हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-07-28 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (22 जुलाई, 2024 से 26 जुलाई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

कर्मचारी को रिटायरमेंट की तिथि से पहले रिटायर नहीं किया जा सकता, जब तक कि मूल सेवा अभिलेखों में उसकी जन्मतिथि में परिवर्तन न किया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किसी कर्मचारी को उसकी रिटायरमेंट की तिथि से पहले रिटायर नहीं किया जा सकता, जब तक कि मूल सेवा अभिलेखों में ऐसे कर्मचारी की जन्मतिथि में परिवर्तन न किया जाए, जिससे अधिकारी कर्मचारी को सेवानिवृत्त कर सकें।

जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने कहा, “सेवा पुस्तिका में मूल रूप से दर्ज जन्मतिथि में परिवर्तन किए बिना किसी कर्मचारी को रिटायर नहीं किया जा सकता। सेवा न्यायशास्त्र के पीछे मूल दर्शन यह है कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच रोजगार का अनुबंध होता है। नियोक्ता द्वारा रखी गई सेवा पुस्तिका रोजगार के अनुबंध का एक हिस्सा है। इसमें कोई भी परिवर्तन पहले होना चाहिए, क्योंकि यह रोजगार की शर्तों को बदल देगा।”

केस टाइटल: सुरेश यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य [रिट - ए नंबर- 61181/2014]

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जांच के लिए पुलिस के समक्ष आरोपी को पेश करने के लिए धारा 73 CrPc के तहत गैर-जमानती वारंट जारी नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जांच के लिए पुलिस के समक्ष आरोपी को पेश करने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 73 CrPc के तहत गैर-जमानती वारंट जारी करना अवैध है, क्योंकि ऐसा वारंट केवल अदालत के समक्ष आरोपी को पेश करने के लिए ही जारी किया जा सकता है।

इसके अलावा न्यायालय ने माना कि धारा 82 CrPc के तहत मजिस्ट्रेट को किसी भी उद्घोषणा को जारी करने से पहले यह मानने के कारण दर्ज करने चाहिए कि कोई व्यक्ति फरार हो गया है।

केस टाइटल- लक्ष्य जायसवाल बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) और अन्य

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वार्षिक वेतन वृद्धि प्राप्त करने वाला गैर-सरकारी कर्मचारी मोटर दुर्घटना दावे में भविष्य की संभावनाओं के अनुदान के लिए स्थायी नौकरी में है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने संबोधित किया कि क्या केवल सरकारी कर्मचारी ही मोटर दुर्घटना मुआवजा दावों में भविष्य की संभावनाओं के अनुदान के उद्देश्य से स्थायी नौकरी में होने के योग्य हैं। जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की पीठ ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति ऐसी नौकरी में है, जिसमें उसका वेतन समय-समय पर बढ़ता है या उसे वार्षिक वेतन वृद्धि आदि मिलती है तो ऐसे व्यक्ति को स्थायी नौकरी में माना जाएगा।

केस टाइटल- अंजुम अंसारी और अन्य बनाम आर. राजेश राव और अन्य।

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यौन उत्पीड़न के 'Gender-Specific' कानून के तहत केवल पुरुषों पर ही मुकदमा चलाया जा सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354ए के तहत यौन उत्पीड़न के आरोप महिलाओं के खिलाफ लागू नहीं किए जा सकते, क्योंकि प्रावधान विशेष रूप से "पुरुष" शब्द से शुरू होता है।

जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने प्रावधान का अवलोकन किया, जो इस प्रकार शुरू होता है, "[354ए. यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़न के लिए दंड--(1) कोई पुरुष निम्नलिखित में से कोई भी कृत्य करता है--"

