सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

7 Sep 2024 5:26 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट मंथली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (05 अगस्त, 2024 से 30 अगस्त, 2024 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर

    S. 27 Evidence Act | खुलासे के बाद कोई नया तथ्य सामने नहीं आता तो अभियुक्त का बयान अस्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 27 के तहत अभियुक्त द्वारा किया गया खुलासा अप्रासंगिक है, यदि तथ्य पुलिस को पहले से पता था।

    कोर्ट ने हत्या के मामले में दोषसिद्धि को पलटते हुए ऐसा माना। कोर्ट ने माना कि अपराध स्थल के बारे में अभियुक्त द्वारा किया गया खुलासा अप्रासंगिक था, क्योंकि यह तथ्य पुलिस को पहले से पता था। इसलिए धारा 27 के तहत बयान स्वीकार्य नहीं था।

    केस टाइटल: अल्लारखा हबीब मेमन आदि बनाम गुजरात राज्य, आपराधिक अपील नंबर 2828-2829 वर्ष 2023

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    सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब बैन के फैसले पर रोक लगाई

    सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के प्राइवेज कॉलेज द्वारा जारी किए गए निर्देश पर रोक लगा दी, जिसमें परिसर में स्टूडेंट द्वारा हिजाब, टोपी या बैज पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया।

    मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के स्टूडेंट द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कॉलेज के निर्देशों को बरकरार रखा गया था।

    केस टाइटल: जैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटीज एवं अन्य, डायरी नंबर 34086-2024

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    सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत दी

    सुप्रीम कोर्ट ने शराब नीति मामले से संबंधित दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका स्वीकार कर ली। शराब नीति मामले में सुनवाई शुरू होने में हुई देरी को देखते हुए कोर्ट ने CBI और ED दोनों मामलों में सिसोदिया द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।

    कोर्ट ने कहा, "हमें लगता है कि करीब 17 महीने की लंबी कैद और सुनवाई शुरू न होने के कारण अपीलकर्ता को त्वरित सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया..."

    केस टाइटल:

    [1] मनीष सिसोदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8781/2024;

    [2] मनीष सिसोदिया बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8772/2024

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    लेक्चरर के रूप में एडहॉक नियुक्ति को CAS के तहत सीनियर वेतनमान की पात्रता के लिए नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिसि अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने माना कि नियमित आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्त होने से पहले लेक्चरर के रूप में एडहॉक नियुक्ति में दी गई सेवाओं को 'कैरियर एडवांसमेंट स्कीम' (CAS) के तहत सीनियर वेतनमान के अनुदान के लिए पात्रता निर्धारित करने के लिए नहीं गिना जा सकता।

    केंद्र सरकार द्वारा 22 जुलाई, 1988 को अधिसूचित CAS के अनुसार, यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में शिक्षकों के वेतनमान में 1 जनवरी, 1986 से संशोधन किया गया। प्रत्येक लेक्चरर को 3000-5000 रुपये के सीनियर वेतनमान पर रखा गया, यदि व्यक्ति ने नियमित नियुक्ति के बाद आठ साल की सेवा पूरी कर ली हो। इसके बाद राजस्थान सरकार ने CAS को लागू किया।

    केस टाइटल: राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर, अपने रजिस्ट्रार के माध्यम से बनाम डॉ. जफर सिंह सोलंकी एवं अन्य

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    गुजरात की अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत देते समय पुलिस को रिमांड मांगने की अनुमति देना अवैध : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गुजरात की अदालतों द्वारा अग्रिम जमानत देते समय जांच अधिकारियों को आरोपी की पुलिस हिरासत रिमांड मांगने की स्वतंत्रता देने की प्रथा अवैध है। कोर्ट ने कहा, पुलिस को ऐसी स्वतंत्रता देने से अग्रिम जमानत देने का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा।

    केस टाइटल: तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम गुजरात राज्य, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 14489/2023, तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह बनाम कमल दयानी डायरी नंबर- 1106 - 2024

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    हाईकोर्ट CrPC की धारा 482 के तहत दोषी को आत्मसमर्पण करने से छूट नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट के लिए CrPC की धारा 482 के तहत निहित शक्तियों का प्रयोग करके किसी दोषी को दोषसिद्धि के समवर्ती निष्कर्षों के बावजूद किसी विशेष मामले में आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता से छूट देना अनुचित होगा।

    जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा, इसलिए हम इसे कानून के ठोस प्रस्ताव के रूप में स्वीकार करना उचित नहीं समझते कि हाईकोर्ट अपनी अंतर्निहित शक्ति का प्रयोग करते हुए संहिता के तहत पारित आदेशों को प्रभावी करने और/या न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के कर्तव्य से बेखबर होकर किसी विशेष मामले में आत्मसमर्पण करने से छूट दे सकता है।"

    केस टाइटल: दौलत सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य, डायरी नंबर 20900/2024

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    केंद्र की 2015 की अधिसूचना में वर्णित प्रक्रिया का पालन किए बिना बैंक MSME लोन अकाउंट को NPA के रूप में वर्गीकृत नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

    सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED Act) के तहत पंजीकृत संस्थाओं के पुनरुद्धार से संबंधित महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंकों को MSME मंत्रालय द्वारा जारी MSME के पुनरुद्धार और पुनर्वास के लिए रूपरेखा के निर्देशों में निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना MSME के लोन अकाउंट को गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत करने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा, “ऊपर वर्णित निर्देशों/निर्देशों में निहित “MSME के पुनरुद्धार और पुनर्वास के लिए रूपरेखा” में जो विचार किया गया, उसका उधारकर्ता के खाते (तत्काल मामले में MSME लोन अकाउंट) को गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के रूप में वर्गीकृत करने से पहले पालन किया जाना आवश्यक है।”

    केस टाइटल: मेसर्स प्रो निट बनाम कैनरा बैंक के निदेशक मंडल एवं अन्य, विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 7898/2024) एवं अन्य संबंधित मामले।

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    सरकार की सहमति के बिना दिल्ली नगर निगम में सदस्यों को नामित कर सकते हैं LG: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने आज माना कि दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के पास दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के बिना दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन को नामित करने का अधिकार है। कोर्ट ने माना कि यह शक्ति दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत वैधानिक शक्ति है। इसलिए राज्यपाल को दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। चूंकि यह LG को दी गई वैधानिक शक्ति है और सरकार की कार्यकारी शक्ति नहीं है, इसलिए एलजी से अपेक्षा की जाती है कि वह वैधानिक आदेश के अनुसार कार्य करें, न कि दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार।

    केस टाइटल: दिल्ली सरकार बनाम दिल्ली के उपराज्यपाल का कार्यालय, WP(C) नंबर 348/2023

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    S. 138 NI Act | एक बार चेक का निष्पादन स्वीकार कर लिया जाए तो ऋण की ब्याज दर के बारे में विवाद बचाव का विषय नहीं रह जाता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक बार जब कोई व्यक्ति हस्ताक्षरित चेक सौंपने की बात स्वीकार कर लेता है, जिस पर राशि लिखी होती है, तो वह परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत चेक के अनादर के अपराध के लिए अभियोजन पक्ष में बचाव के रूप में ब्याज दर के बारे में विवाद नहीं उठा सकता।

    इस मामले में प्रतिवादी ने बकाया राशि के लिए चिट फंड कंपनी के पक्ष में 19 लाख रुपये की राशि का चेक निष्पादित किया था। जब चेक प्रस्तुत किया गया तो यह "अकाउंट बंद" के समर्थन के साथ वापस आ गया। प्रतिवादी को धारा 138 NI Act के तहत अपराध के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया। हालांकि, अपीलीय अदालत ने उसे बरी कर दिया, जिसे हाईकोर्ट ने भी पुष्टि की। इसलिए चिट कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

    केस टाइटल: सुजीज बेनिफिट फंड्स लिमिटेड बनाम एम. जगनाथन, आपराधिक अपील नंबर 3369/2024

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    राज्य खनिज अधिकारों पर पिछले कर बकाया की वसूली कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि 25 जुलाई को दिए गए उसके फैसले में खनिज अधिकारों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की राज्यों की शक्तियों को बरकरार रखा गया था, लेकिन इसे फैसले की तारीख से ही संभावित प्रभाव दिया जाना चाहिए।

    इसका मतलब यह है कि कोर्ट ने मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एंड ऑर्स के फैसले के आधार पर राज्यों को पिछली अवधि के लिए कर बकाया वसूलने की अनुमति दी है।

