हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (02 सितंबर, 2024 से 06 सितंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
धोखाधड़ी, शरारत, गलत बयानी के अभाव में सार्वजनिक रोजगार समाप्त नहीं किया जा सकता: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया
जस्टिस विनीत कुमार माथुर राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि योग्यता के आधार पर दिए गए व्यक्तियों के सार्वजनिक रोजगार को कर्मचारी की ओर से किसी भी धोखाधड़ी, शरारत, गलत बयानी या दुर्भावना के बिना केवल कट ऑफ अंकों में संशोधन के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता है वह भी काफी विलंबित चरण में।
जस्टिस विनीत कुमार माथुर की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए न्यायालय न्यायसंगत न्यायालय भी है और उस शक्ति का प्रयोग करते हुए न्याय के उद्देश्यों को आगे बढ़ाना और अन्याय को जड़ से उखाड़ फेंकना उसका कर्तव्य है।
केस टाइटल- गौरी शंकर जिंगर एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।
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पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा आपसी तलाक के लिए कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं: एमपी हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा आपसी सहमति से तलाक दिए जाने से पहले हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13-बी(2) के तहत निर्धारित छह महीने की वैधानिक कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं हो सकती। याचिकाकर्ता ने आपसी सहमति से अपने विवाह को समाप्त करने की मांग की और प्रस्तुत किया कि दोनों पक्षों को अपने काम के सिलसिले में शहर से बाहर रहना पड़ता है, इसलिए उन्हें मामले में उपस्थित होने में कठिनाई हो रही है।
केस टाइटल- सुशांत कुमार साहू बनाम मोहिनी साहू
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ट्रायल से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं, बरी किए गए व्यक्ति को मुआवजा नहीं: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने व्यक्ति द्वारा आपराधिक मामले में बरी किए जाने के बाद मुआवजे की मांग करने वाली याचिका खारिज की। न्यायालय ने कहा कि बरी किए गए आरोपी मानवाधिकार उपाय के रूप में मुआवजे का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि मुकदमे से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा, “प्रमुख मानवाधिकार संधियां बरी किए गए आरोपी के लिए मुआवजे का स्पष्ट अधिकार प्रदान नहीं करती हैं, आपराधिक मामले में बरी किए गए आरोपी मानवाधिकार उपाय के रूप में मुआवजे का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि मुकदमे से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। यदि अभियोजन पक्ष का साक्ष्य दोषसिद्धि का समर्थन करने के लिए बहुत कमजोर है तो आपराधिक मामले का आरोपी बरी होने का हकदार है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि राज्य बरी किए गए आरोपी को मुआवजा देते हैं, क्योंकि ऐसा करना उनका कानूनी दायित्व है। इस मामले में न्यायालय के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है।
केस टाइटल: लालटू परीरा बनाम झारखंड राज्य और अन्य
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स्वैच्छिक इस्तीफे से पिछली सेवा समाप्त हो जाती है, कर्मचारी पेंशन लाभ का हकदार नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट के जस्टिस कर्दक एटे की एकल पीठ ने रिट याचिका पर निर्णय करते हुए कहा कि यदि कोई कर्मचारी स्वैच्छिक त्यागपत्र देता है, जिसके परिणामस्वरूप उसकी पिछली सेवा समाप्त हो जाती है, तो वह पेंशन लाभ का हकदार नहीं है।
मामले में अदालत ने पाया कि कर्मचारी ने वास्तव में स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया था। यह देखा गया कि कर्मचारी के त्यागपत्र में मेडिकल बोर्ड के गठन का अनुरोध शामिल था, लेकिन इसमें यह भी कहा गया था कि यदि बोर्ड का गठन नहीं किया जाता है, तो उसका त्यागपत्र स्वीकार किया जाना चाहिए। इससे संकेत मिलता है कि कर्मचारी ने एक विकल्प प्रदान किया था, जो उसके त्यागपत्र की स्वीकृति थी। इसलिए, त्यागपत्र को इस तरह से सशर्त नहीं माना गया कि उसकी स्वीकृति अमान्य हो जाए।
