हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-09-01 04:30 GMT
High Courts

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (26 अगस्त, 2024 से 30 अगस्त, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

मामले के तथ्यों के आधारा पर पति की सहमति के बिना पत्नी के गर्भपात कराने को क्रूरता कहा जा सकता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक जोड़े के विवाह को भंग करने के पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। कोर्ट ने निर्णय में कहा कि "मामले के तथ्यों" के आधार पर, अगर कोई पत्नी अपने पति की सहमति के बिना गर्भावस्था को समाप्त करने का विकल्प चुनती है, तो उसे "क्रूरता" कहा जा सकता है।

ज‌स्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की खंडपीठ ने कहा, "निचली अदालत ने यह निष्कर्ष दर्ज किया है कि पति की सहमति के बिना गर्भावस्था को समाप्त करना भी क्रूरता के दायरे में आता है। उपरोक्त निष्कर्ष के संबंध में, इस न्यायालय का विचार है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर गर्भावस्था की समाप्ति 'क्रूरता' शब्द के अंतर्गत आ सकती है।

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पत्नी की ओर से पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता के समान: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक फैसले में माना कि पत्नी की ओर से पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करके उसके साथ रहने से मना करना क्रूरता है और इसलिए, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक का आधार है।

जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा, “सहवास वैवाहिक रिश्ते का एक अनिवार्य हिस्सा है और अगर पत्नी पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करके उसके साथ रहने से मना करती है, तो वह उसे उसके वैवाहिक अधिकारों से वंचित करती है, जिसका उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और यह शारीरिक और मानसिक क्रूरता दोनों के बराबर होगा। वादी द्वारा अपने वैवाहिक अधिकारों से गलत तरीके से वंचित किए जाने के आरोप का प्रतिवादी द्वारा खंडन नहीं किया गया है और इसे निहितार्थ द्वारा स्वीकार किया गया है।”

केस टाइटलः जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव बनाम श्रीमती श्वेता श्रीवास्तव [FIRST APPEAL No. - 32 of 2023]

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धारा 148 एनआई एक्ट | अपीलीय न्यायालय असाधारण मामला बनने पर न्यूनतम 20% जुर्माना जमा करने की शर्त में ढील दे सकता है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपीलीय न्यायालय को परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत दोषसिद्धि आदेश को निलंबित करने में सक्षम बनाने वाला प्रावधान, जिसमें निचली अदालत द्वारा दिए गए जुर्माने या मुआवजे का न्यूनतम 20% जमा करने (धारा 148 के तहत) का निर्देश दिया जाता है, विवेकाधीन प्रकृति का है और अनिवार्य नहीं है। यह आदेश जस्टिस बी वी एल एन चक्रवर्ती ने एक आपराधिक याचिका में पारित किया, जो अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित सजा के निलंबन के आदेश को रद्द करने के लिए दायर की गई थी।

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UAPA के तहत आरोपी को अंतरिम जमानत देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आरोपी व्यक्ति को अंतरिम जमानत देने से इनकार किया। कोर्ट ने उक्त यह देखते हुए दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) या विशेष प्रावधान के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस कुलदीप तिवारी ने कहा, "CrPC या विशेष कानून (सुप्रा) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत इस न्यायालय को कोई अंतरिम जमानत देने का अधिकार प्राप्त हो। इसके विपरीत सीआरपीसी में मौजूद प्रावधान जो संबंधित विशेष कानून पर लागू होते हैं, आरोपी को CrPC की धारा 439 के तहत नियमित जमानत का दावा करने का विशेषाधिकार देते हैं।"

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नियोक्ता की ओर से सामान्य भविष्य निधि संख्या आवंटित न करने के कारण कर्मचारी को पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में जहां एक कर्मचारी ने सामान्य भविष्य निधि में कोई अंशदान नहीं किया क्योंकि उसे नियोक्ता द्वारा जीपीएफ नंबर आवंटित नहीं किया गया था, माना कि नियोक्ता की गलती के कारण कर्मचारी को पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा, “सबसे पहले, सामान्य भविष्य निधि में कटौती पेंशन प्राप्त करने की पात्रता के लिए एक शर्त नहीं है। दूसरे, अधिकारियों द्वारा अंशदान की कटौती न करने के लिए याचिकाकर्ता दोषी नहीं था। तीसरे, सेवानिवृत्त होने के बाद, याचिकाकर्ता सामान्य भविष्य निधि की राशि प्राप्त करने का हकदार होगा और याचिकाकर्ता को केवल उसके तुरंत बाद राशि वापस करने के लिए राशि जमा करने का निर्देश देने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।”

