हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 अप्रैल, 2022 से 22 अप्रैल, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
मामूली विरोधाभास या मामूली सुधार साक्ष्य को पूरी तरह से खारिज करने का आधार नहीं बनाया जा सकता: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने हाल ही में कहा कि गवाह द्वारा मामूली विरोधाभास, असंगति या तुच्छ बिंदुओं में सुधार को साक्ष्य को पूरी तरह से खारिज करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है।
जस्टिस सुनील कुमार पंवार और जस्टिस एएम बदर की डिवीजन बेंच ने टिप्पणी की, "गवाहों के मुंह से कुछ भिन्नताएं स्वाभाविक हैं जो एक वर्ष बीत जाने के बाद बयान दे रहे थे। घटना के स्थान पर अभियोजन पक्ष के गवाहों की उपस्थिति पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है।"
केस का शीर्षक: परशुराम पांडे बनाम बिहार राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
दस्तावेज की प्रामाणिकता वादी को साबित करनी होगी जो उस पर भरोसा करता है, फिर प्रतिवादी को इसे फर्जी दस्तावेज़ के रूप में खारिज करना है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में दोहराया कि दस्तावेज़ की प्रामाणिकता को वादी द्वारा साबित करना होगा जो दस्तावेज़ पर निर्भर है। उसके बाद, प्रतिवादियों को दस्तावेज़ की विश्वसनीयता को एक नकली, दिखावटी और फर्जी दस्तावेज़ के रूप में खारिज करना है।
जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने देखा, "यह अच्छी तरह से तय कानूनी स्थिति है कि प्रारंभिक दायित्व हमेशा वादी पर तथ्य को साबित करने के लिए होता है और यदि वह उस दायित्व का निर्वहन करता है और एक मामला बनाता है जो उसे राहत का हकदार बनाता है, तो उन परिस्थितियों को साबित करने के लिए प्रतिवादी पर स्थानांतरित हो जाता है, यदि कोई भी, जो वादी को इसके लिए अयोग्य ठहराएगा। इस मामले में वादी द्वारा कुछ भी नहीं छोड़ा गया है। वादी ने रिकॉर्ड पर ठोस सबूत जोड़कर साबित नहीं किया है कि उसने सामग्री की आपूर्ति की है और उसके बाद भुगतान नहीं किया गया था।"
केस का शीर्षक: छत्तीसगढ़ राज्य कलेक्टर एवं अन्य बनाम हिंदुस्तान आपूर्ति एजेंसी
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[भरण-पोषण भत्ता का भुगतान न होना] मजिस्ट्रेट सीआरपीसी धारा 421 के तहत जुर्माना लगाए बिना गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं कर सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भरण-पोषण भत्ता देने के न्यायालय के आदेश का पालन करने में किसी भी व्यक्ति की ओर से किसी भी विफलता की स्थिति में अदालतों के लिए सही/उपयुक्त तरीका पहले राशि की वसूली के उद्देश्य से सीआरपीसी की धारा 421 के तहत प्रदान किया गया जुर्माना लगाने के लिए वारंट जारी करना है।
इसके साथ ही जस्टिस अजीत सिंह की पीठ ने कहा कि भरण-पोषण भत्ते का भुगतान न करने के ऐसे मामलों में दंडाधिकारी के पास सीआरपीसी की धारा 421 के तहत पहले से देय राशि को जुर्माने के रूप में लगाए बिना, उत्तरदायी व्यक्ति के खिलाफ सीधे गिरफ्तारी का वारंट जारी करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
केस - विपिन कुमार बनाम यू पी राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[एससी/एसटी एक्ट] जब अपराध कानून का दुरुपयोग प्रतीत होता है, तो कोर्ट को अग्रिम जमानत देने का अधिकार है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में टिप्पणी की कि जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 का अपराध कानून का दुरुपयोग प्रतीत होता है, तो कोर्ट के पास अग्रिम जमानत देने की शक्ति है।
इसके साथ ही न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत एक आरोपी को अग्रिम जमानत दी। आरोपी-अपीलकर्ता ने अग्रिम जमानत के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण अधिनियम), 1989 की धारा 14 (ए) (2) के तहत अपील दायर की थी।