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पोकर और रमी कौशल का खेल, यह जुआ नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि पोकर और रमी बिल्कुल कौशल का खेल है, यह जुआ नहीं है। याचिकाकर्ता ने DCP सिटी कमिश्नरेट, आगरा के कार्यालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके द्वारा उसे रमी और पोकर के लिए जुआ यूनिट स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता के वकील ने आंध्र प्रदेश राज्य बनाम के.एस. सत्यनारायण में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और जंगली गेम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य में मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जहां यह माना गया कि पोकर और रमी में कौशल शामिल है, यह जुआ नहीं है। तर्क दिया गया कि अनुमति केवल इस आधार पर अस्वीकार की गई कि जुआ खेलने से सद्भाव और शांति में बाधा उत्पन्न होगी।
केस टाइटल- डीएम गेमिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ यूपी और 6 अन्य
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ससुर से भरण-पोषण का दावा करने के लिए विधवा बहू का ससुराल में रहना अनिवार्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विधवा बहू के लिए ससुराल में रहना उसके ससुर से भरण-पोषण मांगने की शर्त नहीं है। यह देखा गया कि विधवा महिला द्वारा अपने माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुनने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि वह अपने ससुराल से अलग हो गई।
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा, “कानून की यह अनिवार्य शर्त नहीं है कि भरण-पोषण का दावा करने के लिए बहू को पहले अपने ससुराल में रहने के लिए सहमत होना चाहिए। जिस सामाजिक संदर्भ में कानून लागू होना चाहिए, उसमें विधवा महिलाओं का विभिन्न कारणों और परिस्थितियों के चलते अपने माता-पिता के साथ रहना असामान्य नहीं है। केवल इसलिए कि महिला ने वह विकल्प चुना है, हम न तो इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि वह बिना किसी उचित कारण के अपने वैवाहिक घर से अलग हो गई थी और न ही यह कि उसके पास अपने दम पर जीने के लिए पर्याप्त साधन होंगे।
केस टाइटल: राजपति बनाम भूरी देवी [प्रथम अपील संख्या - 696/2013]
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आरोपी की नाबालिगता साबित करने के लिए FIR दर्ज होने के बाद तैयार किया गया बर्थ सर्टिफिकेट फर्जी साबित न होने पर ही वैध: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि FIR दर्ज होने के बाद नाबालिगता साबित करने के लिए तैयार किया गया बर्थ सर्टिफिकेट तभी वैध है जब यह साबित न हो कि यह फर्जी है। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का उस आदेश खारिज किया, जिसमें उसने कहा कि बर्थ सर्टिफिकेट FIR दर्ज होने के बाद जारी किया गया, इसलिए यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 में दिए गए प्रासंगिक आचरण के दायरे में आएगा।
टाइटल- XXXX बनाम XXXX
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तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने वाली मुस्लिम पत्नी को धारा 151 CPC के तहत अंतरिम भरण-पोषण का दावा करने का अधिकारः मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि न्यायालयों को नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1939 के तहत तलाक के लिए अर्जी दाखिल करने वाली मुस्लिम महिला को अंतरिम भरण-पोषण देने का अधिकार है।
जस्टिस वी लक्ष्मीनारायणन ने कहा कि हालांकि अधिनियम में अंतरिम भरण-पोषण देने का प्रावधान नहीं है लेकिन जब पत्नी यह कहकर न्यायालय में आती है कि उसके पास कोई साधन नहीं है तो न्यायालय अपनी आंखे बंद नहीं कर सकता। न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए पेश किया गया। इसलिए इसे उद्देश्यपूर्ण व्याख्या दी जानी चाहिए।
