BREAKING- RG Kar Hospital Case | सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा पर टास्क फोर्स का गठन किया

Shahadat

20 Aug 2024 7:05 AM GMT

  • BREAKING- RG Kar Hospital Case | सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा पर टास्क फोर्स का गठन किया

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह देश भर में डॉक्टरों और मेडिकल पेशेवरों के लिए सुरक्षा की स्थिति की कमी को लेकर बहुत चिंतित है।

    कोर्ट ने कहा कि उसने 9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में "व्यवस्थागत मुद्दों" को संबोधित करने के लिए स्वत: संज्ञान मामला शुरू किया है।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा,

    "हमने इस मामले को स्वत: संज्ञान लेने का फैसला इसलिए किया, क्योंकि यह कोलकाता के अस्पताल में हुई किसी विशेष हत्या से संबंधित मामला नहीं है। यह पूरे भारत में डॉक्टरों की सुरक्षा से संबंधित व्यवस्थागत मुद्दों को उठाता है। सबसे पहले, सुरक्षा के मामले में हम सार्वजनिक अस्पतालों में युवा डॉक्टरों खासकर महिला डॉक्टरों के लिए सुरक्षा की स्थिति के अभाव के बारे में बहुत चिंतित हैं, जो काम की प्रकृति और लिंग के कारण अधिक असुरक्षित हैं। इसलिए हमें राष्ट्रीय सहमति विकसित करनी चाहिए। काम की सुरक्षित स्थिति बनाने के लिए एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल होना चाहिए। अगर महिलाएं काम की जगह पर नहीं जा सकतीं और सुरक्षित महसूस नहीं कर सकतीं तो हम उन्हें समान अवसर से वंचित कर रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अभी कुछ करना होगा कि सुरक्षा की स्थिति लागू हो।"

    सीजेआई ने कहा कि न्यायालय महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरे देश में अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों पर सिफारिशें देने के लिए पूरे देश के डॉक्टरों को शामिल करते हुए "राष्ट्रीय टास्क फोर्स" बना रहा है।

    पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र, केरल, तेलंगाना आदि जैसे कई राज्यों ने डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए राज्य कानून बनाए हैं। हालांकि, ये कानून संस्थागत सुरक्षा मानकों की कमियों को दूर नहीं करते हैं।

    आदेश में पीठ ने कहा,

    "जैसे-जैसे अधिक से अधिक महिलाएं कार्यबल में शामिल होती जा रही हैं.....देश जमीनी स्तर पर चीजों को बदलने के लिए एक और बलात्कार का इंतजार नहीं कर सकता।"

    आदेश में पीठ ने कई मुद्दे दर्ज किए जैसे-"

    1. नाइट ड्यूटी करने वाले मेडिकल पेशेवरों को आराम करने के लिए पर्याप्त कमरे नहीं दिए जाते हैं। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग ड्यूटी रूम नहीं हैं।

    2. इंटर्न, रेजीडेंट और सीनियर रेजीडेंट से 36 घंटे की ड्यूटी करवाई जाती है, जहां अक्सर स्वच्छता और सफाई की बुनियादी स्थितियां नहीं होती हैं।

    3. अस्पतालों में सुरक्षा कर्मियों की कमी अपवाद से कहीं अधिक आम बात है।

    4. मेडिकल देखभाल पेशेवरों के पास पर्याप्त शौचालय की सुविधा नहीं है।

    5. मेडिकल पेशेवरों के ठहरने के स्थान अस्पतालों से दूर हैं और परिवहन सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं।

    6. अस्पतालों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरों का न होना या उनका ठीक से काम न करना।

    7. मरीजों और उपस्थित लोगों के लिए सभी जगहों पर बेरोकटोक पहुंच है।

    8. प्रवेश द्वार पर हथियारों की जांच का अभाव।

    9. अस्पताल के अंदर डिंग और खराब रोशनी वाली जगहें।

    NTF के सदस्य

    पीठ ने दस सदस्यीय राष्ट्रीय टास्क फोर्स (NTF) के गठन का आदेश दिया। बल का नेतृत्व सर्जन वाइस एडमिरल आरती सरीन एवीएसएम, वीएसएम करेंगे।

    NTF मेडिकल पेशेवरों की सुरक्षा, कार्य स्थितियों और कल्याण से संबंधित सिफारिशें करेगा। NTF को तीन सप्ताह में अंतरिम रिपोर्ट और 2 महीने के भीतर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।

    कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से सवाल किए

    सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने मामले को संभालने के तरीके को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार और पुलिस से भी सवाल किए।

    सीजेआई ने इस तथ्य पर गहरी चिंता व्यक्त की कि पीड़िता का नाम, शव को दिखाने वाली तस्वीरें और वीडियो क्लिप पूरे मीडिया में फैल गई हैं।

