हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
9 Nov 2025 8:00 AM IST

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (03 नवंबर, 2025 से 07 नवंबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
अंतर्जातीय विवाह राष्ट्रीय हित में, इन्हें पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अंतर्जातीय विवाह राष्ट्रीय हित में हैं। इन्हें पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा कि जब दो वयस्क सहमति से विवाह या सहवास का निर्णय लेते हैं तो न तो परिवार और न ही समुदाय कानूनी रूप से उस विकल्प में बाधा डाल सकता है या उन पर दबाव, सामाजिक प्रतिबंध या धमकियां डाल सकता है।
कोर्ट ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारत में जाति का सामाजिक प्रभाव अभी भी मज़बूत है। अंतर्जातीय विवाह एकीकरण को बढ़ावा देकर और जातीय विभाजन को कम करके मूल्यवान संवैधानिक और सामाजिक कार्य करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे विवाह राष्ट्रीय हित में हैं और इन्हें किसी भी पारिवारिक या सांप्रदायिक हस्तक्षेप से कड़ा संरक्षण मिलना चाहिए।"
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मृतक आश्रितों के मोटर दुर्घटना मुआवजे के अधिकार का त्याग नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि एक मृत व्यक्ति मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (MV Act) के तहत अपने आश्रितों के मुआवजे का दावा करने के वैधानिक अधिकार का त्याग नहीं कर सकता। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने टिप्पणी की: "कोई व्यक्ति शपथ पत्र या वचन देकर अपना व्यक्तिगत दावा त्याग सकता है, लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों या आश्रितों का दावा नहीं।"
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Indian Succession Act | धारा 57(क)(ख) के दायरे से बाहर की संपत्तियों से संबंधित हिंदू वसीयतों के लिए प्रोबेट की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी हिंदू के वसीयतनामा उत्तराधिकार में यदि कोई संपत्ति भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 57 (क) और (ख) द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्रों में नहीं आती है तो अधिनियम की धारा 213 के तहत प्रोबेट प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 57 वसीयत संबंधी अधिनियम के प्रावधानों को सीमित रूप से हिंदुओं, बौद्धों, सिखों और जैनियों तक विस्तारित करती है।
इसमें प्रावधान है कि ये नियम पहले बंगाल, मद्रास और बंबई के पुराने प्रेसीडेंसी शहरों में या उनसे संबंधित संपत्ति के भीतर की गई वसीयतों पर लागू होंगे। बाद में (1 जनवरी 1927 से) पूरे भारत में ऐसे व्यक्तियों द्वारा की गई सभी वसीयतों पर लागू होंगे। इसके अलावा, अधिनियम की धारा 213 में प्रावधान है कि किसी भी न्यायालय में निष्पादक या वसीयतदार के रूप में कोई भी अधिकार कानूनी रूप से स्थापित नहीं किया जा सकता, जब तक कि किसी सक्षम न्यायालय द्वारा प्रोबेट प्रदान न किया गया हो।
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खाली सीटें होने के बावजूद अदालत यूनिवर्सिटी को नया काउंसलिंग राउंड कराने का आदेश नहीं दे सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वह किसी यूनिवर्सिटी को नया काउंसलिंग राउंड आयोजित करने का आदेश नहीं दे सकती, भले ही कुछ सीटें खाली रह गई हों। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रवेश प्रक्रिया को एक निश्चित समय पर समाप्त होना चाहिए और इसे अनिश्चित काल तक जारी नहीं रखा जा सकता।
चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर की, जिसमें एक अभ्यर्थी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) को LLB कोर्स में एडमिशन के लिए स्पॉट राउंड-V काउंसलिंग कराने का निर्देश देने की मांग की थी।
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सिर्फ इतना कहना कि 'बेटी दुखी थी' या 'अक्सर रोती थी' 498A के तहत ससुराल वालों या पति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी महिला के ससुराल वालों या पति को केवल इस आधार पर धारा 498A (क्रूरता) के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि महिला के माता-पिता ने कहा हो कि उनकी बेटी शादी में 'असंतुष्ट' थी या 'रोती रहती थी'।
