हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-04-06 04:30 GMT
हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (31 मार्च, 2025 से 04 अप्रैल, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

कर्मचारी को गलत तरीके से दिए गए SRO लाभ की वसूली वेतन से राशि निकालकर नहीं की जा सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि यदि विभाग द्वारा स्व-नियामक संगठन (SRO) योजना के तहत कर्मचारी को बिना किसी धोखाधड़ी या गलत बयानी के गलत तरीके से लाभ दिया जाता है तो विभाग को किसी भी समय कर्मचारी या पेंशनभोगी के वेतन से इसे वसूलने की स्वतंत्रता नहीं है।

प्रतिवादी की रिटायरमेंट के बाद सेवा पुस्तिका देखने पर अपीलकर्ता विभाग को पता चला कि उसे SRO 149/1973 के तहत गलत तरीके से लाभ दिया गया, जिसे निरस्त कर दिया गया और विभाग ने उसके वेतन से इसे वसूलना शुरू कर दिया।

केस-टाइटल: जम्मू और कश्मीर संघ शासित प्रदेश अपने आयुक्त बनाम कश्मीरी लाल के माध्यम से

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अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे हिंदू पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि दूसरे/ अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे न केवल स्व-अर्जित बल्कि अपने पिता की पैतृक संपत्ति के भी उत्तराधिकारी हैं, क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 16 अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) वैध बच्चों को वर्ग-I वारिस के रूप में माता-पिता की स्व अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी होने का अधिकार देता है।

अवैध/अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के उत्तराधिकार के अधिकार के बारे में कानून की स्थिति को स्पष्ट करते हुए जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने कहा - “HMA की धारा 16 अमान्य और अमान्यकरणीय विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है, यह सुनिश्चित करती है कि वे अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं। HSA के तहत HMA की धारा 16 के तहत वैध बच्चों सहित वैध बच्चे, वर्ग-I उत्तराधिकारियों की श्रेणी में आते हैं, जिससे उन्हें अपने माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी होने का निर्विवाद अधिकार मिलता है।”

केस टाइटल: संध्या रानी साहू @ मोहंती बनाम श्रीमती अनुसया मोहंती

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UGC द्वारा स्वीकृत एक वर्षीय LLM प्रोग्राम सार्वजनिक विभागों या यूनिवर्सिटी में नियुक्ति पाने के लिए वैध: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में पाया कि एक वर्षीय LLM प्रोग्राम UGC द्वारा स्वीकृत है। इसे सार्वजनिक विभागों या यूनिवर्सिटी में नियुक्ति पाने के लिए अमान्य नहीं माना जा सकता। इस प्रकार न्यायालय ने शिक्षक भर्ती बोर्ड से एक महिला का नाम शामिल करने को कहा जिसका नाम केवल इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि उसने एक वर्षीय LLM कोर्स किया है।

जस्टिस आरएन मंजुला ने पाया कि नियुक्ति के लिए अधिसूचना में यह निर्धारित नहीं किया गया कि नियुक्ति के लिए आवश्यकताओं में से एक केवल दो वर्षीय LLM डिग्री है। न्यायालय ने पाया कि नियोक्ता किसी पद के लिए शैक्षिक आवश्यकता की मांग कर सकता है, लेकिन अपेक्षित योग्यता मनमानी नहीं हो सकती और समान कोर्स के बीच भेदभाव नहीं ला सकती।

केस टाइटल: डॉ. संगीता श्रीराम बनाम शिक्षक भर्ती बोर्ड और अन्य

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राज्यसभा में भी पास हुआ Waqf (Amendment) Bill 2025

राज्यसभा ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 (Waqf (Amendment) Bill) को 4 अप्रैल को आधी रात के बाद लगभग 2.22 बजे 14 घंटे से अधिक समय तक चली बहस के बाद पारित कर दिया। विधेयक के पक्ष में 128 वोट पड़े और इसके विरोध में 95 वोट पड़े। विधेयक को 3 अप्रैल को लोकसभा ने पारित कर दिया था। अब इसे कानून बनने के लिए भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति का इंतजार है।

