हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-01-01 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (26 दिसंबर, 2022 से 30 दिसंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

सीबीएफसी अध्यक्ष के पास फिल्म को दूसरी पुनरीक्षण समिति को भेजने की शक्ति नहीं है; कार्रवाई अवैध, सिनेमैटोग्राफ अधिनियम का उल्लंघन: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के अध्यक्ष का फिल्म 'पुझा मुथल पूझा वारे' को दूसरी पुनरीक्षण समिति को संदर्भित करने का निर्णय अवैध है और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 और सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियमों, 1983 का उल्लंघन है।

जस्टिस एन नागरेश ने कहा कि नियम 24(12) विशेष रूप से अनिवार्य करता है कि जहां अध्यक्ष पुनरीक्षण समिति के बहुमत के निर्णय से असहमत हैं, बोर्ड स्वयं फिल्म की जांच करेगा या फिल्म की जांच एक अन्य पुनरीक्षण समिति द्वारा करवाएगा और यह कि बोर्ड या दूसरी पुनरीक्षण समिति, जैसा भी मामला हो, का निर्णय अंतिम होगा।

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पक्षकारों के बीच पत्राचार ऑप्शनल आर्बिट्रेशन के एग्रीमेंट के तहत उनके स्पष्ट इरादे को खत्म नहीं कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जहां एक क्लाज निर्धारित करता है कि पक्षकारों को 'आर्बिट्रेशन' के लिए भेजा जा सकता है, उक्त क्लाज आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट का गठन नहीं करता है, इस तथ्य के बावजूद कि क्लाज आर्बिट्रेटर के निर्णय पर बाध्यकारी प्रकृति प्रदान करता है। न्यायालय ने कहा कि उक्त क्लाज ने केवल भविष्य की संभावना और विवादों को आर्बिट्रेशन के लिए संदर्भित करने के विकल्प पर विचार किया।

केस टाइटल: जीटीएल इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम वोडाफोन इंडिया लिमिटेड (वीआईएल)

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जब तक अपमान, धमकी का इरादा न हो, पीड़ित की जाति का नाम लेकर गाली देना धारा 3(1)(x) एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत आरोप - जैसा कि 2016 के संशोधन से पहले था, केवल इसलिए आरोपित नहीं किया जाएगा क्योंकि अभियुक्त ने पीड़ित की जाति का उच्चारण किया था, जब तक कि यह अपमान या डराने और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय का सदस्य होने के कारण उसे अपमानित करने के इरादे से नहीं किया जाता है।

केस शीर्षक: सुरेंद्र कुमार मिश्रा बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।

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MSMED एक्ट के तहत नियुक्त मध्यस्थ द्वारा निष्पक्षता का खुलासा अधिनियम की धारा 24 की भावना के खिलाफ नहीं, ए एंड सी अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे: कलकत्ता हाईकोर्ट

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED एक्ट) की धारा 24 का अधिभावी प्रभाव विशेष क़ानून के तहत नियुक्त मध्यस्थ पर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के अनुसार, अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता का खुलासा करने के लिए पूर्ण रोक के रूप में काम नहीं करेगा।

जस्टिस सुभाशीष दासगुप्ता ने यह भी कहा कि MSMED एक्ट की धारा 18(3) के तहत नियुक्त मध्यस्थ के पास उसे संदर्भित सभी विवादों को तय करने की शक्ति है, जैसे कि मध्यस्थता अधिनियम की की धारा 7 उप-धारा (1) में संदर्भित मध्यस्थता समझौते के अनुसरण में है। परिणामस्वरूप, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के सभी प्रावधान ऐसी मध्यस्थता कार्यवाही पर लागू होंगे।

केस टाइटल: सिक्योरिटी हाईटेक ग्राफिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एलएमआई इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, सीओ नंबर 1931/2022

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[बीआरएस विधायक खरीद-फरोख्त का मामला] सीएम ने स्वंय आरोपी को साजिशकर्ता के रूप में ब्रांडेड किया, यह नहीं कह सकते कि एसआईटी निष्पक्ष रूप से मामले की जांच कर रही है: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी। कोर्ट ने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने स्वयं बीआरएस विधायक अवैध खरीद-फरोख्त मामले में अभियुक्तों को साजिशकर्ता के रूप में ब्रांडेड किया है और इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि एसआईटी जांच निष्पक्ष तरीके से की जा रही है।

केस टाइटल - भारतीय जनता पार्टी और अन्य बनाम तेलंगाना राज्य [याचिका संख्या 39767, 40733, 42228, 43144 और 43339 ऑफ 2022]

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घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उस महिला को व्यथित और भरण पोषण की हकदार माना जाएगा, जिसका विवाह समलैंगिक पुरुष से हुआ : मुंबई कोर्ट