केस टाइटल: उदय नारायण साहू बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य [रिट - ए नंबर- 8170/2024]

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बच्चे को स्टेटलेस नहीं छोड़ा जा सकता; भले ही माता-पिता भारतीय नागरिकता छोड़ दें, बच्चा नागरिक बना रहेगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने बुधवार (28 अगस्त) को कहा कि किसी बच्चे को सिर्फ इसलिए भारतीय नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह अपने सिंगल पैरेंट के साथ रहता है, जो विदेशी नागरिक है।

जस्टिस मकरंद कार्णिक और जस्टिस वाल्मीकि एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने कहा कि माता-पिता द्वारा भारतीय नागरिकता छोड़ने से बच्चे की नागरिकता की स्थिति प्रभावित नहीं होगी, जिसे जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता मिली है।

केस टाइटल- क्रिसेला वलंका कुशी राज नायडू बनाम विदेश मंत्रालय

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महिला के वैवाहिक घर में रहने के अधिकार को सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत दी गई सुरक्षा के साथ संतुलित किया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिलाओं के वैवाहिक या साझा घर में रहने के अधिकार को सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत सीनियर सिटीजन को दी गई सुरक्षा के साथ संतुलित किया जाना चाहिए। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि दोनों कानूनों की सामंजस्यपूर्ण व्याख्या की जानी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि न्याय संबंधित पक्षों के विशिष्ट पारिवारिक और सामाजिक संदर्भों के अनुरूप हो।

केस टाइटल- संतोष त्यागी बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार और अन्य।

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माता-पिता की ओर से तय की गई शादी से कुछ दिन पहले प्रेमी के साथ भागी लड़की पर दूल्हा धोखा देने का मामला दर्ज नहीं करा सकताः बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई लड़की अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है और उसके माता-पिता ने जिस दूल्हे से उसकी शादी तय की है, उससे शादी नहीं करती है, तो दूल्हे और उसके माता-पिता उस पर मुकदमा नहीं चला सकते।

जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने पुणे निवासी एक लड़की, उसके माता-पिता और भाई के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। इन सभी पर एक व्यक्ति के परिवार को धोखा देने का आरोप है, जिसके साथ लड़की की सगाई के बाद उसकी शादी तय हुई थी।

केस टाइटल: एडीपी बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक आवेदन 48/2023)

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Dowry Prohibition Act | जिला मजिस्ट्रेट की मंजूरी के बिना मामला दर्ज नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दहेज निषेध अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा, "पंजाब राज्य पर लागू दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 8-ए के साथ-साथ माननीय सुप्रीम कोर्ट और इस न्यायालय के विभिन्न निर्णयों का अवलोकन करने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत किए गए किसी भी अपराध के संबंध में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।"

केस टाइटल- कमलजीत सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य।

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किसी कंपनी के स्वतंत्र, गैर-कार्यकारी निदेशकों को विशिष्ट आरोपों के बिना एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि यदि शिकायतों में अपराध में आरोपित कंपनी की सक्रिय भूमिका संबंधी विशिष्ट आरोप शामिल नहीं हैं तो कंपनी के स्वतंत्र, गैर-कार्यकारी निदेशकों को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने उल्लेख किया कि धारा 141 के अनुसार, किसी व्यक्ति को कंपनी की ओर से किए गए अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, यदि वे प्रासंगिक समय पर कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं।

केस टाइटल: श्री संदीप विनोदकुमार पटेल और अन्य बनाम एसटीसी फाइनेंस लिमिटेड, और अन्य

