हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-12-24 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 दिसंबर 2023 से 22 दिसंबर 2023 ) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

दोषी को माता-पिता बनने और बच्चे पैदा करने का मौलिक अधिकार, कारावास उसे दोयम दर्जे का नागरिक नहीं बनाता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दोषी को माता-पिता बनने और संतान उत्पन्न करने का अधिकार है। ऐसा व्यक्ति केवल कारावास के कारण कम नागरिक नहीं बन जाता है। कोर्ट ने कहा, “हालांकि, भारत में न्यायपालिका ने हमेशा यह मानने से इनकार कर दिया कि कैदियों के पास कोई मौलिक अधिकार नहीं है, यह न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा सौंपी गई उसी परंपरा का पालन करता है और यह न्यायालय सम्मानपूर्वक संवैधानिक अधिकारों की व्याख्या करने का इरादा रखता है।

केस टाइटल: कुन्दन सिंह बनाम राज्य सरकार एनसीटी दिल्ली के

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RTI Act के तहत इंटरसेप्शन या फोन टैपिंग पर जानकारी प्रकट करने से छूट: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी फोन को इंटरसेप्शन या टैपिंग या ट्रैकिंग के संबंध में जानकारी को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की धारा 8 के तहत प्रकटीकरण से छूट दी गई है। जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन की खंडपीठ ने कहा कि इंटरसेप्शन या फोन टैपिंग के संबंध में सरकार द्वारा पारित कोई भी आदेश तब पारित किया जाता है, जब अधिकृत अधिकारी संतुष्ट होता है कि संप्रभुता और भारत की अखंडता के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है। राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था और उसी पर जानकारी को RTI Act के तहत छूट दी जाएगी।

केस टाइटल: भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण बनाम कबीर शंकर बोस और अन्य।

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वैवाहिक विवादों में फैमिली कोर्ट को आमतौर पर उदार होना चाहिए और प्रक्रिया के नियमों को सख्ती से लागू नहीं करना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को तलाक की कार्यवाही में अपने पति से क्रॉस एक्जामिनेशन करने के अधिकार को बंद करने के खिलाफ पत्नी की याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका स्वाकीर की कि फैमिली कोर्ट को शीघ्र निपटान की आवश्यकता और एक पक्षकार को मामला पेश करने के लिए उचित अवसर देने के बीच नाजुक संतुलन बनाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा, “इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि यह वैवाहिक विवाद है, फैमिली कोर्ट को पक्षों के बीच वाणिज्यिक विवाद होने की तुलना में अधिक उदार होना चाहिए। वैवाहिक विवाद में रिश्ते शामिल होते हैं। इसलिए फैमिली कोर्ट को थोड़ी अधिक संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।''

केस टाइटल: वासवी ग्रोवर बनाम मनीष ग्रोवर, सीएम(एम) 941/2023

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नाबालिगों से बलात्कार के मामलों में एफआईआर महज़ छपे हुए कागज़ात नहीं, पीड़िता द्वारा झेले गए आघात का प्रतिबिंब है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिगों पर यौन उत्पीड़न और बलात्कार से जुड़े मामलों में एफआईआर केवल मुद्रित कागज नहीं हैं, बल्कि एक जीवित इंसान द्वारा अनुभव किया गया बड़ा आघात है, जिसे कागज के टुकड़े पर चित्रित करना मुश्किल है।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि नाबालिग पीड़ितों के यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़ित द्वारा सामना की गई अत्यधिक तनावपूर्ण स्थिति और जीवन बदल देने वाले अनुभव को अदालतों द्वारा यांत्रिक तरीके से नहीं निपटाया जाना चाहिए।

केस टाइटल: जसप्रीत कौर बनाम स्टेट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली

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अलग-अलग धार्मिक आस्था रखना और धार्मिक कर्तव्यों का पालन न करना क्रूरता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले से निपटते समय फैसला सुनाया कि अलग-अलग धार्मिक मान्यताएं रखना और कुछ धार्मिक कर्तव्यों का पालन न करना क्रूरता नहीं माना जाएगा या वैवाहिक बंधन को तोड़ने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि "करवाचौथ" पर उपवास करना या न करना व्यक्तिगत पसंद हो सकता है और अगर निष्पक्षता से विचार किया जाए तो इसे क्रूरता का कार्य नहीं माना जा सकता।

