क्या आप 30 रुपये भी देने की स्थिति में नहीं हैं? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 12 साल पुरानी अपील को 'निर्धन के रूप में चलाने के लिए गृहिणी की अर्जी खारिज की

Update: 2024-08-09 07:43 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अजीबोगरीब मामले में गृहिणी द्वारा रेलवे दावा ट्रिब्यूनल द्वारा 2010 में पारित आदेश के खिलाफ निर्धन व्यक्ति के रूप में अपील चलाने के लिए दायर अर्जी खारिज की। कोर्ट ने कहा कि अपील के ज्ञापन पर देय कोर्ट फीस मात्र 30 रुपये है।

जस्टिस विवेक जैन की एकल पीठ ने पाया कि अपीलकर्ता-आवेदक ने हाईकोर्ट के नियमों और कोर्ट फीस एक्ट के अनुसार लागू 30 रुपये की कोर्ट फीस का भुगतान करने में भी अपनी असमर्थता प्रदर्शित नहीं की है।

एकल जज पीठ ने टिप्पणी की,

“कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार अपील के ज्ञापन पर देय कोर्ट फीस केवल 30/- रुपये है। आदेश 44 नियम 1 सीपीसी के तहत आवेदन के कथनों के अनुसार, ऐसा कोई कथन नहीं है कि आवेदक 30/- रुपये की कोर्ट फीस का भुगतान करने की स्थिति में भी नहीं है।”

अपीलकर्ता-महिला ने रेलवे दावा ट्रिब्यूनल द्वारा उसके दावों को खारिज करने के फैसले के खिलाफ 2012 में अपील दायर की थी। 2015 में जस्टिस आलोक आराधे की पिछली एकल जज पीठ ने देरी को माफ किया और दावा न्यायाधिकरण के रिकॉर्ड प्राप्त करने के बाद मामले को प्रवेश के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। तब से यह मामला हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है।

जस्टिस विवेक जैन ने 02.08.2024 को कार्यालय को कोर्ट फीस भुगतान के बिना अपील को निर्धन व्यक्ति के रूप में चलाने की अनुमति मांगने वाले अपीलकर्ता द्वारा आवेदन प्राप्त करने के बाद देय कोर्ट फीस पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा।

मंगलवार को हाईकोर्ट ने उनका आदेश 44 नियम 1 CPC आवेदन खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आवेदक को अपील पंजीकृत करवानी है और लागू नियमों के अनुसार प्रवेश के लिए सूचीबद्ध करवाना है तो उसे 15 दिनों के भीतर 30 रुपये कोर्ट फीस के रूप में जमा करवाना होगा।

कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि आवेदक-अपीलकर्ता 15 दिनों के भीतर उक्त राशि का भुगतान करने में विफल रहता है तो केस फाइल को रिकॉर्ड रूम में भेज दिया जाएगा।

केस टाइटल- कलाबाई बनाम भारत संघ और अन्य।

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