हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-12-27 14:00 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (22 दिसंबर, 2025 से 26 दिसंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

धारा 2(वा) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी को वरीयता, चाचा का दावा खारिज: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(वा) के अंतर्गत पीड़ित अथवा विधिक उत्तराधिकारी की पहचान के लिए अपनाई जाने वाली 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी मृतक के चाचा से अधिक अधिकारयुक्त मानी जाएगी। न्यायालय ने कहा कि मृतक की पत्नी, पारिवारिक और विधिक संबंधों की दृष्टि से चाचा की तुलना में अधिक निकट उत्तराधिकारी है।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस अभ्देश कुमार चौधरी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर की, जिसमें मृतक के चाचा ने पुलिस से जांच हटाकर केंद्रीय अन्वेषण एजेंसी (CBI) को सौंपने की मांग की थी। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता, जो मृतक का चाचा है, धारा 2(वा) के तहत न तो पीड़ित की श्रेणी में आता है और न ही उसे विधिक उत्तराधिकारी माना जा सकता है, क्योंकि 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी का अधिकार चाचा से ऊपर है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

दिवालिया कार्यवाही के कारण खाते अवरुद्ध होने पर चेक बाउंस का आपराधिक मामला नहीं बनता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने चेक अनादर से जुड़े तीन आपराधिक मामलों को रद्द करते हुए दोहराया कि यदि दिवालिया कानून के तहत बैंक खाते अवरुद्ध हों तो ऐसे मामलों में चेक बाउंस के आधार पर आपराधिक अभियोजन नहीं चलाया जा सकता।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की एकल पीठ ने सुमेरु प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक फरहाद सूरी और धीरन नवलखा द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 केवल उन्हीं मामलों में लागू होती है, जहां भुगतान धनराशि की कमी के कारण विफल होता है। जब भुगतान कानून के प्रभाव से रोका गया हो तो उसे चेक अनादर का अपराध नहीं माना जा सकता।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

चेक बाउंस मामलों में समझौते के बाद मजिस्ट्रेट निष्पादन अदालत की भूमिका नहीं निभा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) के तहत चेक बाउंस से जुड़े मामलों में यदि पक्षकारों के बीच वैध समझौता दर्ज हो जाता है तो ट्रायल मजिस्ट्रेट का कर्तव्य केवल उस समझौते के अनुरूप शिकायत का निपटारा करना है। इसके बाद मजिस्ट्रेट न तो समझौते के पालन की निगरानी कर सकता है और न ही उसे लागू कराने के लिए निष्पादन अदालत की तरह कार्य कर सकता है।

जस्टिस संजय धर ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें याचिकाकर्ता साजिद अहमद मलिक ने अतिरिक्त विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट, बीरवाह द्वारा जारी किए गए वारंट को चुनौती दी। याचिकाकर्ता का कहना था कि चेक अनादर से जुड़े मामले में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो जाने के बावजूद मजिस्ट्रेट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्रवाई की।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं, जब सरकारी कर्मचारी रिटायर हो जाए या पद छोड़ दे: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

यह मानते हुए कि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत मुक़दमे के लिए पहले से मंज़ूरी की कानूनी सुरक्षा तभी तक उपलब्ध है, जब तक कोई सरकारी कर्मचारी सेवा में रहता है, जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक बार जब अधिकारी पद छोड़ देता है या रिटायर हो जाता है, तो किसी मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होती। जस्टिस संजय धर ने भ्रष्टाचार की कार्यवाही को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए यह बात साफ की।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ को तब तक असली माना जाएगा, जब तक स्वतंत्र कार्यवाही में इसे गलत साबित न कर दिया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक रजिस्टर्ड गोद लेने के दस्तावेज़ को तब तक कानून के मुताबिक माना जाएगा, जब तक स्वतंत्र कार्यवाही में इसे खास तौर पर गलत साबित न कर दिया जाए। हिंदू गोद लेने और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 16 में यह प्रावधान है कि जब किसी अदालत में रजिस्टर्ड गोद लेने का दस्तावेज़ पेश किया जाता है, जिसमें बच्चे को देने वाले पक्ष और बच्चे को गोद लेने वाले पक्ष के हस्ताक्षर होते हैं तो ऐसे दस्तावेज़ को तब तक कानून के मुताबिक माना जाएगा, जब तक इसके विपरीत साबित न हो जाए।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के नोटिस की तामील से संबंधित प्रावधान GST Act के तहत सेवा पर लागू नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

