हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (09 सितंबर, 2024 से 13 सितंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 7 के तहत तलाक की घोषणा के लिए मुकदमा दायर करने की कोई सीमा नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 7 के तहत तलाक की घोषणा के लिए मुकदमा दायर करने की कोई सीमा नहीं है। फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 7 पारिवारिक न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का प्रावधान करती है। स्पष्टीकरण (बी) में प्रावधान है कि विवाह की वैधता या किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति के बारे में घोषणा के लिए मुकदमा या कार्यवाही पारिवारिक न्यायालय के समक्ष दायर की जा सकती है।
केस टाइटलः श्रीमती हसीना बानो बनाम मोहम्मद एहसान [पहली अपील संख्या - 495/2024]
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धारा 91 CrPc जांच एजेंसी को बैंक अकाउंट के डेबिट फ्रीज का आदेश देने का अधिकार नहीं देती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने साइबर सेल, कुल्लू द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 91 के तहत जारी नोटिस रद्द कर दिया, जिसमें ICICI बैंक को कथित साइबर धोखाधड़ी के संबंध में कंपनी के बैंक अकाउंट फ्रीज करने का निर्देश दिया गया था। जस्टिस संदीप शर्मा की पीठ ने माना कि धारा 91 CrPc के तहत दी गई शक्तियां जांच के लिए आवश्यक दस्तावेज़ या चीज़ें पेश करने तक सीमित हैं और बैंक अकाउंट फ्रीज करने तक विस्तारित नहीं हैं।
केस टाइटल- एरोनफ्लाई इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य
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लंबे समय तक अलग रहना और साथ ही बिना किसी रिश्ते को फिर से पाने की इच्छा के आपराधिक मुकदमा चलाना, शादी के टूटने को दर्शाता है, जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि लंबे समय तक अलग रहना और साथ ही आपराधिक मुकदमा चलाना और वैवाहिक रिश्ते को फिर से पाने की इच्छा के बिना कठोर शब्दों का इस्तेमाल करना शादी के टूटने को दर्शाता है, जिसे कभी ठीक नहीं किया जा सकता।
21 साल से अलग चल रहे वैवाहिक मामले पर विचार करते हुए जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की पीठ ने कहा कि युवा विवाह में कई वर्षों तक परित्याग, कठोर शब्दों का प्रयोग, पति-पत्नी द्वारा सहवास की इच्छा और प्रयास की कमी तथा दहेज की मांग के आरोप में आपराधिक मामला दर्ज करना, तलाक के मामले की कार्यवाही शुरू होने के बाद ही और दोषसिद्धि के लिए अपील में आगे बढ़ना (शुरुआती बरी होने के बाद) यह दर्शाता है कि किसी भी मामले में दोनों पक्षों के बीच विवाह पूरी तरह से टूट चुका है।"
केस टाइटल- आरती तिवारी बनाम संजय कुमार तिवारी
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मोटर दुर्घटना | दावेदार वाहन बीमाकर्ता के 'जारीकर्ता कार्यालय' पर अधिकार क्षेत्र रखने वाले न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि मोटर दुर्घटना के लिए मुआवज़ा मांगने वाला दावेदार, उस न्यायाधिकरण के पास जा सकता है, जिसका अधिकार क्षेत्र दुर्घटना के बीमाकर्ता के जारी करने वाले कार्यालय पर है।
जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकल पीठ ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166(2) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि मुआवज़े के लिए आवेदन या तो उस दावा न्यायाधिकरण के पास दायर किया जा सकता है, जिसका अधिकार क्षेत्र उस क्षेत्र पर है, जहां दुर्घटना हुई है; या उस दावा न्यायाधिकरण के पास, जिसके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर दावेदार रहता है या व्यवसाय करता है; या उस दावा न्यायाधिकरण के पास, जिसके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर "प्रतिवादी" रहता है।
केस टाइटल: मैग्मा जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम विनोद कुमार और अन्य।
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हाईकोर्ट फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत अपीलीय प्राधिकरण, अनुच्छेद 142 के तहत विवाह को समाप्त करने के लिए उसके पास व्यापक शक्तियां नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
