इलाहाबाद हाईकोट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूरे राज्य में चीनी मांझा पर प्रतिबंध लगाने वाले सरकारी आदेश के प्रभावी कार्यान्वयन पर राज्य सरकार से जवाब मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में गृह विभाग और पर्यावरण विभाग से राज्य में सिंथेटिक मांझा, सीसा-लेपित नायलॉन पतंग के धागे (पतंग डोरी) और चीनी मांझा के निर्माण, भंडारण, उपयोग और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाले सरकारी आदेशों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए तंत्र के बारे में अदालत को अवगत कराने के लिए कहा है।न्यायालय ने जिलों से प्राप्त की गई कार्रवाई रिपोर्ट, यदि कोई हो, भी मांगी है ताकि न्यायालय यह सुनिश्चित कर सके कि उक्त सरकारी आदेशों को ठीक से लागू किया जा रहा है या नहीं। जस्टिस राजन रॉय और...
किसी भी पति या पत्नी से दुर्भावनापूर्ण आपराधिक अभियोजन के जोखिम की स्थिति में वैवाहिक संबंध जारी रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1995 की धारा 13 के तहत किसी पति या पत्नी से दुर्भावनापूर्ण आपराधिक मुकदमे के जोखिम पर वैवाहिक संबंध जारी रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि इससे सम्मान और प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है, साथ ही गिरफ़्तारी जैसे अन्य परिणाम भी हो सकते हैं। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने माना, “यूपी संशोधन द्वारा संशोधित अधिनियम की धारा 13 के प्रयोजन के लिए, कानूनी तौर पर, किसी भी पति या पत्नी से, चाहे वह पुरुष हो या महिला,...
AE से विलंबित प्राप्तियों का प्रभाव पहले से ही कार्यशील पूंजी में शामिल: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने TPO को प्राप्तियों पर ब्याज का न्यायनिर्णयन करने का निर्देश दिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक बार जब करदाता को कार्यशील पूंजी समायोजन प्रदान किया जाता है तो वर्ष के अंत में बकाया प्राप्तियों पर ब्याज लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि यह कार्यशील पूंजी समायोजन में शामिल हो जाता है।जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने दोहराया कि 01 अप्रैल 2010 को या उसके बाद अपने AE को दिए गए बिलों के संबंध में वसूली की तारीख क्या थी और क्या उन्हें 70 दिनों की अनुमत क्रेडिट अवधि के भीतर वसूल किया गया है। यदि नहीं तो उन बिलों पर भी...
पोकर और रमी बिल्कुल कौशल का खेल, यह जुआ नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि पोकर और रमी बिल्कुल कौशल का खेल है, यह जुआ नहीं है।याचिकाकर्ता ने DCP सिटी कमिश्नरेट, आगरा के कार्यालय द्वारा पारित आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके द्वारा उसे रमी और पोकर के लिए जुआ यूनिट स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।याचिकाकर्ता के वकील ने आंध्र प्रदेश राज्य बनाम के.एस. सत्यनारायण में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और जंगली गेम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य में मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जहां यह माना...
ससुर से भरण-पोषण का दावा करने के लिए विधवा बहू का ससुराल में रहना अनिवार्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि विधवा बहू के लिए ससुराल में रहना उसके ससुर से भरण-पोषण मांगने की शर्त नहीं है। यह देखा गया कि विधवा महिला द्वारा अपने माता-पिता के साथ रहने का विकल्प चुनने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि वह अपने ससुराल से अलग हो गई।जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की पीठ ने कहा,“कानून की यह अनिवार्य शर्त नहीं है कि भरण-पोषण का दावा करने के लिए बहू को पहले अपने ससुराल में रहने के लिए सहमत होना चाहिए। जिस सामाजिक संदर्भ में कानून लागू होना चाहिए, उसमें विधवा महिलाओं का...