मुंबई के एक ट्रायल कोर्ट ने यह देखते हुए कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत 'पीड़ित व्यक्ति' शब्द में केवल ऐसी महिला शामिल नहीं होगी, जो शारीरिक शोषण का शिकार होती है, बल्कि इसमें ऐसी महिला भी होगी, जो यौन, मौखिक और भावनात्मक शोषण सहती है। इसके साथ ही कोर्ट ने 'समलैंगिक' पुरुष को स्त्री को भरण-पोषण भत्ता का भुगतान करने के निर्देश के आदेश को बरकरार रखा। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश डॉ. ए.ए. जोगलेकर ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के खिलाफ पति की अपील खारिज कर दिया, जिसमें पत्नी को भरष-पोषण के लिए 15,000 रुपये देने का आदेश दिया गया था।

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ए एंड सी अधिनियम की धारा 9 आवेदन से हटाए गए पक्षकार के खिलाफ आर्बिट्रेशन का आह्वान किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि एक बार मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 9 के तहत आवेदन दायर किया जाता है और केवल इसलिए कि आवेदक बाद में अधिनियम की धारा 9 के तहत कार्यवाही से पक्षकार को हटाने का विकल्प चुनता है, तो यह नहीं माना जा सकता है कि ऐसे पक्षकार के खिलाफ कभी भी आर्बिट्रेशन की कार्यवाही का आह्वान नहीं किया जा सकता।

जस्टिस मनीष पिटाले की पीठ ने कहा कि अधिनिमय की धारा 9 के तहत अंतरिम उपायों के लिए आवेदन करने वाला पक्षकार कुछ पक्षकारों को हटाने की इच्छा कर सकता है, अगर यह पाता है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में मांगे गए अंतरिम उपाय केवल कुछ पक्षों तक ही सीमित हैं।

केस टाइटल: डेक्कन पेपरमिल्स कंपनी लिमिटेड बनाम मैसर्स. रीजेंसी महावीर गुण और अन्य।

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संदर्भ मुआवजे की मात्रा तक सीमित; यदि बीमाकर्ता देयता पर विवाद करता है तो यह मध्यस्थता-योग्य नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि जहां केवल बीमा पॉलिसी के तहत देय मुआवजे की मात्रा से संबंधित विवाद के संदर्भ में ही मध्यस्थत खंड का प्रावधान किया गया है, बीमा कंपनी द्वारा दायर याचिका में पॉलिसी के तहत अपनी देनदारी पर किया गया विवाद, विवाद को नॉन-अर्बिट्रेबल बना देता है।

जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने दोहराया कि मध्यस्थता खंड की सख्ती से व्याख्या की जानी चाहिए। न्यायालय ने पाया कि पॉलिसी के तहत बीमाकर्ता की स्पष्ट देयता की स्वीकृति मध्यस्थता खंड को लागू करने के लिए अनिवार्य है, जिसके अभाव में पक्षकारों के बीच विवाद अपवादित श्रेणी के अंतर्गत आता है, जिससे मध्यस्थता खंड अप्रभावी और लागू होने में अक्षम हो जाता है।

केस टाइटल: एम/एस मल्लक स्पेशलिटीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड।

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गवाहों का पक्षद्रोही हो जाना आरोपी को जमानत देने का नया आधार नहीं हो सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जमानत के मामले में अदालत का यह अधिकार नहीं कि वह पक्षद्रोही गवाहों (Hostile Witnesses) द्वारा दिए गए सबूतों के आधार पर कोई राय बनाए, क्योंकि यह सबूतों का मूल्यांकन करने जैसा होगा।

जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने हत्या के आरोपी (कृष्णकांत) द्वारा दायर की गई दूसरी जमानत याचिका को इस नए आधार पर खारिज कर दिया कि चूंकि अंतिम देखे गए साक्ष्यों में से 2 गवाहों ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया और पक्षद्रोही घोषित किया गया, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए।

केस टाइटल- कृष्ण कांत बनाम यूपी राज्य [CRIMINAL MISC. जमानत आवेदन नंबर- 33329/2020]

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आईपीसी की धारा 307- घायल पीड़ित का एग्जामिनेशन न कराने से आरोपी को क्रॉस एग्जामिनेशन का अधिकार नहीं मिलता; अभियोजन पक्ष के लिए घातक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में कहा कि आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) से जुड़े एक मामले में घायलों का एग्जामिनेशन न करना अभियोजन पक्ष के लिए घातक है क्योंकि यह अभियुक्तों को क्रॉस एग्जामिनेशन के अधिकार से वंचित करता है।

जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस राकेश मोहन पांडे की खंडपीठ ने कहा कि घायल का एग्जामिनेशन यह साबित करने के लिए आवश्यक है कि क्या आरोपी ने उस पर हमला किया था और क्या उसकी चोट इतनी गंभीर थी कि उसकी मौत हो सकती है।

