भरण-पोषण आदेशों को लागू करने के लिए फैमिली कोर्ट के पास LOC जारी करने की शक्ति नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

26 Dec 2025 10:24 AM IST

  • भरण-पोषण आदेशों को लागू करने के लिए फैमिली कोर्ट के पास LOC जारी करने की शक्ति नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के पास दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत पारित आदेश को लागू करते समय लुक आउट सर्कुलर (LOC) जारी करने की शक्ति नहीं है, जो पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित है।

    जस्टिस ललिता कन्नेगंती ने कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण आदेश न्यायिक आदेशों के माध्यम से लागू होने वाला सिविल दायित्व बनाते हैं। यदि कोई पक्ष डिफ़ॉल्ट करता है तो उपलब्ध उपाय संपत्ति की कुर्की, गिरफ्तारी वारंट जारी करने, या सिविल कारावास के माध्यम से आदेश को लागू करना है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लुक आउट सर्कुलर का उद्देश्य आरोपी व्यक्तियों या अपराधियों को आपराधिक प्रक्रिया से बचने से रोकना है। इसे भरण-पोषण बकाया की वसूली के लिए जारी नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने आगे कहा कि कोर्ट के आदेश के बावजूद LOC जारी रखना अवैधता और कोर्ट की अवमानना ​​है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।

    याचिकाकर्ता मोहम्मद अज़ीम ने मंगलुरु के प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट द्वारा 30.10.2024 को पारित आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसके तहत फैमिली कोर्ट ने पत्नी का आवेदन स्वीकार कर लिया था और पति के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी किया था।

    याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि भरण-पोषण आदेश को लागू करते समय फैमिली कोर्ट के पास LOC जारी करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। राजनेश बनाम नेहा और अन्य [(2021) 2 SCC 324] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया गया, जिसमें यह कहा गया कि भरण-पोषण का भुगतान न करने के लिए जबरन लागू करने के उपाय, जिसमें बचाव को खत्म करना भी शामिल है, केवल अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जब डिफ़ॉल्ट जानबूझकर और अवज्ञापूर्ण पाया जाता है।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी-पत्नी की ओर से पेश वकील ने कहा कि एक बार भरण-पोषण आदेश पारित हो जाने के बाद पति का कर्तव्य है कि वह उसका पालन करे। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता देश से बाहर रह रहा था और आदेश का पालन करने में विफल रहा, जिससे फैमिली कोर्ट के पास LOC जारी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

    हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से दिए गए तर्कों में दम पाया और कहा कि फैमिली कोर्ट के पास CrPC की धारा 125 के तहत पारित आदेश को लागू करते समय लुक आउट सर्कुलर जारी करने का कोई अधिकार नहीं था। कोर्ट ने आगे कहा कि जब किसी LOC को सस्पेंड करने का आदेश पास किया जाता है तो यह रिक्वेस्ट करने वाली अथॉरिटी की ड्यूटी है कि वह तुरंत इसकी जानकारी दे और LOC को वापस लेने को सुनिश्चित करे। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि कोर्ट के आदेशों के बावजूद, जिन अधिकारियों ने LOC जारी करने की रिक्वेस्ट की, उन्होंने इसे बंद करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, यह एक आम बात हो गई।

    इसलिए कोर्ट ने डायरेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस को सभी संबंधित अथॉरिटीज़ को ज़रूरी निर्देश जारी करने का निर्देश दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जब भी कोई कोर्ट किसी LOC को सस्पेंड करे तो इसकी जानकारी तुरंत ब्यूरो ऑफ़ इमिग्रेशन को दी जाए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि LOC जारी करने की रिक्वेस्ट करने वाले अधिकारी पर ज़िम्मेदारी तय की जाए, ऐसा न करने पर यह देखते हुए डिपार्टमेंटल कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए कि अन्यथा कोर्ट के आदेशों का कोई महत्व नहीं रहेगा।

    कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को भी आदेश की एक कॉपी CrPC की 125 के तहत कार्यवाही और एग्जीक्यूशन से जुड़े सभी कोर्ट्स को यह स्पष्ट करते हुए सर्कुलेट करने का निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में लुक आउट सर्कुलर जारी नहीं किए जा सकते।

    याचिका को मंज़ूर करते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा पास किए गए आदेश को रद्द कर दिया।

    Case Title: Mohammed Azeem AND Sabeeha & Others

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