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नाबालिग लड़की और बालिग पुरुष के विवाह को HMA के तहत शून्य घोषित किया जा सकता है: एमपी हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपनी इंदौर बेंच में कहा कि ऐसे मामलों में जहां नाबालिग लड़की का बालिग पुरुष से विवाह हुआ है, उनके विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13 के तहत शून्य घोषित किया जा सकता है।
जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी ने कहा कि भले ही धारा 11 या 12 के तहत उपाय मौजूद न हो, HMA की धारा 13 के तहत नाबालिग महिला के बालिग से विवाहित होने के आधार पर तलाक का दावा किया जा सकता है और यह क्रूरता शब्द के अंतर्गत आएगा।
केस टाइटल- एक्स बनाम वाई
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जेल स्टाफ़ मोबाइल फ़ोन के अनधिकृत कब्ज़े में कैदियों के साथ प्रतिनिधि दोष का साझेदार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि जेल स्टाफ़ जेल में मोबाइल फ़ोन के अनधिकृत कब्ज़े में पाए जाने वाले कैदियों के साथ प्रतिनिधि दोष साझा करता है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस दीपक सिब्बल, जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल, जस्टिस मीनाक्षी आई. मेहता और जस्टिस राजेश भारद्वाज की पांच जजों की पीठ ने कहा, "केवल जेल स्टाफ़ की सक्रिय मिलीभगत से ही कैदी के पास कथित तौर पर मोबाइल फ़ोन का अनधिकृत कब्ज़ा हो सकता है। बाद में संबंधित जेल स्टाफ़ कैदी के साथ प्रतिनियुक्त दोष साझा करता है।"
केस टाइटल- अचन कुमार बनाम पंजाब राज्य और अन्य।
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5 वर्ष से कम आयु के हिंदू बच्चे की संरक्षकता तय करने का अधिकार क्षेत्र उस जगह पर जहां बच्चा वास्तव में रहता है, न कि जहां मां रहती है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाबालिग, विशेष रूप से 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे की संरक्षकता की मांग करने वाला आवेदन उस जिले में होगा जहां बच्चा वास्तव में और शारीरिक रूप से रहता है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि हिंदू अल्पसंख्यक एवं संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6(ए) के अनुसार पांच वर्ष की आयु पूरी नहीं करने वाले नाबालिग की कस्टडी सामान्य रूप से मां के पास होगी, इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चा हमेशा मां के पास ही रहेगा।
केस टाइटलः XXXX बनाम XXXX
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नाबालिगों से जुड़े बलात्कार के कुछ मामलों में धारा 482 BNSS के तहत अग्रिम जमानत पर रोक पूर्ण नहीं: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि नाबालिगों से जुड़े बलात्कार के कुछ मामलों में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 482 के तहत अग्रिम जमानत याचिका देने पर रोक पूर्ण नहीं है। धारा 482 बीएनएसएस भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 65 और धारा 70(2) के तहत दर्ज व्यक्ति को जमानत देने पर रोक लगाती है। धारा 65 बीएनएस 12 वर्ष से कम आयु की किशोरियों के बलात्कार से संबंधित है। धारा 70(2) बीएनएस नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार को दंडित करती है।
केस टाइटल: XXX बनाम XXX [सीआरएम-एम-36185-2024]
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ट्रायल कोर्ट किसी मामले में आगे की जांच का आदेश दे सकता है, लेकिन इसे किसी अन्य एजेंसी को हस्तांतरित नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत हत्या के मामले में किसी अन्य एजेंसी से आगे जांच कराने का निर्देश नहीं दे सकती है, उसकी शक्ति केवल उसी जांच एजेंसी द्वारा आगे की जांच का आदेश देने तक सीमित है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया और विशेष अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें सीआईडी द्वारा आगे की जांच करने का निर्देश दिया गया था।
