किसी कंपनी के स्वतंत्र, गैर-कार्यकारी निदेशकों को विशिष्ट आरोपों के बिना एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
27 Aug 2024 7:47 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि यदि शिकायतों में अपराध में आरोपित कंपनी की सक्रिय भूमिका संबंधी विशिष्ट आरोप शामिल नहीं हैं तो कंपनी के स्वतंत्र, गैर-कार्यकारी निदेशकों को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने उल्लेख किया कि धारा 141 के अनुसार, किसी व्यक्ति को कंपनी की ओर से किए गए अपराध के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है, यदि वे प्रासंगिक समय पर कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं।
हाईकोर्ट ने सुनीता पलिता बनाम पंचमी स्टोन क्वारी [(2022) 10 एससीसी 152] में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जो निदेशक अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय के लिए प्रभारी या जिम्मेदार नहीं है, उसे धारा 141 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ऐसे निदेशकों को आपराधिक कार्यवाही में शामिल करना अन्यायपूर्ण होगा, जो केवल उनके पदनाम के आधार पर बाउंस चेक जारी करने से जुड़े नहीं हैं। निर्णय में कहा गया कि स्वतंत्र, गैर-कार्यकारी निदेशक कंपनी के दिन-प्रतिदिन के संचालन में शामिल नहीं होते हैं और इसलिए वे इसके व्यावसायिक संचालन के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
पूजा रविंदर देवीदासानी बनाम महाराष्ट्र राज्य [(2014) 16 एससीसी 1] में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने स्पष्ट किया कि गैर-कार्यकारी निदेशक, जो कंपनी के दिन-प्रतिदिन के मामलों में भाग नहीं लेते हैं, उन्हें व्यावसायिक संचालन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इसके अलावा, यह माना गया कि शिकायतों में ऐसे विशिष्ट कथन शामिल होने चाहिए जो यह दर्शाते हों कि ऐसे निदेशक वास्तव में कंपनी के व्यावसायिक संचालन के प्रभारी और जिम्मेदार थे।
हाईकोर्ट ने माना कि शिकायतों में बाउंस हुए चेक के संबंध में याचिकाकर्ताओं की भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में विशिष्ट आरोपों का अभाव था। यह सामान्य कथन कि सभी आरोपी कंपनी के व्यावसायिक प्रबंधन के लिए जिम्मेदार थे, धारा 141 के तहत आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता था।
इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने नोट किया कि नेशनल स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम हरमीत सिंह पेंटल [(2010) 3 एससीसी 330] में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, केवल यह कहना कि निदेशक व्यवसाय के प्रभारी और जिम्मेदार हैं, धारा 141 के तहत दायित्व स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
हाईकोर्ट ने पेप्सी फूड्स लिमिटेड बनाम विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट [(1998) 5 एससीसी 749] का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि किसी आरोपी को समन करना स्वचालित नहीं होना चाहिए और उसे उचित विवेक का प्रयोग करना चाहिए। इसलिए, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शिकायतों और सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपने विवेक का प्रयोग किया।
केस टाइटल: श्री संदीप विनोदकुमार पटेल और अन्य बनाम एसटीसी फाइनेंस लिमिटेड, और अन्य
केस नंबर: सीआरएल.एम.सी. 3362/2024 और सीआरएल.एम.ए. 12953/2024 और संबंधित मामले