बच्चे को स्टेटलेस नहीं छोड़ा जा सकता; भले ही माता-पिता भारतीय नागरिकता छोड़ दें, बच्चा नागरिक बना रहेगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

Amir Ahmad

30 Aug 2024 7:44 AM GMT

  • बच्चे को स्टेटलेस नहीं छोड़ा जा सकता; भले ही माता-पिता भारतीय नागरिकता छोड़ दें, बच्चा नागरिक बना रहेगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ ने बुधवार (28 अगस्त) को कहा कि किसी बच्चे को सिर्फ इसलिए भारतीय नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह अपने सिंगल पैरेंट के साथ रहता है, जो विदेशी नागरिक है।

    जस्टिस मकरंद कार्णिक और जस्टिस वाल्मीकि एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने कहा कि माता-पिता द्वारा भारतीय नागरिकता छोड़ने से बच्चे की नागरिकता की स्थिति प्रभावित नहीं होगी, जिसे जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता मिली है।

    जजों ने आदेश में कहा,

    "जब हम पाते हैं कि याचिकाकर्ता भारत का नागरिक है तो विवादित आदेश में उल्लिखित आधार पर पासपोर्ट देने से इनकार करना उचित नहीं है। यह विचार कि याचिकाकर्ता भारतीय पासपोर्ट के लिए पात्र नहीं है, क्योंकि आवेदक (मां) सिंगल पैरेंट नाबालिग बच्चा है। याचिकाकर्ता की भौतिक अभिरक्षा माता-पिता के पास है, जो विदेशी नागरिक है, यह विचार उचित नहीं है। याचिकाकर्ता की मां द्वारा विदेशी राष्ट्रीयता प्राप्त करने से याचिकाकर्ता की नागरिकता की स्थिति प्रभावित नहीं होगी। बच्चे को स्टेटलेस नहीं छोड़ा जा सकता।"

    जजों ने माना कि क्रिसेला वलंका कुशी राज नायडू द्वारा दायर याचिका को सफल होना चाहिए।

    जजों ने आदेश दिया,

    "यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायोग पासपोर्ट और कांसुलर विंग द्वारा जारी विवादित आदेश रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ता अपनी भारतीय नागरिकता के आधार पर पासपोर्ट जारी करने की हकदार है।"

    खंडपीठ ने नाबालिग (16 वर्षीय) नायडू द्वारा दायर याचिका पर विचार किया, जिसमें यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायोग द्वारा 5 अगस्त, 2020 को पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के पासपोर्ट को इस आधार पर रिन्यू करने से इनकार किया गया था कि वह सिंगल पैरेंट के साथ रह रही है, जो भारतीय नागरिक नहीं है।

    गौरतलब है कि याचिकाकर्ता का जन्म 27 अक्टूबर, 2007 को हुआ था तब उसके माता-पिता दोनों गोवा में रहते थे। वहीं जब वह लगभग तीन साल की थी तो उसके पिता ने उसे और उसकी मां को छोड़ दिया। उस समय याचिकाकर्ता के माता-पिता दोनों भारतीय नागरिक थे। इसलिए उसने नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर ली।

    लेकिन इसके बाद 10 फरवरी 2015 को याचिकाकर्ता की मां ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी और खुद को पुर्तगाल की नागरिक के रूप में रजिस्टर करा लिया, क्योंकि उन्हें विदेश में कुछ काम के अवसर मिले थे। तब से याचिकाकर्ता और उसकी मां यूनाइटेड किंगडम चले गए, जहां मां ने काम किया और यहां तक कि याचिकाकर्ता को यूनाइटेड किंगडम के स्कूल में दाखिला भी दिलाया।

    हालांकि 2 दिसंबर 2019 तक याचिकाकर्ता का भारतीय पासपोर्ट समाप्त हो गया। इसलिए उसने भारतीय उच्चायोग में इसके रिन्यूअल के लिए आवेदन किया। लेकिन 5 अगस्त 2020 के आदेश द्वारा उसे नया पासपोर्ट देने से इनकार कर दिया गया।

    इस आदेश से व्यथित होकर उसने जस्टिस कार्णिक की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की पीठ में याचिका दायर की, जिसने नागरिकता अधिनियम और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 के विभिन्न प्रावधानों का हवाला दिया और पाया कि ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों ने विवादित आदेश पारित करने में गलती की।

    केस टाइटल- क्रिसेला वलंका कुशी राज नायडू बनाम विदेश मंत्रालय

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