SC के ताज़ा फैसले

(धारा 216 सीआरपीसी) कोर्ट फैसले को सुरक्षित रख लिए जाने के बाद भी अतिरिक्त आरोप जोड़ने की अनुमति दे सकती हैः सुप्रीम कोर्ट
(धारा 216 सीआरपीसी) कोर्ट फैसले को सुरक्षित रख लिए जाने के बाद भी अतिरिक्त आरोप जोड़ने की अनुमति दे सकती हैः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट मुकदमे में सबूतों की पेशी, दलीलों के पूरा होने और फैसले को सुरक्षित रख लिए जाने के बाद भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 216 के तहत आरोपों को बदलने या जोड़ने की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकती है। मौजूदा मामले में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत आरोप लगाया गया था। मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई और साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और दलीलों के बाद मामले को निर्णय के लिए सुरक्षित रख लिया गया। उसके बाद लोक अभियोजक ने...

खुद किया गया लंबा और लगातार कब्जा विवादित कब्जा नहीं कहा जा सकताः सुप्रीम कोर्ट
खुद किया गया लंबा और लगातार कब्जा विवादित कब्जा नहीं कहा जा सकताः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि किसी संपत्त‌ि पर लगातार और लंबे समय तक किया गया कब्जा, प्रतिकूल कब्जा नहीं कहा जा सकता है ताकि ल‌िमिटेशन एक्ट के अनुच्छेद 65 के आशय की सीमा में उचित स्वामित्व हो। मामले में वादी ने मुकदमें में शामिल संपत्ति की खरीद के आधार पर कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया था। प्र‌तिवादियों ने अपने लिखित बयान में इनकार किया कि वादी संपत्ति का मालिक है। उन्होंने दावा किया कि मुकदमें की प्रॉपर्टी पर उनका घर पिछली दो शताब्दियों से अधिक समय से मौजूद है। हाईकोर्ट ने दूसरी अपील में...

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हैंडराटिंग एक्सपर्ट की राय दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकती
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हैंडराटिंग एक्सपर्ट की राय दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकती

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि स्वतंत्र और विश्वसनीय पुष्टि के बिना, हैंडराइटिंग एक्सपर्ट्स की राय को दोषसिद्घ‌ि का आधार नहीं बनाया जा सकता है। जस्टिस आर भानुमती और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा है कि हेंडराइटिंग एक्सपर्ट की राय पर काम करने से पहले, विवेक की आवश्यकता है कि कोर्ट को यह देखना होगा कि ऐसे सबूतों की अन्य सबूतों द्वारा प्रत्यक्ष पुष्टि हो रही हो या परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा पुष्टि हो रही हो। कोर्ट आईपीसी की धारा 467 और 468 के तहत अभियुक्तों की सजा के खिलाफ अपील पर विचार...

मोटर दुर्घटनाओं का दावा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कानून का उल्लंघन दुर्घटना में हुई लापरवाही का कारण नहीं हो सकता
मोटर दुर्घटनाओं का दावा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कानून का उल्लंघन दुर्घटना में हुई लापरवाही का कारण नहीं हो सकता

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मोटर दुर्घटना मामलों में दायर याचिकाओं पर विचार करते हुए, कानून का उल्लंघन, बिना किसी अन्य वस्तु के, स्वयं दुर्घटना का कारण रही लापरवाही का पता नहीं लगा सकता है। जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने कहा कि उल्लंघन और दुर्घटना के बीच कारण बताने वाला संबंध होना चाहिए या उल्लंघन और पीड़ित पर दुर्घटना के प्रभाव के बीच एक कारण बताने वाला संबंध होना चाहिए। इस मामले में, मृतक और एक अन्य व्यक्ति मोटर साइकिल पर पीछे बैठकर सवारी के रूप में यात्रा कर रहे...

Children Of Jammu and Kashmir From Continuing Education
कश्मीर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की आजादी, व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता संवैधानिक अध‌िकार

कश्मीर लॉकडाउन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का एक महत्वपूर्ण उपल्‍ब्‍धि उसकी यह घोषणा है कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित इंटरनेट के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता भी अनुच्छेद 19 (1) (ए) और 19 (1)(जी) के तहत संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार हैं। जस्टिस एन वी रमना, ज‌स्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि: "हम घोषणा करते हैं कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी भी पेशे को करने की स्वतंत्रता या इंटरनेट के माध्यम से किसी भी व्यापार या व्यवसाय को...

मध्यस्थता निर्णयों और अस्‍पष्ट निर्णयों में कारणों की अपर्याप्तता, एससी ने की अंतर की व्याख्या
मध्यस्थता निर्णयों और अस्‍पष्ट निर्णयों में कारणों की अपर्याप्तता, एससी ने की अंतर की व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट हाल ही में दिए एक फैसले में न्यायालयों द्वारा मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत दिए निर्णय में कारणों की अपर्याप्तता और अस्पष्ट निर्णय के बीच अंतर पर प्रकाश डाला। जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आमतौर पर अबोधगम्य निर्णयों को रद्द नहीं किया जाना चाहिए, जबकि कारणों की अपर्याप्तता को चुनौती हो, उन पर तर्क की विशिष्टता के आधार पर फैसला किया जाना चाहिए, जो कि विचार के लिए आए मुद्दों की प्रकृति के संबंध में अपेक्षित हो। डायना टेक्नोलॉजीज प्रा लि बनाम क्रॉम्पटन...