केस का शीर्षक: जावेद खान बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
नाना-नानी के साथ रहने वाली बेटी को भरण-पोषण देने की जिम्मेदारी से पिता बच नहीं सकता : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पिता अपनी पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने की अपनी जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकता, भले ही उसे अपने माता-पिता की देखभाल करनी पड़ रही हो। इस प्रकार हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है,जिसमें उसे पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि बेटी अपने नाना-नानी के साथ रह रही है, यह नहीं कहा जा सकता है कि पिता अपने बच्चे के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुक्त है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मृतक सरकारी कर्मचारी का विवाहित भाई 'आश्रित' नहीं होने के कारण अनुकंपा नियुक्ति का हकदार नहीं है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने पाया कि याचिकाकर्ता मृतक सरकारी कर्मचारी का विवाहित भाई है, और इसलिए याचिकाकर्ता को आश्रित नहीं माना जा सकता है और राजस्थान मृतक सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों की अनुकंपा नियुक्ति नियम, 1996 के संदर्भ में अनुकंपा नियुक्ति (Compassionate Appointment) का हकदार नहीं है।
जस्टिस रेखा बोराना ने रिट याचिका खारिज करते हुए कहा, "जाहिर है, याचिकाकर्ता विवाहित है और इसलिए, 1996 के नियमों के अनुसार, याचिकाकर्ता को आश्रित नहीं माना जा सकता है और अनुकंपा नियुक्ति का हकदार नहीं है। कानून के विशिष्ट प्रावधानों के मद्देनजर, यह न्यायालय इच्छुक नहीं है कि दिनांक 01.01.2019 के आदेश में हस्तक्षेप करें।"
केस का शीर्षक: कालू राम जांगिड़ बनाम राजस्थान राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मर्डर ट्रायल| जहां ओकुलर गवाही विश्वास दिलाती है, वहां अभियोजन के मकसद और वसूली के रूप में पुष्टि करने की कोई आवश्यकता नहीं है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने कहा कि यह आपराधिक न्यायशास्त्र का एक अच्छी तरह से स्थापित सिद्धांत है कि हत्या के मामले में, जहां ओकुलर गवाही विश्वास दिलाती है, वहां अभियोजन पक्ष के लिए मकसद और वसूली के रूप में पुष्टि करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
वर्तमान मामले में, निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को निलंबित करने की मांग करते हुए सीआऱपीसी की धारा 389 के तहत एक आवेदन दायर किया गया था, जिसके तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराया गया है और आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।
केस का शीर्षक: रमन बनाम राजस्थान राज्य, पीपी के माध्यम से
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
लिव-इन रिलेशन अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी का बाय-प्रोडक्ट है; यह कामुक व्यवहार और यौन अपराधों को बढ़ावा देता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी के उप-उत्पाद (By-Product) के रूप में लिव-इन-रिलेशनशिप (live-in-relationship) के प्रतिबंध को करार दिया है, और देखा है कि इस तरह के संबंध 'संलिप्तता', 'कामुक व्यवहार' और यौन अपराधों को बढ़ावा देते हैं।
जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने आगे टिप्पणी की, "जो लोग इस स्वतंत्रता का फायदा उठाना चाहते थे, वे इसे अपनाने के लिए तत्पर हैं, लेकिन पूरी तरह से इस बात से अनजान हैं कि इसकी अपनी सीमाएं हैं और इस तरह के संबंधों के लिए किसी भी साथी को कोई अधिकार नहीं देता है।"
केस का शीर्षक - अभिषेक बनाम मध्य प्रदेश राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[मोटर दुर्घटना दावा] 100% कार्यात्मक विकलांगता के मामले में 45% परमानेंट विकलांगता के आधार पर मुआवजे की गणना नहीं की जा सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने सोमवार को कहा कि औरंगाबाद में मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण ने एक मोटर दुर्घटना के दावेदार की परमानेंट विकलांगता को 45% पर स्वीकार करने में त्रुटि की है, जब यह पैर के विच्छेदन के कारण कमाई क्षमता के 100% नुकसान का मामला है।