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी के भाषण को दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया 'खराब', ईसीआई को कार्रवाई करने का निर्देश दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा 22 नवंबर को राजस्थान के नदबई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिया गया भाषण और उन्हें, गृह मंत्री अमित शाह और गौतम अडानी को जेबकतरे बताने वाला भाषण गलत था। एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मिनी पुष्करणा की खंडपीठ को भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील सुरुचि सूरी ने सूचित किया कि 23 नवंबर को गांधी को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।

केस टाइटल: भारत नगर बनाम भारत संघ और अन्य।

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जल्लीकट्टू खेल में जाति और धर्म न लाएं: हाईकोर्ट ने मदुरै जिला प्रशासन और नगर निगम को संयुक्त रूप से जल्लीकट्टू महोत्सव आयोजित करने का निर्देश दिया

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में मदुरै जिला प्रशासन और नगर निगम को संयुक्त रूप से अवनियापुरम में जल्लीकेट्टू उत्सव आयोजित करने का निर्देश दिया। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जस्टिस वी लक्ष्मीनारायणन की बेंच ने टिप्पणी की कि त्योहार को धर्म और जाति को बीच में लाए बिना शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित किया जाना चाहिए। अदालत अवनियापुरम इलाके के निवासी मोहनराज द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। मोहनराज ने उत्सव आयोजित करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

केस टाइटल: पी मोहनराज बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

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जिला जजों की नियुक्ति में केंद्र सरकार से कानूनी राय लेने का राज्य सरकार का कदम हाईकोर्ट के कामकाज की स्वतंत्रता पर ' गंभीर हमला ' : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को हरियाणा को 13 न्यायिक अधिकारियों को अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने की हाईकोर्ट की सिफारिशों को स्वीकार करने और इसे "दो सप्ताह के भीतर" आवश्यक रूप से लागू करने का निर्देश दिया। यह भी माना गया कि मामले में केंद्र सरकार से कानूनी राय लेने का राज्य सरकार का कदम "हाईकोर्ट के कामकाज की स्वतंत्रता पर गंभीर हमला होगा।"

केस: शिखा और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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POCSO Act| प्रवेशन यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन आवश्यक शर्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में 8 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 6 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी। कोर्ट ने कहा कि प्रवेशन यौन उत्पीड़न को साबित करने के उद्देश्य से वीर्य का होना आवश्यक शर्त नहीं है।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "सिर्फ इसलिए कि वीर्य का पता नहीं चला, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कोई प्रवेश नहीं हुआ। यह सब एक्ट की धारा 3 के तहत परिभाषित प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराध को साबित करने के लिए आवश्यक है। POCSO Act के अनुसार, किसी बच्चे की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में लिंग या किसी वस्तु या शरीर के किसी हिस्से का प्रवेश मात्र या किसी भी हद तक, किसी भी वस्तु या शरीर के किसी हिस्से को, जो कि लिंग नहीं है, प्रवेश कराना है। यहां तक कि अगर आरोपी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में हेरफेर करता है, जिससे बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भी हिस्से में प्रवेश कर सके। उक्त प्रवेशन यौन उत्पीड़न का अपराध बनता है।"

केस टाइटल: एक्स बनाम हरियाणा राज्य

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रखरखाव के लिए जनशक्ति प्रदान करने का समझौता MVAT Act के तहत सेवा का अनुबंध, बिक्री का नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि रखरखाव करने के लिए जनशक्ति देने का समझौता MVAT Act के तहत सेवा का अनुबंध है, न कि बिक्री अनुबंध। जस्टिस के.आर.श्रीराम और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि अनुबंध का सार या लेनदेन की वास्तविक प्रकृति दर्शाती है कि अनुबंध केवल सेवा के लिए अनुबंध है और यह कार्य अनुबंध या सेवा के लिए और बिक्री के लिए दो अनुबंधों से युक्त समग्र अनुबंध नहीं है। लेकिन यह केवल सेवा के लिए अविभाज्य अनुबंध है। समग्र रूप से अनुबंध की जांच करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुबंध मूलतः सेवा प्रदान करने का समझौता है। कार्य अनुबंध का सिद्धांत या पहलू सिद्धांत की अवधारणा आकर्षक नहीं है।