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शोक सभा करने के लिए काम से अनुपस्थित रहने वाले वकीलों को अदालत की अवमानना माना जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि राज्य के किसी वकील या उनके एसोसिएशन के किसी भी व्यक्तिगत वकील या उनके एसोसिएशन के किसी भी व्यक्ति के अदालत के वकील/अधिकारी/कर्मचारी या उनके रिश्तेदारों की मौत के कारण शोक व्यक्त करने के कारण हड़ताल पर जाने या काम से अनुपस्थित रहने के कृत्य को आपराधिक अवमानना का कार्य माना जाएगा। अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि वकील या उनके संगठन दोपहर साढ़े तीन बजे के बाद ही शोक सभा बुला सकते हैं।

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विदेश में शोध के लिए नौकरी की छुट्टी को सेवा में ब्रेक नहीं माना जाना चाहिए, इसे पेंशन के लिए गिना जाना चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि तमिलनाडु अवकाश नियम 1933 के अनुसार, विदेश में रोजगार के लिए काम से अनुपस्थिति की अवधि को सेवा में विराम नहीं माना जाएगा और इसे पेंशन तथा अन्य उद्देश्यों के लिए गिना जाना चाहिए।

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि इस संबंध में जारी सरकारी आदेश के अनुसार भी, विदेश में रोजगार के दौरान अनुपस्थिति की अवधि को असाधारण अवकाश माना जाना चाहिए और इसे सेवा में विराम नहीं बल्कि बिना भत्ते वाला अवकाश माना जाना चाहिए।

केस टाइटल: आर रक्कियप्पन बनाम तमिलनाडु राज्य

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शिक्षा निदेशालय की ओर से सीट आवंटन के बाद किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इनकार करना आरटीई एक्ट के उद्देश्यों का उल्लंघन: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि शिक्षा निदेशालय (डीओई) की ओर से सीट आवंटित किए जाने के बाद किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से मना करना शिक्षा के अधिकार अधिनियम के उद्देश्यों का उल्लंघन होगा।

जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि लॉटरी में सफलतापूर्वक अपना नाम पाने के बाद जब छात्रों के मन में प्रवेश की वैध उम्मीद की धारणा बन जाती है तो संवैधानिक न्यायालयों को उनके हितों की रक्षा करनी चाहिए और उन्हें "न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रक्रियात्मक उलझनों की बेड़ियों से मुक्त करना चाहिए।"

केस टाइटलः मास्टर जय कुमार अपने पिता मनीष कुमार के माध्यम से बनाम आधारशिला विद्या पीठ और अन्य।

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आर्य समाज मंदिर में विवाह के गवाह वास्तविक और प्रामाणिक होने चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला और उसके सगे चाचा के बीच आर्य समाज मंदिर में संपन्न विवाह को अमान्य घोषित किया, क्योंकि उस व्यक्ति ने झूठा हलफनामा देकर कहा था कि जब उसकी पत्नी और बेटा था तब वह अविवाहित था। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने विवाह की तस्वीरें देखीं और पाया कि जोड़े के अलावा पुजारी को छोड़कर कोई भी समारोह में मौजूद नहीं था।

केस टाइटल- मुकेश कुमार सेन बनाम राज्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली एवं अन्य।

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वसीयत के लाभार्थी को अपने नाम पर पट्टे को म्यूटेट करने के लिए NOC की आवश्यकता नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राजस्थान लघु खनिज रियायत नियम, 2017 का नियम 76 (Rule 76 Rajasthan Minor Mineral Concession Rules) केवल तभी लागू होता है, जब पट्टाधारक की मृत्यु बिना किसी वसीयत के हो जाती है। नियम 76 में खनिज लाइसेंस के म्यूटेशन की प्रक्रिया का प्रावधान है, जिसे लाइसेंस धारक की मृत्यु लाइसेंस अवधि के दौरान कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम पर निष्पादित किया जाएगा।

जस्टिस दिनेश मेहता की पीठ बेटे द्वारा अपने मृत पिता के खनन पट्टे को उसकी मां के नाम पर परिवर्तित करने की सरकार की संभावित कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

केस टाइटल- जगदीश चौधरी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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Road Accident| बच्चे की मृत्यु के मामले में भविष्य की संभावनाओं के लिए कोई मुआवज़ा नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया

राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया कि मोटर वाहन दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु के मामले में, ऐसी मृत्यु के लिए भविष्य की संभावनाओं के मद के तहत मुआवज़ा नहीं दिया जा सकता।