एकल जस्टिस श्रीकांत डी. कुलकर्णी ने विवाह की संभावनाओं के नुकसान के लिए एक लाख और जीवन के सुख, सुविधाओं और मनोरंजन के नुकसान के लिए एक लाख का मुआवजा भी दिया।
केस का शीर्षक: अक्षय @ विकास रमेश चव्हाण बनाम कैलास विट्ठलराव शिंदे एंड अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
न्यायालय के समक्ष जब्त वाहन पेश करने की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर उसका निपटान किया जाना चाहिए, लंबे समय तक पुलिस थानों में नहीं रखना चाहिए : गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ध्यान देते हुए पुष्टि की कि अदालत के समक्ष वाहन पेश करने की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर जब्त वाहन को उचित रूप से निपटाया जाना चाहिए और लंबे समय तक पुलिस थानों में नहीं रखा जाना चाहिए। इसके अलावा, यदि वाहन पर अभियुक्त द्वारा दावा नहीं किया जाता है तो बीमा कंपनी या तीसरा व्यक्ति न्यायालय के निर्देश के तहत इसे नीलाम कर सकता है।
केस शीर्षक: रमेशभाई धूलभाई कटारा बनाम गुजरात राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
कोर्ट द्वारा आवेदन की अस्वीकृति आपराधिक मामले को एक कोर्ट से दूसरे कोर्ट में ट्रांसफर करने का आधार नहीं हो सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि केवल इसलिए कि आवेदक का आवेदन निचली अदालत द्वारा खारिज कर दिया गया, यह उस कोर्ट से दूसरे कोर्ट में मामले को ट्रांसफर करने का आधार नहीं हो सकता।
जस्टिस राज बीर सिंह की खंडपीठ ने सीआरपीसी की धारा 407 के जनादेश को ध्यान में रखते हुए इस प्रकार देखा, जो मामलों और अपीलों को स्थानांतरित करने के लिए उच्च न्यायालय की शक्ति से संबंधित है।
केस का शीर्षक - सुरेश चंद्र त्रिपाठी बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आर्बिट्रेशन अवार्ड को किसी अन्य क्षेत्राधिकार में यह कहते हुए चुनौती नहीं दी जा सकती कि कोई आर्बिट्रेशन समझौता नहीं था: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने फैसला सुनाया है कि भले ही कोई पक्ष मध्यस्थता समझौते के अस्तित्व पर विवाद करता हो, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 34 के तहत मध्यस्थता समझौते के तहत अधिकार क्षेत्र नहीं होने पर एक मध्यस्थ अवार्ड को रद्द करने के लिए एक अदालत में एक आवेदन दायर नहीं किया जा सकता है, केवल इस आधार पर कि कार्रवाई का कारण उसके अधिकार क्षेत्र में उत्पन्न हुआ।
केस का शीर्षक: पैरेंट्रल ड्रग्स (इंडिया) लिमिटेड बनाम गति किन्टेत्सु एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मोटर दुर्घटना मुआवजे का निर्धारण निर्भरता के आधार पर किया जाता है न कि उत्तराधिकार के आधार पर: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने हाल ही में कहा कि एक मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण मृतक की पत्नी को मुआवजे से इनकार नहीं कर सकता, केवल उसके शेष उत्तराधिकारियों, यानी बेटे और बेटियों के गैर-संयुक्त के लिए।
न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी ने कहा, "मुआवजे का निर्धारण निर्भरता के आधार पर किया जाता है न कि उत्तराधिकार के आधार पर। केवल वे जो आश्रित हैं वे मुआवजे के हकदार होंगे। मृत्यु से उत्पन्न मुआवजे की गणना की पूरी अवधारणा निर्भरता पर राशि की गणना पर आधारित है।"
केस का शीर्षक: उग्नी बीबी बनाम गोबिंद राम हथमपुरिया
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