केस टाइटल: सुस्मिता पंडित बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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O.41 R.27 CPC| अपीलीय न्यायालय अंतिम सुनवाई से पहले अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने के आवेदन का निपटारा नहीं कर सकता: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार (25 जुलाई) को कहा कि प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा सीपीसी के आदेश 41 नियम 27 के तहत अपीलीय चरण में अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने के आवेदन का निपटारा सुनवाई से पहले के चरण में करना अनुचित है। न्यायालय ने कहा कि अपीलीय चरण में अतिरिक्त साक्ष्य प्रस्तुत करने की याचिका का निपटारा अंतिम सुनवाई के चरण में किया जाना चाहिए न कि सुनवाई से पहले के चरण में।

केस टाइटल - मोसामत चिंतामणि देवी एवं अन्य बनाम ललन चौबे एवं अन्य, सिविल विविध क्षेत्राधिकार संख्या 35/2022

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पासपोर्ट प्राधिकरण आपराधिक मामलों के लंबित रहने पर पासपोर्ट जब्त करने के लिए बाध्य नहीं है, धारा 10(3)(ई) में 'कर सकता है' का प्रयोग किया गया है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10(3)(ई) के तहत पासपोर्ट प्राधिकरण के लिए किसी ऐसे व्यक्ति का पासपोर्ट जब्त करना अनिवार्य नहीं है जिसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित है। यह माना गया है कि धारा 10(3) में “कर सकता है” शब्द पासपोर्ट प्राधिकरण को मामले पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार करने और यदि पासपोर्ट जब्त करने की आवश्यकता है तो लिखित रूप में अपनी संतुष्टि दर्ज करने का विवेक देता है।

पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10 उन स्थितियों के लिए प्रावधान करती है जिनमें पासपोर्ट प्राधिकरण पासपोर्ट और जारी किए गए अन्य यात्रा दस्तावेजों में बदलाव कर सकता है, उन्हें जब्त कर सकता है या रद्द कर सकता है। धारा 10 की उप-धारा (3)(ई) में प्रावधान है कि पासपोर्ट प्राधिकरण पासपोर्ट को “जब्ती” कर सकता है या रद्द करने/जब्ती करने का कारण बन सकता है यदि पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज के धारक द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध के संबंध में कार्यवाही भारत में आपराधिक न्यायालय के समक्ष लंबित है।

केस टाइटलः मोहम्मद उमर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 2 अन्य [WRIT - C नंबर - 20480 of 2024]

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केरल हाईकोर्ट ने स्कूल प्रमाणपत्रों में धर्म परिवर्तन की अनुमति दी: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने दो युवाओं की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है जिसमें उन्होंने अपने स्कूल प्रमाणपत्रों में धर्म बदलने की मांग की थी क्योंकि उन्होंने एक नया धर्म अपना लिया है। इसमें कहा गया है कि भले ही स्कूल प्रमाणपत्रों में धर्म परिवर्तन को सक्षम करने वाले एक विशिष्ट प्रावधान की कमी हो, याचिकाकर्ता एक नया धर्म अपनाने पर अपने रिकॉर्ड में अपने धर्म को सही करने के हकदार हैं।

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सेवा मामलों में जनहित याचिकाएं विचारणीय नहीं, सुप्रीम कोर्ट का पिछला फैसला अब भी प्रभावी: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उदाहरण पर भरोसा करते हुए कहा है कि सेवा मामलों पर जनहित याचिका (पीआईएल) सुनवाई योग्य नहीं है।

चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस विकास सूरी ने प्रताप सिंह बिष्ट बनाम शिक्षा निदेशालय, सरकार के निदेशक, एनसीटी दिल्ली एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा, "इससे पता चलता है कि सेवा मामले को जनहित याचिका के माध्यम से सुनवाई योग्य माना जा सकता है या नहीं, इस मुद्दे को बहस योग्य मुद्दे के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन उचित मामले में निर्णय के लिए खुला छोड़ दिया गया था। इसलिए, उक्त मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं हुआ और इस प्रकार, इस न्यायालय को इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि इस मुद्दे पर प्रचलित कानून, जो पहले के निर्णयों से स्पष्ट है...क्षेत्र को बनाए रखता है।"