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विकिपीडिया अपने प्लेटफ़ॉर्म पर प्रकाशित सामग्री के लिए ज़िम्मेदार, केवल इंटरमीडियरी होने का दावा नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि विकिपीडिया केवल यह कहकर कि वह इंटरमीडियरी (मध्यस्थ) है, अपने प्लेटफ़ॉर्म पर प्रकाशित सामग्री से पल्ला नहीं झाड़ सकता और उस पर प्रकाशित बयानों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, “प्रतिवादी संख्या 1 (विकिपीडिया) स्वयं को एक विश्वकोश के रूप में प्रस्तुत करता है और आम लोग इसके वेबपेजों पर दिए गए बयानों को सच्चाई मान लेते हैं। ऐसे में प्रतिवादी संख्या 1 की जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।”

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केवल इसलिए कि माता या पिता में से कोई एक जनजातीय नहीं है, बच्चे को अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट की पोर्ट ब्लेयर सर्किट बेंच ने एक NEET उम्मीदवार की मदद की, जिसे आगामी प्रवेश परीक्षा के लिए अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया, जबकि अधिकारियों द्वारा उसे ST प्रमाण पत्र के लिए पात्र माना गया।

जस्टिस अनिरुद्ध रॉय ने कहा, "इस विषय पर कानून यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति माना जा सकता है या नहीं, यह तय करने के लिए कई तथ्यों पर विचार करना आवश्यक है। केवल इस आधार पर कि माता या पिता में से कोई एक गैर-जनजातीय है, किसी को ST प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता।"

केस टाइटल- स्नाज़रीन बानो एवं अन्य बनाम अंडमान और निकोबार प्रशासन एवं अन्य

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सीनियर सिटीजन एक्ट में बेदखली का अधिकार केवल तभी दिया गया है, जब सीनियर सिटीजन के स्वामित्व वाली संपत्ति बच्चों या रिश्तेदारों को हस्तांतरित की गई हो: P&H हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत संपत्ति खाली करने के निर्देश देने वाले आदेश को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि यह आदेश तभी पारित किया जा सकता है, जब वरिष्ठ नागरिक संपत्ति का मालिक हो तथा उस पर उसके बच्चे या रिश्तेदार का कब्जा हो।

जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी ने कहा, "07.04.2016 को पारित आदेश में अधिकारियों द्वारा दिया गया निर्देश अधिकार क्षेत्र से बाहर है तथा अधिनियम 2007 के प्रावधानों की अनदेखी करता है, जो केवल वरिष्ठ नागरिक को संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में अधिकार प्रदान करता है तथा अधिनियम के तहत निर्धारित आवश्यक शर्तों को पूरा किए बिना या बिना किसी विचार के संपत्ति को बच्चों या रिश्तेदारों को हस्तांतरित कर दिया गया है।"

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UGC द्वारा स्वीकृत एक वर्षीय LLM प्रोग्राम सार्वजनिक विभागों या यूनिवर्सिटी में नियुक्ति पाने के लिए वैध: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में पाया कि एक वर्षीय LLM प्रोग्राम UGC द्वारा स्वीकृत है। इसे सार्वजनिक विभागों या यूनिवर्सिटी में नियुक्ति पाने के लिए अमान्य नहीं माना जा सकता। इस प्रकार न्यायालय ने शिक्षक भर्ती बोर्ड से एक महिला का नाम शामिल करने को कहा जिसका नाम केवल इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि उसने एक वर्षीय LLM कोर्स किया है।

जस्टिस आरएन मंजुला ने पाया कि नियुक्ति के लिए अधिसूचना में यह निर्धारित नहीं किया गया कि नियुक्ति के लिए आवश्यकताओं में से एक केवल दो वर्षीय LLM डिग्री है। न्यायालय ने पाया कि नियोक्ता किसी पद के लिए शैक्षिक आवश्यकता की मांग कर सकता है, लेकिन अपेक्षित योग्यता मनमानी नहीं हो सकती और समान कोर्स के बीच भेदभाव नहीं ला सकती।