केस टाइटल: एटोस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य

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धारा 91 सीआरपीसी | आरोप तय करने के चरण में आरोपी, आईओ से जमा किए दस्तावेज पेश करने की मांग कर सकता है, भले ही उसके पास दस्तावेज हों : बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि सीआरपीसी की धारा 91 के तहत, आरोप तय करने के चरण में एक आरोपी, जांच अधिकारी (आईओ) को स्वेच्छा से प्रस्तुत किए गए संभावित दोषमुक्ति दस्तावेजों को पेश की मांग कर सकता है, भले ही उसके पास दस्तावेज हों और उसकी प्रतियां आईओ को जमा की गई हों।

जस्टिस भारती डांगरे ने सत्र अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आईओ को आरोपी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों को इस आधार पर पेश करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था कि आरोपी के पास पहले से ही दस्तावेज थे और वह उन्हें ट्रायल के दौरान पेश कर सकता था

केस - डॉ सुबलेंदु प्रकाश दिवाकर बनाम महाराष्ट्र राज्य

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"यह अनुमान लगाने के लिए कोई सामग्री नहीं कि गौतम नवलखा ने आतंकवादी कृत्य किया": भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में जमानत देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद दंगा मामले में उन्हें जमानत देते हुए अपने विस्तृत आदेश में कहा कि यह अनुमान लगाने के लिए कोई सामग्री नहीं कि सीनियर जर्नालिस्ट और आरोपी गौतम नवलखा ने UAPA Act की धारा 15 के तहत आतंकवादी कृत्य किया। अदालत ने कहा, "किसी भी आतंकवादी कृत्य में अपीलकर्ता की वास्तविक संलिप्तता का अनुमान किसी भी संचार और/या गवाहों के बयानों से नहीं लगाया जा सकता।"

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सीआरपीसी की धारा 311 का उद्देश्य केवल पर्याप्त न्याय करना नहीं, व्यवस्थित समाज की स्थापना करना भी है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दी गई शक्ति पर्याप्त न्याय सुनिश्चित करने और व्यवस्थित समाज को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, कहा कि इस विवेकाधीन शक्ति का उपयोग किसी जांच या परीक्षण के किसी भी चरण में न्यायालय द्वारा आवश्यक समझे जाने पर किया जा सकता है।

जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने कहा, “प्रावधान का उद्देश्य समग्र रूप से न केवल पार्टी के दृष्टिकोण से पर्याप्त न्याय करना है, बल्कि व्यवस्थित समाज की स्थापना भी करना है। जहां न्यायालय को मामले में उचित निर्णय देने के लिए जांच/मुकदमे या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी गवाह की जांच करना, दोबारा जांच करना, वापस बुलाना या बुलाना आवश्यक लगता है, वहां इस शक्ति का प्रयोग किसी भी चरण में किया जा सकता है।

केस टाइटल: गगनेश ठाकुर बनाम विशाल अवस्थी

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आईपीसी की धारा 300 | यहां तक कि एक चोट से ही पीड़ित की मौत होना "हत्या" के बराबर : गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक भी चोट जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हुई है उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 300 के खंड 3 के तहत 'हत्या' के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसके साथ ही, अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए इस बात पर जोर दिया कि उसने पीड़ित की कमजोरी का फायदा उठाया और घातक झटका देकर सोची-समझी क्रूरता प्रदर्शित की।

अदालत का यह फैसला आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती देने वाली राज्य की अपील के जवाब में आया। राज्य ने तर्क दिया था कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के महत्वपूर्ण टुकड़ों को नजरअंदाज कर दिया था, जैसे कि मरने से पहले दिए गए बयान, हथियार के साथ आरोपी का आत्मसमर्पण, और चाकू पर मृतक के खून की मौजूदगी की पुष्टि करने वाली फोरेंसिक रिपोर्ट।

केस : गुजरात राज्य बनाम प्रकाश @ पिद्दू मिठूभाई मुलानी और 1 अन्य

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असाधारण परिस्थितियां सामने आने पर फैमिली कोर्ट लिखित बयान दाखिल करने का समय बढ़ा सकती हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि लिखित बयान दाखिल करने की समयावधि प्रक्रियात्मक कानून के दायरे में होने के कारण फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 के तहत बढ़ाई जा सकती है, यदि आवेदक असाधारण परिस्थितियों या दिव्यांगता के बारे में बताता है, जो दाखिल करने में उसके सामने आई है।

