वसीयत के लाभार्थी को अपने नाम पर पट्टे को म्यूटेट करने के लिए NOC की आवश्यकता नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
27 Aug 2024 11:57 AM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राजस्थान लघु खनिज रियायत नियम, 2017 का नियम 76 (Rule 76 Rajasthan Minor Mineral Concession Rules) केवल तभी लागू होता है, जब पट्टाधारक की मृत्यु बिना किसी वसीयत के हो जाती है।
नियम 76 में खनिज लाइसेंस के म्यूटेशन की प्रक्रिया का प्रावधान है, जिसे लाइसेंस धारक की मृत्यु लाइसेंस अवधि के दौरान कानूनी उत्तराधिकारियों के नाम पर निष्पादित किया जाएगा।
जस्टिस दिनेश मेहता की पीठ बेटे द्वारा अपने मृत पिता के खनन पट्टे को उसकी मां के नाम पर परिवर्तित करने की सरकार की संभावित कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि बेटा अपने मृत पिता के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक होने के कारण खदान का संचालन कर रहा था। इसलिए नियम 76 के अनुसार, सरकार याचिकाकर्ता की मां से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त किए बिना खनन पट्टे को उसके नाम पर परिवर्तित नहीं कर सकती।
इन तर्कों का विरोध करते हुए प्रतिवादी मां के वकील ने तर्क दिया कि वह पट्टाधारक की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी होने के नाते अपने पक्ष में पंजीकृत वसीयत रखती है। इसलिए याचिकाकर्ता से NOC प्राप्त करने का सवाल ही नहीं उठता।
न्यायालय ने प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत तर्कों से सहमति जताते हुए कहा कि नियम 76 उस स्थिति में लागू होता है, जब पट्टाधारक की मृत्यु बिना किसी वसीयत के हुई हो। वसीयत के मामले में संपत्ति कानून के अनुसार लाभार्थी को ट्रांसफर की जाती है। ऐसे मामले में खनन पट्टे के लाभार्थी को अपने नाम पर पट्टे को म्यूटेट करने के लिए NOC जमा करने की आवश्यकता नहीं होती है।
न्यायालय ने कहा,
“जब कोई व्यक्ति वसीयत निष्पादित करता है तो संपत्ति कानून के संचालन द्वारा लाभार्थी को हस्तांतरित की जाती है और जब लाभार्थी वसीयत के आधार पर अपने नाम पर म्यूटेशन का दावा करता है तो 'NOC' की आवश्यकता नहीं होती। यह न्यायालय दृढ़ता से इस बात पर सहमत है कि वसीयत के लाभार्थी के नाम पर भूमि म्यूटेट करने के उद्देश्य से याचिकाकर्ता की NOC या हलफनामा या सहमति की आवश्यकता नहीं है।”
हालांकि न्यायालय ने सिविल कोर्ट में बेटे द्वारा वसीयत को चुनौती दिए जाने को ध्यान में रखा और कहा कि यदि सिविल न्यायालय द्वारा वसीयत को अवैध पाया जाता है तो सरकार सिविल न्यायालय द्वारा पारित डिक्री के अनुसार आगे बढ़ेगी।
तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- जगदीश चौधरी बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।