इसमें कहा गया है, "सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय की शक्ति का प्रयोग संबंधित न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता है। यह कानून का बहुत स्थापित सिद्धांत है कि जांच, पुन: जांच या आगे की जांच का आदेश देने की शक्ति केवल इस न्यायालय के हाथों में है।
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नियमित पद पर नियुक्त नहीं किया गया संविदा कर्मचारी केवल अनुबंध विस्तार के आधार पर स्थायी रोजगार की मांग नहीं कर सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक संविदा कर्मचारी नियमितीकरण का दावा नहीं कर सकता है और केवल इसलिए कि उसने अपनी रोजगार की अवधि से अधिक काम किया है, उसे स्थायी कर्मचारी बनने का अधिकार नहीं देगा।
एक्टिंग चीफ़ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने सिंगल जज बेंच के एक आदेश के खिलाफ राज्य की अपील की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की, जिसने योजना, अर्थशास्त्र और सांख्यिकी विभाग के आयुक्त द्वारा जारी अगस्त 2018 के आदेश को चुनौती देने वाली कुछ डेटा एंट्री ऑपरेटरों द्वारा दायर एक रिट याचिका की अनुमति दी थी। भोपाल ने ऑपरेटरों को बहाल करने का निर्देश दिया।
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पति-पत्नी के पागलपन को साबित करने का भार विवाह विच्छेद की मांग करने वाले पक्ष पर: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि पति-पत्नी के पागलपन के कारण विवाह विच्छेद की मांग की जाती है तो विवाह विच्छेद की मांग करने वाले पति-पत्नी को दूसरे पति-पत्नी के मामले में इस तरह के पागलपन के अस्तित्व को साबित करना होगा। दोनों पक्षकारों के बीच विवाह 2005 में संपन्न हुआ और वे जनवरी 2012 से अलग-अलग रह रहे हैं। अपीलकर्ता-पति ने पत्नी पर पागलपन और क्रूरता का आरोप लगाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की।
केस टाइटल: शिव सागर बनाम पूनम देवी [प्रथम अपील संख्या - 455/2013]
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मोटर दुर्घटना दावों के मामलों का अंतर-जिला ट्रांसफर संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत होगा, सीपीसी के तहत नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना दावों के मामलों को ट्रिब्यूनल से दूसरे ट्रिब्यूनल में अंतर-जिला ट्रांसफर के लिए आवेदन संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत किया जा सकता है, न कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के प्रावधानों के तहत।
जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की एकल पीठ ने प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों और उदाहरणों की जांच करते हुए कहा - “पीड़ित पक्ष को MV Act के तहत दायर दावों के मामलों के अंतर-जिला ट्रांसफर की मांग करते हुए संबंधित जिला जज के समक्ष जाना होगा और अंतर-जिला ट्रांसफर के लिए पीड़ित पक्ष को भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत रिट कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा। यह न्यायालय इस बात पर भी विचार करता है कि अनुच्छेद 227 के तहत वर्तमान रिट याचिका सुनवाई योग्य है। याचिकाकर्ताओं ने दावा मामले के अंतर-जिला ट्रांसफर के लिए रिट कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।”
केस टाइटल: गुलसन बीबी और अन्य बनाम स्वप्न कुमार घोस और अन्य।
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CPC के आदेश 6 नियम 17 का प्रावधान 2002 में संशोधन से पहले शुरू किए गए मुकदमों पर लागू नहीं होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि CPC के आदेश 6 नियम 17 का प्रावधान जो 2002 के संशोधन के तहत डाला गया था, 2002 से पहले शुरू किए गए मुकदमों पर लागू नहीं होगा। CPC का आदेश 6 नियम 17 न्यायालय को पक्षकारों को अपनी दलीलों को ऐसे तरीके से और ऐसी शर्तों पर बदलने या संशोधित करने की अनुमति देने का अधिकार देता है, जो न्यायसंगत हो सकती हैं। ऐसे सभी संशोधन किए जाएंगे, जो पक्षों के बीच विवाद में वास्तविक प्रश्नों को निर्धारित करने के उद्देश्य से आवश्यक हो सकते हैं।
केस टाइटल- सिन्हा डेवलपमेंट ट्रस्ट और अन्य बनाम यूपी राज्य और 15 अन्य