जस्टिस वी कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की खंडपीठ ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि पारिवारिक विवादों को शीघ्रता से निपटाने के लिए आमतौर पर लिखित बयान दाखिल करने की समय-सीमा का पालन किया जाना चाहिए।

केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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एडवोकेट के ऑफिस पर इनकम टैक्स का छापा | प्रत्येक व्यक्ति की निजता की रक्षा किसी भी कीमत पर की जानी चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा जांच के दौरान व्यक्तियों की निजता की सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया। उपरोक्त टिप्पणी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले 45 वर्षीय वकील मौलिक शेठ द्वारा दायर याचिका में आई है, जिसमें उन्होंने एक वकील पर इनकम टैक्स छापे को चुनौती दी। जस्टिस भार्गव कारिया और जस्टिस निराल मेहता की खंडपीठ द्वारा उक्त चुनौती पर सुनवाई की जा रही है।

केस टाइटल: मौलिककुमार सतीशभाई शेठ बनाम आयकर अधिकारी, मूल्यांकन इकाई, अहमदाबाद

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ट्रिब्यूनल के समक्ष वक्फ बोर्ड के सीईओ का वक्फ एक्ट की धारा 54 के तहत आवेदन मुकदमा नहीं, इस पर कोर्ट फीस लागू नहीं होगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष एक्ट की धारा 54 के तहत दायर आवेदन पर कोर्ट फीस का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। न्यायालय ने माना कि आवेदन दायर करते समय सीईओ एक्ट के तहत पीड़ित व्यक्ति नहीं है।

न्यायालय ने माना कि यदि विधायिका ने आवेदन पर कोर्ट फीस का भुगतान करने का इरादा किया होता, तो यह कार्यवाही को वक्फ एक्ट, 1996 की धारा 6 और धारा 7 के तहत दायर मुकदमों के बराबर ला देती।

केस टाइटल: सी.ई.ओ. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ बनाम मोहम्मद निहाल और अन्य। [नागरिक संशोधन नंबर - 35/2022]

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'ज्ञानवापी परिसर को तब तक मंदिर या मस्जिद नहीं कहा जा सकता जब तक कि वाराणसी कोर्ट इसका धार्मिक चरित्र निर्धारित नहीं कर देता': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2021 ASI सर्वेक्षण आदेश बरकरार रखा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी कॉम्प्लेक्स का धार्मिक चरित्र (जैसा कि यह 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था) का निर्धारण वाराणसी सिविल कोर्ट द्वारा दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य दोनों के आलोक में किया जाना है। इसलिए जब तक अदालत इस मुद्दे पर फैसला नहीं सुनाती, इसे मंदिर या मस्जिद नहीं कहा जा सकता है।

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने यह कहते हुए कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने का अधिकार और मंदिर की बहाली की मांग करने वाले हिंदू उपासकों और देवताओं द्वारा वाराणसी सिविल कोर्ट के समक्ष लंबित सिविल मुकदमों का बैच (मुख्य रूप से वर्ष 1991 का मुकदमा) लंबित है। विवादित स्थान (ज्ञानवापी परिसर) पूजा स्थल अधिनियम 1991 द्वारा वर्जित नहीं है।

केस टाइटल- यू.पी. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड बनाम स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति और 5 अन्य संबंधित मामलों के साथ

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UAPA Act की धारा 43डी | असाधारण परिस्थितियों में हाईकोर्ट को गैर-भारतीय नागरिको को भी जमानत देने का अधिकार: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि असाधारण परिस्थितियों में हाईकोर्ट के पास ऐसे व्यक्ति को भी जमानत देने का विवेक है, जो भारतीय नागरिक नहीं है। “UAPA Act, 1967 की धारा 43-डी (7) में कहा गया कि ऐसे व्यक्ति को जमानत नहीं दी जा सकती, जो भारतीय नागरिक नहीं है और अनाधिकृत या अवैध रूप से देश में प्रवेश किया है… ऐसा नहीं है कि ऐसा विवेकाधिकार न्यायालय को नहीं दिया गया है। अदालत ऐसे व्यक्ति को भी जमानत दे सकती है, जो असाधारण परिस्थितियों में देश का नागरिक नहीं है।”

