हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-01-29 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (23 जनवरी, 2023 से 27 जनवरी, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिकों को सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी के बिना बोलने का अधिकार नहीं देती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिकों को सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी के बिना बोलने का अधिकार नहीं देती है और न ही यह भाषा के हर संभव उपयोग के लिए मुक्त लाइसेंस प्रदान करती है।

जस्टिस शेहर कुमार यादव ने कहा, "...यह संदेह की छाया से परे है कि सोशल मीडिया विचारों के आदान-प्रदान के लिए वैश्विक प्लेटफॉर्म है। इंटरनेट और सोशल मीडिया महत्वपूर्ण डिवाइस बन गए हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अपनी विशेष जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के साथ आता है। यह नागरिकों को जिम्मेदारी के बिना बोलने का अधिकार नहीं देता है और न ही यह भाषा के हर संभव उपयोग के लिए मुक्त लाइसेंस प्रदान करता है।"

केस टाइटल- नंदिनी सचान बनाम यूपी राज्य और दूसरा [आवेदन U/S 482 No. - 38967/2022]

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सीआरपीसी की धारा 125-बालिग अविवाहित बेटी केवल इस आधार पर पिता से भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है कि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को दोहराया कि एक अविवाहित बेटी, जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, अपने पिता पर सीआरपीसी की धारा 125 (1) के तहत केवल इस आधार पर भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है कि उसके पास अपने भरण-पोषण के साधन नहीं हैं।

न्यायालय ने कहा कि एक अविवाहित बेटी किसी भी शारीरिक, मानसिक असामान्यता या चोट के कारण खुद को बनाए रखने में असमर्थ है तो सीआरपीसी की धारा 125 (1) के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है, हालांकि इस संबंध में दलील और सबूत अनिवार्य हैं।

केस टाइटल- गिरीश कुमार एन बनाम रजनी के वी व अन्य

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आईपीसी की धारा 308 के लिए आशय या ज्ञान और परिस्थितियां जिनमें अपराध किया गया, महत्वपूर्ण हैं, न कि चोट: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देखा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत कोई अपराध गठित करने के उद्देश्य से इरादा या ज्ञान और जिन परिस्थितियों में अपराध किया गया, वे महत्वपूर्ण हैं, न कि चोटें। जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिजवी की खंडपीठ ने सत्र न्यायाधीश, वाराणसी के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसमें आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 308 , 323, 504, 506 के तहत अपराध करने के आरोपी की आरोपमुक्त करने की याचिका खारिज कर दी गई थी।

केस टाइटल - रामजी प्रसाद और 4 अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य [आपराधिक संशोधन नंबर - 137/2023]

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फाइलिंग स्टेज पर चुनावी याचिका के समर्थन में हलफनामा दायर न करने की कमी को बाद में हलफनामा दाखिल करके ठीक नहीं किया जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि चुनाव याचिका के फाइलिंग स्टेज पर चुनाव याचिका के समर्थन में हलफनामा दाखिल न करने के दोष (कमी)को बाद में हलफनामा दाखिल करने से ठीक नहीं किया जा सकता है।

जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने एक चुनाव ट्रिब्यूनल के उस आदेश की पुष्टि करते हुए यह बात कही है, जिसने यूपी पंचायत राज अधिनियम, 1947 की धारा 12-सी के तहत दायर एक चुनाव याचिका को हलफनामा दाखिल न करने के आधार पर खारिज कर दिया था।

केस टाइटल -लोकेंद्र सिंह बनाम यूपी राज्य व 2 अन्य, रिट-सी-नंबर- 39558/2022

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न्यायिक विवेक का उपयोग किए बिना प्रिंटेड प्रोफार्मा पर आदेश पारित करने में न्यायिक अधिकारियों का आचरण 'आपत्तिजनक': इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि न्यायिक विवेक का प्रयोग किए बिना प्रिंटेड प्रोफार्मा पर आदेश पारित करने में संबंधित न्यायिक अधिकारियों का आचरण आपत्तिजनक है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।

जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने एसएसजे/पॉक्सो-II रायबरेली की अदालत के संज्ञान आदेश को रद्द करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 363, 366 और POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 16 और 17 के तहत अपराध करने के आरोपी व्यक्ति को समन जारी किया गया है।

केस टाइटल - कृष्ण कुमार (FIR और चार्जशीट के अनुसार कृष्ण कुमार नई) और अन्य बनाम यूपी राज्य प्रधान सचिव गृह और 3 अन्य [धारा 482 संख्या के तहत आवेदन – 677 ऑफ 2023]

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नॉन-डोमिसाइल कैंडिडेट पंजाब महिलाओं के लिए 33% आरक्षण के तहत नियुक्ति के हकदार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नॉन-डोमिसाइल कैंडिडेट को पंजाब से संबंधित महिलाओं के लिए 33% आरक्षित पदों में नियुक्ति के लिए विचार नहीं किया जा सकता। अदालत के सामने मुद्दा यह था कि क्या आरक्षण पंजाब राज्य की महिलाओं तक ही सीमित है या यह अन्य राज्यों की सभी महिलाओं पर भी लागू है।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल ने पंजाब सरकार के विभिन्न विभागों में जूनियर इंजीनियर (सिविल) की नियुक्तियों से संबंधित याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि नियमों में कहीं भी प्रावधान नहीं है कि पंजाब राज्य की नॉन-डोमिसाइल महिलाएं भी आरक्षण की हकदार होंगी।

केस टाइटल: कल्पना कोमल भाटी बनाम पंजाब राज्य व अन्य और अन्य संबंधित मामले

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दोषसिद्धि के लिए अतिरिक्त-न्यायिक स्वीकारोक्ति की अन्य विश्वसनीय सबूतों द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने दोहराया कि अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति (Extra-Judicial Confession) सबूत का छोटा टुकड़ा है और इसे ठोस और विश्वसनीय सबूतों से पुष्ट किया जाना चाहिए। ट्रायल कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत आवेदक की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा रद्द करते हुए यह अवलोकन किया गया।

जस्टिस सुमन श्याम और जस्टिस पार्थिव ज्योति सैकिया की खंडपीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने चन्दन तांती को गवाह के रूप में अभियुक्तों द्वारा कथित रूप से किए गए अपुष्ट अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति को स्वीकार करने में गलती की है।

केस टाइटल: राधानाथ तांती बनाम असम राज्य

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अग्रिम जमानत केवल इस आधार पर नहीं दी जा सकती कि अभियुक्त से हिरासत में पूछताछ आवश्यक नहीं है: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट की एक एकल पीठ ने कहा है कि हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न होना एक अभियुक्त को अग्रिम जमानत देने का खुद में एक आधार नहीं हो सकता है। जस्टिस समीर जे. दवे ने कहा, "हिरासत में पूछताछ अग्रिम जमानत को अस्वीकार करने के आधारों में से एक हो सकती है। हालांकि, भले ही हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता न हो, लेकिन यह अपने आप में अग्रिम जमानत देने का आधार नहीं हो सकता है।"

केस टाइटल: हरिसिंह अभयसिंह परमार बनाम गुजरात सरकार

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कर्मकार मुआवजा अधिनियम | आयुक्त बीमाकर्ता को रोजगार के दौरान मोटर दुर्घटना में घायल हुए कर्मचारी को सीधे मुआवजा देने का आदेश दे सकते हैं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसके तहत बीमा कंपनी को रोजगार के दौरान मोटर दुर्घटना में घायल हुए कर्मचारी को मुआवजे का भुगतान करने के लिए सीधे उत्तरदायी बनाया गया था। अपील में बीमा कंपनी ने तर्क दिया था कि श्रमिक मुआवजा अधिनियम, 1923 के विशिष्ट प्रावधान के मद्देनजर, यह पहली बार में अवॉर्ड को संतुष्ट करने के लिए उत्तरदायी नहीं है; यह केवल शामिल वाहन/बीमित के मालिक को क्षतिपूर्ति करने के लिए है।

केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम उमर अली और अन्य।

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अगर एंबुलेंस दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और बेहतर इलाज के लिए शिफ्ट किए जा रहे मरीज की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी जिम्मेदार होगीः कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बीमा कंपनी एक ऐसे मरीज को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार है, जो अपनी बीमारियों के कारण दम तोड़ देता है क्योंकि उसे बेहतर इलाज के लिए अस्पताल ले जा रही एम्बुलेंस दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है।

जस्टिस टी.जी. शिवशंकर गौड़ा की पीठ ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की दलीलों को खारिज कर दिया और मृतक रवि के दावेदारों को मुआवजा देने का निर्देश देने वाले मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा।

केस टाइटल-नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और मेनपा मिस्त्री व अन्य

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एनडीपीएस एक्ट | प्रतिबंधित पदार्थ को ले जाने वाले वाहन को पॉयलट कर रहे वाहन को प्रतिबं‌‌धित पदा‌र्थ ले जाने वाले वाहन के रूप में नहीं माना जा सकता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में इस सवाल पर विचार किया कि क्या कोई वाहन जो अन्य वाहन चला रहा है या उसके साथ है, जो नारकोटिक ड्रग और साइकोट्रोपिक पदार्थों का परिवहन कर रहा है, को वर्जित पदार्थ ले जाने में इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन के रूप में माना जा सकता है, ताकि उसे नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के धारा 52-ए के तहत उसे जब्त किया जा सके। कोर्ट ने सवाल का नकारात्मक जवाब दिया।

केस टाइटल: फिरोजालवी टीवी बनाम केरल राज्य व अन्य।

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पॉक्सो एक्ट | आरोपी को पीड़िता से क्रॉस एग्जामिनेशन करने का वैधानिक अधिकार है, लेकिन सवालों से उसकी पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हालांकि पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत आरोपी को पीड़िता से क्रॉस एग्जामिनेशन करने का अधिकार है, लेकिन बचाव पक्ष द्वारा पूछे गए सवाल ऐसे नहीं हो सकते, जिससे मुकदमे के दौरान उसकी पहचान उजागर हो। जस्टिस इलेश जे वोरा ने कहा कि एक्ट धारा 33 न्यायालय पर यह सुनिश्चित करने का कर्तव्य डालती है कि जांच या ट्रायल के दौरान किसी भी समय बच्चे की पहचान का खुलासा नहीं किया जाता।

केस टाइटल: धवल बिजलजी ठाकोर बनाम गुजरात राज्य

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नाबालिग को हुई 10% स्थायी विकलांगता की स्थिति में मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण को एक लाख का मुआवजा देना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए फैसले और अवॉर्ड को इस आधार पर संशोधित किया कि न्यायाधिकरण ने हाईकोर्ट द्वारा जारी निर्देशों का पालन नहीं किया था, जिसमें मोटर दुर्घटना में 10% तक की स्थायी अपंगता का सामना करने वाले नाबालिग को एक लाख का मुआवजा देने का निर्धारण किया गया था। दावेदार ने ट्रिब्यूनल के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 30,000/- रुपये की राशि दी गई थी, जिसमें विरोधियों को संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया था।

केस टाइटल: आरतीबेन रमेशिंग तोमर बनाम नसुरुद्दीन चंदनभाई फकीर

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संपत्ति का अधिकार संवैधानिक, राज्य कानून के अनुसार ही भूस्वामियों को भूमि छोड़ने के लिए मजबूर कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कुछ भूस्वामियों ने अपनी भूमि छोड़ दी है तो यह अन्य भूस्वामियों को ऐसा करने के लिए मजबूर करने का आधार नहीं हो सकता है, सिवाय कानून के अनुसार। जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की एकल न्यायाधीश पीठ ने आंशिक रूप से याचिकाओं के एक समूह की अनुमति दी और सागर शहर नगर परिषद के भूमि अधिग्रहण अधिकारी को एक सड़क के विस्तार के लिए याचिकाकर्ताओं की भूमि को जबरन लेने से रोक दिया।

