फोन पर 'जातिसूचक' गाली-गलौज किए जाने पर SC/ST Act के प्रावधान लागू नहीं होते: कलकत्ता हाईकोर्ट

Shahadat

26 Dec 2025 10:29 AM IST

  • फोन पर जातिसूचक गाली-गलौज किए जाने पर SC/ST Act के प्रावधान लागू नहीं होते: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि जहां जाति के आधार पर गालियां कथित तौर पर टेलीफोन पर दी जाती हैं और सार्वजनिक रूप से नहीं, वहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के प्रावधान पहली नज़र में लागू नहीं होंगे, जिससे विशेष कानून के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य नहीं होगा।

    यह टिप्पणी जस्टिस जय सेनगुप्ता ने SC/ST Act की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत अपराधों के साथ-साथ अन्य जमानती अपराधों के आरोप वाली FIR के संबंध में दायर अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा करते हुए की।

    शुरुआत में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अग्रिम जमानत के लिए आवेदन स्वीकार्य है, क्योंकि अधिनियम की धारा 3(1)(r) और 3(1)(s) के तहत पहली नज़र में कोई मामला नहीं बनता है। यह तर्क दिया गया कि FIR में ही आरोप लगाया गया कि गालियां टेलीफोन पर दी गईं। इसलिए इसमें "सार्वजनिक रूप से किसी भी स्थान पर" किए जाने की आवश्यक शर्त की कमी थी। यह भी कहा गया कि FIR में लगाए गए बाकी अपराध जमानती प्रकृति के थे।

    राज्य के वकील ने केस डायरी और जांच के दौरान दर्ज गवाहों के बयानों पर भरोसा करते हुए अग्रिम जमानत की प्रार्थना का विरोध किया।

    दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस सेनगुप्ता ने कहा कि यह मामला एक अजीब तथ्यात्मक स्थिति पेश करता है। कोर्ट ने कहा कि आरोप, अगर उन्हें सच भी मान लिया जाए तो भी यह पता चलता है कि कथित गालियां टेलीफोन पर दी गईं और सार्वजनिक रूप से नहीं।

    इसके आलोक में कोर्ट ने माना कि SC/ST Act के प्रावधान पहली नज़र में लागू नहीं होते हैं। परिणामस्वरूप, विशेष अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत याचिका स्वीकार्य नहीं है।

    हालांकि, इस बात पर ध्यान देते हुए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए अन्य आरोप जमानती हैं, कोर्ट ने न्याय के हित में राहत को संशोधित किया।

    तदनुसार, अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर संबंधित क्षेत्राधिकार न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने और नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी। कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि यदि ऐसा कोई जमानत आवेदन दायर किया जाता है तो उस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा। खास बात यह है कि कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को चार हफ़्ते की इस अवधि के दौरान गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, जिससे उसे अंतरिम सुरक्षा मिल गई।

    इन टिप्पणियों और निर्देशों के साथ अग्रिम जमानत याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    Case: CRM(A) 4050/2024

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