आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कथित तौर पर NSUI के राष्ट्रीय सचिव की हत्या से जुड़े वकीलों की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में तीन वकीलों - के.सी. कृष्ण रेड्डी, के.सी. नागार्जुन रेड्डी और के.सी. साई प्रसाद रेड्डी - द्वारा भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) के राष्ट्रीय सचिव बीरू संपत कुमार की हत्या के संबंध में दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज की।
यह मामला श्री सत्य साई जिले के धर्मावरम टाउन पुलिस स्टेशन में दर्ज एक एफआईआर से उत्पन्न हुआ। मृतक के पिता बीरू राजशेखर ने एफआईआर दर्ज कराई। शिकायतकर्ता के अनुसार मृतक, जो प्रैक्टिसिंग एडवोकेट था, याचिकाकर्ताओं के साथ भूमि विवाद में अपने मित्र श्रीकांत का समर्थन कर रहा था।
यह कहा गया कि मृतक को श्रीकांत का समर्थन करने के लिए रमनजी (ए-4) और अन्य लोगों ने फोन पर धमकाया। 30 मई 2024 को मृतक का शव धर्मावरम-येलुकुंतला रोड पर चोटों के साथ मिला था।
याचिकाकर्ता जो प्रैक्टिसिंग एडवोकेट भी हैं, उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया और उनके खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि ए-4 के कथित स्वीकारोक्ति बयान का इस्तेमाल उनके खिलाफ नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसकी पुष्टि अन्य सबूतों से नहीं हुई।
हालांकि, जस्टिस बी.वी.एल.एन. चक्रवर्ती ने पाया कि जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत अपराध में याचिकाकर्ताओं की संलिप्तता को दर्शाती है।
अदालत ने नोट किया कि पुलिस ने ए-4 और ए-6 से ए-9 को गिरफ्तार किया, जिन्होंने कबूल किया कि उन्होंने याचिकाकर्ताओं के कहने पर मृतक की हत्या की थी। पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों से बड़ी मात्रा में नकदी भी जब्त की थी, जिसके बारे में उन्होंने दावा किया कि याचिकाकर्ताओं ने मृतक और उसके दोस्त श्रीकांत की हत्या के लिए सुपारी (अनुबंध हत्या शुल्क) के रूप में भुगतान किया था।”
अदालत ने कहा,
"ऊपर चर्चा की गई सामग्री प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ताओं की IPC की धारा 302 के तहत अपराध में संलिप्तता को दर्शाती है। वे अपराध की तारीख से ही फरार हैं। इसलिए उपलब्ध सामग्री के आधार पर, अपराध की प्रकृति, अपराध की गंभीरता और आरोपों की गंभीरता को देखते हुए यह न्यायालय इस विचार पर है कि याचिकाकर्ताओं को अग्रिम जमानत पर रिहा करने का यह उपयुक्त मामला नहीं है।"
समापन से पहले न्यायालय ने जांच एजेंसियों द्वारा भाग-I केस डायरी के रखरखाव के संबंध में महत्वपूर्ण पहलू को भी संबोधित किया। न्यायालय ने पाया कि जांच एजेंसी ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 172 की आवश्यकताओं के अनुसार पार्ट-I केस डायरी का रखरखाव नहीं किया, जो अभिलेखों की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने और जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए आवश्यक है।
परिणामस्वरूप न्यायालय ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (जनरल) को आदेश की कॉपी पुलिस महानिदेशक आंध्र प्रदेश राज्य को भेजने का निर्देश दिया, जिससे राज्य के सभी जांच अधिकारियों को पार्ट-I केस डायरी के उचित रखरखाव के बारे में उचित निर्देश जारी किए जा सकें।
अदालत ने कहा,
“इस मामले के मद्देनजर इस न्यायालय के रजिस्ट्रार (जनरल) को निर्देश दिया जाता है कि वे इस आदेश की कॉपी पुलिस महानिदेशक, आंध्र प्रदेश राज्य, मंगलागिरी को भेजें, जिससे राज्य के सभी जांच अधिकारियों को पार्ट-I केस डायरी के रखरखाव के बारे में उचित निर्देश जारी किए जा सकें। इससे अभिलेखों की प्रामाणिकता सुनिश्चित होगी और राज्य में जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।”