केस टाइटल: केवी श्रीनिवास राव और अन्य और कर्नाटक राज्य और अन्य

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[धारा 24 हिंदू विवाह अधिनियम] सक्षम पति पत्नी से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकता, ऐसा करना आलस्य को बढ़ावा देगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी को किसी ऐसे सक्षम पति को भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया जाता है जो किसी अक्षमता या दुर्बलता से पीड़ित नहीं है, तो यह आलस्य को बढ़ावा देना होगा।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि "सिर्फ इसलिए कि (हिंदू विवाह) अधिनियम की धारा 24 रखरखाव के अनुदान के लिए लिंग तटस्थ है, यह इस तथ्य के बावजूद आलस्य को बढ़ावा देगी कि पति को कमाई करने में कोई बाधा नहीं है।”

केस टाइटल: XYZ और ABC

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वरिष्ठ नागरिक अधिनियम | भरण-पोषण अधिकरण के पास माता-पिता के घर से बच्चों को बेदखल करने का आदेश देने की शक्ति: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत भरण-पोषण न्यायाधिकरण के पास बच्चों को उनके माता-पिता के घरों से बेदखल करने का आदेश देने की शक्ति है।

इसके विपरीत दी गई दलीलों को खारिज करते हुए, जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "... इस अदालत को अपीलीय अदालत द्वारा पारित बेदखली के आदेश में कोई त्रुटि नहीं मिली है, जिसमें याचिकाकर्ता को आदेश की तारीख से 7 दिनों की अवधि के भीतर घर खाली करने का निर्देश दिया गया है। जब माता-पिता, जो घर के मालिक हैं, घर में रहने की अनुमति वापस लेते हैं, उस स्थिति में, याचिकाकर्ता माता-पिता के आदेश का पालन करने के लिए बाध्य है, और प्रतिवादी नंबर -पिता को अपने ही बेटे के खिलाफ बेदखली का पारंपरिक मुकदमा दायर करने के लिए नहीं कहा जा सकता है।

केस टाइटलः नीरज बघेल बनाम कलेक्टर, रायपुर व अन्य।

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कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही उसकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है; कोई उसे प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एक दोषी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही उसकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है और इसलिए, उसके स्थान पर किसी को बचाव करने के लिए उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।

फैमिली पेंशन का दावा करने वाली रिट याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस हरीश कुमार की सिंगल जज बेंच ने कहा, "यह कानून का स्थापित प्रस्ताव है कि एक कर्मचारी की मौत पर न्यायिक जांच या विभागीय कार्यवाही पूरी तरह से समाप्त हो जाती है क्योंकि कर्मचारी को दंडित करने के लिए, नियोक्ता और कर्मचारी संबंध का निर्वाह होना चाहिए। एक बार एक कर्मचारी की मृत्यु हो जाने के बाद उक्त संबंध समाप्त हो जाता है। बचाव यदि कोई हो तो कर्मचारी के लिए उपलब्ध व्यक्तिगत बचाव है और मृत कर्मचारी के स्थान पर किसी व्यक्ति को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है।"

केस टाइटल: कौशल्या देवी बनाम बिहार राज्य व अन्य।

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विवाहित महिला की जाति स्थिति जन्म से निर्धारित होती है न कि विवाह से: उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति की जाति का दर्जा उसके जन्म से निर्धारित होता है न कि उसके विवाह से। जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ ने कहा कि जब तक कोई कानून या नियम नहीं है कि एक विवाहित महिला को अपनी शादी पर एक नया जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा, उसे अपनी जाति के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिसका फायदा वह शादी के पहले से ले रही है।

केस टाइटल: श्रीमती पूनम बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य।

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AICTE की मंजूरी के बिना वीकेंड बीटेक कोर्स को नियमित डिग्री के समकक्ष नहीं रखा जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह फैसला देते हुए कि AICTE की मंजूरी के बिना पार्ट टाइम बी.टेक प्रोग्राम को नियमित डिग्री के समकक्ष नहीं माना जा सकता, हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि वह इस तरह की डिग्री वाले इन-सर्विस जूनियर इंजीनियरों को डिग्री धारकों के लिए निर्धारित कोटा के तहत उप मंडल अधिकारी के पद पर पदोन्नति के विचार क्षेत्र से बाहर कर दे।

