्थिति में दी जाने वाली सजा आईपीसी की धारा 307 के पहले भाग के तहत निर्धारित सजा से अधिक नहीं हो सकती। जब धारा 307 आईपीसी के तहत यह अनिवार्य है तो आजीवन कारावास की सजा न देने के अपने फैसले के मद्देनजर ट्रायल कोर्ट 10 साल से अधिक की सजा नहीं दे सकता।”
केस टाइटल: अमित राणा @ कोका और अन्य बनाम हरियाणा राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जब पहली सेल डीड का पंजीकरण लंबित हो तो विक्रेता उसी प्लॉट पर दूसरी सेल डीड निष्पादित नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक विक्रेता जिसने सेल डीड निष्पादित किया है, वह उसी प्लॉट के संबंध में दूसरी सेल डीड निष्पादित नहीं कर सकता, क्योंकि पहली सेल डीड का पंजीकरण लंबित है। कोर्ट ने कहा कि डीड निष्पादित होते ही विक्रेता संपत्ति पर सभी अधिकार खो देता है और वह केवल इसलिए किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि डीड पंजीकृत नहीं हुई है।
न्यायालय ने कहा कि पंजीकरण न कराने का एकमात्र परिणाम यह है कि क्रेता संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 और पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों के कारण साक्ष्य के रूप में ऐसी डीड प्रस्तुत नहीं कर सकता।
केस: कौशिक प्रेमकुमार मिश्रा और अन्य बनाम कांजी रावरिया @ कांजी और अन्य, सिविल अपील संख्या - 1573/ 2023
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पूर्व कार्यकारी निर्णय विधानमंडल को विपरीत दृष्टिकोण अपनाने से नहीं रोकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति किसी कार्यकारी कार्रवाई के आधार पर किसी लागू करने योग्य कानूनी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, जिसे बाद में राज्य विधानमंडल द्वारा व्यापक जनहित में संशोधित किया जाता है। न्यायालय ने कहा कि न तो वैध अपेक्षा का अधिकार और न ही वचनबद्ध रोक का दावा कार्यकारी कार्रवाइयों के आधार पर किया जा सकता है, जिसे विधानमंडल बाद में जनहित में बदलता है।
केस टाइटल: मेसर्स रीवा टोलवे पी. लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।