हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-10-01 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (25 सितंबर 2023 से 29 सितंबर 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के प्रावधानों के तहत नियुक्त मध्यस्थ ए एंड सी एक्ट की धारा 29ए से बंधा हुआ है, अवॉर्ड बिना किसी देरी के दिया जाना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत नियुक्त एक मध्यस्थ ए एंड सी एक्ट की धारा 29 ए के तहत निर्धारित समय सीमा के भीतर एक मध्यस्थ अवॉर्ड देने के लिए बाध्य है।

ए एंड सी एक्ट की धारा 29ए में प्रावधान है कि एक मध्यस्थ को दलीलें पूरी होने की तारीख से 12 महीने की अवधि के भीतर एक मध्यस्थ अवॉर्ड देना होगा। इसमें यह भी प्रावधान है कि पार्टियां सहमति से इस अवधि को 6 महीने तक बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा, यह प्रदान करता है कि यदि विस्तारित अवधि के भीतर अवॉर्ड नहीं दिया जाता है, तो मध्यस्थ का मैंडेट समाप्त हो जाएगा, जब तक कि न्यायालय द्वारा बढ़ाया न जाए।

केस टाइटल: पूरन सिंह बनाम भूमि अधिग्रहण अधिकारी, मध्यस्थता केस नबंर 684/2023

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अदालत यह तय नहीं कर सकती कि विशेष खेल श्रेणी में कॉम्पिटिशन आयोजित की जानी चाहिए या नहीं, यह राज्य का विशेषाधिकार है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि किसी विशेष श्रेणी में कॉम्पिटिशन आयोजित की जानी है, या नहीं जैसे निर्णय सरकार का विशेषाधिकार है। इसका निर्णय राज्य के सक्षम प्राधिकारी द्वारा किया जाना है। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत रिट अदालत ऐसे निर्णय नहीं ले सकती, क्योंकि इसके लिए आवश्यक तथ्यात्मक और दस्तावेजी इनपुट के मूल्यांकन की आवश्यकता होती है।

केस टाइटल: सायंत एस बनाम केरल राज्य

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सभी तलाक पारस्परिक नहीं होने चाहिए, विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह की अनुमति देने के लिए पिछले तलाक की प्रकृति अप्रासंगिक है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी को विशेष विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत उनके विवाह आवेदनों पर विचार करते समय पक्षकारों द्वारा प्राप्त तलाक की प्रकृति पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने कहा कि रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी को केवल इस बात से संतुष्ट होना होगा कि विवाह के रजिस्ट्रेशन के समय शादी करने का इरादा रखने वाले किसी भी पक्षकार के पास जीवित जीवनसाथी नहीं है।

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रोक अवधि के दौरान समाप्त हो गई बैंक गारंटी, याचिका वापस लेने के कारण रोक देने वाला आदेश रद्द होने पर इसे नवीनीकृत किया जाना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि रोक अवधि के दौरान समाप्त हुई बैंक गारंटी को याचिका वापस लेने के कारण रोक देने वाला आदेश रद्द होने के बाद नवीनीकृत किया जाना चाहिए। जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने कहा कि क्षतिपूर्ति के सिद्धांत की मांग है कि जिस पक्ष को किसी आदेश का लाभ मिला है, उसे दूसरे पक्ष को उसकी हानि की भरपाई करनी चाहिए, यदि जिस पक्ष को लाभ देने वाला आदेश निरस्त हो जाता है।

केस टाइटल: रूद्रा- XI इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा. लिमिटेड बनाम शिमला नगर निगम, अरब में 2021 का ओएमपी नंबर 739। केस नंबर 53, 2018