फैमिली कोर्ट ने एक दशक से अलग रह रहे पक्षकारों के बीच संबंधों को तोड़ने से इनकार किया, उनकी भावनाओं की अवहेलना की: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जहां अलगाव की लंबी अवधि है, इस मामले में एक दशक, फैमिली कोर्ट तलाक की डिक्री देने से इनकार नहीं कर सकता है और उन पक्षों की भावनाओं की अवहेलना नहीं कर सकता है, जो अब प्रत्येक के प्रति स्नेही नहीं हैं।जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा "वादी और प्रतिवादी के बीच संबंध को तोड़ने से इनकार करके, फैमिली कोर्ट ने विवाह की पवित्रता की सेवा नहीं की है; इसके विपरीत, इसने पार्टियों की भावनाओं और भावनाओं की अवहेलना दिखाई है, जो एक-दूसरे के प्रति...
पति-पत्नी के पागलपन को साबित करने का भार विवाह विच्छेद की मांग करने वाले पक्ष पर: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि यदि पति-पत्नी के पागलपन के कारण विवाह विच्छेद की मांग की जाती है तो विवाह विच्छेद की मांग करने वाले पति-पत्नी को दूसरे पति-पत्नी के मामले में इस तरह के पागलपन के अस्तित्व को साबित करना होगा।दोनों पक्षकारों के बीच विवाह 2005 में संपन्न हुआ और वे जनवरी 2012 से अलग-अलग रह रहे हैं। अपीलकर्ता-पति ने पत्नी पर पागलपन और क्रूरता का आरोप लगाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की।अपीलकर्ता ने अपनी पत्नी के कथित पागलपन को साबित करने के लिए दस्तावेजी...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी और रिमांड पर अर्नेश कुमार दिशा-निर्देशों के उल्लंघन पर न्यायिक मजिस्ट्रेट IO को अवमानना नोटिस जारी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में गिरफ्तारी और रिमांड पर 2014 के अर्नेश कुमार निर्णय में जारी किए गए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए राज्य न्यायिक अधिकारी और एक पुलिस अधिकारी को अवमानना नोटिस जारी किया।जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने इस आधार पर (न्यायिक अधिकारी और IO को) अवमानना नोटिस जारी किया कि संबंधित पुलिस अधिकारी ने दो व्यक्तियों को बिना किसी कारण या कारण के हिरासत में लिया।इसके अलावा संबंधित मजिस्ट्रेट ने केस डायरी में दिए गए कारणों की जांच किए बिना और कोई...
CPC के आदेश 6 नियम 17 का प्रावधान 2002 में संशोधन से पहले शुरू किए गए मुकदमों पर लागू नहीं होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि CPC के आदेश 6 नियम 17 का प्रावधान जो 2002 के संशोधन के तहत डाला गया था, 2002 से पहले शुरू किए गए मुकदमों पर लागू नहीं होगा।CPC का आदेश 6 नियम 17 न्यायालय को पक्षकारों को अपनी दलीलों को ऐसे तरीके से और ऐसी शर्तों पर बदलने या संशोधित करने की अनुमति देने का अधिकार देता है, जो न्यायसंगत हो सकती हैं। ऐसे सभी संशोधन किए जाएंगे, जो पक्षों के बीच विवाद में वास्तविक प्रश्नों को निर्धारित करने के उद्देश्य से आवश्यक हो सकते हैं।नियम 17 के प्रावधान में यह प्रावधान है कि...
77 वर्षीय व्यक्ति ने वकीलों और जजों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के वकीलों और कानपुर जिला जजशिप के जजों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाने वाले समीक्षा आवेदक पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया। हालांकि कोर्ट ने आवेदक के खिलाफ आपराधिक अवमानना शुरू करने से खुद को रोक लिया, क्योंकि वह 77 साल का है।जस्टिस नीरज तिवारी ने कहा,“याचिकाकर्ता की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और उनकी आयु यानी 77 वर्ष को देखते हुए यह न्यायालय उनके विरुद्ध आपराधिक अवमानना कार्यवाही आरंभ करने से स्वयं को रोकता है लेकिन पुनर्विचार आवेदन में उनके द्वारा लिया गया आधार बहुत...