एक ऐतिहासिक फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के सेवा के भेजने और प्राप्त करने से संबंधित प्रावधान गुड्स एंड सर्विस टैक्स एक्ट, 2017 (GST Act) की धारा 169 के तहत की गई सेवा पर लागू नहीं होते हैं। राज्य/केंद्रीय GST Act की धारा 169(1) के तहत प्रदान किए गए सेवा के छह तरीके हैं: (1) सीधे या मैसेंजर द्वारा देना, (2) स्पीड पोस्ट आदि द्वारा पावती के साथ भेजना, (3) ईमेल द्वारा संचार भेजना, (4) कॉमन पोर्टल पर उपलब्ध कराना, (5) एक अखबार में प्रकाशन द्वारा और (6) चिपकाकर।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

ED जांच के दौरान गवाह या संदिग्ध के तौर पर बुलाए गए व्यक्ति के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी नहीं किए जा सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग जांच में सिर्फ गवाह या संदिग्ध के तौर पर बुलाए गए व्यक्ति के खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBWs) जारी नहीं किए जा सकते, जब तक कि उस व्यक्ति पर गैर-जमानती अपराध का आरोप साबित न हो जाए।

जस्टिस अमित शर्मा ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा UK के बिजनेसमैन सचिन देव दुग्गल के खिलाफ जारी किए गए NBWs को रद्द कर दिया। ED ने इस आधार पर NBWs जारी करने की मांग की थी कि याचिकाकर्ता मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में पेश नहीं हुआ।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

फोन पर 'जातिसूचक' गाली-गलौज किए जाने पर SC/ST Act के प्रावधान लागू नहीं होते: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि जहां जाति के आधार पर गालियां कथित तौर पर टेलीफोन पर दी जाती हैं और सार्वजनिक रूप से नहीं, वहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के प्रावधान पहली नज़र में लागू नहीं होंगे, जिससे विशेष कानून के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य नहीं होगा।

यह टिप्पणी जस्टिस जय सेनगुप्ता ने SC/ST Act की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत अपराधों के साथ-साथ अन्य जमानती अपराधों के आरोप वाली FIR के संबंध में दायर अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा करते हुए की।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

भरण-पोषण आदेशों को लागू करने के लिए फैमिली कोर्ट के पास LOC जारी करने की शक्ति नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के पास दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत पारित आदेश को लागू करते समय लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी करने की शक्ति नहीं है, जो पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित है।

जस्टिस ललिता कन्नेगंती ने कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण आदेश न्यायिक आदेशों के माध्यम से लागू होने वाला सिविल दायित्व बनाते हैं। यदि कोई पक्ष डिफ़ॉल्ट करता है तो उपलब्ध उपाय संपत्ति की कुर्की, गिरफ्तारी वारंट जारी करने, या सिविल कारावास के माध्यम से आदेश को लागू करना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लुक आउट सर्कुलर का उद्देश्य आरोपी व्यक्तियों या अपराधियों को आपराधिक प्रक्रिया से बचने से रोकना है। इसे भरण-पोषण बकाया की वसूली के लिए जारी नहीं किया जा सकता।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अगर कट-ऑफ तारीख तक कोई ऑप्शन नहीं चुना जाता है तो कर्मचारी को CPF से ज़्यादा फ़ायदेमंद GPF-कम-पेंशन स्कीम में बदला हुआ माना जाएगा: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट की चीफ़ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की एक डिवीज़न बेंच ने कहा कि फ़ायदेमंद पेंशन स्कीम में बदलना बिना किसी साफ़ ऑप्शन के भी मंज़ूर है। 01.01.1986 से पहले नियुक्त कर्मचारी को CPF स्कीम से ज़्यादा फ़ायदेमंद GPF-कम-पेंशन स्कीम में बदला हुआ माना जाएगा, अगर तय कट-ऑफ तारीख तक CPF में बने रहने का कोई पॉज़िटिव ऑप्शन नहीं चुना गया।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