    केस टाइटल: मिनरल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया एवं अन्य (सीए नं. 4056/1999)

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    जमानत नियम है, जेल अपवाद, यहां तक कि UAPA जैसे विशेष कानूनों में भी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत नियम है, जेल अपवाद' यहां तक कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 1967 (UAPA Act) जैसे विशेष कानूनों में भी। जस्टिस अभय ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को कथित तौर पर PFI प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने के लिए अपनी संपत्ति किराए पर देने के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी।

    कोर्ट ने कहा, “जब जमानत देने का मामला हो तो अदालत को जमानत देने में संकोच नहीं करना चाहिए। अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन न्यायालय का कर्तव्य है कि वह कानून के अनुसार जमानत के मामले पर विचार करे। अब हमने कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, यह विशेष क़ानूनों पर भी लागू होता है।

    केस टाइटल - जलालुद्दीन खान बनाम भारत संघ

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    थर्ड पार्टी बीमा के लिए PUC सर्टिफिकेट अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने 2017 का निर्देश वापस लिया

    सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2017 के आदेश द्वारा लगाई गई शर्त हटा दी। उक्त शर्त के अनुसार, वाहनों के लिए थर्ड पार्टी बीमा प्राप्त करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण (PUC) सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है।

    जस्टिस एएस ओक और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने जनरल इंश्योरेंस काउंसिल द्वारा दायर आवेदन स्वीकार किया, जिसमें 2017 के आदेश के बारे में चिंताओं को उजागर किया गया।

    केस टाइटल- एमसी मेहता बनाम भारत संघ और अन्य।

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    कंपनी एक्ट, 2013 की धारा 164(2) का वित्त वर्ष 2014-15 से पहले कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय से प्रथम दृष्टया सहमति व्यक्त की है कि कंपनी एक्ट 2013 (Company Act) की धारा 164(2), जो तीन वित्तीय वर्षों की किसी भी निरंतर अवधि के लिए बैलेंस शीट और वार्षिक रिटर्न दाखिल न करने के कारण निदेशकों को (पांच वर्षों के लिए) अयोग्य ठहराने का प्रावधान करती है, उसका वित्त वर्ष 2014-15 से पहले की अवधि पर कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं है।

    केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम जय शंकर अग्रहरि, डायरी संख्या - 10488/2021

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    खनिज अधिकारों पर कर लगाने की राज्यों की शक्ति एमएमडीआर अधिनियम द्वारा सीमित नहीं है; रॉयल्टी कर नहीं है: सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 से फैसला सुनाया

    सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने गुरुवार को 8:1 बहुमत से फैसला सुनाया कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति है और केंद्रीय कानून - खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 - राज्यों की ऐसी शक्ति को सीमित नहीं करता है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने खुद और सात सहयोगियों की ओर से फैसला लिखा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला सुनाया। न्यायालय ने जिन मुख्य प्रश्नों की जांच की, वे थे (1) क्या खनन पट्टों पर रॉयल्टी को कर माना जाना चाहिए और (2) क्या संसदीय कानून खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम 1957 के अधिनियमन के बाद राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर रॉयल्टी/कर लगाने का अधिकार है।

    मामले : मिनरल एरिया डेवलपमेंट बनाम मेसर्स स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया और अन्य (सीए संख्या 4056/1999)

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    S. 307 IPC | सजा सुनाने वाली अदालत दोषी को आजीवन कारावास की सजा नहीं दे सकती, 10 साल से अधिक की सजा नहीं दे सकती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब सजा सुनाने वाली अदालत हत्या के प्रयास के अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा देना उचित नहीं समझती तो हत्या के प्रयास के अपराध के लिए दोषी को दी जाने वाली अधिकतम सजा 10 साल की अवधि से अधिक नहीं हो सकती।

    जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने कहा, “जब संबंधित अदालत ने संबंधित आरोपी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास न देना उचित समझा तो संबंधित दोषी को किसी भी परिस्थिति में दी जाने वाली सजा आईपीसी की धारा 307 के पहले भाग के तहत निर्धारित सजा से अधिक नहीं हो सकती। जब धारा 307 आईपीसी के तहत यह अनिवार्य है तो आजीवन कारावास की सजा न देने के अपने फैसले के मद्देनजर ट्रायल कोर्ट 10 साल से अधिक की सजा नहीं दे सकता।”

