ट्रायल से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं, बरी किए गए व्यक्ति को मुआवजा नहीं: झारखंड हाईकोर्ट
Shahadat
6 Sept 2024 10:09 AM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने व्यक्ति द्वारा आपराधिक मामले में बरी किए जाने के बाद मुआवजे की मांग करने वाली याचिका खारिज की। न्यायालय ने कहा कि बरी किए गए आरोपी मानवाधिकार उपाय के रूप में मुआवजे का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि मुकदमे से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा,
“प्रमुख मानवाधिकार संधियां बरी किए गए आरोपी के लिए मुआवजे का स्पष्ट अधिकार प्रदान नहीं करती हैं, आपराधिक मामले में बरी किए गए आरोपी मानवाधिकार उपाय के रूप में मुआवजे का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि मुकदमे से पहले या उसके दौरान हिरासत में रखना उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं करता। यदि अभियोजन पक्ष का साक्ष्य दोषसिद्धि का समर्थन करने के लिए बहुत कमजोर है तो आपराधिक मामले का आरोपी बरी होने का हकदार है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि राज्य बरी किए गए आरोपी को मुआवजा देते हैं, क्योंकि ऐसा करना उनका कानूनी दायित्व है। इस मामले में न्यायालय के पास कोई विवेकाधिकार नहीं है।
जस्टिस द्विवेदी ने आगे कहा,
"यह सर्वविदित है कि यदि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और बाद में बरी कर दिया जाता है तो यह मुआवजे का आधार नहीं हो सकता। यदि मुआवजे का मामला बनता है तो निर्णय पारित करने वाला न्यायालय निर्णय के समय ऐसा आदेश पारित कर सकता है।"
याचिकाकर्ता बंशी धर शुक्ला ने स्वयं अपना पक्ष रखते हुए तर्क दिया कि CBI ने 1993 में भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की। यह एफआईआर पटना हाईकोर्ट के 3 अगस्त, 1993 के आदेश पर आधारित थी।
शुक्ला ने तर्क दिया कि एफआईआर में जालसाजी से संबंधित केवल दो संयुक्त रजिस्ट्रार नोटों का उल्लेख किया गया, जबकि CBI को तीन संयुक्त रजिस्ट्रार नोटों और एडवोकेट पत्र में उल्लिखित आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया गया।
4 जून, 2004 को रांची के CBI के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा शुक्ला को दोषी करार दिए जाने के बाद, 2006 में अपीलीय अदालत ने भी इसकी पुष्टि की। हालांकि, 2023 में आपराधिक पुनर्विचार याचिका द्वारा अपीलीय फैसला पलट दिया गया, जिसके कारण शुक्ला को बरी कर दिया गया।
उन्होंने अपने बरी होने के बाद मुआवज़ा मांगा और अनुरोध किया कि उचित निर्देश जारी किए जाएं। CBI और प्रतिवादी राज्य के वकील ने तर्क दिया कि पुनर्विचार अदालत द्वारा बरी किए जाने को मुआवज़े का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए, खासकर तब जब याचिकाकर्ता को दो अन्य अदालतों द्वारा दोषी पाया गया हो।
अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज की कि हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है।
केस टाइटल: लालटू परीरा बनाम झारखंड राज्य और अन्य