केस टाइटलः सौरभ बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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वह संपत्ति जहां आरोपी रहता है लेकिन उसका मालिक नहीं है, जिसमें किराए का परिसर भी शामिल है, उसे सीआरपीसी की धारा 83 के तहत कुर्क नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 83 के तहत केवल अभियुक्त की सीधे तौर पर स्वामित्व वाली या उसके स्वामित्व वाली संपत्ति ही कुर्क की जा सकती है।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी संपत्तियां, जहां अभियुक्त रहता है, लेकिन उसका स्वामित्व नहीं है, जैसे कि किराए के आवास, ऐसी कुर्कियों से बाहर हैं। इस अवलोकन के साथ ज‌स्टिस अब्दुल मोइन की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 83 के तहत न्यायालय द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पोक्सो अधिनियम के तहत आरोपी के पिता की संपत्ति कुर्क की गई थी।

केस टाइटलः फैयाज अब्बास बनाम प्रधान सचिव, गृह लखनऊ के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2024 लाइवलॉ (एबी) 449 [आपराधिक अपील संख्या - 194 2024]

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मां पर क्रूरता के आरोपों को पुष्ट करने वाले नाबालिग बेटी के अप्रतिबंधित साक्ष्य तलाक देने के लिए पर्याप्त: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि मां की ओर से लगाए गए क्रूरता के आरोपों को पुष्ट करने वाले नाबालिग बेटी के अप्रतिबंधित साक्ष्य हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए पर्याप्त आधार हैं।

मामले में दोनों पक्षों ने 1999 में विवाह किया और 2000 और 2003 में क्रमशः दो बच्चे हुए। पारिवारिक न्यायालय के समक्ष, यह स्थापित किया गया था कि दोनों पक्ष 2011 तक साथ-साथ रहते थे। दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान, प्रतिवादी ने अपीलकर्ता पर हमला किया। अपीलकर्ता ने व्यभिचार का भी आरोप लगाया।

केस टाइटल: मंजूषा सर्वेश जोशी बनाम सर्वेश कुमार जोशी 2024 लाइव लॉ (एबी) 448 [पहली अपील संख्या - 472 वर्ष 2018]

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घरेलू हिंसा के मामलों में आवेदन की तिथि से ही भरण-पोषण का भुगतान किया जाना चाहिए: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया

हाल ही में एक फैसले में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के एक मामले में अंतरिम भरण-पोषण के मुद्दे को संबोधित किया, जिसमें आवेदन की तिथि से भरण-पोषण देने के महत्व पर जोर दिया गया।

यह मामला 24 अप्रैल 2019 को शुरू हुआ, जब एक विवाहित महिला और उसके नाबालिग बच्चे ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का दावा करते हुए आवेदन दायर किया। 20 अगस्त 2019 को ट्रायल कोर्ट ने पति को याचिका दायर करने की तिथि से प्रभावी रूप से अपनी पत्नी को 20,000 रुपये और बच्चे को 10,000 रुपये का मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया।

केस टाइटल- पालपर्थी शेभा एवं अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य एवं अन्य

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महाराष्ट्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम | आपराधिक अपील के निष्कर्ष तक कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकी जा सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर किसी राज्य सरकार के कर्मचारी के खिलाफ कोई आपराधिक अपील लंबित है तो महाराष्ट्र सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1982 के नियम 130 के तहत उसके ग्रेच्युटी लाभ को रोका जा सकता है। ग्रेच्युटी केवल 'न्यायिक कार्यवाही' पूरी होने पर ही देय है, यानी जब तक आपराधिक अपील में अंतिम आदेश पारित नहीं हो जाते।

जस्टिस एएस चांदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ महाराष्ट्र राज्य सरकार की याचिका पर विचार कर रही थी।

केस टाइटल: महाराष्ट्र राज्य और अन्य बनाम श्री बबन यशवंत घुगे (WP नंबर. 14289/2017)