केस टाइटल: डॉ. संगीता श्रीराम बनाम शिक्षक भर्ती बोर्ड और अन्य

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DNA रिपोर्ट केवल पितृत्व साबित करती है, बलात्कार के मामले में सहमति की अनुपस्थिति स्थापित नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि DNA रिपोर्ट केवल पितृत्व साबित करती है और बलात्कार के मामले में महिला की सहमति की अनुपस्थिति स्थापित नहीं कर सकती।

बलात्कार के मामले में व्यक्ति को बरी करते हुए जस्टिस अमित महाजन ने कहा, “DNA रिपोर्ट केवल पितृत्व साबित करती है, यह अपने आप में सहमति की अनुपस्थिति स्थापित नहीं करती और न ही कर सकती है। यह सामान्य कानून है कि आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध सहमति की अनुपस्थिति पर टिका है। यौन संबंधों का केवल सबूत भले ही गर्भावस्था का परिणाम हो, बलात्कार को साबित करने के लिए अपर्याप्त है, जब तक कि यह भी नहीं दिखाया जाता कि यह कृत्य सहमति के बिना किया गया।”

केस टाइटल: नाथु बनाम राज्य

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विकास समझौते के अंतर्गत आने वाले परिसरों पर कब्जा करने वाले किरायेदारों को आर्बिट्रेशन एक्ट की धारा 9 के तहत बेदखल नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

जस्टिस सोमशेखर सुंदरसन की बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने माना कि किराया नियंत्रण अधिनियम द्वारा शासित किरायेदारों को मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (आर्बिट्रेशन एक्ट) की धारा 9 के तहत बेदखल नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब वे डेवलपर और मकान मालिकों के बीच निष्पादित विकास समझौते के पक्षकार नहीं हैं। उन्हें पुनर्विकसित भवन में किरायेदारी समझौतों के तहत वर्तमान में उनके कब्जे वाले परिसर की तुलना में उन्नत परिसर प्रदान नहीं किया जा रहा है।

केस टाइटल: एम्बिट अर्बनस्पेस बनाम पोद्दार अपार्टमेंट को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड और अन्य

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दिल्ली हाईकोर्ट ने विकिपीडिया पेज पर ANI के कथित रूप से अपमानजनक विवरण को हटाने का आदेश दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को समाचार एजेंसी ANI मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के विकिपीडिया पृष्ठ पर कथित रूप से अपमानजनक सामग्री और विवरण हटाने का आदेश दिया।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने विकिपीडिया मंच को होस्ट करने वाले विकिमीडिया फाउंडेशन को अपने विकिपीडिया पेज एशियन न्यूज इंटरनेशनल पर ANI के खिलाफ प्रकाशित कथित रूप से अपमानजनक बयानों को हटाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने सामग्री को हटाने के साथ-साथ विकिपीडिया को अपने मंच पर समाचार एजेंसी के पृष्ठ पर इसे प्रकाशित करने से रोकने के लिए ANI की अंतरिम निषेधाज्ञा याचिका का निपटारा किया।

टाइटल: विकिमीडिया फ़ाउंडेशन बनाम एएनआई और अन्य।

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किसी विशिष्ट स्थान पर दाह संस्कार या दफनाना मौलिक अधिकार नहीं है, अधिकारी तय करेंगे कि किसी नागरिक का दाह संस्कार या दफन कहां किया जाए: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हाल ही में माना कि नागरिकों को किसी विशिष्ट स्थान पर दाह संस्कार या दफनाने का मौलिक अधिकार नहीं है।

