सिटिंग जज के खिलाफ सांप्रदायिक आरोप लगाने वाले वकील अशोक पांडे के खिलाफ अवमानना का आरोप हुआ तय

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह लखनऊ के वकील अशोक पांडे के खिलाफ आपराधिक अवमानना के आरोप तय किए। उन्होंने याचिका दायर कर 2016 में जज के खिलाफ 'निराधार' और 'सांप्रदायिक' आरोप लगाए।
जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने पांडे को 'प्रचार' के लिए न्यायिक प्रक्रिया का 'दुरुपयोग' करने और इस तरह न्यायालय को 'बदनाम' करने तथा इसकी गरिमा और अधिकार को 'कमजोर' करने का आरोप लगाते हुए 15 दिनों में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
पांडे के खिलाफ निम्नलिखित आरोप तय किए गए:
“आप, एडवोकेट अशोक पांडे ने रिट याचिका नंबर 8216 (एमबी) 2016 दायर की। उसमें उक्त रिट याचिका के पैराग्राफ 9 और 10 में हाईकोर्ट के 150वें समारोह के आयोजन समिति के अध्यक्ष, जो वर्तमान में इस कोर्ट में जज हैं, उनके खिलाफ अपमानजनक, लापरवाह और सांप्रदायिक आरोप लगाए थे। इस तरह न्यायालय के अधिकार और गरिमा को कम करने का प्रयास किया गया और ऐसी दलीलों के माध्यम से आपने न्यायालय को बदनाम किया। साथ ही न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप किया और न्यायिक संस्था को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने का प्रयास किया, जो प्रथम दृष्टया न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1977 की धारा 2(सी) के तहत आपराधिक अवमानना का गठन करता है।
न्यायालय ने पूछा कि आक्षेपकर्ता एडवोकेट अशोक पांडे को वर्तमान जज के खिलाफ निराधार, सांप्रदायिक आरोपों वाली याचिका दायर करके आपराधिक अवमानना करने के लिए न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत दंडित क्यों नहीं किया जाना चाहिए? न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करना प्रचार और इस तरह न्यायालय को बदनाम करना तथा इसकी गरिमा और अधिकार को कम करना, क्या यह न्यायालय ने की अवमानना नहीं है?”
जानकारी के लिए बता दें कि एडवोकेट पांडे के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही अप्रैल, 2016 में खंडपीठ द्वारा उनकी याचिका पर शुरू की गई थी। इस याचिका में उन्होंने लखनऊ में हाईकोर्ट के नए कैंपस में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम को चुनौती दी थी, जो इसके 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था।
उक्त याचिका के पैराग्राफ 9 और 10 पर विशेष तौर से ध्यान देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि एडवोकेट पांडे ने तत्कालीन सिटिंग जज के खिलाफ आरोप लगाए, जो उस समारोह को आयोजित करने वाली समिति के अध्यक्ष थे।
बता दें कि एडवोकेट पांडे ने उस याचिका में कहा था कि हाईकोर्ट के सिटिंग जज और हाईकोर्ट एडमिनिस्ट्रेशन में उनके अन्य धार्मिक लोगों ने शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रम को 'अल्लाह-हू, अल्लाह-हू' के साथ शुरू करके हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए 'हरकत' की थी।
उन्होंने दावा किया कि यह सब तत्कालीन राज्यपाल (मिस्टर राम नाइक) को 'करारा' जवाब देने के लिए किया गया था, जिन्होंने दिन के सेशन के दौरान भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की मौजूदगी में राम कथा की और नवरात्रि और राम नवमी की पूर्व संध्या पर वहां एकत्रित लोगों को बधाई दी थी।
इसे न्यायालय और जज को 'बदनाम' करने के पांडे के 'सचेत और पूर्व नियोजित' प्रयास कहते हुए 2016 में खंडपीठ ने उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की थी।
उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह हाईकोर्ट ने एडवोकेट पांडे को 2021 में ओपन कोर्ट में हाईकोर्ट जजों के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने और उन्हें 'गुंडा' कहने के लिए छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।