तलाक की अपील खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उसके पास विवाह को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट के समान शक्ति नहीं है, क्योंकि वह फैमिली कोर्ट एक्ट 1984 की धारा 19 के अनुसार केवल अपीलीय न्यायालय है।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को किसी भी लंबित मामले में “पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी डिक्री/आदेश पारित करने का अधिकार देता है, जिसे वह आवश्यक समझे। फैमिली कोर्ट अधिनियम, 1984 की धारा 19 में फैमिली कोर्ट के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील करने का प्रावधान है। बशर्ते कि आदेश अंतरिम आदेश न हो।
केस टाइटल–सर्वेश कुमार शर्मा बनाम सर्वेश कुमारी शर्मा
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यूपी आवास विकास अधिनियम 1965 के तहत शुरू की गई अधिग्रहण कार्यवाही भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत समाप्त नहीं मानी जा सकती: हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यूपी आवास विकास अधिनियम 1965 के तहत शुरू की गई अधिग्रहण कार्यवाही भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 (Land Acquisition Act) के तहत समाप्त नहीं मानी जा सकती। आवास एवं विकास परिषद अधिनियम, 1965 को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन एवं पुनर्स्थापन में उचित प्रतिकर एवं पारदर्शिता के अधिकार अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) के अंतर्गत समाप्त नहीं माना जा सकता।
जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस मनीष कुमार निगम की खंडपीठ ने कहा, “जबकि नए अधिनियम, 2013 की धारा 24(2) लागू नहीं होगी और अधिग्रहण समाप्त नहीं होगा, लेकिन याचिकाकर्ता नए अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार प्रतिकर पाने का हकदार होगा। प्रतिकर निर्धारण के लिए संदर्भ की तिथि 01.01.2014 होगी, जिस दिन नया अधिनियम, 2013 लागू हुआ था।”
केस टाइटल: मेसर्स बीर होटल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य [रिट - सी नंबर - 23248/2024]
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सीआरपीसी की धारा 125 के विपरीत, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का पत्नी की खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थता से कोई संबंध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपनी पत्नी को भरण-पोषण देने के निर्देश देने वाले आदेश के खिलाफ पति और उसके परिजनों द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की इस टिप्पणी से सहमति जताई कि धारा 125 सीआरपीसी के विपरीत, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण पत्नी की खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थता से जुड़ा नहीं है।
यह टिप्पणी एक व्यक्ति और उसके परिवार द्वारा साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आई, जिसने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण (डीवी) अधिनियम की धारा 29 के तहत उनकी अपील को खारिज कर दिया था।
केस टाइटल: एक्स और अन्य बनाम राज्य और अन्य
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[Compassionate Appointment] कानून बनाने वालों ने कर्मचारी के विशिष्ट रिश्तेदारों को शामिल करने के लिए 'परिवार' को परिभाषित किया, बहू उसमें नही शामिल: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य के ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता विभाग में अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वाली एक बहू द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने प्रियंका हलमणि की याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने सरकार को उन्हें नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग करने वाली प्रियंका की याचिका को खारिज कर दिया था।
