सीआरपीसी की धारा 311 का उद्देश्य केवल पर्याप्त न्याय करना नहीं, व्यवस्थित समाज की स्थापना करना भी है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

20 Dec 2023 12:39 PM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 311 का उद्देश्य केवल पर्याप्त न्याय करना नहीं, व्यवस्थित समाज की स्थापना करना भी है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दी गई शक्ति पर्याप्त न्याय सुनिश्चित करने और व्यवस्थित समाज को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, कहा कि इस विवेकाधीन शक्ति का उपयोग किसी जांच या परीक्षण के किसी भी चरण में न्यायालय द्वारा आवश्यक समझे जाने पर किया जा सकता है।

    जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने कहा,

    “प्रावधान का उद्देश्य समग्र रूप से न केवल पार्टी के दृष्टिकोण से पर्याप्त न्याय करना है, बल्कि व्यवस्थित समाज की स्थापना भी करना है। जहां न्यायालय को मामले में उचित निर्णय देने के लिए जांच/मुकदमे या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में किसी भी गवाह की जांच करना, दोबारा जांच करना, वापस बुलाना या बुलाना आवश्यक लगता है, वहां इस शक्ति का प्रयोग किसी भी चरण में किया जा सकता है।

    वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता गगनेश ठाकुर ने प्रतिवादी विशाल अवस्थी के खिलाफ आपराधिक शिकायत शुरू की, जिसमें उस पर अगस्त से अक्टूबर, 2011 के दौरान विस्तारित ऋण के लिए जारी किए गए चेक का अनादर करने का आरोप लगाया गया। अवस्थी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 311 के तहत लंबित मुकदमे के दौरान अतिरिक्त सबूत पेश करने और शिकायतकर्ता से क्रॉस एक्जामिनेशन करने के लिए आवेदन के माध्यम से राहत मांगी।

    प्रतिवादी के आवेदन को शुरू में ट्रायल मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमति दी गई, जिसे बाद में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने बरकरार रखा।

    आदेश से असंतुष्ट याचिकाकर्ता-शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 का इस्तेमाल करते हुए याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि आवेदन देर से और केवल कार्यवाही में देरी करने के लिए दायर किया गया।

    जस्टिस ठाकुर ने सीआरपीसी की धारा 311 के प्रावधानों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया और सच्चाई को उजागर करने और उचित निर्णय देने के इसके उद्देश्य पर जोर दिया। पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दी गई शक्ति पर्याप्त न्याय सुनिश्चित करने और व्यवस्थित समाज बनाए रखने के लिए आवश्यक है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि इस विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग किसी जांच या मुकदमे के किसी भी चरण में किया जा सकता है, जब उचित निर्णय के लिए आवश्यक समझा जाए।

    राजाराम प्रसाद यादव बनाम बिहार राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक रूप से हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 311 के तहत शक्ति का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए और केवल तभी किया जाना चाहिए, जब मांगा गया सबूत उचित परिणाम के लिए वास्तव में आवश्यक हो। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि निष्पक्ष सुनवाई और आरोपी, पीड़ित और समाज के हितों की रक्षा की जानी चाहिए और शक्ति का इस्तेमाल मजबूत और वैध कारणों से किया जाना चाहिए।

    जस्टिस ठाकुर ने वर्तमान मामले में इन सिद्धांतों को लागू करते हुए प्रतिवादी को अतिरिक्त सबूत पेश करने की अनुमति देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले में योग्यता पाई, क्योंकि इसका संभावित रूप से मामले पर असर पड़ सकता है और यह उचित निर्णय पर पहुंचने के हित में होगा।

    विचार-विमर्श के आधार पर अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने अतिरिक्त साक्ष्य के लिए आवेदन की अनुमति देने में कोई अनियमितता, अवैधता या विकृति नहीं की है।

    केस टाइटल: गगनेश ठाकुर बनाम विशाल अवस्थी

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story