जस्टिस नूपुर भाटी की पीठ ने राजेंद्र सिंह एवं अन्य बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित पक्षों को उनके बच्चे की मृत्यु के संबंध में दिए जाने वाले मुआवज़े को भविष्य की संभावनाओं के अलग मद के तहत और अधिक मुआवज़ा देकर बढ़ाने का तर्क खारिज कर दिया, क्योंकि यह माना गया कि जहां तक बच्चों का संबंध है, इस मद का उपयोग नहीं किया जा सकता।

केस टाइटल- यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रमेश चंद्र और अन्य।

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पति अपने माता-पिता से अलग रहने का विकल्प चुनता है तो पत्नी द्वारा उनकी देखभाल न करना क्रूरता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जब पति अपने माता-पिता से अलग रहने का विकल्प चुनता है तो केवल अपने माता-पिता की देखभाल न करना क्रूरता नहीं है। अपीलकर्ता-पति ने मुरादाबाद के फैमिली कोर्ट के प्रिंसिपल जज द्वारा तलाक याचिका खारिज किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पति ने प्रतिवादी-पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक के लिए अर्जी दी, क्योंकि वह उसके माता-पिता की देखभाल नहीं कर रही थी।

न्यायालय ने पाया कि कथित अपीलकर्ता ने खुद अपने माता-पिता से अलग रहने का विकल्प चुना था और चाहता था कि उसकी पत्नी उनकी देखभाल करने के लिए उनके साथ रहे। यह माना गया कि पत्नी द्वारा अपने ससुराल वालों की देखभाल करने में कथित विफलता प्रकृति में व्यक्तिपरक है।

केस टाइटल- ज्योतिष चंद्र थपलियाल बनाम श्रीमती देवेश्वरी थपलियाल

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बिना किसी कारण के जीवनसाथी को त्यागना क्रूरता, हिंदू विवाह की आत्मा और भावना की मृत्यु: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह में बिना किसी उचित कारण के जीवनसाथी को छोड़ना उस जीवनसाथी के प्रति क्रूरता है, जिसे अकेला छोड़ दिया गया।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा, “हिंदू विवाह संस्कार है, न कि सामाजिक अनुबंध, जहां एक साथी बिना किसी कारण या उचित कारण या मौजूदा या वैध परिस्थिति के दूसरे साथी को त्याग देता है, उस आचरण की आवश्यकता होती है, संस्कार अपनी आत्मा और भावना खो देता है। हालांकि यह अपने बाहरी रूप और शरीर को बनाए रख सकता है। इस प्रकार किसी तीसरे पक्ष को रूप दिखाई दे सकता है और वे विवाह को अस्तित्व में देखना जारी रख सकते हैं, जबकि जीवनसाथी के लिए संस्कार मृत रह सकता है। हिंदू विवाह की आत्मा और भावना की मृत्यु जीवनसाथी के प्रति क्रूरता हो सकती है, जो इस प्रकार न केवल शारीरिक रूप से वंचित रह सकता है, बल्कि मानवीय अस्तित्व के सभी स्तरों पर अपने जीवनसाथी की संगति से पूरी तरह वंचित हो सकता है।”

केस टाइटल: अभिलाषा श्रोती बनाम राजेंद्र प्रसाद श्रोती [पहली अपील संख्या - 2012 की 71]

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वकील जो पहले से मामले में नहीं था, वह पुनर्विचार याचिका दायर करके मामले में फिर से बहस नहीं कर सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एक वकील, जो इस मामले में पहले दाखिल या बहस करने वाला वकील भी नहीं था, मामले में फिर से बहस करने के लिए मामले की समीक्षा दायर नहीं कर सकता है। अदालत ने 20,000 रुपये की अनुकरणीय लागत के साथ समीक्षा आवेदन को खारिज कर दिया और कहा कि समीक्षा दायर करने का कोई कारण नहीं था और समीक्षा याचिका दायर करके मामले में फिर से बहस नहीं की जा सकती है।

जस्टिस अलका सरीन ने कहा कि वकील ने समीक्षा आवेदन की विचारणीयता पर बहस नहीं की, और न तो दाखिल करने वाले वकील और न ही बहस करने वाले वकील आक्षेपित आदेश पारित करने के समय मौजूद थे।

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