विवाह पुरुष को पत्नी पर असीमित अधिकार नहीं देता, महिलाओं की सहनशीलता को सहमति नहीं माना जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

Praveen Mishra

4 Nov 2025 5:33 PM IST

  • विवाह पुरुष को पत्नी पर असीमित अधिकार नहीं देता, महिलाओं की सहनशीलता को सहमति नहीं माना जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एक 80 वर्षीय व्यक्ति की बरी को रद्द करते हुए उसे धारा 498A (पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत फिर से दोषी ठहराया है। अदालत ने कहा कि विवाह पुरुष को पत्नी पर असीम अधिकार नहीं देता और पत्नी की सुरक्षा, गरिमा और सम्मान सुनिश्चित करना पति की मुख्य वैवाहिक जिम्मेदारी है।

    जस्टिस एल. विक्टोरिया गौरी ने कहा कि भारतीय पुरुषों को यह पुरानी सोच छोड़नी चाहिए कि विवाह उन्हें अधिकार देता है।

    कोर्ट ने कहा, “पत्नी की सुविधा, सुरक्षा और गरिमा कोई द्वितीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि वैवाहिक बंधन का मूल कर्तव्य है,”

    पीड़िता ने आरोप लगाया था कि पति ने परिवार के भीतर अवैध संबंध बनाए और विरोध करने पर उसे मारपीट, धमकियां और मानसिक प्रताड़ना दी। उसने बताया कि पति ने पूजा के पौधे काटे, देवी-देवताओं की तस्वीरें फेंकी, भोजन और खर्च देना बंद किया और यहां तक कि उसे चाकू से मारने की कोशिश की।

    ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया था, लेकिन अपीलीय अदालत ने स्वतंत्र गवाह न होने और दहेज मांग के अभाव में उसे बरी कर दिया।

    हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा मामलों में स्वतंत्र गवाहों की अपेक्षा नहीं की जा सकती और दहेज मांग की अनुपस्थिति से धारा 498ए का अपराध समाप्त नहीं होता।

    अदालत ने कहा कि पत्नी को मानसिक उत्पीड़न, अलगाव, भोजन से वंचित रखना और धार्मिक वस्तुओं का अपमान झेलना पड़ा, जो क्रूरता की श्रेणी में आता है।

    इसलिए अदालत ने ट्रायल कोर्ट का फैसला बहाल करते हुए आरोपी को 6 महीने की साधारण कैद और ₹5,000 जुर्माने की सजा दी।

    अदालत ने कहा कि महिलाओं की सहनशीलता को मौन स्वीकृति या सहमति नहीं समझा जाना चाहिए और विवाह में सम्मान व समानता ही असली बंधन हैं।

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