केस टाइटल: मोहम्मद रिफ़ास @ मोहम्मद रिग्बास बनाम भारत संघ

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यदि पक्षकारों को बिना किसी कारण अपने वचन से मुकरने की अनुमति दी जाती है तो न्यायिक प्रणाली काम नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पक्षकारों को बिना किसी कारण के उनके द्वारा दिए गए वचन से मुकरने की अनुमति दी जाती है तो न्यायिक प्रणाली काम नहीं कर सकती। जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि अदालती कार्यवाही में गंभीरता और संजीदगी जुड़ी होती है और पक्ष उनका सम्मान करने के इरादे के बिना वचन नहीं दे सकते हैं, या कम से कम, उन्हें इसके अनुपालन के लिए ईमानदार और सचेत प्रयास करने चाहिए।

केस टाइटल: द स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम शीला अभय लोढ़ा और अन्य

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Gyanvapi-Kashi Title Dispute: 'सिविल सूट पूजा स्थल अधिनियम द्वारा वर्जित नहीं', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद समिति की चुनौती खारिज की

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी भूमि स्वामित्व विवाद मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा करने के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू उपासकों द्वारा दायर पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा वर्जित नहीं है। उक्त याचिकाओं में सिविल सूट को चुनौती देने वाली याचिका और वाराणसी न्यायालय के खिलाफ याचिका सहित कई याचिकाएं शामिल हैं।

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने ज्ञानवापी स्वामित्व विवाद से संबंधित कुल 5 मुकदमों को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि मस्जिद परिसर में या तो मुस्लिम चरित्र या हिंदू चरित्र हो सकता है और मुद्दे तय करने के चरण में इसका निर्णय नहीं किया जा सकता।

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हिरासत आदेश को निष्पादित करने में अस्पष्ट देरी प्राधिकारी द्वारा दर्ज की गई व्यक्तिपरक संतुष्टि की वास्तविकता पर संदेह पैदा करेगी : जे एंड के हाईकोर्ट

मनमानी हिरासत के खिलाफ बुनियादी अधिकारों और सुरक्षा उपायों को कायम रखते हुए, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक बंदी के हिरासत आदेश को रद्द कर दिया है। इस फैसले में आदेश के निष्पादन में अस्पष्टीकृत देरी का हवाला देते हुए हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की वास्तविक चिंताओं पर संदेह पैदा किया गया है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अनुमति देते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा, "जब हिरासत के आदेश को निष्पादित करने में असंतोषजनक और अस्पष्ट देरी होती है, तो ऐसी देरी हिरासत प्राधिकारी द्वारा दर्ज की गई व्यक्तिपरक संतुष्टि की वास्तविकता पर काफी संदेह पैदा करेगी। इससे यह वैध निष्कर्ष निकलेगा कि हिरासत में लेने वाला प्राधिकारी हिरासत में लेने की आवश्यकता के संबंध में वास्तव में और वास्तविक रूप से संतुष्ट नहीं था।

केस : ओवैस सैयद खान बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य।

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ASI ने ज्ञानवापी मस्जिद के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर अपनी सीलबंद कवर रिपोर्ट वाराणसी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर अपनी रिपोर्ट वाराणसी कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की। इस घटनाक्रम से काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को प्रभावित करने की संभावना है। ASI ने वाराणसी जिला न्यायाधीश एके विश्वेश के समक्ष रिपोर्ट सौंपी। दूसरी ओर, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा सर्वेक्षण रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगने के लिए याचिका दायर की गई।

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धारा 19 पीएमएलए | ' गैरकानूनी अवरोध ' के दिन ही ईडी को आरोपी को गिरफ्तारी के आधार बताने होंगे, भले ही औपचारिक गिरफ्तारी ना हो : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए गए एक फार्मा कंपनी के दो निदेशकों को ये कहते हुए रिहा करने का आदेश दिया है कि गिरफ्तारी के दिन आधिकारिक गिरफ्तारी मेमो के बिना आरोपी व्यक्तियों को हिरासत में लेना गैरकानूनी अवरोध के रूप में गिना जाएगा। गिरफ्तारी के बारे में और उन्हें उसी दिन गिरफ्तारी के कारण के बारे में सूचित किया जाना आवश्यक है। कोर्ट ने आगे कहा कि हिरासत के दिन गिरफ्तारी का आधार ना बताना मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 (पीएमएलए) की धारा 19 के अनिवार्य प्रावधान का उल्लंघन होगा।

केस: प्रणव गुप्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य

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