नॉन-कस्टोडियल माता-पिता को अच्छा समय बिताने और बच्चों के साथ का आनंद लेने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि नॉन-कस्टोडियल माता-पिता को बच्चों के साथ अच्छा समय बिताने और आनंद लेने के उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, बच्चों को माता-पिता के साथ-साथ दादा-दादी दोनों के प्यार और स्नेह पाने का भी अधिकार है। उक्त मामले में याचिकाकर्ता नॉन-कस्टोडियल माता-पिता है।
उसके पिता की तबीयत खराब है और वह अपने पोते-पोतियों से मिलना चाहता है। याचिकाकर्ता नॉन-कस्टोडियल माता-पिता ने कहा कि जून, 2020 के बाद से उनकी बच्चों तक कोई पहुंच नहीं है। आरोप लगाया गया कि पिछले आदेश दिनांक 10/03/2022 में न्यायालय ने बच्चों के जन्मदिन पर मिलने की अनुमति दी थी, जिसका पालन नहीं किया गया।
केस शीर्षक: गौरव सुरेश टिंगरे बनाम प्रियंका गौरव टिंगरे
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बिक्री समझौते में विशिष्ट निष्पादन की राहत मंजूर नहीं की जाएगी यदि विक्रेता के पास सूट संपत्ति पर कोई पूर्ण स्वामित्व न हो: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल के एक फैसले में कहा है कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 17 के मद्देनजर यदि विक्रेता के पास विवादित संपत्ति पर पूर्ण अधिकार और स्वत्वाधिकार नहीं है, तो बिक्री समझौते को निष्पादित करने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। प्रावधान में कहा गया है कि बिना स्वत्वाधिकार वाले व्यक्ति द्वारा संपत्ति बेचने या किराए पर देने का अनुबंध विशेष रूप से लागू करने योग्य नहीं है।
केस शीर्षक : गम्पाला नागा राजू बनाम शेख नज़ीरुन्निसा
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[एमवी एक्ट] 'केवल गवाह द्वारा दावा किया जाना कि वाहन लापरवाही से चलाया जा रहा था निर्णायक नहीं, सबूत पेश करने होंगे': झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) ने हाल ही में कहा कि एक गवाह द्वारा केवल यह दावा करना कि एक विशेष वाहन को लापरवाही से चलाया जा रहा था, अंतिम शब्द नहीं हो सकता है जिसके आधार पर न्यायालय मोटर वाहन दुर्घटना मामले में समग्र लापरवाही के अपने निष्कर्ष निकालेगा।
जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा कि अदालतों को सबूतों को एक साथ जोड़ना चाहिए और दुर्घटना के तरीके पर एक निष्कर्ष निकालना चाहिए।
केस का शीर्षक: मेसर्स ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, रांची बनाम कलवती देवी एंड अन्य और अन्य जुड़े मामले।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सीपीसी धारा 115 | जिला न्यायालय के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष अपील/ पुनरीक्षण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है : उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना है कि सिविल प्रक्रिया संहिता ('सीपीसी') की धारा 115 के तहत जिला न्यायालय के किसी फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष पुनरीक्षण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है जो अपीलीय या पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार में पारित की गई है। इसने स्पष्ट किया कि प्रावधान की प्रयोज्यता को आकर्षित करने के लिए जिला न्यायालय के 'मूल अधिकार क्षेत्र' के तहत एक आदेश दिया गया होगा।
धारा 115 के तहत आने वाले शब्द 'अन्य कार्यवाही' के सही अर्थ की व्याख्या करते हुए, जस्टिस बिस्वजीत मोहंती की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "या अन्य कार्यवाही" शब्दों को "मूल वाद" शब्दों के साथ पढ़ना होगा। दूसरे शब्दों में, वाक्यांश 'अन्य कार्यवाही' अपील या संशोधन में किए गए निर्णयों से उत्पन्न होने वाले मामलों को कवर नहीं करेगा। यदि जिला न्यायालय ने अपने मूल अधिकार क्षेत्र में निर्णय नहीं किया है, तो ऐसा आदेश हाईकोर्ट के पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी नहीं है।"