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आरोपी नशे के कारण बेहोशी की हालत में न हो तो नहीं कम होती अपराध की गंभीरता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आरोपी नशे के कारण बेहोशी की हालत में न हो तो नहीं कम होती अपराध की गंभीरता

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर आरोपी अत्यधिक नशे के कारण अक्षम हालात में न हो तो नशे को अपराध की गंभीरता कम करने का कारक नहीं माना जा सकता है। सूरज जगन्नाथ जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ के समक्ष विवाद था कि आरोपी ने जब अपनी पत्नी पर केरोसिन डालकर माचिस से आग लगाई थी, तब वह शराब के नशे में था। उसकी हालत ऐसी थी कि वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कर रहा है। यह दलील दी गई कि उसने मर चुकी पत्नी को बचाने की कोशिश की, उसे बचाने के लिए उस पर पानी...

[सेक्‍शन 197 सीआरपीसी] पद का उपयोग गैरकानूनी लाभ के लिए करने पर लोकसेवकों को अनुमोदन के संरक्षण का लाभ नहींः सुप्रीम कोर्ट
[सेक्‍शन 197 सीआरपीसी] पद का उपयोग गैरकानूनी लाभ के लिए करने पर लोकसेवकों को अनुमोदन के संरक्षण का लाभ नहींः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे लोकसेवकों के लिए , जिन्होंने गैरकानूनी लाभ के लिए अपने कार्यालय का उपयोग करते हुए कुकृत्य किया है, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत 'अनुमोदन का संरक्षण' उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 19 के तहत किसी लोक सेवक को अनुमोदन का संरक्षण सेवानिवृत्त या त्यागपत्र के बाद उपलब्‍ध नहीं होगा। जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और ज‌स्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने उच्च न्यायालय (जिसने अभियुक्त की रिहाई याचिका को...

SARFAESI: बैंकों के दावों से पहले कर्मचारियों के दावे पर गौर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
SARFAESI: बैंकों के दावों से पहले कर्मचारियों के दावे पर गौर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल केंद्रीय और राज्य कानूनों के तहत स्पष्ट रूप से बनाए गए वैधानिक प्रथम शुल्क, सिक्योरिटाइजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड इंफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट (SARFAESI) के तहत सिक्योर्ड लेनदारों के दावों पर पूर्ववर्ती स्थिति ले सकते हैं। मामला महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक लिमिटेड बनाम बाबूलाल लाडे के मामले की सुनवाई से संबंधित है। अदालत के समक्ष मुद्दा यह था कि SARFAESI अधिनियम के तहत कारखाने के सुरक्षित परिसंपत्तियों की बिक्री से मिली राशि में से...

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प‌ीड़िता को यौन संबंधों की आदत होना, रेप के आरोप में बचाव का वैध आधार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प‌ीड़िता को यौन संबंधों की आदत होना, रेप के आरोप में बचाव का वैध आधार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बलात्कार की शिकार महिला को सेक्स की आदत है, तो भी ये तथ्य बलात्कार के कृत्य के ‌लिए वैध बचाव नहीं हो सकता है। मामले में रिजवान पर एक नाबालिग लड़की से बलात्कार का आरोप था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को अनुमति देने के लिए उस मेडिकल जांच रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता को कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं पहुंचाई और उसे सेक्स करने की आदत थी। उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ की गई अपील में भारत के मुख्य न्यायाधीश...

किराया क़ानून के लिए धार्मिक संस्थानों की परिसंपत्ति का अलग वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं : सुप्रीम कोर्ट
किराया क़ानून के लिए धार्मिक संस्थानों की परिसंपत्ति का अलग वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब धार्मिक परिसर और भूमि (बेदखली और किराया वसूली) अधिनियम को संवैधानिक रूप से वैध ठहराते हुए कहा कि धार्मिक संस्थानों की परिसंपत्तियों का किराया क़ानून के लिए अलग से वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ नहीं है। न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ हरभजन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इस दलील को ठुकरा दिया था कि धार्मिक...

Cr.PC की धारा 482: हाईकोर्ट को उपलब्ध साक्ष्यों की वैधता की जांच की शुरुआत नहीं करनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
Cr.PC की धारा 482: हाईकोर्ट को उपलब्ध साक्ष्यों की वैधता की जांच की शुरुआत नहीं करनी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि शिकायत या आरोप को रद्द करने के लिए Cr.PC की धारा 482 के तहत शक्तियों का आह्वान करते हुए उच्च न्यायालय को उपलब्ध साक्ष्य की वैधता की जांच की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। एम जयंती बनाम केआर मीनाक्षी मामले में एक महिला ने मजिस्ट्रेट के समक्ष एक शिकायत की जिसमें आरोप लगाया गया कि उसके पति ने दूसरी महिला से शादी करके द्विविवाह (आईपीसी की धारा 494) का अपराध किया है।आरोपी पति द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर उच्च न्यायालय ने शिकायत को मुख्य रूप से इस आधार पर...

सुप्रीम कोर्ट ने उस मजिस्ट्रेट की बर्ख़ास्तगी को जायज़ ठहराया जिसने एक महिला वक़ील के पक्ष में फ़ैसला दिया था,  पढ़िए फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने उस मजिस्ट्रेट की बर्ख़ास्तगी को जायज़ ठहराया जिसने एक महिला वक़ील के पक्ष में फ़ैसला दिया था, पढ़िए फैसला

एक क्लाइंट और एक महिला वक़ील के रिश्तेदारों के पक्ष में फ़ैसला देने के आरोप में नौकरी से हटाए गए मजिस्ट्रेट को कोई भी राहत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया। ऐसा माना जाता है कि इस महिला के साथ उनका कथित रूप से नज़दीकी संबंध था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक और निजी जीवन में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट की ईमानदारी संदेह से परे होनी चाहिए। मजिस्ट्रेट की अपील को ख़ारिज करते हुए न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि 'परितोषण' का मतलब सिर्फ़ मौद्रिक परितोषण ही नहीं होता है...