FIR रजिस्ट्रेशन के लिए मजिस्ट्रेट का CrPC की धारा 156 (3) के तहत आदेश, संभावित आरोपी की अपील पर रिवीजन के लिए खुला नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक संभावित आरोपी के पास मजिस्ट्रेट द्वारा CrPC की धारा 156(3) के तहत पुलिस को FIR दर्ज करने और जांच करने का निर्देश देने वाले आदेश को रिवीजन याचिका के ज़रिए चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस चवन प्रकाश की बेंच ने इस तरह आपराधिक रिवीजन याचिका यह देखते हुए खारिज कर दिया कि CrPC की धारा 156 (3) के तहत पारित आदेश एक इंटरलोक्यूटरी आदेश है और इसे CrPC की धारा 397(2) के तहत रिवीजन में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के राज्य के बाहर पढ़ने वाले बच्चों को स्टेट कोटा से बाहर रखा जा सकता है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बोनाफाइड हिमाचली स्टूडेंट्स द्वारा दायर रिट याचिकाओं का बैच खारिज कर दिया, जिन्हें स्टेट कोटा के तहत MBBS/BDS एडमिशन के लिए एलिजिबल नहीं माना गया। कोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता हिमाचली हैं और उन्होंने NEET क्वालिफाई किया, लेकिन वे स्टेट कोटा के लिए एलिजिबल नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने अपने माता-पिता की राज्य के बाहर प्राइवेट नौकरी के कारण अपनी स्कूली शिक्षा का कुछ हिस्सा हिमाचल प्रदेश के बाहर पूरा किया।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

S. 11 Cattle Preservation Act | सर्कल ऑफिसर को परिसर में घुसने, जांच करने का अधिकार हो सकता है, लेकिन उसे सील करने का नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि असम पशु संरक्षण अधिनियम (Cattle Preservation Act) 2021 की धारा 11 के तहत सर्कल ऑफिसर को ऐसे परिसर में घुसने और जांच करने का अधिकार दिया जा सकता है, जहां कानून का उल्लंघन हुआ हो, जिसमें एक मांस की दुकान भी शामिल है। हालांकि ऑफिसर के पास परिसर को सील करने का कोई अधिकार या क्षेत्राधिकार नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि कानून ऐसे अधिकारियों को परिसर में घुसने और जांच करने और वहां मिली सामग्री को जब्त करने की अनुमति देता है, लेकिन यह परिसर को पूरी तरह से सील करने तक नहीं है, जहां यह मानने का कारण हो कि अधिनियम के तहत कोई अपराध किया गया या होने की संभावना है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

POCSO Act की धारा 5(सी) लागू नहीं: उन्नाव रेप केस में कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद क्यों निलंबित हुई, दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया

दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्नाव बलात्कार मामले में दोषी ठहराए गए निष्कासित भाजपा नेता कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित करते हुए अहम कानूनी टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना कि सेंगर के खिलाफ POCSO Act की धारा 5(सी) के तहत गंभीर (एग्रेवेटेड) यौन अपराध का मामला नहीं बनता, जिस आधार पर ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी थी।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि सेंगर को पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(सी) या भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(बी) के तहत लोक सेवक की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सात साल या उससे ज़्यादा की सज़ा वाले अपराधों के लिए भी अग्रिम ज़मानत याचिकाएं सुनवाई योग्य: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने साफ़ किया कि अग्रिम ज़मानत याचिका पर फ़ैसला करने का अधिकार रखने वाली सेशंस कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह याचिका पर गुण-दोष के आधार पर फ़ैसला करे, या तो उसे मंज़ूर करे या खारिज करे, और ऐसा किए बिना वह ऐसी किसी याचिका का निपटारा नहीं कर सकती। कोर्ट ने आगे साफ़ किया कि सिर्फ़ इसलिए अग्रिम ज़मानत याचिकाएं सुनने पर कोई कानूनी रोक नहीं है, क्योंकि कथित अपराध में सात साल या उससे ज़्यादा की जेल की सज़ा हो सकती है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

उन्नाव रेप केस: दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित की, कड़ी शर्तों पर रिहाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (23 दिसंबर) को उन्नाव बलात्कार मामले में दोषी ठहराए गए और आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा को निलंबित कर दिया। अदालत ने यह राहत उनकी अपील लंबित रहने तक सशर्त दी है। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने आदेश सुनाते हुए कहा कि सेंगर की सजा निलंबित की जा रही है लेकिन उस पर कई कड़े प्रतिबंध लगाए जाएंगे।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एकल बोली के आधार पर ई-नीलामी रद्द नहीं कर सकता राजस्थान हाउसिंग बोर्ड: हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि केवल इस आधार पर कि किसी ई-नीलामी में एक ही बोलीदाता शामिल हुआ राजस्थान हाउसिंग बोर्ड नीलामी को रद्द नहीं कर सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब बोलीदाता ने सभी निर्धारित शर्तों का विधिवत पालन किया हो तब प्रतिस्पर्धा की कमी या एकल बोली को नीलामी रद्द करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।