केस: कैलाश चंद्र पांडा और अन्य बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आमतौर पर कोर्ट किसी भी नीति के अभाव में संविदा कर्मचारी की अनुकंपा नियुक्ति मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने 07 अप्रैल, 2022 को याचिकाकर्ता द्वारा उसके पति की मृत्यु के कारण सेवा लाभ और अनुकंपा नियुक्ति के लिए उसके अनुरोध को अस्वीकार करने के आदेश को रद्द करने के लिए दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए कहा कि जल्द ही निर्णय लेने की आवश्यकता हैं क्योंकि याचिकाकर्ता और उसके चार नाबालिग बच्चे गरीबी में जी रहे हैं।
न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की खंडपीठ ने कहा कि आमतौर पर, इस अदालत ने किसी भी नीति के अभाव में संविदा कर्मचारी के ऐसे मामले में हस्तक्षेप नहीं किया होगा, लेकिन इस मामले की कमजोर परिस्थितियों में, राज्य से दयालु दृष्टिकोण की अपेक्षा की जाती है और सेवाओं की आवश्यकता के अधीन किसी भी वर्ग में याचिकाकर्ता को किसी भी उपयुक्त पद पर समायोजित करने का प्रयास करें।
केस का शीर्षक: सुनीता देवी बनाम हरियाणा राज्य एंड अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
किसी भी पैसे के लेन-देन के लिए दमदुपत का हिंदू नियम आंध्र प्रदेश राज्य पर लागू नहीं होता है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में देखा कि दमदुपत का हिंदू नियम जो निर्दिष्ट करता है कि ब्याज की राशि मूल राशि से अधिक नहीं हो सकती है, आंध्र प्रदेश राज्य में पैसे के लेनदेन पर लागू नहीं होती है। वादी द्वारा 2,48,402 रुपए, 70,000 रुपए मूलधन, 1,78,402 रुपए ब्याज की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया गया था।
वाद में यह तर्क दिया गया कि प्रतिवादी ने 16.08.2000 को 70,000 रुपये की एक राशि उधार ली थी और एक पंजीकृत बंधक विलेख निष्पादित किया और 24% प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने के लिए सहमत हुए। चूंकि प्रतिवादी राशि चुकाने में विफल रहा, इसलिए 2011 में एक कानूनी नोटिस जारी किया गया और बाद में एक मुकदमा दायर किया गया।
केस का शीर्षक: एडेलाचेरुवु बलरामी रेड्डी बनाम एडेलचेरुवु मुनास्वामी रेड्डी
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
स्थानांतरण मूल्य निर्धारण अधिकारी अनिवार्य रूप से 60 दिनों के भीतर आर्म्स लेंथ मूल्य निर्धारण का आदेश पारित करेगा: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) के जस्टिस आर. महादेवन और जस्टिस जे. सत्य नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने कहा है कि स्थानांतरण मूल्य निर्धारण अधिकारी (Transfer Pricing Officer) को अनिवार्य रूप से 60 दिनों के भीतर आर्म्स लेंथ मूल्य निर्धारण (Arm's Length Pricing) का आदेश पारित करना होगा।
रिट याचिका में अपीलकर्ता/विभाग ने जज के आदेश का खंडन किया है। न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि टीपीओ के निर्णय या 60 दिनों के भीतर आदेश जारी करने में असमर्थता का निर्धारण अधिकारी द्वारा जारी आदेश पर प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए आयकर अधिनियम की धारा 144सी और 153 के तहत एक बाहरी समय सीमा निर्दिष्ट की गई है।
केस का शीर्षक: आयकर उपायुक्त बनाम सेंट गोबेन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम | धारा 15 के तहत प्रमाणपत्र में बदलाव करने का अधिकार रजिस्ट्रार के पास मौजूद: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 के तहत याचिकाकर्ता के बेटे की जन्मतिथि में आवश्यक सुधार करके नया जन्म प्रमाण पत्र जारी किये जाने का रजिस्ट्रार को निर्देश देने संबंधी रिट याचिका स्वीकार कर ली है।
न्यायमूर्ति वैभवी डी नानावती की खंडपीठ ने आदेश दिया, "प्रतिवादी संख्या 2 को याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर विचार करने के बाद उनके आवेदन/प्रतिवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है। प्रतिवादी संख्या 2 को इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर कानून के दायरे में सत्यापन के बाद आवश्यक परिवर्तन के लिए निर्देशित किया जाता है।"
