अगर एंबुलेंस दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है और बेहतर इलाज के लिए शिफ्ट किए जा रहे मरीज की मौत हो जाती है तो बीमा कंपनी जिम्मेदार होगीः कर्नाटक हाईकोर्ट
Manisha Khatri
25 Jan 2023 7:15 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बीमा कंपनी एक ऐसे मरीज को मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार है, जो अपनी बीमारियों के कारण दम तोड़ देता है क्योंकि उसे बेहतर इलाज के लिए अस्पताल ले जा रही एम्बुलेंस दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है।
जस्टिस टी.जी. शिवशंकर गौड़ा की पीठ ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की दलीलों को खारिज कर दिया और मृतक रवि के दावेदारों को मुआवजा देने का निर्देश देने वाले मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा।
मृतक पीलिया से पीड़ित था। 13.04.2010 को बेहतर इलाज के लिए उसे एंबुलेंस में चिकमगलूर से मैंगलोर ले जाया जा रहा था। कोडेक्कल रेलवे ओवर ब्रिज पर, चालक द्वारा तेज और लापरवाही से चलायी जा रही एंबुलेंस पलट गई, जिससे मृतक घायल हो गया। बाद में उसने मैंगलोर अस्पताल में दम तोड़ दिया।
बीमा कंपनी ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि दुर्घटना और मृतक की मौत के बीच कोई संबंध नहीं था। उसने एफएसएल रिपोर्ट पर भरोसा किया, जिसमें बताया गया था कि मौत लोबोर निमोनिया और तपेदिक व लीवर के हल्के स्टीटोसिस के कारण हुई थी और यह दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी। इस प्रकार कंपनी ने दावा किया कि ट्रिब्यूनल को दावे को खारिज कर देना चाहिए था।
दावेदारों ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि यदि मृतक को मैंगलोर अस्पताल में भर्ती कराया गया होता तो वह उचित उपचार से बच जाता, लेकिन दुर्घटना के कारण उसकी बीमारी बढ़ गई और इस कारण उसकी मृत्यु हो गई। एफएसएल रिपोर्ट का इससे कोई लेना-देना नहीं है और मौत दुर्घटना के कारण हुई थी और इसलिए दुर्घटना व मौत के बीच आपसी संबंध है।
रिकॉर्ड देखने पर बेंच ने कहा, ‘‘अगर मृतक को बेहतर इलाज के लिए ले जाया गया होता और अगर उसका मैंगलोर में इलाज किया जाता तो उसकी बीमारी ठीक हो सकती थी और वह अस्पताल से ठीक होकर घर जा सकता था। पीलिया कोई घातक बीमारी नहीं है और मैंगलोर जैसे उच्च चिकित्सा केंद्रों में बेहतर इलाज उपलब्ध था और इस कारण से उसे एम्बुलेंस में ले जाया जा रहा था।”
पीठ ने आगे कहा, ‘‘हालांकि चालक को पता था कि वह एक मरीज को ले जा रहा है, उसने गाड़ी चलाते समय सावधानी नहीं बरती इसके बजाय उसने लापरवाही की जो दुर्घटना का कारण बनी। इस दुर्घटना के प्रभाव के कारण मृतक की बीमारी बढ़ गई और अस्पताल में मरीज की मौत हो गई।’’
इसके बाद यह भी कहा,‘‘इसलिए दुर्घटना और मृतक की मृत्यु के कारण के बीच संबंध है, लेकिन प्रतिशत भिन्न हो सकता है और परंतु बीमा कंपनी की ओर से कोई ठोस तर्क नहीं दिया गया है। इसलिए दावे को खारिज करने का आग्रह करने वाले आधार का समर्थन नहीं किया जा सकता है।”
अदालत ने ट्रिब्यूनल के उस आदेश को संशोधित कर दिया जिसमें 5,50,000 रुपये का मुआवजा 6 प्रतिशत ब्याज के साथ देने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने अब 4,62,700 रुपये का मुआवजा छह प्रतिशत प्रति वर्ष ब्याज के साथ देने का निर्देश दिया है।
केस टाइटल-नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और मेनपा मिस्त्री व अन्य
केस नंबर-एमएफए नंबर 4286/2014
साइटेशन-2023 लाइव लॉ (केएआर) 27
प्रतिनिधित्व-अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट एचआर रेणुका,आर-2 के लिए एडवोकेट पी करुणाकर
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