    केस टाइटल: अमित राणा @ कोका और अन्य बनाम हरियाणा राज्य

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    पूर्व कार्यकारी निर्णय विधानमंडल को विपरीत दृष्टिकोण अपनाने से नहीं रोकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई व्यक्ति किसी कार्यकारी कार्रवाई के आधार पर किसी लागू करने योग्य कानूनी अधिकार का दावा नहीं कर सकता, जिसे बाद में राज्य विधानमंडल द्वारा व्यापक जनहित में संशोधित किया जाता है। न्यायालय ने कहा कि न तो वैध अपेक्षा का अधिकार और न ही वचनबद्ध रोक का दावा कार्यकारी कार्रवाइयों के आधार पर किया जा सकता है, जिसे विधानमंडल बाद में जनहित में बदलता है।

    केस टाइटल: मेसर्स रीवा टोलवे पी. लिमिटेड बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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    SC/ST Act | प्रथम दृष्टया अपराध सिद्ध होने तक अग्रिम जमानत पर रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक तब तक लागू नहीं होती, जब तक कि आरोपी के खिलाफ अधिनियम के तहत प्रथम दृष्टया मामला सिद्ध न हो जाए।

    कोर्ट ने कहा, "यदि शिकायत में संदर्भित सामग्री और शिकायत को प्रथम दृष्टया पढ़ने पर अपराध के लिए आवश्यक तत्व सिद्ध नहीं होते हैं तो धारा 18 का प्रतिबंध लागू नहीं होगा और अदालतों के लिए गिरफ्तारी से पहले जमानत देने की याचिका पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार करना खुला होगा।"

    केस टाइटल: शाजन स्कारिया बनाम केरल राज्य

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    बिक्री के लिए समझौते का पालन न करना धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिक्री के लिए समझौते का पालन न करना धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं है। संपत्ति बेचने के समझौते के बावजूद बिक्री को निष्पादित करने में विफल रहने के लिए तीन व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मामले को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा: "बिक्री के लिए समझौते का पालन न करना धोखाधड़ी और विश्वासघात का अपराध नहीं है। प्रतिवादी नंबर 2 के पास अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन की राहत के लिए सिविल मुकदमा दायर करने का पर्याप्त उपाय है, जिसका उसने पहले ही लाभ उठाया है। मुकदमा अभी भी लंबित है। एफआईआर केवल अपीलकर्ताओं पर सेल डीड निष्पादित करने या पैसे ऐंठने के लिए दबाव डालने का एक तंत्र प्रतीत होता है। हर सिविल गलत को आपराधिक गलत में नहीं बदला जा सकता। जैसा कि हम वर्तमान मामले में पाते हैं, प्रतिवादी नंबर 2 गुप्त उद्देश्यों के लिए आपराधिक तंत्र का दुरुपयोग करने की कोशिश कर रहा है।"

    केस टाइटल- राधेश्याम एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य

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    सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को बाल पीड़ितों के पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए POCSO Act की धारा 19(6) और JJ Act के प्रावधान लागू करने का निर्देश दिया

    पश्चिम बंगाल राज्य यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत अपराध के पीड़ित की देखभाल करने में विफल रहने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को ऐसे पीड़ितों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए POCSO Act और किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने के निर्देश जारी किए।

    कोर्ट ने विशेष रूप से POCSO Act की धारा 19(6) के कार्यान्वयन का आह्वान किया। इस प्रावधान के अनुसार, विशेष किशोर पुलिस इकाई या स्थानीय पुलिस इकाई को किसी बच्चे के खिलाफ अपराध के बारे में जानकारी मिलने पर तुरंत 24 घंटे के भीतर बाल कल्याण समिति (CWC) के साथ-साथ विशेष न्यायालय को मामले की सूचना देनी चाहिए।

    केस टाइटल: किशोरों की निजता के अधिकार के संबंध में, स्वप्रेरणा से WP(C) संख्या 3/2023