जस्टिस नूपुर भाटी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थीं जिसमें याचिकाकर्ता ने राजस्थान हाउसिंग बोर्ड द्वारा आयोजित ई-नीलामी में एक व्यावसायिक भूखंड के लिए सबसे ऊंची बोली लगाई थी।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

BNS | सोसाइटी गेट, स्कूल बस स्टॉप पर आवारा कुत्तों को खाना खिलाने से रोकना 'गलत रोक' नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते फैसला सुनाया कि अगर कोई व्यक्ति हाउसिंग सोसायटी की ज़रूरी जगहों जैसे एंट्री/एग्जिट पॉइंट, स्कूल बस स्टॉप वगैरह पर आवारा कुत्तों को खाना खिला रहा है, जो 'तय जगहें' नहीं हैं, उसे दूसरे सोसाइटी मेंबर खाना खिलाने से रोकते हैं तो वह भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 126 (गलत रोक) के तहत शिकायत दर्ज नहीं कर सकता।

जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस संदेश पाटिल की डिवीजन बेंच ने पुणे के हिंजेवाड़ी इलाके की सोसाइटी के रहने वाले अयप्पा स्वामी के खिलाफ दर्ज फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR) को रद्द कर दिया। अयप्पा स्वामी पर आरोप था कि उन्होंने कुछ युवाओं के एक ग्रुप को रोका, जो सोसायटी के एंट्री/एग्जिट गेट पर आवारा कुत्तों को खाना खिला रहे थे।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट के तहत 'इंडस्ट्री' नहीं: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 की धारा 2(j) के तहत इंडस्ट्री नहीं है। बता दें, उक्त प्लांट्स काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, नई दिल्ली का हिस्सा/संस्थान है।

1947 के एक्ट के तहत 'इंडस्ट्री' की परिभाषा इस प्रकार है: "2(j) "इंडस्ट्री" का मतलब कोई भी बिजनेस, ट्रेड, काम, मैन्युफैक्चरर या मालिकों का पेशा है। इसमें कर्मचारियों का कोई भी पेशा, सर्विस, रोजगार, हस्तशिल्प, या इंडस्ट्री का काम या धंधा शामिल है।"

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पूरी तरह से धार्मिक या स्वैच्छिक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने धर्मार्थ ट्रस्ट को इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट के तहत 'इंडस्ट्री' माना

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख के हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट अपनी गतिविधियों के व्यवस्थित, संगठित और व्यावसायिक स्वरूप के कारण इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 के तहत "इंडस्ट्री" की कानूनी परिभाषा को पूरा करता है। जस्टिस एम ए चौधरी ने फैसला सुनाया कि ट्रस्ट के संचालन को पूरी तरह से धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं माना जा सकता है, जो निस्वार्थ और स्वैच्छिक तरीके से किए जाते हैं। इसलिए वे श्रम कानून सुरक्षा के अधीन हैं।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पति के परिवार वालों द्वारा यौन उत्पीड़न भी IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता का एक रूप है, इसके लिए अलग ट्रायल की ज़रूरत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पति के परिवार वालों द्वारा पत्नी पर किया गया यौन उत्पीड़न भी भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A के तहत क्रूरता का एक रूप है और इसके लिए अलग ट्रायल की ज़रूरत नहीं है। जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि अगर पत्नी ऐसे परिवार वालों के खिलाफ आरोप लगाती है तो यह धारा 498A में बताई गई शारीरिक क्रूरता का भी हिस्सा हो सकता है।

कोर्ट ने साफ किया कि IPC की धारा 498A और 376 के तहत दोनों अपराध इस तरह से जुड़े होने चाहिए कि वे "एक ही लेन-देन बनाने के लिए एक साथ जुड़े हुए कामों की एक श्रृंखला" की शर्त को पूरा करें।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पति की मौत के बाद ससुराल वालों की मर्ज़ी पर दुल्हन के नाबालिग होने के कारण हिंदू शादी को अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) के तहत एक हिंदू शादी को ससुराल वालों की मर्ज़ी पर शादी के समय दुल्हन के नाबालिग होने का दावा करके बाद में अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 का उप-खंड (iii) यह शर्त रखता है कि हिंदू शादी के लिए दूल्हे की उम्र 21 साल और दुल्हन की उम्र 18 साल होनी चाहिए। अधिनियम की धारा 11 अमान्य शादियों के बारे में बताती है, जहां धारा 5 के उप-खंड (i), (ii) और (iv) का उल्लंघन शादी को अमान्य घोषित करने का कारण हो सकता है, अगर शादी के किसी भी पक्ष ने ऐसा किया हो।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News