RTI Act के तहत इंटरसेप्शन या फोन टैपिंग पर जानकारी प्रकट करने से छूट: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
23 Dec 2023 2:07 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी फोन को इंटरसेप्शन या टैपिंग या ट्रैकिंग के संबंध में जानकारी को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) की धारा 8 के तहत प्रकटीकरण से छूट दी गई है।
जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन की खंडपीठ ने कहा कि इंटरसेप्शन या फोन टैपिंग के संबंध में सरकार द्वारा पारित कोई भी आदेश तब पारित किया जाता है, जब अधिकृत अधिकारी संतुष्ट होता है कि संप्रभुता और भारत की अखंडता के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है। राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था और उसी पर जानकारी को RTI Act के तहत छूट दी जाएगी।
यह देखते हुए कि इस तरह का आदेश अपने स्वभाव से ही जांच की प्रक्रिया में पारित किया गया होगा, पीठ ने कहा:
“किसी दिए गए मामले में ऐसी किसी भी जानकारी का खुलासा, जांच की प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है। यह भारत की संप्रभुता और अखंडता, सुरक्षा, राज्य की रणनीतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला माना जा सकता है। विदेशी राज्यों के साथ संबंध या किसी अपराध को उकसाने का कारण बनता है। इसलिए RTI Act की धारा 8 की शर्तों के तहत प्रकटीकरण से छूट दी जाएगी।
एक्ट की धारा 8 सूचना के प्रकटीकरण से विभिन्न छूटों को सूचीबद्ध करती है, जिसमें वह प्रकटीकरण भी शामिल है, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों, विदेशी राज्य के साथ संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा या अपराध को उकसाएगा।
खंडपीठ भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई, जिसने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा पारित आदेश बरकरार रखा था। उक्त आदेश में नियामक संस्था को RTI Act के तहत उनके फोन की निगरानी और ट्रैकिंग के बारे में एक व्यक्ति द्वारा मांगी गई जानकारी एकत्र करने का निर्देश दिया गया।
कबीर शंकर बोस नामक व्यक्ति ने आरटीआई आवेदन दायर कर यह जानकारी मांगी थी कि क्या उनका फोन किसी एजेंसी द्वारा निगरानी या ट्रैकिंग या टैपिंग के तहत रखा गया और यदि हां, तो किसके निर्देश पर। उन्होंने उन सभी तारीखों का विवरण भी मांगा, जब उनका फोन निगरानी या ट्रैकिंग या टैपिंग के तहत रखा गया।
सीआईसी ने ट्राई को संबंधित दूरसंचार सेवा प्रदाता से जानकारी एकत्र करने और उसे बोस को सौंपने का निर्देश दिया। इस पर ट्राई की चुनौती को एकल न्यायाधीश ने खारिज कर दिया।
अपील में अदालत ने एकल न्यायाधीश का आदेश रद्द कर दिया और पाया कि बोस द्वारा मांगी गई जानकारी ट्राई एक्ट की धारा 11 में उल्लिखित ट्राई के कार्यों से संबंधित नहीं थी।
अदालत ने कहा,
“इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि निगरानी या ट्रैकिंग या टैपिंग का कोई भी कार्य दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के मामलों के अंतर्गत नहीं आता है, बल्कि संबंधित सरकार के निर्देशों के तहत किया जाता है, यदि अधिकृत अधिकारी संतुष्ट है कि यह भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों या सार्वजनिक व्यवस्था के हित में या किसी अपराध के लिए उकसावे को रोकने के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है।”
इसमें कहा गया कि यह मानना कि किसी फोन को इंटरसेप्शन या ट्रैकिंग या टैपिंग के संबंध में जानकारी मांगना ट्राई एक्ट की धारा 11 और धारा 12 के तहत ट्राई की शक्ति के भीतर होगा, नियामक निकाय के कार्यों के अनुरूप नहीं होगा, जैसा कि इसमें निर्दिष्ट है।
अदालत ने आगे कहा,
“कोई भी विपरीत दृष्टिकोण प्राधिकरण को सूचना मांगने और दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के कार्यों में हस्तक्षेप करने की बेलगाम शक्ति देगा। ट्राई एक्ट द्वारा प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्यों के अनुरूप भी नहीं होगा। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया, प्राधिकरण की स्थापना दूरसंचार क्षेत्र में सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने और क्षेत्र के व्यवस्थित विकास को बढ़ावा देने और सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी।”
अपीलकर्ता के वकील: अमन लेखी, अंकुर सूद, अनिकेत और रोमिला मंडल।
प्रतिवादियों के लिए वकील: आदित्य सिंह देशवाल और अभिजीत उपाध्याय।
केस टाइटल: भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण बनाम कबीर शंकर बोस और अन्य।
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