केस शीर्षक: पटेल घनश्यामभाई गंडाभाई बनाम गुजरात सरकार
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत जिन गवाहों की जांच की गई, उनसे आगे की सच्चाई/अन्य प्रासंगिक तथ्यों को जानने के लिए जिरह की आवश्यकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत एक गवाह की जांच/पूछताछ की जाती है, तो उससे और सच्चाई/अन्य प्रासंगिक तथ्यों को जानने के लिए जिरह की आवश्यकता होती है। जस्टिस गौतम भादुड़ी की खंडपीठ ने बलात्कार के एक आरोपी की याचिका को अनुमति देते हुए ऐसा कहा।
अभियोजन पक्ष/पीड़ित (जिससे पहले साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत अदालत द्वारा पूछताछ की गई थी) को समन करने और जिरह करने के लिए आरोपी को ओर से दायर आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
केस शीर्षक - बेसाहू लाल यादव बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 173 (8) सीआरपीसी के तहत आगे की जांच की रिपोर्ट पेश करना अनिवार्य: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां आगे की जांच की गई है, इसके नतीजों के बावजूद, ऐसी आगे की जांच रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
जस्टिस गौतम भादुड़ी की खंडपीठ ने लकोस जकारिया @ ज़ाक नेदुमचिरा ल्यूक और अन्य बनाम जोसेफ जोसेफ और अन्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 230 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर भरोसा करते हुए इस प्रकार देखा। लक्कोज मामले (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आगे की जांच की स्थिति में, ऐसी जांच की रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए। उक्त फैसले में, अदालत ने यह भी नोट किया कि पूरक/आगे की रिपोर्ट को धारा 173 (3) से (6) के मद्देनजर "प्राथमिक रिपोर्ट के हिस्से के रूप में" निपटाया जाना होगा।
केस शीर्षक - मिर्जा दाऊद बेग बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मध्यस्थ अवॉर्ड को लागू करने के लिए रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि ए एंड सी एक्ट की धारा 36 के तहत वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर एक मध्यस्थ अवार्ड को लागू करने के लिए रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती है।
जस्टिस जीके इलांथिरैयान ने कहा कि ए एंड सी एक्ट अपने आप में एक पूर्ण संहिता है और न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप की परिकल्पना करता है। आगे कहा गया कि यदि न्यायालयों को अनुमेय सीमा से अधिक हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाती है, तो विवाद समाधान की एक त्वरित विधि के रूप में मध्यस्थता की प्रभावकारिता कम हो जाएगी।
केस शीर्षक: डी नागरथीनम्माल बनाम परियोजना निदेशक, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और अन्य। W.P. No. 14766 of 2021.
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
तलाकशुदा मुस्लिम महिला जब तक पुनर्विवाह नहीं करती, तब तक वह सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पति से गुजारे भत्ते का दावा कर सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शबाना बानो बनाम इमरान खान के मामले में निर्धारित कानून को दोहराते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि समाप्त होने के बाद भी जब तक वह पुनर्विवाह नहीं करती, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी।
जस्टिस करुणेश सिंह पवार की खंडपीठ ने मई 2008 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, प्रतापगढ़ द्वारा पारित निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका को अनुमति देते हुए जनवरी, 2007 में पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए उक्त टिप्पणी की।
केस का शीर्षक - रजिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [आपराधिक संशोधन दोषपूर्ण संख्या - 2008 का 475]