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किसी स्थान पर कार्रवाई के कारण का संग्रहण ए एंड सी एक्‍ट की धारा 11 के प्रयोजन के लिए क्षेत्राधिकार निर्धारित करने के लिए विचार नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि किसी ठोस कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए किसी स्थान पर कार्रवाई के कारण का संग्रहण ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के प्रयोजनों के लिए क्षेत्राधिकार निर्धारित करने के लिए विचार नहीं है। जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने दोहराया कि मध्यस्थता का स्थान मध्यस्थता की सीट होगी, जब समझौते में यह दिखाने के लिए कोई विपरीत संकेत मौजूद नहीं है कि मध्यस्थता की जगह को मध्यस्थता की सीट बनाने का इरादा नहीं था।

केस टाइटल: जीआर बिल्डर्स बनाम मेट्रो स्पेशलिटी हॉस्पिटल्स प्राइवेट लिमिटेड, एआरबी पी 628/2023

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चेक बाउंस मामले में शिकायतकर्ता को दी गई अंतरिम मुआवजे की राशि का कारण बताने के लिए मजिस्ट्रेट बाध्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि ट्रायल कोर्ट चेक बाउंस मामलों में अंतरिम मुआवजे की राशि के लिए कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 143 ए में प्रदान की गई आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। जस्टिस अनिल पानसरे ने कहा कि धारा 143ए की संतुष्टि शिकायतकर्ता को 20 प्रतिशत अंतरिम मुआवजा देने के लिए पर्याप्त कारण है और ट्रायल कोर्ट को राशि के लिए अतिरिक्त कारण बताने की आवश्यकता धारा के उद्देश्य को विफल कर देगी।

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एनडीपीएस एक्ट | जब आरोपी के खिलाफ कई एफआईआर हों तो धारा 37 के तहत जमानत की दोहरी शर्तों को संतुष्ट करना आवश्यक नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि जब किसी आरोपी के खिलाफ कई एफआईआर होती हैं तो एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 37 के तहत तय दो शर्तें, कि आरोपी दोषी नहीं है और उसके जमानत पर रहते हुए अपराध करने की संभावना नहीं है, को संतुष्ट नहीं किया जा सकता।

जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा, "जब किसी आरोपी के खिलाफ किसी विशेष अविध में कई एफआईआर दर्ज की गई हों तो एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत परिकल्पित जुड़वां शर्तों को संतुष्ट नहीं किया जा सकता है .....एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत देने के लिए तय शर्तें, उन शर्तों के अलावा है, जिन्हें सीआरपीसी या जमानत पर लागू किसी अन्य कानून के तहत निर्धारित किया गया है।"

केस टाइटल: मोहम्मद रेयान अंसारी बनाम हरियाणा राज्य

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1992 में हुए वाचाथी अपराध का मामला: मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस, वन और राजस्व अधिकारियों की सजा बरकरार रखी, बलात्कार पीड़ितों के लिए 10 लाख मुआवजे का आदेश दिया

मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार (29 सितंबर) को तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के वाचथी में हुए विभिन्न अपराधों के लिए उनकी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ 126 वन अधिकारियों, 84 पुलिस कर्मियों और 5 राजस्व अधिकारियों की अपील को खारिज कर दिया। संयोगवश, आरोपी को दोषी ठहराने वाला सत्र न्यायालय का फैसला भी वर्ष 2011 में 29 सितंबर को पारित किया गया था। जस्टिस पी वेलमुरुगन ने तत्कालीन जिला कलेक्टर, जिला वन अधिकारी और पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आह्वान किया।

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झूठी गवाही | अदालत में दिया गया हर झूठा बयान अभियोजन का विषय नहीं हो सकता, प्रथम दृष्टया जानबूझकर इरादा होना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत के समक्ष झूठे बयान देने के लिए किसी पक्षकार के खिलाफ झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देने से पहले उसे इस बात से संतुष्ट होने पर एक राय बनानी चाहिए कि जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है, उसने जानबूझकर झूठे सबूत/बयान दिए हैं और उसके समक्ष विधिवत रखी गई सामग्रियों पर विचार करने पर इस तरह की राय का गठन होना चाहिए।

