पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति लेकर सास-ससुर को छोड़ा: राजस्थान हाईकोर्ट का सैलरी से 20K काटने का आदेश

Amir Ahmad

7 Nov 2025 3:32 PM IST

  • पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति लेकर सास-ससुर को छोड़ा: राजस्थान हाईकोर्ट का सैलरी से 20K काटने का आदेश

    राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह पति की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नियुक्त हुई विधवा के वेतन का एक हिस्सा काटे और उसे उसके आश्रित ससुर के खाते में जमा करे। न्यायालय ने पाया कि विधवा ने नियुक्ति मिलते ही अपने ससुराल का घर छोड़ दिया और सास-ससुर को त्याग दिया।

    जस्टिस फरजंद अली की पीठ ने यह राय व्यक्त की कि अनुकंपा नियुक्ति किसी व्यक्ति विशेष को उसकी व्यक्तिगत क्षमता में नहीं बल्कि मृतक पर आश्रित पूरे परिवार के प्रतिनिधि के रूप में दी जाती है। इसलिए इसमें जीवित आश्रितों के हितों की रक्षा करने का एक नैतिक और कानूनी दायित्व भी शामिल है।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस कल्याणकारी ढांचे में परिवार' शब्द की व्याख्या संकीर्ण या खंडित तरीके से नहीं की जा सकती कि इसका मतलब केवल विधवा ही हो। इसमें अनिवार्य रूप से वे सभी शामिल हैं जो मृतक कर्मचारी पर उसकी मृत्यु के समय आश्रित थे अर्थात् माता-पिता पति या पत्नी, और बच्चे क्योंकि वे एक साथ आपसी निर्भरता और साझा भेद्यता से बंधी एक समग्र पारिवारिक इकाई का निर्माण करते हैं।"

    याचिकाकर्ता (मृतक के पिता) का मामला था कि उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए खुद नामित होने और चयनित होने के बावजूद स्वेच्छा से अपनी बहू का नाम इसके लिए अनुशंसित किया था।

    नियुक्ति का दावा करते समय बहू ने एक हलफनामा दायर किया कि वह अपने दिवंगत पति के माता-पिता के साथ रहेगी और उनका भरण-पोषण करेगी। उसने बुजुर्ग सास-ससुर की देखभाल रखरखाव और कल्याण की पूरी जिम्मेदारी लेने का आश्वासन दिया था।

    बेटे की मौत के महज 18 दिन बाद ही बहू ने वैवाहिक घर छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने लगी और अंततः पुनर्विवाह भी कर लिया। राज्य को इस तथ्य की सूचना दी गई लेकिन उस पर विचार किए बिना नियुक्ति दे दी गई थी। इस निष्क्रियता के कारण मृतक के पिता ने कोर्ट में याचिका दायर कर बहू के वेतन का 50% हिस्सा मांगने की मांग की।

    कोर्ट ने सुनवाई के बाद इस बात पर प्रकाश डाला कि अनुकंपा नियुक्ति एक निहित अधिकार नहीं है बल्कि मृतक के परिवार की वित्तीय कठिनाई को कम करने के लिए एक अनुकंपा का कार्य है। इसलिए यह एक निहित न्यासी दायित्व के साथ आता है कि ऐसी नियुक्ति से प्राप्त लाभों का उपयोग मृतक के परिवार के भरण-पोषण के लिए किया जाएगा।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "प्रतिवादी नंबर 4 (बहू) ने अपने गंभीर हलफनामे की ताकत पर यह रोजगार प्राप्त किया, इसलिए वह अब उस वादे से मुकर नहीं सकती, जो उसे दिए गए लाभ का मूल आधार था। उसे ऐसा करने की अनुमति देना अनुकंपा योजना पर ही धोखा करने जैसा होगा।"

    कोर्ट ने माना कि एक बार जब बहू ने ससुर को प्रतिस्थापित करते हुए नियुक्ति स्वीकार कर ली जो मूल नामित व्यक्ति थे तो वह एक विश्वास की स्थिति में आ गई। विशिष्ट आश्वासन के आधार पर लाभ उठाने के बाद वचनबंध विबंधन का सिद्धांत लागू होता है, जिसके कारण अब संबंधित दायित्व से इनकार नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने और भविष्य निधि तथा मुआवजा राशि का लगभग 70% हिस्सा प्राप्त करने के बाद प्रतिवादी नंबर 4 ने अपने सास-ससुर को त्याग दिया और कहीं और रह रही है।

    न्यायालय की राय में ऐसा आचरण न्याय, विवेक और स्वेच्छा से किए गए गंभीर वचन के बिल्कुल विपरीत है।

    इस पृष्ठभूमि में कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बहू को अपने सास-ससुर का भरण-पोषण करने के अपने गंभीर आश्वासन का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

    तदनुसार, राज्य को निर्देश दिया गया कि वह बहू के मासिक वेतन से 20,000 की कटौती करे और याचिकाकर्ता (ससुर) के शेष जीवनकाल के लिए उसके भरण-पोषण के लिए सीधे उसके खाते में जमा करे।

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