पत्नी की ओर से पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता के समान: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक फैसले में माना कि पत्नी की ओर से पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करके उसके साथ रहने से मना करना क्रूरता है और इसलिए, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक का आधार है। जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा,“सहवास वैवाहिक रिश्ते का एक अनिवार्य हिस्सा है और अगर पत्नी पति को अलग कमरे में रहने के लिए मजबूर करके उसके साथ रहने से मना करती है, तो वह उसे उसके वैवाहिक अधिकारों से वंचित करती है, जिसका उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर...
समय पर नहीं दिए जा रहे रिकॉर्ड, स्थायी वकील कोर्ट को उचित सहायता प्रदान करने में असमर्थ: इलाहाबाद हाईकोर्ट
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि मामलों के रिकॉर्ड मामले की सुनवाई से पहले स्थायी वकीलों को नहीं सौंपे जाते हैं, इसलिए वे अदालत को उचित सहायता प्रदान करने में असमर्थ हैं। अदालत ने कहा कि अदालत के विभिन्न आदेशों के बावजूद कि समन किए गए रिकॉर्ड सुनवाई से एक दिन पहले स्थायी वकीलों को प्रदान किए जाने चाहिए, ऐसा नहीं किया जा रहा है। बल्कि सुनवाई की सुबह कोर्ट में उन्हें रिकॉर्ड सौंपे जा रहे थे।सेवा विवाद में सिंगल जज बेंच के फैसले से उत्पन्न एक विशेष अपील से निपटते हुए, जस्टिस राजन रॉय और...
ट्रायल कोर्ट को चार्जशीट पर संज्ञान लिए जाने तक पीड़ितों के बयान की कॉपी किसी को भी जारी नहीं करनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वे चार्जशीट/पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिए जाने तक धारा 164 CrPc (अब धारा 183 BNSS) के तहत दर्ज पीड़ितों के बयान की प्रमाणित कॉपी किसी भी व्यक्ति को जारी न करें।जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि कई मामलों में अभियुक्तों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)को चुनौती देते हुए पीड़ितों के बयान दर्ज किए। यहां तक कि निचली अदालतें भी धारा 164 CrPC के तहत दर्ज बयानों की प्रमाणित...
नियोक्ता की ओर से सामान्य भविष्य निधि संख्या आवंटित न करने के कारण कर्मचारी को पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में जहां एक कर्मचारी ने सामान्य भविष्य निधि में कोई अंशदान नहीं किया क्योंकि उसे नियोक्ता द्वारा जीपीएफ नंबर आवंटित नहीं किया गया था, माना कि नियोक्ता की गलती के कारण कर्मचारी को पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा,“सबसे पहले, सामान्य भविष्य निधि में कटौती पेंशन प्राप्त करने की पात्रता के लिए एक शर्त नहीं है। दूसरे, अधिकारियों द्वारा अंशदान की कटौती न करने के लिए याचिकाकर्ता दोषी नहीं था। तीसरे, सेवानिवृत्त होने के बाद, याचिकाकर्ता...
पेट्रोल पंप के कामकाज में हस्तक्षेप वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम के तहत प्री-इंस्टिट्यूशन मीडिएशन को दरकिनार करने का पर्याप्त आधार: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 12ए(1) में प्रावधानित पूर्व-संस्था मध्यस्थता (Pre-Institution Mediation) को तब दरकिनार किया जा सकता है, जब पेट्रोल पंप के कामकाज में हस्तक्षेप हो।वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 की धारा 12ए(1) में प्रावधान है कि जहां किसी मुकदमे में तत्काल राहत की उम्मीद नहीं है, वहां ऐसा मुकदमा तब तक नहीं चलाया जा सकता, जब तक कि वादी द्वारा पूर्व-संस्था मध्यस्थता के उपाय का उपयोग नहीं किया जाता।प्रतिवादी-अपीलकर्ता उस संपत्ति का...