केस टाइटल: राजेश के एन और के आर उमेश और एएनआर

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आपराधिक मुकदमों में राज्य 'पीड़ित' नहीं, दोषमुक्ति को चुनौती देने के लिए सीआरपीसी की धारा 372 लागू नहीं कर सकता; सीआरपीसी की धारा 378 के तहत कार्यवाही हो सकती है: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि राज्य सरकार को सीआरपीसी की धारा 372 के तहत 'पीड़ित' नहीं माना जा सकता और बरी करने के आदेश के खिलाफ उसके द्वारा दायर अपील उक्त प्रावधान के तहत सुनवाई योग्य नहीं है। जस्टिस एस राचैया की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि विधायिका ने बरी किए जाने के खिलाफ अपील को प्राथमिकता देने के लिए राज्य को धारा 378 सीपीसी के तहत एक अलग प्रावधान प्रदान किया है।

केस टाइटल: कर्नाटक राज्य और मल्लेशनिका

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अनुच्छेद 22(4) | राज्य को हिरासत के 3 महीने के भीतर केरल असामाजिक गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आदेश की पुष्टि करनी चाहिए: हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को घोषणा की कि राज्य सरकार को इसके निष्पादन की तारीख से 3 महीने के भीतर केरल असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 2007 (कापा, 2007) के तहत जारी हिरासत आदेश की पुष्टि करनी चाहिए। जस्टिस अनु शिवरामन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की खंडपीठ ने कहा कि हालांकि संविधान का अनुच्छेद 22 (4) तीन महीने की अवधि से अधिक हिरासत में रखने पर रोक नहीं लगाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उज्जल मंडल बनाम राज्य (1972) मामले में फैसला सुनाया कि जब तक हिरासत की तारीख से 3 महीने के भीतर पुष्टि की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाता है, तब तक उक्त अवधि की समाप्ति पर आगे की हिरासत कानून के अधिकार के बिना होगी।

केस टाइटल: मैलाथी रवि बनाम केरल राज्य और अन्य।

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धारा 15ए एससी/एसटी अधिनियम| निवारक हिरासत के बाद आरोपी द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर पीड़ित को नोटिस देने की आवश्यकता नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी व्यक्ति की निवारक हिरासत, जिस पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध करने का आरोप है, के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, अधिनियम की धारा 15-ए(3) और (5) के प्रयोजनों के लिए 'संबद्ध कार्यवाही' नहीं है। ये धाराएं पीड़ित को उसके मामले से जुड़ी किसी भी अदालती कार्यवाही के लिए नोटिस और सुनवाई के अवसर का प्रावधान करती हैं, जिसमें आरोपी की जमानत, डिसचार्ज, रिहाई, पैरोल, दोषसिद्धि या सजा शामिल है।

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मामले को ट्रांसफर करने का सेशन जज का आदेश सीआरपीसी की धारा 407 के तहत अपील योग्य नहीं: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने एक मामले के ट्रांसफर के लिए सीआरपीसी की धारा 408 के तहत सत्र न्यायाधीशों द्वारा जारी आदेश की अपीलीयता के संबंध में स्पष्टीकरण प्रदान करते हुए पुष्टि की है कि ऐसे आदेश सीआरपीसी की धारा 407 के तहत अपील योग्य नहीं हैं। सीआरपीसी की धारा 408 सत्र न्यायाधीश को अपने सत्र प्रभाग में मामलों और अपीलों को एक आपराधिक न्यायालय से दूसरे आपराधिक न्यायालय में ट्रांसफर करने का अधिकार देती है।

सीआरपीसी की धारा 407 मामलों और अपीलों को ट्रांसफर करने की हाईकोर्ट की शक्ति से संबंधित है। इसकी उप-धारा (2) में यह प्रावधान है कि किसी मामले को आपराधिक न्यायालय से दूसरे आपराधिक न्यायालय में उसी सत्र प्रभाग में ट्रांसफर करने के लिए कोई भी आवेदन हाईकोर्ट में नहीं दिया जाएगा, जब तक कि ऐसे ट्रांसफर के लिए आवेदन सत्र न्यायाधीश को नहीं दिया गया हो और उसके द्वारा खारिज कर दिया गया हो।