केस टाइटल: सन्नू कुदामी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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आईटी एक्ट | धारा 226 के तहत नोटिस को चुनौती, धारा 200ए के तहत मांग को चुनौती के बिना सुनवाई योग्य नहीं: जम्मू एंड कश्मीर एंड लदाख हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 200ए के तहत निर्धारण प्राधिकारी द्वारा की गई मांग की सूचना को चुनौती दिए बिना, धारा 226 (3) के तहत निर्धारण प्राधिकारी द्वारा जारी किए गए नोटिसों को चुनौती सुनवाई योग्य नहीं है।

जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस मोक्ष खजूरिया काजमी ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता, जो कि एक साझेदारी फर्म है, प्रतिवादी आईटी विभाग द्वारा प्रतिवादी संख्या 4 से 9 को जारी किए गए नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें प्रतिवादी को उनके खाताधारक, याचिकाकर्ता द्वारा देय 32,32,100/- रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

केस टाइटल: एम/एस कंस्ट्रक्शन इंजीनियर्स

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धारा 482 सीआरपीसी को एक शिकायत में आरोपों की शुद्धता की जांच करने के लिए लागू नहीं किया जा सकता: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया की सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अदालत की शक्तियों का प्रयोग सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उक्त प्रावधान के तहत न्यायालय असाधारण दुर्लभ मामलों को छोड़कर शिकायत में आरोपों की शुद्धता की जांच नहीं कर सकता है, जहां यह स्पष्ट है कि आरोप तुच्छ हैं या किसी अपराध का खुलासा नहीं करते हैं।

जस्टिस एमए चौधरी ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता एक आपराधिक शिकायत में विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट पीटी एंड ई श्रीनगर की अदालत द्वारा पारित एक आदेश को रद्द करने की मांग कर रहा था, जिसमें याचिकाकर्ता/आरोपी व्यक्ति शामिल थे, उन्हें धारा 500 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध में शामिल पाया गया था।

केस टाइटल : एम/एस रश्मी मेटलिक्स लिमिटेड और अन्य बनाम एम/एस जिंदल सॉ लिमिटेड और अन्य।

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सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन एक सम्मान और विशेषाधिकार है, यह आरक्षण पर आधारित नहीं हो सकता: मद्रास हाईकोर्ट ने महिला वकीलों के लिए कोटे की मांग वाली याचिका खारिज की

मद्रास हाईकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन में महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग करने वाली याचिका खारिज करते हुए पिछले सप्ताह कहा कि वकील को सीनियर एडवोकेट का दर्जा प्रदान करना विशेषाधिकार है, पद नहीं। 'द एडवोकेट्स एक्ट, 1961 (1961 का 25)' की धारा 16 के तहत एडवोकेट को सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन का दर्जा देना स्पष्ट रूप से विशेषाधिकार है, न कि पद। इसलिए आरक्षण की कोई भी प्रार्थना गलत है।

जस्टिस एम सुंदर और जस्टिस एन सतीश कुमार की खंडपीठ एस लॉरेंस विमलराज की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीनियर एडवोकेट डेजिग्नेशन में महिला वकीलों के लिए समान संख्या या 30% आरक्षण की मांग की गई थी।

केस टाइटल: एस लॉरेंस विमलराज बनाम रजिस्ट्रार (न्यायिक) और अन्य

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एनआईए एक्ट- 'हाईकोर्ट उपयुक्त मामलों में अपील दायर करने में 90 दिनों से अधिक देरी को माफ कर सकता है': जम्म-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

जम्म-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट उपयुक्त मामलों में अपील दायर करने में 90 दिनों से अधिक देरी को माफ कर सकता है, बशर्ते अपीलकर्ता को कोर्ट को संतुष्ट करना होगा कि उसके पास 90 दिनों की अवधि समाप्त होने के बाद भी अपील को प्राथमिकता नहीं देने का पर्याप्त कारण था। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अधिनियम की धारा 21 की उप-धारा 5 के दूसरे परंतुक में प्रयुक्त शब्द "करेगा" को "हो सकता है" के रूप में पढ़ा जाना चाहिए।

केस टाइटल : राष्ट्रीय जांच एजेंसी बनाम थर्ड एडीजे जम्मू।

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'नियोक्ता की सहमति के बिना अतिरिक्त कार्य', मध्यस्थ ट्रिब्यूनल नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा नहीं दे सकता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माना कि मध्यस्थ भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 70 को नियोक्ता की पूर्व सहमति के बिना किए गए अतिरिक्त कार्य के लिए क्वांटम मेरिट पर मुआवजा देने के लिए लागू नहीं कर सकता, जब समझौते में किसी अतिरिक्त कार्य पर विचार नहीं किया गया हो।