जस्टिस अजय गडकरी और जस्टिस कमल खता की खंडपीठ ने 26 मार्च को फैसला सुनाते हुए शहर और औद्योगिक विकास निगम (CIDCO) को नवी मुंबई के उल्वे क्षेत्र के सेक्टर 9 में कुछ भूखंडों पर आवासीय सोसाइटियों, दुकानों, एक स्कूल और एक खेल के मैदान के पास बने श्मशान को हटाने का आदेश दिया।

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Section 25 HMA| आवेदन के अभाव में पति या पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 25 के तहत औपचारिक आवेदन-चाहे लिखित हो या अलग-से-दायर किए बिना पति या पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।

HMA की धारा 25 स्थायी गुजारा भत्ता और भरण-पोषण से संबंधित है। इसमें कहा गया कि HMA के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाला कोई भी न्यायालय, किसी भी डिक्री को पारित करने के समय या उसके बाद किसी भी समय पत्नी या पति द्वारा इस उद्देश्य के लिए किए गए आवेदन पर जैसा भी मामला हो आदेश दे सकता है कि प्रतिवादी आवेदक को उसके भरण-पोषण और भरण-पोषण के लिए आवेदक के जीवनकाल से अधिक अवधि के लिए सकल राशि या ऐसी मासिक या आवधिक राशि का भुगतान करेगा।

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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दुर्घटना के दौरान गर्भ में पल रहा बच्चा भी MV Act के तहत मुआवजे का हकदार: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन दुर्घटना के दौरान गर्भ में पल रहा बच्चा भी मोटर वाहन अधिनियम (MV Act) के तहत मुआवजे का हकदार है। वर्तमान मामले में न्यायालय ने मोटर दुर्घटना दावे में 9.29 लाख रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने का आदेश दिया।

जस्टिस सुवीर सहगल ने कहा, "दावेदारों को संपत्ति के नुकसान और संघ के नुकसान के कारण कोई मुआवजा नहीं दिया गया, जो दिया जाना चाहिए। भले ही दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के दिन बच्चा मां के गर्भ में था, फिर भी वह भी MV Act के तहत मुआवजे का हकदार होगा।"

केस टाइटल: कृष्णा और अन्य बनाम रामेश्वर और अन्य

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गैरकानूनी धर्म परिवर्तन गंभीर अपराध, न्यायालय पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर कार्यवाही रद्द नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि गैरकानूनी धर्म परिवर्तन गंभीर अपराध है और न्यायालय पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर कार्यवाही रद्द नहीं कर सकता।

न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि बलात्कार के अपराध के संबंध में कोई भी समझौता, जो किसी महिला के सम्मान के खिलाफ हो, जो उसके जीवन की जड़ को हिलाकर रख दे और उसके सर्वोच्च सम्मान को गंभीर आघात पहुंचाए, उसके सम्मान और गरिमा दोनों को ठेस पहुंचाए, न्यायालय को “स्वीकार्य नहीं” है।

केस टाइटल- तौफीक अहमद बनाम यू.पी. राज्य और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 110

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Sec. 125 CrPC | इद्दत अवधि के बावजूद यदि तलाकशुदा मुस्लिम महिला स्वयं का पालन-पोषण करने में असमर्थ हो, तो उसे भरण-पोषण का अधिकार: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने अपने हालिया फैसले में दोहराया है कि यदि किसी मुस्लिम महिला के पूर्व पति ने इद्दत अवधि के दौरान या उसके बाद उसके जीवनयापन के लिए उचित प्रावधान नहीं किया है, तो वह Cr.PC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी, भले ही उसे तलाक दिया जा चुका हो।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की उपस्थिति Cr.PC की धारा 125 के तहत उपलब्ध कानूनी उपचारों को समाप्त नहीं करती।

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पहली पत्नी से साबित पारंपरिक तलाक के बिना धोखे से साथ रहना बलात्कार के समान: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि यदि बिना पहली पत्नी से सिद्ध पारंपरिक तलाक के धोखे पर आधारित सहवास किया जाता है, तो यह बलात्कार के समान है।