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    आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार योग्यता के आधार पर क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी की सीट का दावा कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का वह आदेश खारिज किया, जिसमें मेधावी आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों को अनारक्षित (यूआर) श्रेणी में एडमिशन देने से मना कर दिया गया था। सौरव यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा कि SC/ST/OBC जैसी आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवार, यदि वे यूआर कोटे में अपनी योग्यता के आधार पर हकदार हैं तो उन्हें यूआर कोटे के तहत एडमिशन दिया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा, “मेधावी आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार जो अपनी योग्यता के आधार पर उक्त क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी का हकदार है, उसे उक्त क्षैतिज आरक्षण की सामान्य श्रेणी से सीट आवंटित की जानी चाहिए। इसका मतलब है कि ऐसे उम्मीदवार को ST/ST जैसी ऊर्ध्वाधर आरक्षण की श्रेणी के लिए आरक्षित क्षैतिज सीट में नहीं गिना जा सकता।”

    केस टाइटल: रामनरेश @ रिंकू कुशवाह और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 2111/2024

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    RG Kar Hospital Case | सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा पर टास्क फोर्स का गठन किया

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह देश भर में डॉक्टरों और मेडिकल पेशेवरों के लिए सुरक्षा की स्थिति की कमी को लेकर बहुत चिंतित है। कोर्ट ने कहा कि उसने 9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में "व्यवस्थागत मुद्दों" को संबोधित करने के लिए स्वत: संज्ञान मामला शुरू किया है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "हमने इस मामले को स्वत: संज्ञान लेने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि यह कोलकाता के अस्पताल में हुई किसी विशेष हत्या से संबंधित मामला नहीं है। यह पूरे भारत में डॉक्टरों की सुरक्षा से संबंधित व्यवस्थागत मुद्दों को उठाता है। सबसे पहले, सुरक्षा के मामले में हम सार्वजनिक अस्पतालों में युवा डॉक्टरों खासकर महिला डॉक्टरों के लिए सुरक्षा की स्थिति के अभाव के बारे में बहुत चिंतित हैं, जो काम की प्रकृति और लिंग के कारण अधिक असुरक्षित हैं। इसलिए हमें राष्ट्रीय सहमति विकसित करनी चाहिए। काम की सुरक्षित स्थिति बनाने के लिए एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल होना चाहिए। अगर महिलाएं काम की जगह पर नहीं जा सकतीं और सुरक्षित महसूस नहीं कर सकतीं तो हम उन्हें समान अवसर से वंचित कर रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अभी कुछ करना होगा कि सुरक्षा की स्थिति लागू हो।"

    केस टाइटल : इन रे : आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोलकाता में प्रशिक्षु डॉक्टर के कथित बलात्कार और हत्या और संबंधित मुद्दे | एसएमडब्लू (सीआरएल) 2/2024

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    स्त्रीधन की पूर्ण स्वामी महिला, पिता उसकी अनुमति के बिना ससुराल वालों से इसकी वसूली नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्त्रीधन महिला की एकमात्र संपत्ति है और उसका पिता उसकी स्पष्ट अनुमति के बिना ससुराल वालों से स्त्रीधन की वसूली का दावा नहीं कर सकता।

    न्यायालय ने टिप्पणी की, "इस न्यायालय द्वारा विकसित न्यायशास्त्र स्त्रीधन की एकमात्र स्वामी होने के नाते महिला (पत्नी या पूर्व पत्नी) के एकमात्र अधिकार के संबंध में स्पष्ट है। यह माना गया कि पति को कोई अधिकार नहीं है और तब यह आवश्यक रूप से निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि पिता को भी कोई अधिकार नहीं है, जब बेटी जीवित, स्वस्थ और अपने 'स्त्रीधन' की वसूली जैसे निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम है।"

    केस टाइटल- मुलकला मल्लेश्वर राव एवं अन्य बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य

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    Delhi Education Rules - निजी प्रबंधन द्वारा अवैध रूप से बंद किए गए स्कूल के कर्मचारियों को समाहित करने के लिए NDMC उत्तरदायी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 अगस्त) को कहा कि NDMC की पूर्व स्वीकृति के बिना DSGMC द्वारा स्कूल को बंद किए जाने के कारण दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (DSGMC) द्वारा संचालित स्कूल के अतिरिक्त कर्मचारियों को समाहित करने और लाभ के भुगतान के लिए नई दिल्ली नगर निगम (NDMC) उत्तरदायी नहीं होगा।