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IPC के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की याचिका यदि 1 जुलाई के बाद दायर की जाती है तो BNSS द्वारा शासित होनी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS) के तहत आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उसकी याचिका पर विचार करते हुए 2018 में एक पति के खिलाफ उसकी पत्नी द्वारा दायर एक वैवाहिक मामले को रद्द कर दिया है।

जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने BNSS की धारा 531 (2) (A) का विश्लेषण किया और कहा कि सीआरपीसी के अनुसार कार्यवाही का निपटारा, जारी रखना, आयोजित करना या करना केवल उन मामलों में किया जाना चाहिए जहां ऐसी कार्यवाही 01 जुलाई से ठीक पहले लंबित थी।

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NI Act| जब तक आरोपी का दोष सिद्ध नहीं होता, धारा 143-ए के तहत अंतरिम मुआवजा नहीं दिया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने श्रीनगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित तीन आदेशों को रद्द कर दिया, जिसमें शिकायतकर्ता को परक्राम्य लिखत अधिनियम (एनआई अधिनियम) की धारा 143-ए के तहत अंतरिम मुआवजा दिया गया था। अदालत ने कहा कि अंतरिम मुआवजा तभी दिया जा सकता है जब आरोपी आरोप के लिए दोषी नहीं है और मजिस्ट्रेट प्रासंगिक कारकों पर अपना दिमाग लगाता है।

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S.24 CPC | जिला न्यायालय के समक्ष सफल ट्रांसफर याचिका को हाईकोर्ट में दूसरी ट्रांसफर याचिका दायर करके चुनौती नहीं दी जा सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि धारा 24, सीपीसी के तहत जिला न्यायालय के समक्ष सफल ट्रांसफर याचिका को धारा 24, सीपीसी के तहत दूसरी ट्रांसफर याचिका दायर करके हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती।

न्यायालय ने कहा कि धारा 24 जिला न्यायालय और हाईकोर्ट के समवर्ती क्षेत्राधिकार का प्रावधान करती है। इसलिए जिला न्यायालय के समक्ष असफल पक्ष समान क्षेत्राधिकार का हवाला देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है लेकिन विरोध करने वाले पक्ष को ऐसा करने की अनुमति नहीं होगी।

केस टाइटल- जैन श्वेतांबर संघ धमोतर एवं अन्य बनाम गजेंद्र सिंह

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सूचना मांगने वाले को RTI Act की धारा 20 के तहत लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही में कोई अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की कि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की धारा 20 के तहत लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ शुरू की गई दंडात्मक कार्यवाही में सूचना चाहने वाले को कोई अधिकार नहीं है।

धारा 20 में कहा गया कि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) या राज्य सूचना आयोग (SIC) को शिकायत या दूसरी अपील पर निर्णय लेते समय लोक सूचना अधिकारी (PIO) पर जुर्माना लगाने की शक्ति है। प्रावधान के अनुसार, जुर्माना लगाया जा सकता है, यदि PIO आवेदन प्राप्त करने से इनकार करता है और आवेदन प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर मांगी गई जानकारी प्रदान नहीं करता है।

केस टाइटल: सनी सचदेवा बनाम एसीपी उत्तर आरटीआई सेल और अन्य

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तलाकशुदा पत्नी को केवल व्यभिचार के आधार पर भरण-पोषण पाने से वंचित नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा पत्नी केवल व्यभिचार के आधार पर भरण-पोषण पाने से स्वतः ही अयोग्य नहीं हो जाती। जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने शिमला में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले व्यक्ति की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण देने में विफल रहने के बाद अचल संपत्ति की कुर्की के लिए वारंट जारी करने का आदेश दिया गया था।

केस टाइटल- कृष्ण लाल बनाम चंपा देवी

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CRPF Rules | बल से बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले अपराधी कर्मियों को नोटिस की वास्तविक सेवा स्थापित करना आवश्यक: जम्मू-कश्मीर उहाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बल से बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले अपराधी कर्मियों को नोटिस की वास्तविक सेवा का सबूत स्थापित करना आवश्यक है।

जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जा सकता। यह आवश्यक है कि अनुशासनात्मक कार्रवाइयों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियात्मक नियमों का सख्ती से पालन किया जाए। नोटिस की उचित सेवा के बिना अपराधी कर्मी अपना बचाव नहीं कर सकते, जिससे न्याय में चूक हो सकती है।"

केस टाइटल- जावेद अहमद कुमार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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लंबे समय तक रहा प्रेम संबंध लड़की को बलात्कार का मामला दर्ज करने का अधिकार नहीं देता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि लंबे समय तक चलने वाले रिश्ते के दौरान यौन क्रियाकलापों को विवाह के झूठे बहाने से होने वाले शारीरिक संबंधों के बराबर नहीं माना जा सकता, केवल इसलिए कि प्रेमी बाद में अलग हो गए।

जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने स्पष्ट किया कि युवा लड़के और लड़कियों के बीच शारीरिक संबंध के साथ-साथ ऐसे संबंध भी होते हैं, जो वर्षों बाद विवाह में परिणत नहीं हो पाते; यह अपने आप में यह कहने का आधार नहीं हो सकता कि अभियुक्त ने अभियोक्ता से विवाह करने का अपना वादा पूरा नहीं किया। ऐसे मामलों में अभियोक्ता द्वारा शारीरिक संबंधों के लिए दी गई सहमति को तथ्य की गलत धारणा से प्राप्त नहीं कहा जा सकता।

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Delhi Riots: हाईकोर्ट ने राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किए गए व्यक्ति की मौत की CBI जांच के आदेश दिए

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को 23 वर्षीय फैजान की मौत की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दी। फैजान को 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान कथित तौर पर राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया गया था।

जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने फैजान की मां किस्मतुन की याचिका स्वीकार की, जिसमें उनके बेटे की मौत की SIT जांच की मांग की गई थी। याचिका 2020 में दायर की गई। अदालत ने कहा, "मैं याचिका को स्वीकार कर रहा हूं। मैंने जांच CBI को सौंप दी है।"

केस टाइटल: किस्मतुन बनाम राज्य

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जिस बार में महिलाएं नाच रही हों, वहां ग्राहक होना अश्लीलता का अपराध नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जिस बार में महिलाएं अश्लील तरीके से नाच रही हों, वहां ग्राहक के रूप में मौजूद होना अश्लीलता या किसी अपराध/अश्लील कृत्य को बढ़ावा देने का अपराध नहीं है।

जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस श्याम चांडक की खंडपीठ ने अहमदाबाद के चार लोगों के खिलाफ़ दर्ज एफआईआर रद्द करते हुए यह फ़ैसला सुनाया। इन लोगों पर दक्षिण मुंबई के एक बार में कथित तौर पर एक वेटर को पैसे देकर वहां अश्लील तरीके से नाच रही महिलाओं पर नोट उड़ाने का आरोप लगाया गया था।

केस टाइटल: नीरव रावल बनाम महाराष्ट्र राज्य (आपराधिक WP 1708/2024)

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लंबित आपराधिक मामले वाले नागरिक को पासपोर्ट जारी करने के लिए न्यायालय की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि पासपोर्ट अधिनियम 1967 (PassPort Act) के तहत लंबित आपराधिक मामलों वाले नागरिक को पासपोर्ट जारी करने के लिए न्यायालय की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

जस्टिस आलोक माथुर और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने कहा, “जहां आपराधिक मामले लंबित हैं, वहां भारतीय पासपोर्ट एक्ट के तहत पासपोर्ट जारी करने के लिए सक्षम न्यायालय से पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है। उक्त एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।”

केस टाइटल- उमापति बनाम भारत संघ के माध्यम से सचिव विदेश मंत्रालय नई दिल्ली और 3 अन्य [रिट - सी संख्या - 5587/2024]

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