जस्टिस मिलिंद सथाये ने पुणे की सत्र न्यायालय के 17 नवंबर 1998 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें रामप्रकाश मनोहर को धारा 498A (क्रूरता) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत उसकी पत्नी रेखा की आत्महत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। रेखा ने नवंबर 1997 में पुणे के बोपोड़ी इलाके में नदी में डूबकर आत्महत्या की थी।
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मूल दस्तावेज़ के खो जाने या नष्ट होने का सख्त प्रमाण मिलने पर ही स्वीकार होगे द्वितीयक साक्ष्य: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में कहा कि अदालतें तभी द्वितीयक साक्ष्य स्वीकार कर सकती हैं जब मूल दस्तावेज़ के खो जाने, नष्ट होने या विपक्षी पक्ष द्वारा जानबूझकर रोककर रखने का ठोस और विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत किया जाए। केवल आरोप लगाना या बिना साक्ष्य के दावा करना इस आधार पर पर्याप्त नहीं होगा।
जस्टिस अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने कहा, “जांच रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ कि वादी द्वारा पंजीकरण के लिए कोई मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया गया था। उसने केवल वसीयत की फोटोकॉपी जमा की थी और इस संबंध में की गई शिकायत भी खारिज कर दी गई थी।”
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पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति लेकर सास-ससुर को छोड़ा: राजस्थान हाईकोर्ट का सैलरी से 20K काटने का आदेश
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पति की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नियुक्त हुई विधवा के वेतन का एक हिस्सा काटे और उसे उसके आश्रित ससुर के खाते में जमा करे। न्यायालय ने पाया कि विधवा ने नियुक्ति मिलते ही अपने ससुराल का घर छोड़ दिया और सास-ससुर को त्याग दिया।
जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने यह राय व्यक्त की कि अनुकंपा नियुक्ति किसी व्यक्ति विशेष को उसकी व्यक्तिगत क्षमता में नहीं बल्कि मृतक पर आश्रित पूरे परिवार के प्रतिनिधि के रूप में दी जाती है। इसलिए इसमें जीवित आश्रितों के हितों की रक्षा करने का एक नैतिक और कानूनी दायित्व भी शामिल है।
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S. 144 BNSS/S.125 CrPC| अविवाहित बालिग ईसाई बेटी पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144 के अंतर्गत प्रावधान की योजना, बालिग बेटी द्वारा भरण-पोषण के दावे पर विचार नहीं करती, जब तक कि वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ न हो।
जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागथ ने यह भी कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम [HAMA] और मुस्लिम पर्सनल लॉ के विपरीत, ईसाइयों पर लागू पर्सनल लॉ में बालिग हो चुकी अविवाहित बेटी के भरण-पोषण का कोई प्रावधान नहीं है।
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पुलिस वकीलों को धमका नहीं सकती, न ही उन्हें मुवक्किलों के साथ बातचीत का ब्यौरा बताने के लिए मजबूर कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक पुलिस अधिकारी पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए स्पष्ट किया कि पुलिस वकीलों पर अपने मुवक्किलों के साथ 'विशेषाधिकार प्राप्त' बातचीत का ब्यौरा देने का दबाव नहीं डाल सकती। जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस संदेश पाटिल की खंडपीठ इस बात से नाराज़ थी कि मुंबई के माटुंगा पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने एक सीनियर सिटीजन के बेटे द्वारा उसके खिलाफ दर्ज कराई गई FIR से संबंधित मामले में उसका प्रतिनिधित्व कर रहे दो वकीलों को कम से कम छह नोटिस जारी किए।
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विवाह अमान्य होने पर भी लागू रहेगी IPC की धारा 498A: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कल यह निर्णय दिया कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498A — जो किसी विवाहित महिला के प्रति उसके पति या ससुराल वालों द्वारा की गई क्रूरता को अपराध घोषित करती है — तब भी लागू होगी जब पति-पत्नी के बीच विवाह बाद में अवैध घोषित कर दिया जाए।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा, “पति की परिभाषा की उद्देश्यमूलक व्याख्या करते हुए यह कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्ति भी इसके दायरे में आते हैं जो विवाहिक संबंध में प्रवेश करते हैं, भले ही वह विवाह बाद में तकनीकी रूप से अमान्य घोषित हो जाए। इसलिए धारा 498A आईपीसी लागू रहेगी।”
