फाइलिंग स्टेज पर चुनावी याचिका के समर्थन में हलफनामा दायर न करने की कमी को बाद में हलफनामा दाखिल करके ठीक नहीं किया जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट
Manisha Khatri
27 Jan 2023 7:15 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि चुनाव याचिका के फाइलिंग स्टेज पर चुनाव याचिका के समर्थन में हलफनामा दाखिल न करने के दोष (कमी)को बाद में हलफनामा दाखिल करने से ठीक नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने एक चुनाव ट्रिब्यूनल के उस आदेश की पुष्टि करते हुए यह बात कही है, जिसने यूपी पंचायत राज अधिनियम, 1947 की धारा 12-सी के तहत दायर एक चुनाव याचिका को हलफनामा दाखिल न करने के आधार पर खारिज कर दिया था।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि चुनाव ट्रिब्यूनल ने सीपीसी के आदेश 6 नियम 15(4) के तहत एक शपथ पत्र (हलफनामा) दाखिल करने की अनिवार्य आवश्यकता का पालन न करने के कारण प्रारंभिक चरण में ही चुनाव याचिका को खारिज करके सही किया था।
यहां यह ध्यान दिया जा सकता है कि उपर्युक्त प्रावधान में कहा गया है कि प्लीडिंग(दलील) को सत्यापित करने वाले व्यक्ति को अपनी प्लीडिंग के समर्थन में एक हलफनामा प्रस्तुत करना होगा।
संक्षेप में मामला
अनिवार्य रूप से, एक चुनाव याचिकाकर्ता (जो प्रधानी चुनाव में उपविजेता था) ने एक चुनावी याचिका (बिना किसी हलफनामे के) दायर की थी और उस उम्मीदवार के चुनाव को चुनौती दी थी जो 16 वोट से जीता था और इस तरह प्रधान के रूप में चुना गया था।
ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता (निर्वाचित प्रधान) द्वारा उठाई गई इस प्रारंभिक आपत्ति को स्वीकार करते हुए उक्त चुनाव याचिका को खारिज कर दिया था कि चुनाव याचिका के साथ एक हलफनामा दायर नहीं किया गया था, जो सीपीसी के आदेश 6 नियम 15(4) के तहत एक अनिवार्य आवश्यकता है।
इस आदेश से व्यथित होकर चुनाव याचिकाकर्ता ने एक सिविल रिवीजन दायर की, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, कोर्ट नंबर 1, आगरा ने इस अवलोकन के साथ अनुमति दे दी कि चुनाव न्यायाधिकरण ने बाद में दायर चुनाव याचिकाकर्ता के हलफनामे पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें चुनाव याचिका की सामग्री की विधिवत पुष्टि की गई थी।
नतीजतन, आक्षेपित आदेश को खारिज कर दिया गया और चुनाव याचिका को सुनवाई के लिए बहाल कर दिया गया। अब उसी आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि फाइलिंग स्टेज पर चुनाव याचिका को दायर करते समय इसके समर्थन में कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया था और यह एक असाध्य दोष है,जिसे बाद में हलफनामा दाखिल करने के माध्यम से ठीक नहीं किया जा सकता था। दूसरी ओर, चुनाव याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि उन्होंने बाद में हलफनामा दायर किया था, इसलिए चुनाव याचिका सुनवाई योग्य थी।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में वकीलों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि एक निर्वाचित उम्मीदवार के चुनाव को चुनौती देना एक गंभीर मामला है, जिसमें चुनाव याचिकाकर्ता को कानूनी आधार पर चुनाव को रद्द करने के लिए एक मामला स्थापित करना होता है और उस उद्देश्य के लिए दलीलें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
न्यायालय ने आगे कहा कि हालांकि अधिनियम, 1947 के साथ-साथ उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत चुनाव याचिका के लिए कोई विशिष्ट प्रारूप निर्धारित नहीं है, फिर भी सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत निर्धारित सिद्धांत और प्रक्रिया का पालन करना होता है और चुनाव याचिका सहित हर प्लीडिंग की चुनाव याचिकाकर्ता के एक हलफनामे द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में 1999 के अधिनियम 46 द्वारा आदेश 6 नियम 15 (4) के तहत (1.7.2002 से लागू) से एक विशिष्ट प्रावधान डाला गया था कि ‘‘प्लीडिंग का सत्यापन करने वाला व्यक्ति अपनी प्लीडिंग के समर्थन में एक हलफनामा भी प्रस्तुत करेगा।’’
न्यायालय ने अशोक तापिराम पाटिल उर्फ ए.टी. नाना पाटिल बनाम गुरुमुख मेहरुमल जगवानी व अन्य (2006) 6 बीओएमसीआर 832 के मामले में बाॅम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि चुनाव याचिका के साथ चुनाव याचिका की दलीलों(प्लीडिंग) के समर्थन में एक हलफनामा होना चाहिए।
नतीजतन, चुनाव याचिका को खारिज करने में चुनाव ट्रिब्यूनल के दृष्टिकोण को उचित पाते हुए अदालत ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, कोर्ट नंबर 1, आगरा के आदेश को रद्द कर दिया और चुनाव ट्रिब्यूनल के आदेश की पुष्टि की।
प्रतिनिधित्व-
याचिकाकर्ता के वकील- क्षितिज शैलेंद्र, संदीप कुमार
प्रतिवादी के वकील- सीएससी, अजय दुबे, कामिनी पांडे (दुबे)
केस टाइटल -लोकेंद्र सिंह बनाम यूपी राज्य व 2 अन्य, रिट-सी-नंबर- 39558/2022
साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (एबी) 38
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