केस टाइटल: पुरूषोतम यादव @ छोटू बनाम बिहार राज्य और अन्य

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केवल किसी को 'मरने के लिए कहना'आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं, क्षणिक आवेश में कहे गए शब्द सही मायने में नहीं दिखते: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि केवल 'जाओ और मरो' कहना उकसावे की श्रेणी में नहीं आएगा, जैसा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत परिभाषित है। जस्टिस के लक्ष्मण और जस्टिस के सुजाना की खंडपीठ ने दोहराया कि बहस के दौरान आदान-प्रदान किए गए शब्द 'पल के आवेग' में कहे गए हैं। इन्हें 'मनुष्य के इरादे' के रूप में नहीं माना जा सकता।

केस टाइटल: जंगम रविंदर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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चेक अनादर| बिना शिकायतकर्ता की सहमति 138 एनआई एक्ट के तहत पुनरीक्षण चरण में समझौता नहीं हो सकता : कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 320 का उल्लंघन करते हुए, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट ("एनआई अधिनियम") की धारा 138 के तहत अपराधों पर शिकायतकर्ता की सहमति के बिना समझौता नहीं किया जा सकता है। दो आपराधिक पुनरीक्षणों को खारिज करते हुए जस्टिस सुभेंदु सामंत की एकल पीठ ने कहा: यह स्पष्ट है कि इस हाईकोर्ट के समक्ष आपराधिक पुनरीक्षण के चरण में समझौते की प्रार्थना शिकायतकर्ता की सहमति के बिना संभव नहीं है। याचिकाकर्ता को मजिस्ट्रेट या अपीलीय अदालत के समक्ष प्रस्ताव रखने से किसी ने नहीं रोका। हालांकि, देश का कानून इस तथ्य से अच्छी तरह से स्थापित है कि समझौते को सीआरपीसी की धारा 320 में उल्लिखित सिद्धांत का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है, इस प्रकार मेरा विचार है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ साबित हुए अपराधों पर समझौता नहीं किया जा सकता है।

केस: दिलीप अधिकारी बनाम बसंत नाथ

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बाद में बरी कर दिए गए दोषी कर्मचारी के निलंबन की अवधि को वरिष्ठता और निर्वाह भत्ते के लिए गिना जाएगा, लेकिन बकाया वेतन के लिए नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि जिस अवधि में किसी कर्मचारी को निलंबित किया जाता है, उसे सभी प्रयोजनों और उद्देश्यों के लिए "ड्यूटी में नहीं बिताई गई" अवधि के रूप में नहीं माना जा सकता है। अदालत ने कहा कि इस अवधि को केवल बकाया वेतन के प्रयोजनों के लिए "ड्यूटी में नहीं बिताई गई" अवधि के रूप में माना जा सकता है, न कि वरिष्ठता और पदोन्नति के प्रयोजनों के लिए।

अदालत ने यह भी कहा कि एक कर्मचारी जिसे निलंबित कर दिया गया है और आपराधिक कार्यवाही में दोषी ठहराए जाने पर सेवाओं से बर्खास्त कर दिया गया है, और बाद में अपील में बरी होने पर बहाल किया गया है, वह निलंबन की अवधि के लिए "काम नहीं तो वेतन नहीं" के सिद्धांत के आधार पर पिछले वेतन या किसी अन्य वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।

केस टाइटल: विनोद कुमार बनाम जीएनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्‍य

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धारा 34(2) POCSO एक्ट अनिवार्य, पीड़िता की उम्र का मुद्दा उठाए जाने पर ट्रायल कोर्ट उसे निर्धारित करने के लिए बाध्य: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने पीड़ित की उम्र निर्धारित करने में ट्रायल कोर्ट की विफलता के कारण एक नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध से जुड़े एक मामले में दोषसिद्धि को पलट दिया। कोर्ट ने समक्ष यह मुद्दा आरोपी ने उठाया था। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पीड़िता की उम्र का पता लगाना ट्रायल कोर्ट का कर्तव्य है, खासकर जब इसे यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 34(2) के तहत कार्यवाही ‌के दरमियान चुनौती दी गई हो।