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मुस्लिम पुरुष की दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन से पहले पहली पत्नी की बात ज़रूर सुनी जाए, अगर वह आपत्ति करे तो पक्षकारों को अदालत भेजा जाए: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम 2008 के अनुसार, मुस्लिम पुरुष की दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करते समय वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा पहली पत्नी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए। जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि यद्यपि मुस्लिम व्यक्ति कुछ परिस्थितियों में किसी पुरुष को दूसरी शादी की अनुमति देता है। फिर भी यदि विवाह का पंजीकरण किया जाता है तो देश का कानून लागू होगा। तब धर्म संवैधानिक अधिकारों के आगे गौण हो जाता है।
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सामान्य वैवाहिक जीवन में महज ताने दिए जाना और पारिवारिक कलह क्रूरता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वैवाहिक जीवन में सामान्य उतार-चढ़ाव के दौरान केवल ताने आकस्मिक संदर्भ और सामान्य पारिवारिक कलह क्रूरता का अपराध नहीं माना जा सकता। जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि सबूतों के अभाव में भी पति के दूर के रिश्तेदारों को भी जो वैवाहिक घर में रहते भी नहीं हैं, घसीटने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। कोर्ट ने तर्क दिया कि ऐसा केवल क्रूरता के कथित कृत्यों में उनकी सक्रिय भागीदारी को उजागर करने के लिए किया जाता है, क्योंकि ऐसे रिश्तेदार पक्षकारों के वैवाहिक कटुता से अवगत हो सकते हैं।
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विवाह पुरुष को पत्नी पर असीमित अधिकार नहीं देता, महिलाओं की सहनशीलता को सहमति नहीं माना जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने एक 80 वर्षीय व्यक्ति की बरी को रद्द करते हुए उसे धारा 498A (पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत फिर से दोषी ठहराया है। अदालत ने कहा कि विवाह पुरुष को पत्नी पर असीम अधिकार नहीं देता और पत्नी की सुरक्षा, गरिमा और सम्मान सुनिश्चित करना पति की मुख्य वैवाहिक जिम्मेदारी है।
जस्टिस एल. विक्टोरिया गौरी ने कहा कि भारतीय पुरुषों को यह पुरानी सोच छोड़नी चाहिए कि विवाह उन्हें अधिकार देता है। कोर्ट ने कहा, “पत्नी की सुविधा, सुरक्षा और गरिमा कोई द्वितीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि वैवाहिक बंधन का मूल कर्तव्य है,”
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शेयर बाज़ार में निवेश के बाद रिश्वत से अर्जित लाभ भी अपराध की आय का हिस्सा, PMLA के तहत ज़ब्त किया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि शेयर बाज़ार में निवेश के बाद रिश्वत के पैसे से अर्जित लाभ अपराध की आय है और PMLA के तहत ज़ब्त किया जा सकता है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि मूल्य में वृद्धि दूषित स्रोत को शुद्ध या शुद्ध नहीं करती है, क्योंकि बढ़ा हुआ मूल्य रिश्वत के मूल अवैध स्रोत से अभिन्न और अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त होता है।
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केवल एक पक्षकार के अनुपस्थित रहने पर तलाक नहीं दिया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि केवल एक पक्ष के अनुपस्थित रहने या लिखित बयान दाखिल न करने पर तलाक का आदेश पारित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने आगे कहा कि एकपक्षीय कार्यवाही में भी ट्रायल कोर्ट को विवाह विच्छेद करने से पहले याचिकाकर्ता के साक्ष्य का स्वतंत्र रूप से आकलन करना चाहिए और गुण-दोष के आधार पर निष्कर्ष दर्ज करने चाहिए।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस संदेश डी. पाटिल की खंडपीठ फैमिली कोर्ट द्वारा 5 नवंबर 2024 को पारित तलाक के फैसले और डिक्री को चुनौती देने वाली फैमिली कोर्ट की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने उसका विवाह विच्छेद कर दिया था। पति ने क्रूरता के आधार पर विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 27(1)(डी) के तहत याचिका दायर की थी। पत्नी हालांकि शुरू में अदालत में पेश हुई, उसने कोई लिखित बयान या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, जिसके बाद मामला एकपक्षीय रूप से आगे बढ़ा और विवाह विच्छेद हो गया।
