दिवालिया कार्यवाही के कारण खाते अवरुद्ध होने पर चेक बाउंस का आपराधिक मामला नहीं बनता: दिल्ली हाईकोर्ट

Amir Ahmad

27 Dec 2025 4:09 PM IST

  • दिवालिया कार्यवाही के कारण खाते अवरुद्ध होने पर चेक बाउंस का आपराधिक मामला नहीं बनता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने चेक अनादर से जुड़े तीन आपराधिक मामलों को रद्द करते हुए दोहराया कि यदि दिवालिया कानून के तहत बैंक खाते अवरुद्ध हों तो ऐसे मामलों में चेक बाउंस के आधार पर आपराधिक अभियोजन नहीं चलाया जा सकता।

    जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की एकल पीठ ने सुमेरु प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक फरहाद सूरी और धीरन नवलखा द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 केवल उन्हीं मामलों में लागू होती है, जहां भुगतान धनराशि की कमी के कारण विफल होता है। जब भुगतान कानून के प्रभाव से रोका गया हो तो उसे चेक अनादर का अपराध नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने कहा कि वर्ष 2020 में प्रस्तुत किए गए चेक खाता अवरुद्ध की टिप्पणी के साथ अस्वीकृत हुए। यह अस्वीकृति धन की कमी के कारण नहीं बल्कि दिवालिया और परिसमापन कार्यवाही के दौरान भुगतान पर वैधानिक रोक के कारण हुई। ऐसे हालात धारा 138 के दायरे में नहीं आते, क्योंकि अपराध का आवश्यक तत्व ही स्थापित नहीं होता।

    यह मामला वर्ष 2020 में दायर उन शिकायतों से जुड़ा था, जिनमें आरोप लगाया गया कि कंपनी ने मित्र ऋण की वापसी और किराया बकाया निपटाने के लिए चेक जारी किए। सितंबर, 2020 के इन चेकों की राशि लगभग चौबीस लाख रुपये से लेकर एक करोड़ दस लाख रुपये तक थी। सभी चेक खाता अवरुद्ध कारण से अनादरित हुए, जिसके बाद आपराधिक शिकायतें दर्ज कर समन जारी किए गए।

    निदेशकों ने हाईकोर्ट को बताया कि कंपनी अप्रैल, 2019 में ही दिवालिया प्रक्रिया में चली गई। इसके बाद कंपनी के बैंक खातों का नियंत्रण अंतरिम समाधान पेशेवर के पास चला गया। दिसंबर, 2019 में परिसमापन की कार्यवाही भी शुरू हो गई। ऐसे में सितंबर, 2020 में न तो उनके पास खातों पर कोई नियंत्रण था और न ही वे कानूनी रूप से चेक जारी कर सकते थे।

    हाईकोर्ट ने इस दलील से सहमति जताते हुए कहा कि दिवालिया कार्यवाही शुरू होते ही निदेशकों का कंपनी के वित्तीय मामलों और बैंक खातों पर नियंत्रण समाप्त हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि दिवालिया प्रक्रिया शुरू होने के बाद जारी किए गए चेकों के आधार पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

    अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि चेक अनादर के लिए आपराधिक दायित्व तभी बनता है, जब संबंधित समय पर चेक जारी करने वाले का खाते पर प्रभावी नियंत्रण हो जो इस मामले में स्पष्ट रूप से नहीं था।

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