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पति द्वारा भुगतान न किए जाने के बावजूद पत्नी अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए काम कर रही है, भरण-पोषण कम करने का कोई आधार नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कोई पत्नी आर्थिक तंगी के कारण अपने और बच्चे के दैनिक खर्चों की पूर्ति के लिए काम करना शुरू कर देती है तो यह उसके पति द्वारा उसे दिए जाने वाले गुजारा भत्ते को कम करने का आधार नहीं है। अदालत ने पति की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पत्नी को 8,000 रु. नाबालिग बच्चे के लिए 3,000रुपये के मासिक भरण-पोषण को संशोधित करने से इनकार कर दिया गया था।

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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध केवल लोक सेवकों के अलावा सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ भी लागू किया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने मंगलवार को माना कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 2 (सी) के तहत "लोक सेवक" शब्द की व्यापक व्याख्या सार्वजनिक कर्तव्य प्रदान करने वाले समाज में भ्रष्टाचार के बढ़ते खतरे को रोकने के लिए आवश्यक है। जस्टिस वसीम सादिक नर्गल ने यह भी स्पष्ट किया कि परिभाषा को ऐसी व्याख्या द्वारा सीमित करना अनुचित होगा जो क़ानून की भावना के विरुद्ध होगा।

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एमवी एक्ट | अवार्ड पर रोक लग सकती है, भले ही पहली अपील में देरी की माफी का आवेदन लंबित हो : बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मोटर वाहन अधिनियम (एमवी एक्ट) के तहत पारित किसी अवार्ड पर अंतरिम रोक लगाई जा सकती है, भले ही ऐसे अवार्ड के खिलाफ पहली अपील दायर करने में देरी की माफी के लिए अपीलकर्ताओं का आवेदन लंबित हो।

जस्टिस अभय आहूजा ने कहा, "प्रस्तावित प्रथम अपील में एमवी अधिनियम के तहत पारित फैसले और अवार्ड पर रोक लगाने के आवेदन पर एक- पक्षीय अंतरिम/अंतरिम रोक के लिए विचार किया जा सकता है, भले ही देरी की माफी का आवेदन लंबित हो।"

केस - श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सौ ज्योति विठोबा नाहिरे और अन्य। जुड़े मामलों के साथ

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सर्विस रजिस्टर में नाम न होने पर भी मां मृत बेटे के पेंशन लाभों में हिस्सा लेने की हकदार है : मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने मृत बेटे के सेवांत लाभ और पेंशन लाभ में हिस्सेदारी की मांग कर रही एक मां की मदद के लिए आगे आते हुए कहा कि मां एक वरिष्ठ नागरिक और कानूनी उत्तराधिकारियों में से एक होने के नाते जीवन काल और पेंशन लाभ में हिस्सेदारी की हकदार है।

हालांकि भूतपूर्व सैनिक कल्याण निदेशक ने प्रस्तुत किया कि मृतक ने अपनी पत्नी को तमिलनाडु पेंशन नियमों के नियम 48 के तहत मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ और ग्रेच्युटी प्राप्त करने के लिए नामांकित किया था, जिससे मां किसी भी हिस्से का दावा करने की हकदार नहीं है। अदालत ने इस तर्क को टिकाऊ नहीं पाया।