तबादलों में कर्मचारियों की वरिष्ठता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जहां स्थानांतरण की अनुमति है, वहां कर्मचारियों को उसी पद पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए, जिस पर वे मूल रूप से कार्यरत थे। यह माना गया है कि कर्मचारियों की वरिष्ठता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस अजीत कुमार ने कहा कि "हालांकि वितरण कंपनी के भीतर स्थानांतरण की अनुमति है, लेकिन किसी भी परिस्थिति में कर्मचारियों की वरिष्ठता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए और न ही कर्मचारियों को उस कार्यालय से निचले स्तर पर तैनात करने का निर्देश दिया जा सकता है, जहां से उन्हें...
S.24 HMA | गुजारा भत्ता के लिए साक्ष्य आवेदन के चरण में प्रस्तुत किया जा सकता है, मुख्य मामले में कार्यवाही की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (HMA) की धारा 24 के तहत आवेदन पर निर्णय लेने के उद्देश्य से साक्ष्य आवेदन पर निर्णय लेने के चरण में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। आवेदन पर निर्णय के लिए मुख्य मामले में सबूत प्रस्तुत किए जाने की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है।हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 24 में यह प्रावधान है कि अधिनियम के तहत कार्यवाही में यदि न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि पत्नी या पति के पास कोई अलग आय नहीं है। कार्यवाही के लिए व्यय की आवश्यकता है तो न्यायालय ऐसे...
लापरवाही के स्पष्टीकरण के लिए कई बार स्थगन मांगा गया: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने NHAI प्रोजेक्ट डायरेक्टर के 2 हजार रुपये जुर्माना जमा करने की शर्त पर मामला स्थगित किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर पर 2 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जो उनके वेतन खाते से देय है। यह जुर्माना मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत अपील दायर करने में हुई चूक को स्पष्ट करने के लिए कई बार स्थगन मांगने पर लगाया गया।NHAI ने 11 दिनों की देरी से मध्यस्थता अपील दायर की। पिछली तारीखों पर जब मामला सूचीबद्ध किया गया था तो न्यायालय ने अपील दायर करने में हुई देरी के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था।हालांकि, NHAI के वकील ने दो...
स्टाम्प ड्यूटी में कमी | जब न्यायालय कोई राहत देने के लिए इच्छुक न हो तो वकील जुर्माने की माफी की प्रार्थना को सीमित करने का निर्णय ले सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब न्यायालय कोई राहत देने के लिए इच्छुक नहीं है, तो वकील की ओर से दंड की माफी के लिए प्रार्थना को सीमित करने के निर्णय को बिना किसी अधिकार के नहीं कहा जा सकता। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि,“यदि वकील ने यह आकलन किया कि पूरी अपील के सफल होने की कोई संभावना नहीं है और उसने दंड की माफी के लिए अपनी प्रार्थना को सीमित करने का निर्णय लिया, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसने बिना किसी अधिकार के काम किया और यही कारण हो सकता है कि याचिकाकर्ता ने अपने अधिवक्ता के खिलाफ कोई...
अदालत के बाहर की गई स्वीकारोक्ति कमजोर साक्ष्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या मामले में दोषी को बरी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत के बाहर की गई स्वीकारोक्ति, एक कमजोर सबूत है और जब तक उपस्थित परिस्थितियां ऐसी नहीं होती हैं कि स्वीकारोक्ति को विश्वसनीय पाया जाता है, तब तक इसे बहुत महत्वपूर्ण नही माना जा सकता है।जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डॉ. गौतम चौधरी की खंडपीठ ने 2010 की हत्या के सिलसिले में एक दोषी को बरी करते हुए यह टिप्पणी की और कहा कि निचली अदालत ने अदालत के बाहर की गई स्वीकारोक्ति के सबूतों के साथ-साथ एक बाल गवाह की गवाही की सावधानीपूर्वक जांच नहीं की थी। पूरा मामला: ...
