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शादी के वादे का उल्लंघन झूठा वादा नहीं: रेप मामलों पर दिल्ली हाईकोर्ट का स्पष्टीकरण
दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के एक मामले में 20 वर्षीय आरोपी को जमानत देते हुए शादी के झूठे वादे और उस वादे के उल्लंघन के बीच के महत्वपूर्ण अंतर को समझाया। जस्टिस रविंदर दूडेजा ने स्पष्ट किया कि रेप के आरोपों से निपटते समय हर बार वादे के उल्लंघन को शादी के झूठे वादे के रूप में देखना उचित नहीं है। साथ ही कोर्ट ने जोर देते हुए कहा कि प्रत्येक मामला अपने तथ्यों पर निर्भर करेगा।
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अटेंडेंस कम होने पर स्टूडेंट्स को परीक्षा से नहीं रोका जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह आदेश दिया कि भारत में किसी भी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज, विश्वविद्यालय या संस्थान में नामांकित किसी भी छात्र को न्यूनतम उपस्थिति (मिनिमम अटेंडेंस) की कमी के आधार पर परीक्षा देने या आगे की शैक्षणिक पढ़ाई से नहीं रोका जाएगा। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया, "किसी भी लॉ कॉलेज, विश्वविद्यालय या संस्थान को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा निर्धारित न्यूनतम प्रतिशत से अधिक उपस्थिति मानदंड अनिवार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।"
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Industrial Disputes Act | सरकार नई मांग के बिना औद्योगिक विवाद संदर्भ में संशोधन नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी से संबंधित किसी भी मांग या विवाद के अभाव में सरकार को इस मामले को श्रम न्यायालय में भेजने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी बर्खास्तगी केवल एक नए औद्योगिक विवाद या औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2ए के तहत सीधे आवेदन के माध्यम से ही की जा सकती है।
जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की: "नौकरी समाप्ति के मुद्दे पर विचार न करने की स्थिति में उपयुक्त सरकार के पास... इस मुद्दे का संदर्भ देने का कोई अधिकार नहीं था... बर्खास्तगी... एक नया वाद-कारण था... उपयुक्त सरकार को स्वतः संज्ञान लेते हुए पहले दिए गए संदर्भ में संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं था..."
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मामला सौंपे जाने पर आगे की जांच का आदेश केवल सेशन कोर्ट ही दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किसी मामले के सौंपे जाने पर, केवल सत्र न्यायालय ही आगे की जाँच का आदेश दे सकता है, इलाका मजिस्ट्रेट नहीं। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस रजनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा, "मजिस्ट्रेट द्वारा मामला सौंपे जाने के बाद सेशन कोर्ट ही मामले की सुनवाई करता है। BNSS की धारा 193(9) के प्रावधान में कोई संदेह नहीं है कि मामले को सौंपे जाने के बाद आगे की जांच का आदेश देने का अधिकार सेशन कोर्ट के पास है।"
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मेडिकल सेंटर चलाने से रोकने वाली ज़मानत शर्त आजीविका के अधिकार का उल्लंघन नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी डॉक्टर को ज़मानत की शर्तों के तहत अपने मेडिकल सेंटर चलाने से रोकना उसके आजीविका के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(g)) का उल्लंघन नहीं है। जस्टिस सुब्रमोनियम प्रसाद ने कहा कि, “आवेदक, जो एक डॉक्टर हैं, वे किसी अन्य मेडिकल सेंटर से जुड़कर अपना पेशा जारी रख सकते हैं। ट्रायल पूरा होने तक अपने सेंटर को चलाने से रोकना उनकी रोज़ी-रोटी नहीं छीनता।”