जस्टिस अरुण मोंगा ने फैसले में कहा कि जिन कर्मचारियों ने दीनबंधु छोटू राम विज्ञान और तकनीकी यूनिवर्सिटी में शैक्षणिक सत्र 2011-2012 के लिए 'वीकेंड प्रोग्राम फॉर वर्किंग' में 4 वर्षीय बी.टेक (सिविल इंजीनियरिंग) वीकेंड कोर्स में एडमिशन लिया था, उस कोर्स को ग्रेजुएट इंजीनियरों के लिए कोटे के विरुद्ध असिस्टेंट इंजीनियर के रूप में पदोन्नति के लिए योग्यता वाले पेशेवर नहीं कहा जा सकता।

केस टाइटल: अरुण कुमार बनाम हरियाणा राज्य व अन्य और अन्य संबंधित मामले

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अगर पुलिस आरोपी के रूप में एक व्यक्ति को पकड़ने के लिए मेमो फाइल करती है, तो अदालत सामग्री की पर्याप्तता की जांच कर सकती है और अनुमति देने से इंकार कर सकती है: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि ट्रायल कोर्ट का यह जांच करना न्यायोचित है कि क्या आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त सामग्री है, जब पुलिस जांच में एक मेमो/याचिका दायर करती है, जिसमें अदालत को ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के इरादे के बारे में सूचित किया जाता है।

डॉ. जस्टिस डी नरगार्जुन की एकल पीठ ने कहा, "किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक दायित्व का बन्धन कोई छोटी बात नहीं है। यह किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीन लेता है। यह उचित अभ्यास किए बिना और उचित सामग्री एकत्र किए बिना जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता है और यह भी ठीक से विश्लेषण किए बिना कि क्या कोई है सामग्री प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि प्रस्तावित अभियुक्तों ने कथित अपराधों को अंजाम दिया है। इसलिए, ट्रायल कोर्ट अदालत के सामने रखी गई सामग्री की जांच करने में न्यायोचित है कि क्या ऐसी सामग्री चार व्यक्तियों व्यवस्थित करने का आधार हो सकती है। "

केस टाइटल: तेलंगाना राज्य बनाम रामचंद्र भारती उर्फ सतीश शर्मा और 2 अन्य

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जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 9(2)- ‘आरोपी के जुवेनाइल होने की याचिका पर फैसला सुनाने से पहले कोर्ट को जांच करनी चाहिए’: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने स्पष्ट किया है कि जब किशोर न्याय बोर्ड के अलावा किसी कोर्ट के समक्ष किशोरता की दलील दी जाती है, तो उसे आवेदन पर कोई निर्णय देने से पहले किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9(2) के अनुसार जांच करनी चाहिए।

इस अधिनियम के प्रावधान के गैर-अनुपालन के आदेश को रद्द करते हुए जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "जब किशोर न्याय बोर्ड के अलावा किसी कोर्ट के समक्ष इस तरह का दावा किया जाता है, तो कोर्ट को जांच करनी होती है, ऐसे सबूत लेने होते हैं जो उम्र निर्धारित करने के लिए आवश्यक हो सकते हैं और मामले में निष्कर्ष दर्ज कर सकते हैं। बेशक, ऐसा करने में, अधिनियम की धारा 94 के प्रावधानों पर भी विचार किया जा सकता है, लेकिन कानून के अनुसार जांच की जानी चाहिए और अगर आवश्यक हो, तो सबूत भी लिए जा सकते हैं।”

केस टाइटल: वी. विनय बनाम श्रीनू पात्रो और अन्य और अन्य जुड़ा हुआ मामला

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हिंदू विवाह अधिनियम धारा 28, परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 19 पर प्रभावी, अपील करने की समय सीमा 90 दिन: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत वैवाहिक विवाद से उत्पन्न परिवार न्यायालय के फैसले या आदेश को चुनौती देने वाली अपील दायर करने की समय सीमा 90 दिन है। यह आदेश दो प्रावधानों द्वारा उत्पन्न भ्रम को संबोधित करता है, जबकि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत निर्धारित अपील आदेश की तारीख से 90 दिन है, परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 19 अपील दायर करने के लिए केवल 30 दिनों की अवधि निर्धारित करती है। .

