पुलिस वकीलों को धमका नहीं सकती, न ही उन्हें मुवक्किलों के साथ बातचीत का ब्यौरा बताने के लिए मजबूर कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
7 Nov 2025 10:03 AM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक पुलिस अधिकारी पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाते हुए स्पष्ट किया कि पुलिस वकीलों पर अपने मुवक्किलों के साथ 'विशेषाधिकार प्राप्त' बातचीत का ब्यौरा देने का दबाव नहीं डाल सकती।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस संदेश पाटिल की खंडपीठ इस बात से नाराज़ थी कि मुंबई के माटुंगा पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने एक सीनियर सिटीजन के बेटे द्वारा उसके खिलाफ दर्ज कराई गई FIR से संबंधित मामले में उसका प्रतिनिधित्व कर रहे दो वकीलों को कम से कम छह नोटिस जारी किए।
जस्टिस मोहिते-डेरे ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,
"जहां कोई अपराध होता है, हम समझते हैं, लेकिन मुवक्किल-वकील परामर्श या बातचीत के लिए, आप ऐसे नोटिस जारी कर रहे हैं... हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते... ये सभी विशेषाधिकार प्राप्त बातचीत हैं... आप ऐसी जानकारी के लिए दबाव नहीं डाल सकते..."
जजों ने अदालत में मौजूद अधिकारी से जानना चाहा कि वह उन दो वकीलों से आखिर क्या जानना चाहता था, जिन्हें उसने कम से कम छह ऐसे नोटिस भेजे थे।
जजों ने कहा,
"अपने मुवक्किल का बचाव करने वाले वकील से वह क्या जानकारी की उम्मीद कर रहा था... क्या आप सभी (पुलिस) एक वकील की भूमिका की सीमाओं को नहीं समझते... किसी वकील को ऐसे नोटिस जारी करके यह नहीं पूछा जा सकता कि उसके मुवक्किल ने उसे क्या बताया है? आप सिर्फ़ मनोरंजन के लिए नोटिस जारी करने की ज़हमत नहीं उठाते... हम जानना चाहते हैं कि उसने नोटिस क्यों जारी किया?"
जजों ने मामलों की जांच और संबंधित मुद्दों के दौरान कानूनी राय देने वाले या पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को बुलाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे पर दिशानिर्देश निर्धारित किए थे।
जस्टिस मोहिते-डेरे ने ज़ोर देते हुए कहा,
"यह गंभीर चिंता का विषय है... अगर ऐसा ही चलता रहा तो कोई भी वकील कभी किसी व्यक्ति का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएगा... यह अप्रत्यक्ष रूप से यह सुनिश्चित करने का प्रयास है कि वकील मुवक्किल की ओर से पेश न हो... ऐसा बार-बार हो रहा है... इस तरह, वकील ब्रीफ स्वीकार नहीं करेंगे... आपका अधिकारी वकील पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है... हम इस कृत्य को माफ नहीं करेंगे... आप किसी भी वकील को धमका नहीं सकते..."
खंडपीठ ने आगे रेखांकित किया कि किसी भी मामले की जांच करते समय पुलिस को स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए और किसी भी मामले की जांच कैसे करनी है, इस बारे में उसे पक्षपातपूर्ण और निर्देशित या उकसाया नहीं जाना चाहिए...
जजों ने कहा,
"पक्ष लड़ सकते हैं, लेकिन पुलिस पक्ष नहीं ले सकती... पुलिस पक्षों की चालों का शिकार नहीं हो सकती... आपको (पुलिस को) पंक्तियों के बीच पढ़ने और अंतर्निहित भावनाओं को समझने की ज़रूरत है..."
इसलिए जजों ने अधिकारी पर 20,000 रुपये का जुर्माना लगाया और स्पष्ट किया कि उक्त राशि उसे अपनी जेब से चुकानी होगी। यह राशि महाराष्ट्र एवं गोवा बार काउंसिल (BCMG) को भुगतान करने का आदेश दिया गया।
जब अतिरिक्त लोक अभियोजक विट्ठल कोंडे-देशमुख ने जजों से आग्रह किया कि अधिकारी द्वारा 'बिना शर्त माफ़ी' मांगने के कारण उन पर जुर्माना न लगाया जाए तो जस्टिस मोहिते-डेरे ने जवाब दिया,
"माफ़ी क्यों? नुकसान तो हो ही चुका है... हम इस तरह के कृत्य को माफ़ नहीं कर सकते।"
जजों ने राज्य को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि मामलों की जांच और संबंधित मुद्दों के दौरान कानूनी राय देने वाले या पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को बुलाने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की प्रति पुलिस के सभी स्तरों पर भेजी जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भविष्य में किसी भी वकील को इस तरह के नोटिस दोबारा जारी न किए जाएं।
Case Title: Narshi Mulji Shah vs State of Maharashtra