जस्टिस मौसुमी भट्टाचार्य और जस्टिस बी.आर. मधुसूदन राव की खंडपीठ ने कहा, "1955 अधिनियम की धारा 5(i) को धारा 11 के साथ पढ़ने पर स्पष्ट होता है कि यदि पति पहले से विवाहित है, तो उसकी दूसरी शादी प्रारंभ से ही शून्य होती है और उसे कानून में कोई मान्यता प्राप्त नहीं होती। चूंकि प्रतिवादी को यह ज्ञात था कि उसकी पहली पत्नी जीवित है, फिर भी उसने अपीलकर्ता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए, और अपीलकर्ता की सहमति इस विश्वास पर आधारित थी कि प्रतिवादी उसका विधिपूर्वक विवाहित पति है, इसलिए प्रतिवादी IPC की धारा 375 और 376 के तहत अपराधी है, और वैकल्पिक रूप से, भारतीय न्यायदंड संहिता (BNS) की धारा 63 और 64 के तहत भी दंडनीय है।"

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रिमांड के दौरान आरोपी को गिरफ्तारी के आधार पर सूचना देना वैध नहीं, पुलिस डायरी में समकालीन रिकॉर्ड जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किए गए रिमांड आवेदन के हिस्से के रूप में गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार पर सूचना देना कानून की आवश्यकताओं का अनुपालन नहीं है।

जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि चूंकि गिरफ्तारी से पहले गिरफ्तारी के आधार मौजूद होने चाहिए, इसलिए पुलिस डायरी या अन्य दस्तावेज में गिरफ्तारी के आधार का समकालिक रिकॉर्ड होना चाहिए। यह देखते हुए कि जांच अधिकारी या गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में न बताने का कोई कारण या औचित्य नहीं हो सकता।

टाइटल: विकास चावला @ विक्की बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी

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गुजरात हाईकोर्ट ने आसाराम बापू की अस्थायी जमानत बढ़ाई, निर्णायक जज ने मेडिकल आधार को पर्याप्त माना

गुजरात हाईकोर्ट ने शुक्रवार (28 मार्च) को आसाराम बापू को तीन महीने की अस्थायी जमानत दी, जो 2013 के बलात्कार मामले में 2023 में सत्र न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए गए थे और उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। जस्टिस ए.एस. सुपेहिया – जो आसाराम की याचिका पर सुनवाई करने वाले तीसरे जज थे, क्योंकि इससे पहले आज एक डिवीजन बेंच ने इस पर विभाजित फैसला सुनाया था – ने अपने आदेश में कहा, "इस प्रकार, डिवीजन बेंच द्वारा पारित संबंधित आदेशों के समग्र मूल्यांकन, जिसमें याचिकाकर्ता के पक्ष में दृष्टिकोण और असहमति वाला दृष्टिकोण दोनों शामिल हैं, और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि याचिकाकर्ता अंतरिम जमानत का हकदार है, यह नहीं कहा जा सकता कि 86 वर्षीय बीमार व्यक्ति अपने इलाज को किसी विशेष चिकित्सा पद्धति या विशेष प्रणाली तक ही सीमित रख सकता है।"

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सेवा शुल्क उपभोक्ताओं द्वारा स्वैच्छिक भुगतान, इसे खाद्य बिलों पर अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सेवा शुल्क और टिप उपभोक्ताओं द्वारा स्वैच्छिक भुगतान हैं। इन्हें रेस्तरां या होटलों द्वारा खाद्य बिलों पर अनिवार्य या अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता। इस प्रकार जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) और नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) द्वारा दायर दो याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें CCPA के 2022 के दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई, जिसमें होटलों और रेस्तरां को खाद्य बिलों पर “स्वतः या डिफ़ॉल्ट रूप से” सेवा शुल्क लगाने से प्रतिबंधित किया गया। इस मामले में पिछले साल दिसंबर में फैसला सुरक्षित रखा गया।

केस टाइटल: नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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