केस टाइटल: चौधरी चेतनाबेन दिलीपभाई बनाम चौधरी दिलीपभाई लवजीभाई

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नाबालिग लड़की के साथ विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के तहत अमान्य नहीं है: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत परिवार अदालत द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके द्वारा उसने एक जोड़े के बीच विवाह को अमान्य घोषित कर दिया था, क्योंकि विवाह के समय महिला नाबालिग थी।

जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 11, जो 'शून्य विवाह' को परिभाषित करती है, में विवाह की कानूनी उम्र को पूर्व शर्त के रूप में शामिल नहीं किया गया है। इस प्रकार इसने परिवार न्यायालय के 08.01.2005 के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि "अधिनियम की धारा 11 मामले की वास्तविक स्थिति पर लागू नहीं होती है।"

केस टाइटल: XXX और ABC

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धारा 113 (3) मोटर वाहन अधिनियम | अधिक वजन के साथ वाहन चलाने पर मालिक भी जिम्मेदार: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वाहनों के मालिकों पर मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 113 (3) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, अगर उन्होंने वाहन को अधिक वजन के साथ चलाने की अनुमति दी है। धारा 113(3)(बी) सहपठित धारा 194 (1), मोटर वाहन अधिनियम के तहत शुरू की गई कार्यवाही के खिलाफ दायर याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा शिकायतों में वाहनों के पंजीकृत मालिकों के खिलाफ विशिष्ट आरोप लगाए गए हैं कि उन्होंने वाहन को अधिक वजन के साथ चलाने की अनुमति दी थी।

केस टाइटल: फ़सलुद्दीन ए और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य और अन्य जुड़े मामले

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एनडीपीएस एक्ट | अभियुक्त को वैधानिक हिरासत अवधि की समाप्ति पर डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन करना होगा, स्वचालित रूप से रिहा नहीं किया जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने सर्किट बेंच जलपाईगुड़ी में कहा कि जो अभियुक्त एनडीपीएस एक्ट (अधिनियम) के प्रावधानों के तहत हिरासत में है, उसको 180 दिनों की समाप्ति पर वैधानिक जमानत पर स्वचालित रूप से रिहा नहीं किया जा सकता है, जो एक्ट की धारा 36ए (4) के तहत निर्धारित है। उसे तब तक हिरासत में रखें जब तक कि वह लिखित या मौखिक रूप में आवेदन नहीं करता।

जस्टिस जॉयमाल्या बागची, जस्टिस सुवरा घोष और जस्टिस कृष्णा राव की फुल बेंच ने कहा कि यदि कोई आरोपी लिखित या मौखिक रूप से वैधानिक जमानत के लिए आवेदन करने में विफल रहता है तो उसका अधिकार स्पष्ट नहीं होता और अदालत को सीआरपीसी की धारा 167(2) सपठित एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के तहत उसे 180 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में भेजने का अधिकार है, जब तक वह इस तरह के अधिकार का लाभ नहीं उठाता।

केस टाइटल: सुभाष यादव बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य संबंधित याचिकाएं

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धर्म गाय से पैदा होता है, जिस दिन गौहत्या बंद हो जाएगी, उस दिन धरती की समस्याएं खत्म हो जाएंगी: गुजरात कोर्ट

गुजरात के तापी जिले की एक अदालत ने हाल ही में महाराष्ट्र राज्य से मवेशियों को अवैध रूप से ले जाने के आरोप में एक 22 वर्षीय व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए कहा कि जिस दिन गाय के खून की एक बूंद भी धरती पर नहीं गिरेगी, उस पृथ्वी की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और पृथ्वी में भलाई स्थापित हो जाएगी। सत्र न्यायाधीश एसवी व्यास ने जिला न्यायालय तापी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि धर्म गाय से पैदा होता है क्योंकि धर्म वृषभ के रूप में होता है और गाय के पुत्र को वृषभ कहा जाता है।

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