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किसी स्थान पर कार्रवाई के कारण का संग्रहण ए एंड सी एक्‍ट की धारा 11 के प्रयोजन के लिए क्षेत्राधिकार निर्धारित करने के लिए विचार नहीं है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि किसी ठोस कानूनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए किसी स्थान पर कार्रवाई के कारण का संग्रहण ए एंड सी एक्ट की धारा 11 के प्रयोजनों के लिए क्षेत्राधिकार निर्धारित करने के लिए विचार नहीं है। जस्टिस मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने दोहराया कि मध्यस्थता का स्थान मध्यस्थता की सीट होगी, जब समझौते में यह दिखाने के लिए कोई विपरीत संकेत मौजूद नहीं है कि मध्यस्थता की जगह को मध्यस्थता की सीट बनाने का इरादा नहीं था।

केस टाइटल: जीआर बिल्डर्स बनाम मेट्रो स्पेशलिटी हॉस्पिटल्स प्राइवेट लिमिटेड, एआरबी पी 628/2023

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चेक बाउंस मामले में शिकायतकर्ता को दी गई अंतरिम मुआवजे की राशि का कारण बताने के लिए मजिस्ट्रेट बाध्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि ट्रायल कोर्ट चेक बाउंस मामलों में अंतरिम मुआवजे की राशि के लिए कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है, जब तक कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 143 ए में प्रदान की गई आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। जस्टिस अनिल पानसरे ने कहा कि धारा 143ए की संतुष्टि शिकायतकर्ता को 20 प्रतिशत अंतरिम मुआवजा देने के लिए पर्याप्त कारण है और ट्रायल कोर्ट को राशि के लिए अतिरिक्त कारण बताने की आवश्यकता धारा के उद्देश्य को विफल कर देगी।

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एनडीपीएस एक्ट | जब आरोपी के खिलाफ कई एफआईआर हों तो धारा 37 के तहत जमानत की दोहरी शर्तों को संतुष्ट करना आवश्यक नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि जब किसी आरोपी के खिलाफ कई एफआईआर होती हैं तो एनडीपीएस एक्‍ट की धारा 37 के तहत तय दो शर्तें, कि आरोपी दोषी नहीं है और उसके जमानत पर रहते हुए अपराध करने की संभावना नहीं है, को संतुष्ट नहीं किया जा सकता।

जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने कहा, "जब किसी आरोपी के खिलाफ किसी विशेष अविध में कई एफआईआर दर्ज की गई हों तो एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत परिकल्पित जुड़वां शर्तों को संतुष्ट नहीं किया जा सकता है .....एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत देने के लिए तय शर्तें, उन शर्तों के अलावा है, जिन्हें सीआरपीसी या जमानत पर लागू किसी अन्य कानून के तहत निर्धारित किया गया है।"

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परिवीक्षा अवधि के बाद सेवा में बने रहने का मतलब स्वचालित पुष्टिकरण नहीं, जब तक कि स्पष्ट रूप से या असाधारण मामले में यह प्रदान न किया गया हो: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि परिवीक्षा पर नियुक्त व्यक्ति पुष्टि के स्पष्ट आदेश जारी होने के बाद ही स्थायी कर्मचारी बनता है। चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने एक महिला द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिसकी परिवीक्षा अवधि पूरी होने पर सिविल जज, विराजपेट की अदालत में स्टेनोग्राफर के पद पर पुष्टि नहीं की गई थी।

पीठ ने कहा, "केवल परिवीक्षा अवधि की समाप्ति के बाद सेवा में बने रहने से, एक सिविल सेवक स्वचालित रूप से सेवा के स्थायी सदस्य का दर्जा प्राप्त नहीं कर लेता है, जब तक कि नियम स्पष्ट रूप से स्वचालित पुष्टि प्रदान नहीं करते हैं।"