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धारा 14ए विदेशी अधिनियम | दस्तावेजों की वैधता अवधि खत्म होने के बाद भी रुकने वाले विदेशियों को घुसपैठिया नहीं माना जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि वैध वीजा और पासपोर्ट के साथ भारत में प्रवेश करने वाले और इन दस्तावेजों की समाप्ति के बाद भी भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों को विदेशी अधिनियम की धारा 14 ए के तहत घुसपैठिया नहीं माना जा सकता। इस प्रकार न्यायालय ने विदेशी अधिनियम की धारा 14 ए के तहत चार विदेशी नागरिकों के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने पाया कि विधायिका का इरादा धारा 14 (ए) के तहत अपने दस्तावेजों की समाप्ति के बाद भी भारत में रहने वाले विदेशियों पर कम दंड लगाने का था और कहा कि उनके साथ उन लोगों से अलग व्यवहार किया जाना चाहिए जो बिना किसी दस्तावेज के अवैध रूप से देश में प्रवेश करते हैं।
केस टाइटल: एगडवा मर्सी अडम्बा बनाम केरल राज्य और संबंधित मामला
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नाबालिग पार्टनर के साथ लिव-इन में रहने वाले जोड़े को उनके धर्म के बावजूद सुरक्षा नहीं मिल सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि लिव-इन में रहने वाले जोड़े, जिनमें से एक या दोनों साथी नाबालिग हैं, न्यायालय से सुरक्षा नहीं मांग सकते, क्योंकि वे अनुबंध करने के लिए सक्षम नहीं हैं।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "नाबालिग के अनुबंध में प्रवेश करने पर रोक है। जिसकी अक्षमता नाबालिग या वयस्क के साथ लिव-इन संबंध में प्रवेश करने के लिए गलत विकल्प चुनने को भी शामिल करती है। यदि नाबालिग भागीदारों को सुरक्षा प्रदान की जाती है, जो ऐसे लिव-इन संबंध में हैं, जहां उनमें से केवल एक नाबालिग है, या जहां दोनों नाबालिग हैं, तो इस प्रकार से संरक्षण प्रदान करना, नाबालिग के विवेकाधिकार के वैधानिक प्रतिबंधों के विपरीत होगा।"
केस टाइटल: यशपाल और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य
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विवाह से बाहर लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने के लिए धमकियों का सामना करने वाले विवाहित व्यक्तियों को सुरक्षा दी जानी चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि अपने विवाह से बाहर लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने वाले विवाहित व्यक्तियों को सुरक्षा दी जानी चाहिए, अगर वे किसी नैतिक सतर्कता से खतरों का सामना कर रहे हैं।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने जोसेफ शाइन बनाम भारत सरकार मामले का जिक्र करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को शरीर की स्वायत्तता है और अगर लिव-इन में रहने वाले जोड़े पर किसी तरह के हमले की अनुमति दी जाती है तो यह हताहत होगा।
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धारा 138 एनआई एक्ट | 'फ्रोजन अकाउंट' के कारण चेक बाउंस होने पर भी शिकायत कायम रखी जा सकती है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत शिकायत तब भी विचारणीय है, जब चेक 'खाता फ्रीज' के कारण अनादरित हुआ हो। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस राजेश ओसवाल ने जांच की कि क्या 'खाता फ्रीज' के आधार पर चेक के अनादर के लिए शिकायत अधिनियम की धारा 138 के तहत विचारणीय है।
मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस ओसवाल ने इस बात पर जोर दिया कि "यह न्यायालय इस विचार पर है कि अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत तब भी विचारणीय है, जब चेक 'खाता फ्रीज' के कारण अनादरित हुआ हो।"
केस टाइटल: शेख ओवैस तारिक बनाम सतवीर सिंह
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POSH एक्ट के दायरे में वो यौन उत्पीड़न शामिल नहीं, जिन्हें रोजगार की तलाश में महिलाओं को झेलना पड़ता है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार (10 सितंबर) को POSH एक्ट, 2013 की कमियों की ओर इशारा किया। कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि मौजूदा कानून के दायरे में वो यौन उत्पीड़न शामिल नहीं है, जिन्हें रोजगार की तलाश में महिलाओं को झेलना पड़ता है। यह कानून केवल कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न पर लागू होता है, इस प्रकार उन अनौपचारिक स्थितियों को छोड़ देता है, जहां कोई स्पष्ट नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं है।
जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस सीएस सुधा की विशेष पीठ ने मलयालम सिनेमा में बड़े पैमाने पर यौन उत्पीड़न का खुलासा करने वाली जस्टिस हेमा समिति की रिपोर्ट से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए मौखिक रूप से पूछा, "नौकरी चाहने वाले POSH एक्ट के दायरे में नहीं आते हैं। अगर कोई चीज रोजगार चाहने वाली महिला से संबंधित है, तो POSH एक्ट कैसे निपटेगा।"
केस टाइटल: नवस ए @ पैचिरा नवस बनाम केरल राज्य और अन्य मामले।
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भरण-पोषण ट्रिब्यूनल केवल सीनियर सिटीजन द्वारा अपने बच्चों के विरुद्ध लगाए गए अस्पष्ट आरोपों के आधार पर गिफ्ट डीड रद्द नहीं कर सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 के तहत भरण-पोषण ट्रिब्यूनल केवल माता-पिता द्वारा निष्पादित गिफ्ट डीड को उनके बच्चों या उस व्यक्ति द्वारा अस्पष्ट आरोपों के आधार पर रद्द नहीं कर सकता, जिसे उन्होंने अपनी संपत्ति गिफ्ट में दी है।
सिंगल जज जस्टिस आर.एम. जोशी ने 29 अगस्त को भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के दिसंबर 2022 का आदेश रद्द किया, जिसमें 73 वर्षीय महिला द्वारा अपनी बड़ी बेटी और पति के पक्ष में निष्पादित गिफ्ट डीड रद्द कर दी गई थी, जिससे कोल्हापुर में उसके दो फ्लैट बड़ी बेटी और पति को गिफ्ट में मिल गए थे। इसने नोट किया कि सीनियर सिटीजन महिला ने आरोप लगाया कि उसकी बड़ी बेटी और उसके पति ने उसे भरण-पोषण देने का अपना वादा पूरा नहीं किया और उसे बुनियादी शारीरिक ज़रूरतों और अन्य सुविधाओं से वंचित कर दिया।
केस टाइटल- नंदकिशोर साहू बनाम संजीवनी पाटिल
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अभियुक्त के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में महत्वपूर्ण पारिवारिक कार्यक्रमों में भाग लेने का अधिकार शामिलः राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने हत्या के प्रयास और शस्त्र अधिनियम के तहत आरोपी को अपनी बेटी की सगाई समारोह में शामिल होने के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति दी।
जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने सत्र न्यायाधीश का आदेश खारिज किया, जिसमें अभियुक्त द्वारा इस आशय की याचिका खारिज कर दिया गई और कहा कि अभियुक्त होने के बावजूद याचिकाकर्ता के पास अभी भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है, जिसमें यात्रा करने और महत्वपूर्ण पारिवारिक कार्यक्रमों में भाग लेने का अधिकार शामिल है।
केस टाइटल- मोहम्मद सादिक बनाम राजस्थान राज्य
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जाली शैक्षिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके प्राप्त की गई सार्वजनिक नौकरी "आरंभ से ही अमान्य": इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक सेवानिवृत्त शिक्षक की रिट याचिका पर विचार करते हुए कहा कि जाली शैक्षणिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके प्राप्त सार्वजनिक रोजगार शुरू से ही शून्य और अमान्य होगा, जिससे ऐसे कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभों से वंचित होना पड़ेगा।
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा, “जो व्यक्ति जाली शैक्षणिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करके नियुक्ति प्राप्त करता है, उसे सुनवाई का कोई अवसर प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।”
केस टाइटलः अशोक कुमार सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य [रिट - ए संख्या - 1064 ऑफ 2021]
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चल रही या समाप्त हो चुकी आपराधिक कार्यवाही के बावजूद निवारक निरोध का आदेश दिया जा सकता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने निवारक निरोध आदेश की वैधता को बरकरार रखते हुए पुष्टि की है कि चल रही या समाप्त हो चुकी आपराधिक कार्यवाही के बावजूद निवारक निरोध का आदेश दिया जा सकता है।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी निरोध “अभियोजन से पहले, उसके दौरान या उसके बाद, अभियोजन के साथ या उसके बिना, और यहां तक कि निर्वहन या बरी होने के बाद भी” हो सकती है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि निवारक निरोध आपराधिक कानून में दंडात्मक उपायों से अलग उद्देश्य पूरा करता है।
केस टाइटलः नारायण शर्मा @ शुना श्रीमती लता शर्मा (मां) बनाम यूटी ऑफ़ जेएंडके