    कोर्ट ने कहा कि दिल्ली शिक्षा नियम (नियम) के नियम 46 के अनुसार, जब NDMC स्कूल के प्रबंधन के लिए उपयोग की जाने वाली निधि राशि का 95% योगदान देता है तो स्कूल को बंद करने से पहले DSGMC से स्वीकृति लेना DSGMC के लिए अनिवार्य है।

    केस टाइटल: नई दिल्ली नगर परिषद और अन्य बनाम मंजू तोमर और अन्य, सिविल अपील नंबर 7440-7441 वर्ष 2012 (और संबंधित मामला)

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    SC/ST कोटे के तहत नियुक्त बैंक कर्मचारियों को उनकी जाति के अनुसूचित जाति सूची से बाहर कर दिए जाने के बाद भी पद पर बने रहने की अनुमति दी: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 अगस्त) को केनरा बैंक द्वारा कुछ कर्मचारियों को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस रद्द किया, जिन्हें वैध जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अनुसूचित जाति कोटे के तहत नियुक्त किया गया था, क्योंकि उनकी जाति को अनुसूचित जाति सूची से बाहर कर दिया गया था।

    कर्नाटक हाईकोर्ट के बैंक के कारण बताओ नोटिस को उचित ठहराने वाले निर्णय को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई अपील दायर की गई थीं। अपीलकर्ता केनरा बैंक द्वारा जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अनुसूचित जाति श्रेणी में नियुक्त किए गए, जो प्रमाणित करते थे कि वे 'कोटेगारा' समुदाय से संबंधित हैं, समानार्थी जाति, जिसे कर्नाटक राज्य द्वारा 21 नवंबर 1977 को जारी सरकारी परिपत्र द्वारा 'कोटेगर मातृ' (अनुसूचित जाति सूची में शामिल) नामक जाति के समकक्ष बनाया गया।

    केस टाइटल: के. निर्मला एवं अन्य बनाम केनरा बैंक एवं अन्य, सी.ए. संख्या 009916 - 009920 / 2024

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    PMLA मामले में भी जमानत नियम है और जेल अपवाद: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) में भी जमानत नियम है और जेल अपवाद। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने धन शोधन मामले में आरोपी को जमानत देते हुए यह फैसला सुनाया। खंडपीठ ने कहा कि PMLA Act की धारा 45 केवल यह निर्धारित करती है कि जमानत प्रदान करना दो शर्तों के अधीन होगा। यह इस मूल सिद्धांत को नहीं बदलता कि जमानत नियम है।

    केस टाइटल: प्रेम प्रकाश बनाम भारत संघ प्रवर्तन निदेशालय के माध्यम से | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 5416/2024

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    आबकारी नीति मामले में के. कविता को सुप्रीम कोर्ट से मिली जमानत

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (27 अगस्त) को कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के मामलों में भारत राष्ट्र समिति (BRS) नेता के. कविता को जमानत दी। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान अभियोजन एजेंसी (CBI/ED) की निष्पक्षता पर सवाल उठाए और कुछ आरोपियों को सरकारी गवाह बनाने में उनके चयनात्मक दृष्टिकोण की आलोचना की।

    केस टाइटल: कलवकुंतला कविता बनाम प्रवर्तन निदेशालय | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 10778/2024 और कलवकुंतला कविता बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | एसएलपी (सीआरएल) नंबर 10785/2024

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    अलग-अलग नियमों से संचालित और अलग-अलग काम करने वाले कर्मचारी केवल समान योग्यता के आधार पर समानता का दावा नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अलग-अलग नियमों से संचालित और अलग-अलग काम करने वाले कर्मचारियों का अलग समूह, केवल इसलिए दूसरे समूह के कर्मचारियों को दिए जाने वाले लाभों का हकदार नहीं है, क्योंकि वे समान योग्यता प्राप्त करते हैं।

    संक्षेप में कहें तो वर्तमान मामले के तथ्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जारी किए गए पत्र से संबंधित हैं, जिसमें कर्मचारियों को पांचवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों के बाद संशोधित वेतनमान के बारे में सूचित किया गया। इस संचार में यह भी प्रावधान किया गया कि 'वैज्ञानिक अपने सेवा जीवन में पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने पर दो अग्रिम वेतन वृद्धि के लिए पात्र होंगे'।

    केस टाइटल: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद महानिदेशक और अन्य बनाम राजिंदर सिंह और अन्य के माध्यम से, सिविल अपील नंबर 97-98 वर्ष 2012

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