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अभियोजन आरोपपत्र के साथ दायर गवाहों की सूची तक ही सीमित नहीं है, न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचने में मदद करने के लिए अन्य गवाहों से भी पूछताछ की जा सकती है : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि अभियोजन आरोप पत्र के साथ दायर गवाहों की सूची तक ही सीमित नहीं है और यदि इससे अदालत को न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचने में मदद मिलती है तो वह सूची के बाहर किसी भी अन्य गवाह की जांच कर सकता है। “ पुलिस द्वारा दायर पुलिस रिपोर्ट (चार्जशीट) के साथ दर्ज गवाहों/दस्तावेजों की सूची केवल एक प्रैक्टिस है। यह अभियोजन या मजिस्ट्रेट/अदालत को किसी अन्य गवाहों की जांच करने या दस्तावेज़ प्राप्त करने से नहीं रोकता है यदि वे मामले में उचित निर्णय पर पहुंचने में अदालत की मदद करते हैं। ”

केस टाइटल : पट्टीवाड़ा बालाजी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य।

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मानहानि का मामला - गुजरात हाईकोर्ट ने समन के खिलाफ अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह की याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार किया

गुजरात हाईकोर्ट ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री मानहानि मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह द्वारा दायर याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया । दोनों आप नेताओं ने पीएम मोदी की शैक्षणिक डिग्री मांगने वाले गुजरात यूनिवर्सिटी को 'निशाना' बनाने वाली उनकी कथित टिप्पणियों पर उनके खिलाफ दायर मानहानि शिकायत में मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा जारी समन को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया है।

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झुंझलाहट, अश्लील शब्दों के इस्तेमाल के आरोपों के अभाव में आईपीसी की धारा 294 के तहत अपराध आकर्षित नहीं होता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह माना था कि झुंझलाहट के आरोपों की अनुपस्थिति और कथित रूप से अश्लील शब्द कहे जाने पर आईपीसी की धारा 294 के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता है। जस्टिस दिनेश कुमार पालीवाल की पीठ ने कहा कि जब अभियोजन पक्ष के मामले में यह स्पष्ट नहीं है कि आरोपी ने कौन से अश्लील शब्द कहे थे, तो केवल यह कहना कि आरोपी ने दुर्व्यवहार किया था, धारा 294, आईपीसी की कठोरता को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

केस टाइटलः प्रफुल्ल कुमार जयसवाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी दूसरे पुलिस स्टेशन में जांच ट्रांसफर करने के लिए अदालत की मंजूरी की आवश्यकता नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल होने के बाद भी किसी मामले की जांच दूसरे थाने की पुलिस को ट्रांसफर की जा सकती है और इसके लिए संबंधित अदालत से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

जस्टिस उमेश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह भी कहा कि न्यायालय द्वारा किसी भी अपराध का संज्ञान लेने के बाद भी पहले प्रस्तुत की गई पुलिस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस किसी मामले में आगे की जांच करने के लिए स्वतंत्र है।

केस टाइटल - राम कोमल और दो अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 348 [सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन नंबर - 12417/2005

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अर्नेश कुमार गाइडलाइंस | यदि मजिस्ट्रेट को उचित स्पष्टीकरण दिया जाए तो बिना वारंट के गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कोई अवमानना कार्रवाई नहीं होगी: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले में, यह माना गया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 ए के तहत किसी आरोपी को बिना वारंट, बिना पूर्व सूचना के गिरफ्तार करने पर किसी पुलिस अधिकारी के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, अगर अधिकारी मजिस्ट्रेट के समक्ष वैध स्पष्टीकरण प्रदान करता है।

जस्टिस आशुतोष शास्त्री और जस्टिस दिव्येश ए जोशी की खंडपीठ ने कहा, “यहां इस मामले में, संबंधित पुलिस अधिकारी ने आरोपी की पेशी के समय चेकलिस्ट में स्पष्ट शब्दों में आधार बताया है और चेकलिस्ट की एक प्रति संबंधित न्यायालय को दस्तावेजों की प्रस्तुति और आरोपी की प्रस्तुति के समय दी गई थी, इसलिए, गिरफ्तारी के समय जांच अधिकारी संतुष्ट है। सीआरपीसी की धारा 41ए और धारा 41(1)(ii)(ए) में उल्लिखित आधार "ऐसे व्यक्ति को कोई और अपराध करने से रोकने" का प्रावधान करता है।"

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