जस्टिस कल्याण राय सुराणा की पीठ ने कहा कि जब आर्बिट्रेटर कॉज़ वाले समझौते में किसी अतिरिक्त कार्य पर विचार नहीं किया गया और ठेकेदार नियोक्ता की पूर्व सहमति के बिना अतिरिक्त कार्य करता है तो अतिरिक्त कार्य के रूप में कोई भी विवाद न्यायालय के दायरे से बाहर हो जाएगा। आर्बिट्रेटर कॉज़ के दायरे में दिया गया कोई भी निर्णय भारतीय कानून की मौलिक नीति के खिलाफ होगा।

केस टाइटल: द स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ असम बनाम लार्सन एंड टर्बो, केस नंबर Arb। A. 7/2020

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दोषसिद्धि की तिथि पर सजा में छूट देने की जो नीति प्रचलित थी, वही सजा माफ करने के उद्देश्य के लिए लागू होगी: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सजा में छूट देने के लिए दोषी के मामले पर विचार करते समय सजा की तिथि पर प्रचलित राज्य की सजा माफी नीति को छूट देने के एल आवेदन पर निर्णय लेने में लागू किया जाएगा। जस्टिस वैभवी डी. नानावती की पीठ ने राज्य सरकार को हत्या के दोषी (रफीक आलमभाई परमार) से संबंधित क्षमा आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश देते हुए यह देखा कि 2001 में 4 सप्ताह के भीतर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जो उसकी सजा के समय प्रचलित छूट देने की नीति के अनुसार थी।

केस टाइटल- रफीक आलम परमार बनाम गुजरात राज्य और 3 अन्य [विशेष आपराधिक आवेदन नंबर 7483/2017]

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दुर्घटनावश गिरने से होने वाली मौत के मामलों में जीवन बीमा पॉलिसी के दावे को प्रोसेस करने के लिए एफआईआर का दर्ज होना अनिवार्य नहीं: जम्मू एंड कश्मीर एंड एल हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में उपभोक्ता आयोग के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें यह कहा गया कि जिन मामलों में बीमाधारक की मृत्यु गिरने से लगी चोटों के कारण हुई है, जीवन बीमा के प्रोसेस के लिए एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं।

अदालत ने कहा, "हम आयोग से पूरी तरह से सहमत हैं कि इस प्रकृति के मामले में एफआईआर का दर्ज होना जीवन बीमा पॉलिसी के तहत मामले को प्रोसेस करने के लिए अनिवार्य नहीं है। जब यह प्रदर्शित करने के लिए बहुतायत में अन्य सबूत हैं कि मृतक बीमाधारक की दुर्घटना में मृत्यु हुई है।"

केस टाइटल: भारतीय जीवन बीमा निगम और अन्य बनाम हमीदा बानो और अन्य।

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प्लॉट पर लीजहोल्ड राइट्स रद्द करने पर मुआवजा पूंजीगत प्राप्ति है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि प्लॉट में निर्धारिती द्वारा रखे गए पट्टे के अधिकार पूंजीगत संपत्ति है और प्लॉट पर लीजहोल्ड राइट्स रद्द करने पर निर्धारिती द्वारा गोवा सरकार से प्राप्त मुआवजा पूंजीगत प्राप्ति है न कि राजस्व प्राप्ति।

जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि यदि अचल संपत्ति में अधिकारों के हस्तांतरण के लिए समझौता हस्तांतरणकर्ता द्वारा नहीं किया जाता तो अंतरिती मुआवजे का हकदार है, क्योंकि वह कीमत वृद्धि से वंचित है। इसलिए अंतरिती द्वारा मुआवजे के रूप में प्राप्त भुगतान का स्वरूप पूंजीगत प्राप्ति का स्वरूप रखता है। वर्तमान मामले के तथ्यों में ब्याज का भुगतान प्रकृति में प्रतिपूरक है और इसलिए राजस्व प्राप्ति का स्वरूप नहीं रखता है।

केस टाइटल: पीसीआईटी बनाम पावा इंफ्रास्ट्रक्चर (पी) लिमिटेड

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स्थायी लोक अदालत विद्युत अधिनियम की धारा 126 के तहत पारित अंतिम आदेश के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई नहीं कर सकती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में कहा कि स्थायी लोक अदालत विद्युत अधिनियम की धारा 126(5) के तहत पारित अंतिम आदेश के खिलाफ विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 22 के तहत दायर आवेदन को सुनवाई योग्य बनाए रखने के लिए सक्षम नहीं है। जस्टिस राकेश मोहन पांडे ने कहा कि विद्युत अधिनियम की धारा 126 और 127 अपने आप में एक पूर्ण संहिता है और अंतिम मूल्यांकन आदेश के खिलाफ अपील का उपाय है।

केस टाइटल: छत्तीसगढ़ स्टेट पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड बनाम अनिल कुमार अग्रवाल

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