    सीजेआई ने कहा,

    "यह बेहद चिंताजनक है।"

    पश्चिम बंगाल राज्य के लिए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने प्रस्तुत किया कि पुलिस के पहुंचने से पहले तस्वीरें ली गईं और प्रसारित की गईं।

    न्यायालय ने प्रिंसिपल के आचरण, एफआईआर दर्ज करने में देरी और 14 अगस्त को सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन के दौरान अस्पताल में हुई तोड़फोड़ पर भी राज्य से सवाल पूछे।

    सीजेआई ने कहा,

    "सुबह-सुबह अपराध का पता चलने के बाद अस्पताल के प्रिंसिपल ने इसे आत्महत्या का मामला बताने की कोशिश की। माता-पिता को कुछ घंटों तक शव देखने की अनुमति नहीं दी गई..."

    सिब्बल ने कहा कि यह गलत जानकारी है। उन्होंने कहा कि राज्य सभी तथ्यों को रिकॉर्ड में रखेगा।

    सीजेआई ने सवाल किया कि आरजी कर अस्पताल से इस्तीफा देने के बाद प्रिंसिपल को दूसरे अस्पताल का प्रभार क्यों दिया गया।

    इसके बाद पीठ ने एफआईआर के समय के बारे में सवाल किया।

    सिब्बल ने कहा कि "अप्राकृतिक मौत" का मामला तुरंत दर्ज किया गया था और दावा किया कि एफआईआर दर्ज करने में कोई देरी नहीं।

    सीजेआई ने बताया कि शव का पोस्टमार्टम दोपहर 1 बजे से शाम 4.45 बजे के बीच किया गया। शव को अंतिम संस्कार के लिए रात करीब 8.30 बजे माता-पिता को सौंप दिया गया। हालांकि, एफआईआर रात 11.45 बजे ही दर्ज की गई।

    सीजेआई ने पूछा,

    "रात 11.45 बजे एफआईआर दर्ज की गई? अस्पताल में कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं करता? अस्पताल के अधिकारी क्या कर रहे थे? क्या पोस्टमार्टम से यह पता नहीं चलता कि पीड़िता के साथ बलात्कार किया गया और उसकी हत्या की गई?"

    सीजेआई ने आगे पूछा,

    "प्रिंसिपल क्या कर रहे थे? पहले इसे आत्महत्या के रूप में पेश करने का प्रयास क्यों किया गया?"

    सीजेआई ने राज्य से 14 अगस्त को "रात को वापस लो" विरोध अभियान के दौरान अस्पताल में हुई तोड़फोड़ की घटनाओं पर भी सवाल किया।

    सीजेआई ने कहा,

    "अस्पताल पर भीड़ ने हमला किया! महत्वपूर्ण सुविधाओं को नुकसान पहुंचाया गया। पुलिस क्या कर रही थी? पुलिस को सबसे पहले घटनास्थल को सुरक्षित करना चाहिए।"

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पुलिस की जानकारी और मिलीभगत के बिना 7000 लोगों की भीड़ इकट्ठा नहीं हो सकती।

    पीठ ने आदेश में दर्ज किया,

    "हम यह समझने में असमर्थ हैं कि अधिकारी तोड़फोड़ से कैसे नहीं निपट पाए।"

    एसजी ने कहा कि इस मुद्दे की जड़ यह है कि पश्चिम बंगाल पुलिस डीआईजी के अधीन काम कर रही है, जो खुद कई आरोपों का सामना कर रहा है। सिब्बल ने इस दलील का खंडन किया।

    सीजेआई ने राज्य से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले और मीडिया और सोशल मीडिया में बोलने वाले लोगों के खिलाफ बलपूर्वक कार्रवाई नहीं करने का भी आग्रह किया।

    सीजेआई ने कहा,

    "पश्चिम बंगाल राज्य की शक्ति को शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हावी नहीं होने देना चाहिए। हमें उनके साथ बहुत संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए। यह राष्ट्रीय स्तर पर विरेचन का क्षण है।"

    सिब्बल ने कहा कि मामले को लेकर मीडिया में बहुत सी गलत सूचनाएं फैल रही हैं और राज्य केवल उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहा है।

    कोर्ट ने सीबीआई से गुरुवार (22 अगस्त) तक जांच पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। पश्चिम बंगाल राज्य से भी बर्बरता की घटनाओं की जांच पर स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटल : इन रे : आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल कोलकाता में प्रशिक्षु डॉक्टर के कथित बलात्कार और हत्या और संबंधित मुद्दे | एसएमडब्लू (सीआरएल) 2/2024

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