पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा आपसी तलाक के लिए कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं: एमपी हाईकोर्ट

Amir Ahmad

6 Sep 2024 6:34 AM GMT

  • पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा आपसी तलाक के लिए कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा आपसी सहमति से तलाक दिए जाने से पहले हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 13-बी(2) के तहत निर्धारित छह महीने की वैधानिक कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं हो सकती।

    याचिकाकर्ता ने आपसी सहमति से अपने विवाह को समाप्त करने की मांग की और प्रस्तुत किया कि दोनों पक्षों को अपने काम के सिलसिले में शहर से बाहर रहना पड़ता है, इसलिए उन्हें मामले में उपस्थित होने में कठिनाई हो रही है।

    जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की पीठ ने कहा,

    "पक्षकारों को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा होना, कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं हो सकता। कूलिंग पीरियड का प्रावधान करने का मूल उद्देश्य अलग होने के निर्णय पर विचार करना है।"

    याचिकाकर्ताओं ने जबलपुर में फैमिली कोर्ट से तलाक आवेदन के पहले और दूसरे प्रस्ताव के बीच छह महीने की प्रतीक्षा अवधि को माफ करने का अनुरोध किया। वहीं ट्रायल कोर्ट ने पर्याप्त आधारों की कमी का हवाला देते हुए अनुरोध अस्वीकार कर दिया।

    इस निर्णय से असंतुष्ट याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) पर भरोसा किया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि HMA की धारा 13-बी (2) के तहत निर्धारित छह महीने की कूलिंग-ऑफ अवधि अनिवार्य नहीं है बल्कि केवल निर्देश है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दोनों पक्ष 2017 से अलग-अलग रह रहे हैं और गुजारा भत्ता और कस्टडी सहित सभी लंबित मुद्दों को सुलझा चुके हैं, इसलिए कूलिंग पीरियड माफ किया जाना चाहिए।

    जस्टिस अहलूवालिया ने याचिका खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि कूलिंग-ऑफ अवधि को माफ करने की शर्तें पूरी नहीं की गई, जिसमें शामिल हैं- सभी मध्यस्थता और सुलह के प्रयास विफल हो गए होंगे पार्टियों ने गुजारा भत्ता और बच्चे की कस्टडी सहित सभी मुद्दों को वास्तव में सुलझा लिया होगा, प्रतीक्षा अवधि ने केवल पक्षों की पीड़ा को बढ़ाया होगा और पक्षों ने अपने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला किया होगा।

    केस टाइटल- सुशांत कुमार साहू बनाम मोहिनी साहू

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